Sunday, August 16, 2020

MYSURU TRAVELL - 4 - CHAMARAJENDRAN ZOO

MYSURU TRAVELL - 5 - CHAMUNDI HILLS
MYSURU TRAVELL - 4 - CHAMARAJENDRAN ZOO

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कावेरी एम्पोरियम से निकल कर हम लोग चिड़ियाघर की और चल पड़े. इस चिड़िया घर  को चामराजेंद्रन चिडिया घर  भी कहा जाता हैं.

चिड़िया घर का मुख्यद्वार 
मैसूर का चिड़ियाघर : कर्नाटक के मैसूर में विश्व के सबसे पुराने चिड़ियाघरों में से एक चिड़ियाघर है जिसकी स्थापना 1892 में शाही संरक्षण में हुई थी।  इस चिड़ियाघर में 40 से भी ज्यादा देशों से लाए गए जानवरों को रखा गया है। यहां हाथी, सफेद मोर, दरियाई घोड़े, गैंडे और गोरिल्ला के अलावा देश-विदेश की कई प्रजातियां हैं। इसके अलावा यहां भारतीय और विदेशी पेड़ों की करीब 85 से अधिक प्रजातियां रखी गई हैं। इस चिड़ियाघर में करंजी झील है, जहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। यह सुबह आठ बजे से शाम पांच बजे तक खुला रहता हैं.

250 एकड़ में फैला मैसूर चिड़ियाघर भारत के सबसे पुराने चिड़ियाघरों में से एक है। इसे श्री चमाराजेन्द्रा जूलॉजिकल गार्डन के नाम से भी जाना जाता है। यहां विभिन्न प्रजातियों के जानवर पाए जाते हैं जिन्हें देखने हर साल लाखों पर्यटक आते हैं। मैसूर चिड़ियाघर की एक खास बात यह भी है कि यहां जानवरों के पिंजरे बहुत बड़े हैं जहां वे आजादी के साथ घूम-फिर सकते हैं। मैसूर चिड़ियाघर में शेर, चीते, सफ़ेद हाथी, मोर, दरियाई घोड़े, चिम्पैंजी, जिराफ, ज़ेब्रा, सफ़ेद हिरन और गैंडे आदि जानवर देखे जा सकते हैं। इस चिड़ियाघर में पांच बड़े ऐनाकोंडा  भी हैं। यह भारत का एकमात्र चिड़ियाघर है जहां सफेद, काले और भूरे रंग के गैंडे देखने को मिलते हैं। चिड़ियाघर में एक झील है जिसका नाम "करंजी झील है। इस झील में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। इसके अतिरिक्त यहां एक जूलॉजिकल गार्डन भी है जहां भारतीय और विदेशी पेड़ों की करीब 85 प्रजातियां रखी गई हैं। मैसूर चिड़ियाघर में लगभग 40 से भी ज्यादा देशों से लाए गए जानवरों को रखा गया है। यह एकमात्र ऐसा चिड़ियाघर था जहां एक गोरिल्ला भी था लेकिन साल 2014 में इस गोरिल्ला की मृत्यु हो गई।   मैसूर चिड़ियाघर करीब सौ साल से भी पुराना है। इसका निर्माण 1892 में मैसूर के तत्कालीन राजा चमाराजेन्द्र वाडियार (Sri Chamarajendra Wadiyar) ने कराया था। इस चिड़ियाघर में पहले केवल शाही परिवार के लोग ही घूम सकते थे लेकिन वर्ष 1920 में इसे आम जनता के लिए भी खोल दिया गया। आजादी के बाद महाराजा ने इसे भारत सरकार को सौंप दिया।



सफ़ेद मोर - ZOOLOGICAL GARDEN MYSURU



लाल नीले तोते 

तेंदुआ 

चीता 

चीता 
जंगल का राजा शेर 

जू का एक दृश्य 

क्या मस्त बैठा है 
क्या स्टाइल हैं 

ये क्या कर रहा हैं 

एक और दृश्य 

अफ्रीकन ज़ेबरा 


जंगली कुत्ता 
बारहसिंघा का झुण्ड 

भालू 

सफ़ेद हिरन 

जंगली भैंसा 

भालू 

गजराज 

गैंडा 

जिराफ 

MAIN GATE OF ZOO - MYSURU 

पूरा चिड़िया घर घुमने में करीब एक डेढ़ घंटा लग जाता हैं. बस वाले ने सबको एक घंटे के अन्दर आने के  लिए बोला था. परन्तु एक हैदराबादी परिवार ऐसा था कि वह हमेशा लेट आता था. सब लोग उनकी प्रतीक्षा कर रहे होते थे. मैंने  बाहर आकर    भुट्टा आदि खाया. कुछ  पेट पूजा की व चाय पी. इतने  सब लोग आगये थे और बस चलने के लिए तैयार   थी. अब हमें चामुंडी हिल पर जाना था. जंहा पर माँ चामुंडी के दर्शन करने थे. इससे आगे का वृत्तान्त जानने के लिए क्लिक करिए(MYSURU TRAVELL - 5 - CHAMUNDI HILLS)

MYSURU TRAVELL - 3 -JAGAN MOHAN PALACE

MYSURU TRAVELL - 3 -JAGAN MOHAN PALACE

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सुबह ठीक ६ बजे सोकर उठ गया. जल्दी उठने की आदत जो हैं. लॉज से बाहर निकल कर मोर्निंग वाक पर निकल गया. मैसूर की हल्की ठंडी सुबह थी. चाय की तलब लगने लगी, तभी मंजुनाथ भाई की दुकान दिखाई दी. मैंने जाकर हिंदी में पूछा कि चाय मिलेगी. मंजू भाई बोले क्यों नहीं. हिंदी में बात करने लगे. बहुत अच्छा लगा. पूछा  कंहा से आये हो. काफी देर बात की. वे अखबार भी सेल करते थे. मैंने हिंदी अखबार पूछा  तो मंजू भाई के यंहा से ही राजस्थान पत्रिका हिंदी अखबार मिल गया. जो की बेंगलुरु से प्रकाशित होता हैं. इतने मैसूर में रहा, चाय और अखबार मंजू भाई के यंहा से ही लिया. इसके अलावा इनका टूर & ट्रवेल का भी काम हैं. इन्होने ही मेरी मैसूर घुमने के लिए बस बुक कराई. मात्र २०० रूपये में पुरे दिन के लिए मेरी बुकिंग थी. इसमें महलों व संग्रहालयो के टिकट व खाना पीना अलग से था. 

श्री मंजुनाथ जी 

जयलक्ष्मी ट्रावेल्स की बस 
यह वह बस थी जिसने मुझे पुरे दिन मैसूर की सैर कराई. जया लक्ष्मी ट्रवेल की बस थी ये. बस यात्रा के दौरान दो बन्दे जो की बिहार से थे, मेरी बराबर वाली सीट पर थे. एक थे राजरिशी कुमार जी जिनसे आज भी मेरा संपर्क हैं. दुसरे बन्दे का मुझे नाम याद नहीं  रहा. यह दोनों किसी प्रोजेक्ट पर कर्णाटक आये हुए थे. बस में कुल मिलकर ५५ लोग थे.  बस में एक गाइड कम कंडक्टर था. जो माइक पर बताता जा रहा था. सबसे पहले हमें नजदीक ही जगनमोहन पैलेस ले जाया गया. गाइड ने टिकट खरीदे. और हम लोग महल में प्रवेश कर गए. महल बाहर से बहुत ही सुन्दर नज़र आता हैं. इस महल को एक संग्राहलय में परिवर्तित कर दिया गया हैं.

जगनमोहन महल

इस महल का निर्माण महाराज कृष्णराज वोडेयार ने 1861 में करवाया था। यह मैसूर की सबसे पुरानी इमारतों में से एक है। 1897 में जब पुराना लकड़ी का महल आग में जलकर नष्ट हो गया तो मुख्य महल के निर्माण होने तक जगनमोहन महल शाही परिवारों का निवास स्थान भी रहा। यह तीन मंजिला इमारत सिटी बस स्टैंड से 10 मिनट कर दूरी पर है। 1915 में इस महल को श्री जयचमाराजेंद्र आर्ट गैलरी का रूप दे दिया गया जहां मैसूर और तंजौर शैली की पेंटिंग्स, मूर्तियां और दुर्लभ वाद्ययंत्र रखे गए हैं। इनमें त्रावणकोर के शासक और प्रसित्र चित्रकार राजा रवि वर्मा तथा रूसी चित्रकार स्वेतोस्लेव रोएरिच द्वारा बनाए गए चित्र भी शामिल हैं। महल को देखने का समय: सुबह 8.30-शाम 5.30 बजे तक हैं. महल में कैमरा ले जाना मना हैं. 

1902 में कृष्णराजा वुडेयार चतुर्थ ने महल को अपने कमान में ले लिया और इस मौके पर आयोजित एक समारोह में तत्कालीन वाइसराय और गवर्नर जेनरल ऑफ इंडिया लॉर्ड कजर्न ने भी शिरकत की थी। पर्यटक महल में शादी के पवेलियन को भी देख सकते हैं, जिसे कृष्णराजा वुडेयार चतुर्थ की शादी के दौरान बनवाया गया था। इस पवेलियन को दरबार हाल के नाम से भी जाना जाता है और इसकी प्रसिद्धी इस बात को लेकर है कि कृष्णराजा वुडेयार चतुर्थ यहां अपना जन्मदिन मनाया करते थे। इस हॉल का प्रयोग संगीत उत्सव, नाटक और सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ-साथ मैसूर युनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह के लिए भी किया जाता था। आज इस महल का प्रयोग दशहरा त्योहार के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम और समारोह के लिए किया जाता है। महल में दो विशाल लकड़ी के दरवाजे हैं, जिसमें भगवान विष्णु के दसावतार की नक्काशी के साथ-साथ मैसूर के राजाओं की पेंटिंग और हस्तशिल्प बने हुए हैं।(विकिपीडिया)

JAGAN MOHAN PALACE - MYSURU 

JAGAN MOHAN PALACE MYSURU 



JAGAN MOHAN PALACE MYSURU 
महल में करीब ४० मिनट घुमने के बाद हम लोग बस में बैठकर अपने दुसरे डेस्टिनेशन की और चल दिए. हमारा अगला डेस्टिनेशन था कावेरी एम्पोरियम.

बस की खिड़की से लिया गया फोटो 

दशहरा मैदान, मैसूर 

यह ऊपर मैसूर का दशहरा मैदान हैं. मैसूर का दशहरा बहुत मशहूर हैं. इसे देखने के लिए हिंदुस्तान भर से और विदेशो से लोग आते हैं. इसका फोटो भी बस में बैठे हुए ही लिया था.


चौराहे पर खुबसूरत स्टेचू 
मैसूर के चौराहे बहुत अच्छी तरह से सज्जित हैं. यंहा की सरकारी इमारते भी किसी महल की तरह नज़र आती हैं.
कावेरी सिल्क व हस्तकला शोरूम 

मैसूर का सिल्क का और चन्दन का काम बहुत प्रसिद्द हैं. कावेरी सिल्क एंड हैंडी क्राफ्ट   भंडार कर्नाटक सरकार के शोरूम हैं. जिनमे सिल्क की साड़िया, हस्तकला व चन्दन की लकड़ी की शिल्पकारी का सामान मिलता हैं.    शोरूम काफी बड़े क्षेत्र में   हैं. कर्णाटक में हर नगर में ये शो रूम हैं.   पर सामान बहुत महँगा हैं.


Cauvery Handicrafts Emporium

The high standard of craftsmanship maintained by KSHDC has made the Cauvery name synonymous with quality handicrafts.



India can boast of one of the oldest civilizations of the world. The country’s vast cultural and ethnic diversity is showcased in its wide array of fascinating handicrafts.The south Indian state of Karnataka is known for its handicraft industry and its unique, traditional masterpieces which are made from a variety of materials using intricate motifs and time-tested as well as modern techniques. The dense forests of Karnataka, rich in flora and fauna, have inspired a variety of crafts. The sandalwood and rosewood grown in abundance in Karnataka have led to the legacy of exquisite sandalwood carvings and intricate rosewood inlay work. Age-old traditions have been kept alive by passing on jealously guarded techniques from generation to generation. However, the onslaught of modernization has sidelined these craftsmen due to their lack of exposure to the modern global culture.

To ensure that the State's rich tradition of exquisite craftsmanship is preserved, developed and promoted, the Government of Karnataka established the "Karnataka State Handicrafts Development Corporation Ltd (KSHDCL)" in 1964.

KSHDCL has taken up the following initiatives:
Identify places where craftsmen are concentrated and set up craft complexes with facilities like living-cum-work sheds equipped with tools and machinery.
Provide raw materials like sandalwood, zinc and silver at subsidized rates to the craftsmen.
Train craftsmen in creating new designs in mediums like sandalwood, rosewood, lacquer and bronze.
Keep craftsmen updated on the changing market trends, by exposing them to the latest technology.
Look after requirements of the handicraft industry, for instance, wood-seasoning plants set up at the Multi Craft Complex in Mysore and at the Lacquer ware Craft Complex in Channapatna.Indian arts and crafts are in demand all over the world for their beauty, intricacy and artistic work, adding elegance to any decor. KSHDCL markets the beautiful handicrafts of Karnataka under the brand name Cauvery through outlets across the country. The high standard of craftsmanship maintained by KSHDC has made the Cauvery name synonymous with quality handicrafts. साभार: (https://www.cauveryhandicrafts.net/cauvery-handicrafts-emporium)

भगवान् श्री कृष्णा की मूर्ति - कावेरी हैंडी क्राफ्ट्स - MYSURU 

भगवान् शिव की चन्दन की मूर्ति - कावेरी हैंडी क्राफ्ट्स - MYSURU 



कावेरी शोरूम में कलाकृतियो का निर्माण - कावेरी हैंडी क्राफ्ट्स - MYSURU 

मैसूर के एक चौराहे का दृश्य 
कावेरी शोरूम में कुछ समय बिताने के बाद हम लोग अगले डेस्टिनेशन की और बढ़ चले. हमारा अगला पड़ाव था, चिड़ियाघर...इससे आगे का वृत्तान्त जानने के लिए क्लिक करे(MYSURU TRAVELL - 4 - CHAMARAJENDRAN ZOO

MYSURU TRAVELL - 2 - MYSURU PALACE IN NIGHT

MYSURU TRAVELL - 2 - MYSURU PALACE IN NIGHT

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इनफ़ोसिस से बस पकड़ कर मैं  मैसूर के लोकल बस स्टैंड पर उतरा. यंहा से मुझे धन्वन्तरी रोड पर जाना था. जिस पर बहुत से गेस्ट हाउस व होटल बने हुए थे. यंहा के बारे में मुझे विद्युत् प्रकाश मौर्य जी ने बताया था. मैं देवराजा  मार्केट से पैदल चलता हुआ थोड़ी देर में धन्वन्तरी रोड पर पहुँच गया. थोड़ी दूर चलने के बाद मुझे अग्रवाल लॉज नज़र आया. मैंने सोचा रुकने के लिए सबसे पहले इसमें ही प्रयास कर लिया जाए. अन्दर रिशेप्शन पर एक सज्जन बैठे नज़र आये. मैंने रूम के लिए पूछा. एक सिंगल बेड रूम मात्र ४०० रूपये में फाइनल कर लिया. जब मैंने अपनी ID दी तो पूछने लगे मुज़फ्फरनगर से आये हो, बहुत खुश हुए, बोले अरे वंहा तो हमारी रिश्तेदारी हैं. बन्दे अलीगढ के रहने वाले हैं और कई पीढियो से मैसूर में रह रहे हैं. वैश्य समुदाय जिनमे मारवाड़ी और अग्रवाल्स हैं, लाखो की संख्या में मैसूर में रहते हैं. खैर उनका व्यवहार बहुत  ही अच्छा था. रूम भी साफ़ सुथरा व अच्छा था. उन्होंने बताया की आज सन्डे हैं. छुट्टी के दिन मैसूर पैलेस में सात बजे से आठ बजे तक रौशनी की जाती  हैं, व एंट्री फ्री रहती हैं. मैं जल्दी से तैयार होकर व कैमरा लेकर लॉज से बाहर आ गया. व पैदल ही महल की और चल पड़ा. महल करीब एक किलोमीटर था. ठीक सात बजे मैं महल के सामने था. महल को  और महल की सजावट को देखकर मैं आश्चर्य चकित रह गया. आँखे फटी रह गयी. 


AGRAWAL LODGE - MYSURU

अब कुछ महल के बारे में..(FROM WIKIPEDIA)महाराजा पैलेस, राजमहल मैसूर के कृष्णराजा वाडियार चतुर्थ का है। यह पैलेस बाद में बनवाया गया। इससे पहले का राजमहल चन्दन की लकड़ियों से बना था। एक दुर्घटना में इस राजमहल की बहुत क्षति हुई जिसके बाद यह दूसरा महल बनवाया गया। पुराने महल को बाद में ठीक किया गया जहाँ अब संग्रहालय है। दूसरा महल पहले से ज्यादा बड़ा और अच्छा है।



मैसूर पैलेस दविड़, पूर्वी और रोमन स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। नफासत से घिसे सलेटी पत्थरों से बना यह महल गुलाबी रंग के पत्थरों के गुंबदों से सजा है।

महल में एक बड़ा सा दुर्ग है जिसके गुंबद सोने के पत्तरों से सजे हैं। ये सूरज की रोशनी में खूब जगमगाते हैं। अब हम मैसूर पैलेस के गोम्बे थोट्टी - गुड़िया घर - से गुजरते हैं। यहां 19वीं और आरंभिक 20वीं सदी की गुड़ियों का संग्रह है। इसमें 84 किलो सोने से सजा लकड़ी का हौद भी है जिसे हाथियों पर राजा के बैठने के लिए लगाया जाता था। इसे एक तरह से घोड़े की पीठ पर रखी जाने वाली काठी भी माना जा सकता है।

स्थापत्य

गोम्बे थोट्टी के सामने सात तोपें रखी हुई हैं। इन्हें हर साल दशहरा के आरंभ और समापन के मौके पर दागा जाता है। महल के मध्य में पहुंचने के लिए गजद्वार से होकर गुजरना पड़ता है। वहां कल्याण मंडप अर्थात् विवाह मंडप है। उसकी छत रंगीन शीशे की बनी है और फर्श पर चमकदार पत्थर के टुकड़े लगे हैं। कहा जाता है कि फर्श पर लगे पत्थरों को इंग्लैंड से मंगाया गया था।

दूसरे महलों की तरह यहां भी राजाओं के लिए दीवान-ए-खास और आम लोगों के लिए दीवान-ए-आम है। यहां बहुत से कक्ष हैं जिनमें चित्र और राजसी हथियार रखे गए हैं। राजसी पोशाकें, आभूषण, तुन (महोगनी) की लकड़ी की बारीक नक्काशी वाले बड़े-बड़े दरवाजे और छतों में लगे झाड़-फानूस महल की शोभा में चार चांद लगाते हैं। दशहरा में 200 किलो शुद्ध सोने के बने राजसिंहासन की प्रदर्शनी लगती है। कुछ लोगों का मानना है कि यह पांडवों के जमाने का है। महल की दीवारों पर दशहरा के अवसर पर निकलने वाली झांकियों का सजीव चित्रण किया गया है।

महल में स्थित मंदिर

प्रवेशद्वार से भीतर जाते ही मिट्टी के रास्ते पर दाहिनी ओर एक काउंटर है जहाँ कैमरा और सेलफोन जमा करना होता है। काउंटर के पास है सोने के कलश से सजा मन्दिर है। दूसरे छोर पर भी ऐसा ही एक मन्दिर है जो दूर धुँधला सा नज़र आता है। दोनों छोरों पर मन्दिर हैं, जो मिट्टी के रास्ते पर है और विपरीत दिशा में है महल का मुख्य भवन तथा बीच में है उद्यान।

अंदर एक विशाल कक्ष है, जिसके किनारों के गलियारों में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर स्तम्भ है। इन स्तम्भों और छत पर बारीक सुनहरी नक्काशी है। दीवारों पर क्रम से चित्र लगे है। हर चित्र पर विवरण लिखा है। कृष्णराजा वाडियार परिवार के चित्र। राजा चतुर्थ के यज्ञोपवीत संस्कार के चित्र। विभिन्न अवसरों पर लिए गए चित्र। राजतिलक के चित्र। सेना के चित्र। राजा द्वारा जनता की फ़रियाद सुनते चित्र। एक चित्र पर हमने देखा प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा का नाम लिखा था। लगभग सभी चित्र रवि वर्मा ने ही तैयार किए।

कक्ष के बीचों-बीच छत नहीं है और ऊपर तक गुंबद है जो रंग-बिरंगे काँचों से बना है। इन रंग-बिरंगे काँचों का चुनाव सूरज और चाँद की रोशनी को महल में ठीक से पहुँचाने के लिए किया गया था। निचले विशाल कक्ष देखने से पहले तल तक सीढियाँ इतनी चौड़ी कि एक साथ बहुत से लोग चढ सकें। पहला तल पूजा का स्थान लगा। यहाँ सभी देवी-देवताओं के चित्र लगे थे। साथ ही महाराजा और महारानी द्वारा यज्ञ और पूजा किए जाने के चित्र लगे थे। बीच का गुंबद यहाँ तक है।

दूसरे तल पर दरबार हाँल है। बीच के बड़े से भाग को चारों ओर से कई सुनहरे स्तम्भ घेरे हैं इस घेरे से बाहर बाएँ और दाएँ गोलाकार स्थान है। शायद एक ओर महारानी और दरबार की अन्य महिलाएँ बैठा करतीं थी और दूसरी ओर से शायद जनता की फ़रियाद सुनी जाती थी क्योंकि यहाँ से बाहरी मैदान नज़र आ रहा था और बाहर जाने के लिए दोनों ओर से सीढियाँ भी है जहाँ अब बाड़ लगा दी गई है। इसी तल पर पिछले भाग में एक छोटे से कक्ष में सोने के तीन सिंहासन है - महाराजा, महारानी और युवराज केलिए।

सजावट

हफ्ते के अंतिम दिनों में, छुट्टियों में और खास तौर पर दशहरा में महल को रोशनी से इस तरह सजाया जाता है, आंखें भले ही चौंधिया जाएं लेकिन नजरें उनसे हटना नहीं चाहतीं। बिजली के 97,000 बल्ब महल को ऐसे जगमगा देते हैं जैसे अंधेरी रात में तारे आसमान को सजा देते हैं।(साभार: विकिपीडिया)

महल के सामने से ही पार्किंग में से महल का सुन्दर नजारा दिखने लगा था. दोनों गेट और बीच में मंदिर बहुत ही खुबसूरत नज़ारा था.


महल के मुख्य द्वार व बीच में मंदिर - MYSURU PALACE IN NIGHT



ENTRANCE GATE MYSURU PALACE 

HANUMAN JI MANDIR - MYSURU PALACE 
महल में सबसे पहले बाहर मुख्य द्वारों के बीच में बने हनुमान मंदिर में माथा टेका. छोटा सा बहुत ही सुन्दर मंदिर बना हुआ हैं. इस मंदिर का नाम श्री कोटे आंजनेय स्वामी मंदिर है.

HANUMAN JI MANDIR 

MAIN GATE MYSURU PALACE 
हनमान जी को  बाहर  से नमन करने के बाद मैं महल के मुख्य द्वार से अन्दर घुस गया. अन्दर घुसने के बाद लगा जैसे मैं किसी दुसरे लोक मैं आ गया हूँ. महल को देखने वालो की भीड़ थी. हर कोई अपने आप में खोया हुआ था. महल को देखकर हर कोई आश्चर्य चकित था. मैंने भी फटाफट फोटोग्राफी शुरू करदी. फोटो लेते लेते थक जाओगे, लेकिन मन नहीं भरता हैं.

BEAUTIFUL MYSURU PALACE 

MAIN GATE FROM INSIDE - MYSURU PALACE 

MYSURU PALACE


TEMPLE IN MYSURU PALACE 


महल के अन्दर भी कई खुबसूरत मंदिर हैं. उन मंदिरों के फोटो मैंने बाहर से लिए. जूते  बाहर उतारने पड़ रहे थे. उनकी सुरक्षा कैसे करता. इसलिए अन्दर नहीं गया. 

ANOTHER VIEW OF TEMPLE - MYSURU PALACE 



मैसूर पैलेस में मैं. 

एक और चित्र - MYSURU PALACE - MYSURU 

मैसूर पैलेस का एक और दृश्य 
मैसूर पैलेस - MYSURU PALACE 

महल के ग्राउंड में शेर की मूर्ति 



मैसूर पैलेस सामने से 

एक और सुन्दर फोटो 
मैसूर पैलेस में दर्शको की भीड़ 
पैलेस के बाहर बैंड बजाते हुए बैंड वादक 
मैसूर पैलेस में छुट्टी के दिन रौशनी होती हैं. महल के बाहर एक बैंड ग्रुप बैंड भी बजाता है. सैकड़ो लोग बैंड का आनंद ले रहे थे.




महल का गेट व सुन्दर संरचनाये 


सुन्दर महल 

महल का बुर्ज 

महल के अन्दर एक और मंदिर 



मंदिर का गेट 

महल के अन्दर एक और मंदिर हैं इस मंदिर का नाम हैं, श्री भुवनेश्वरा मंदिर 

महल का गेट अन्दर से 

मंदिर और महल एक साथ 

महल से बाहर आकर श्री हनुमान जी के फिर से दर्शन किये.


श्री हनुमान मंदिर 
हनुमान जी का मंदिर अन्दर से 

जय श्री हनुमान जी - MYSURU PALACE 

गेट के बाहर ही गणेश जी का मंदिर स्थित हैं. यंहा पर भी दर्शनों का लाभ लिया.

महल के बाहर श्री गणेश जी का मंदिर - MYSURU PALACE 
जय श्री गणेश 
महल के क्षेत्र से मैं बाहर आ गया. सामने ही एक मॉल नज़र आ रहा था. उसका भी एक फोटो लिया.

महल के सामने स्थित मॉल 

लॉज में वापिस आता हुआ  लोकल अड्डे के सामने से गुजरा,  यह महल के बराबर में स्थित हैं. यंहा से मैसूर लोकल के लिए बस पकड़ सकते हैं. मैसूर से बाहर पुरे कर्नाटक में जाने के लिए ISBT बना हुआ हैं. जो की रेलवे स्टेशन के पास हैं.


मैसूर का लोकल बस अड्डा 
महल के सामने चौराहे पर वाडियार राजा की मूर्ति 

दरबार मार्किट में घंटाघर - MYSURU 
थोड़ी दूर चलने के बाद देवराजा  मार्किट आ जाता हैं. यह  बाज़ार राजाओ के समय से बना हुआ हैं. एक पार्क बना हुआ हैं. जिसमे बीच में घंटाघर हैं. बैठने के लिए सीट बनी हुई हैं. मेरा शाम का काफी समय इसी पार्क में गुजरा.


अब भूख लगने लगी थी अपने लॉज के पास स्थित SOUTHINDIES रेस्टोरेंट  में मैंने रोज दक्षिण भारतीय खाने व फ़िल्टर कोफ़ी का आनंद लिया. सेल्फ सर्विस थी. बहुत ही अच्छा रेस्टोरेंट हैं. रेट भी बहुत ठीक हैं. यंहा पर मैसूर डोसा व फ़िल्टर काफी का आनंद लेकर मैं अपने कमरे में आ गया. पूरा दिन घूमते घूमते हो चुका था. लेटते ही नींद आ गयी. 


SOUTH INDIES REST. - MYSURU 
SOUTHINDIES - MYSURU 

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