Friday, May 18, 2012

दिल्ली दिल वालो की - 1

दिल्ली हमारा शुरू से ही एक मनपसंद शहर रहा है। उसकी एक वजह भी रही है, दिल्ली में मैं कई साल रहा भी हूँ, तथा व्यापार के सिलसिले में मेरा लगातार दिल्ली जाना भी होता हैं। बच्चे कहने लगे की पापा आप दिल्ली हर हफ्ते जाते हो, अबके हमें भी लेकर के चलो, दिसम्बर के आखरी हफ्ते में दिल्ली का कार्यक्रम बना लिया, अच्छा ठंडा मौसम चल रहा था, धुप भी अच्छी खिल रही थी, इसी वजह से २६ दिसम्बर को सुबह ६ बजे हम लोग बोलेरो लेकर के निकल पड़े. नगर से निकलते ही जबरदस्त कोहरे ने हमें घेर लिया।मैंने ड्राईवर इरफ़ान से गाड़ी धीरे चलाने के लिए कहा, खतौली पार करते ही जबरदस्त जाम लगा हुआ था,जाम के कारण गाड़ी बुढाना रोड से नहर की पटरी पर ले ली । बहुत ज्यादा कोहरा होने के कारण से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।गाड़ी धीमी रफ़्तार से चल रही थी। ड्राईवर कहने लगा की गाड़ी में डीजल नहीं हैं। मैंने कहा की सरधना नजदीक हैं वही पर भरवा लेगे, आगे पूरे सरधना में कही भी डीजल नहीं मिला, वापिस नहर की पटरी से मेरठ की और आकर के डीजल मिल पाया। रास्ते में एक बार गाड़ी नीचे नहर में गिरने से बची। खैर दिल्ली पहुँच कर राहत की सांस ली। चाचा जी के लड़के रवि के घर वैशाली पहुंचे, और वंहा से सभी लोग दिल्ली की सैर को चल पड़े।

अब कुछ बात दिल्ली के बारे में भी हो जाए, दिल्ली दुनिया के सबसे प्राचीन नगरो में से एक हैं, इसे सबसे पहले पांडवो ने बसाया था। भगवान् विश्वकर्मा ने इसकी रचना की थी । उस समय इसका नाम इन्द्रप्रस्थ था। दिल्ली बार बार बसती रही, उजडती रही है। इस प्रकार दिल्ली आज ५००० हज़ार साल बाद इस वर्तमान हालत में है। आज भी दिल्ली देश की सिरमौर हैं, राजधानी हैं । धार्मिक स्थल व ऐतिहासिक सम्पदाये पूरी दिल्ली में इधर उधर बिखरी पड़ी है। यूँ तो पूरी दिल्ली घूमने के लिए कई दिन चाहिए। पर हमारे पास केवल २ ही दिन थे, उसमें जो हम घूमे, फिरे उसी का वर्णन मैं कर रहा हूँ। सबसे पहले हम लोग लोटस टेम्पल पर पहुंचे। 

लोटस टेम्पल

लोटस टेम्पल (कमल मंदिर) 

यह मंदिर पूरी दुनिया में अपनी निर्माण व कलाकारी के लिए प्रसिद्ध है।इसका निर्माण बोहरा दाउदी सम्प्रदाय के लोगो ने कराया हैं। इस मंदिरमें बैठ कर शान्ति पूर्वक आप अपने अपने ईश्वर का नमन कर सकते हैं।मंदिर का निर्माण और चारो तरफ फैले बाग़ बगीचों, सरोवर का जवाबनहीं हैं। एक बात देखने वाली होती हैं, मंदिर के कर्मचारियों का अनुशासन।

लोटस मंदिर ( कमल मंदिर) दूर से 

बिटिया - राघव 

छोटा डोन-मोटा डोन 

लोटस मंदिर से सामने का दृश्य 

लोटस टेम्पल के बाद सामने ही स्थित मां कालका देवी मंदिर पहुंचे वंहा पर भीड़ देख कर जान सूख गयी। कम से कम ५०० मीटर लम्बी लाइन थी। और ३ घंटे से पहले नंबर नहीं आना था, तो तय हुआ की पहले क़ुतुब मीनार चला जाए, शाम को आते हुए माता के दर्शन कर लेंगे। 

क़ुतुब मीनार (सूर्य स्तम्भ) परिसर 

क़ुतुब मीनार दिल्ली के महरौली में स्थित हैं। यह अलाउद्दीन खिलज़ी के कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा स्थापित बताया जाता हैं। यह कहा जाता है की यह एक सूर्य स्तम्भ था। जिस पर खड़े होकर के ग्रहों की गणनाए की जाती थी। और यह एक हिन्दू इमारत थी। इस बात का पता यंहा की इमारतों को देख कर लगता हैं। हर इमारत चीख चीख कर अपना इतिहास बताती हैं। 

क़ुतुब मीनार नीचे से 

क़ुतुब मीनार के निर्माण में ज्योमिती और हिन्दू निर्माण कला प्रयुक्त हुई है। इस तरह की बुलंद इमारत बहुत कम मिलती हैं. पहले इसमें अन्दर प्रवेश दिया जाता था। परन्तु एक दुर्घटना के बाद इसमें अन्दर प्रवेश रोक दिया गया। मेरे याद आता हैं, जब में स्कूल में पढता था, तो एक टूर में दिल्ली आये थे, तब हम इसके पहली मंजिल तक गए थे, जिससे दूर दूर तक दिल्ली का नज़ारा दिखता था। 

क़ुतुब का विहंगम विशाल नज़ारा 

सुर्यस्तम्भ या क़ुतुब मीनार 

चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य द्वारा स्थापित लोह स्तम्भ 

लौह स्तंभ क़ुतुब मीनार के निकट (दिल्ली में) धातु विज्ञान की एक जिज्ञासा है| यह कथित रूप से राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (राज ३७५ - ४१३) से निर्माण कराया गया, किंतु कुछ विशेषिज्ञों का मानना है कि इसके पहले निर्माण किया गया, संभवतः ९१२ ईपू में| स्तंभ की उँचाई लगभग सात मीटर है और पहले हिंदू व जैन मंदिर का एक हिस्सा था| तेरहवी सदी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मंदिर को नष्ट करके क़ुतुब मीनार की स्थापना की| लौह-स्तम्भ में लोहे की मात्रा करीब ९८% है और अभी तक जंग नहीं लगा है| (साभार : विकिपीडिया)

इस लोह स्तम्भ की एक ख़ास बात हैं की आप इसे पूरी तरह से बांहों में नहीं भर सकते हैं। कई हज़ार साल पहले इतनी उत्तम लोह निर्माण कला केवल भारत के लोगो के ही पास थी। इससे पता चलता हैं की हमारा विज्ञान कितना उन्नत था। इस स्तम्भ पर ब्राह्मणी लिपि में कुछ लिखा हुआ हैं। 


वाह क़ुतुब 

टुटा हुआ दरवाजा  



क़ुतुब परिसर का दृश्य 

क़ुतुब के ऊपर लिखी हुई कुरान की आयते 

रवि कंहा देख रहा हैं  

बच्चे मस्ती में 

क्या कलाकारी हैं 

सिंह द्वार

खूबसूरत

हिन्दू मंदिरों की उत्कर्ष कला का एक नमूना 

हिन्दू शिल्प कला का एक नमूना 

आप इन चित्रों को ध्यान से देखिये ये किसी मंदिर के अंश नज़र आते हैं। 

लोह स्तम्भ के चारो और पर्यटक 

क्या नक्काशी हैं 

यह खम्बा किसी मंदिर का लगता हैं। 

क़ुतुब परिसर में स्थापित शिलालेख 

यह शिलालेख सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के बारे में बताता हैं। की कितना प्रतापी राजा थे वो। और ये पूरा कैम्पस उन्ही के द्वारा बनवाया हुआ हैं। 

कुताव्वुल इस्लाम मस्जिद 

इस मस्जिद का निर्माण गुलाम वंश के प्रथम शासक कुतुब-उद-दीन ऐबक ने 1192 में शुरु करवाया था। इस मस्जिद को बनने में चार वर्ष का समय लगा। लेकिन बाद के शासकों ने भी इसका विस्तार किया। जैसे अल्तमश ने 1230 में और अलाउद्दीन खिलजी ने 1351 में इसमें कुछ और हिस्से जोड़े। यह मस्जिद हिन्दू और इस्लामिक कला का अनूठा संगम है। एक ओर इसकी छत और स्तंभ भारतीय मंदिर शैली की याद दिलाते हैं, वहीं दूसरी ओर इसके बुर्ज इस्लामिक शैली में बने हुए हैं। मस्जिद प्रांगण में सिकंदर लोदी (1488-1517) के शासन काल में मस्जिद के इमाम रहे इमाम जमीम का एक छोटा-सा मकबरा भी है। कहा जाता हैं की इस का निर्माण 27 हिन्दू, जैन, मंदिरों को तोड़कर उनके मलबे से किया गया हैं। जिसका जिक्र ऊपर शिलालेख में किया गया हैं। (साभार विकिपीडिया)

छत पर नक्काशी 

टूटे हुए मंदिरों के अवशेष 

इसे जरुर पढ़े 

इस शिलालेख में पूरी तरह से स्पष्ट लिखा हुआ हैं की इस परिसर का निर्माण कैसे हुआ था। 

अलाई मीनार 

यह मीनार दिल्ली के महरौली क्षेत्र में कुतुब परिसर में स्थित है। इसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने यह मीनार निर्माण योजना थी, जो कि क़ुतुब मीनार से दुगुनी ऊंची बननी निश्चित की गयी थी, परंतु इसका निर्माण 24.5 मीटर पर प्रथम मंजिल पर ही आकस्मिक कारणों से रुक गया। 


अलाई मीनार 

शिवानी बिटिया 

और ये मैं 

सूर्य भगवान् सूर्य स्तम्भ के पीछे 

कुरआन की आयते मीनार के ऊपर 

खैर पूरे परिसर को देखने में 2-3 घंटे लगते हैं, काफी बड़ा परिसर हैं, कितने ही फोटो खींचो कम हैं। यंहा से निकल कर हम छतरपुर मंदिरों की और पहुंचे। उनका वर्णन में अगली पोस्ट में करूँगा. वंहा से गुडगाव अपने कजिन संदीप के यंहा पहुँच कर पनीर के गुडगाव पकोड़ो का मज़ा लिया. उसके बाद कालका जी मंदिर की और चल पड़े.

माँ कालका देवी मंदिर 

सबसे आखिर में हम लोग माँ कालका देवी मंदिर सिद्ध पीठ पंहुचे. और माँ कालका देवी के दर्शन किये . चूँकि यंहा पर फोटो खीचना मना हैं तो ये फोटो विकिपीडिया से लिया हैं। यह मंदिर पांडवो के द्वारा स्थापित है। और माँ के दर्शन के लिए लोग दूर दूर से आते है। यंहा के बारे में एक बात प्रसिद्ध है की माँ से जो मुराद मांगोगे वो पूरी होती हैं। यह देवी माँ शक्ति की सिद्ध पीठ है। यंहा पर पहुंचना बहुत आसान हैं। नेहरु प्लेस और लोटस टेम्पल के बिलकुल पास हैं। और कालका देवी मेट्रो टर्मिनल से 5 मिनट की दूरी पर है। 


माँ कालका देवी