Friday, May 19, 2023

SHEKHAWATI TRAVELL - RANI SATI JHUNJHNU - 5

SHEKHAWATI TRAVELL - RANI SATI JHUNJHNU - 5

इससे पहले का यात्रा वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे..(SHEKHAWATI TRAVELL - SALASAR BALAJI - 4)

हम लोग शाम के समय सेठो की नगरी झुंझनु में पहुँच गए. झुंझनु पुराना ऐतिहासिक नगर हैं. यंहा पर मारवाड़ी बनियों की बनवाई हुई हवेलिया व मंदिर, विद्यालय, धर्मशालाए बिखरी पड़ी हैं. एक से एक बढ़ कर हवेलिया  व मंदिर. फिलहाल तो झुंझनु में घुमने का हमें ज्यादा समय नहीं मिला, केवल रानी सती का मंदिर ही देख पाए थे. रानी सती मंदिर भारत के सबसे विशाल मंदिरों में से एक हैं. यह मंदिर बंसल गोत्र के अग्रवाल मारवाड़ी सेठो ने बनवाया हुआ हैं. रानी दादी सती बंसल गोत्र की कुल देवी हैं. अब कुछ मंदिर  के बारे में...

रानी सती मंदिर 

रानी सती मंदिर (रानी सती दीदी मंदिर) भारत के राजस्थान राज्य के झुंझुनू जिले के झुंझुनू में स्थित एक मंदिर है। यह भारत का सबसे बड़ा मंदिर है, जो एक राजस्थानी महिला रानी सती को समर्पित है, जो 13 वीं और 17 वीं शताब्दी के बीच में रहती थी और अपने पति की मृत्यु पर सती (आत्मदाह) करती थी। राजस्थान और अन्य जगहों पर विभिन्न मंदिर उनकी पूजा और उनके कार्य को मनाने के लिए समर्पित हैं। रानी सती को नारायणी देवी भी कहा जाता है और उन्हें दादीजी (दादी) कहा जाता है।

रानी सती दादी मां की कहानी महाभारत के समय से शुरू होती है जो अभिमन्यु और उनकी पत्नी उत्तरा से जुड़ी हुई है। महाभारत के भीषण युद्ध में कोरवो द्वारा रचित चक्रव्यूह को तोड़ते हुए जब अभिमन्यु की मृत्यु हुई, तो उत्तरा कौरवों द्वारा विश्वासघात में अभिमन्यु को अपनी जान गंवाते देख उत्तरा शोक में डूब गई और अभिमन्यु के सतह सती होने का निर्णय ले लिया। लेकिन उत्तरा गर्भ से थी और एक बच्चो को जन्म देने वाली थी। यह देखकर श्री कृष्ण ने उत्तरा से कहा कि वह अपना जीवन समाप्त करने के विचार को भूल जाए, क्योंकि यह उस महिला के धर्म के खिलाफ है जो अभी एक बच्चे को जन्म देने वाली है। श्री कृष्ण की यह बात सुनकर उत्तरा बहुत प्रभावित हुई और उन्होंने सती होने के अपने निर्णय को बदल लिया लेकिन उसके बदले उन्होंने ने एक इच्छा जाहिर जिसके अनुसार वह अगले जन्म में अभिमन्यु की पत्नी बनकर सती होना चाहती थी।

जैसा कि भगवान कृष्ण ने दिया था, अपने अगले जन्म में वह राजस्थान के डोकवा गांव में गुरसमल बिरमेवाल की बेटी के रूप में पैदा हुई थी और उसका नाम नारायणी रखा गया था। अभिमन्यु का जन्म हिसार में जलीराम जालान बंसल गोत्र के पुत्र के रूप में हुआ था और उसका नाम तंदन जालान रखा गया था। तंदन और नारायणी ने शादी कर ली और शांतिपूर्ण जीवन जी रहे थे। उसके पास एक सुंदर घोड़ा था जिस पर हिसार के राजा का पुत्र काफी समय से देख रहा था। तंदन ने अपना कीमती घोड़ा राजा के बेटे को सौंपने से इनकार कर दिया।

राजा का बेटा तब घोड़े को जबरदस्ती हासिल करने का फैसला करता है और इस तरह तंदन को द्वंद्वयुद्ध के लिए चुनौती देता है। तंदन बहादुरी से लड़ाई लड़ता है और राजा के बेटे को मार डालता है। क्रोधित राजा इस प्रकार युद्ध में नारायणी के सामने तंदन को मार देता है। नारी वीरता और शक्ति की प्रतीक नारायणी, राजा से लड़ती है और उसे मार देती है। फिर उसने राणाजी (घोड़े की देखभाल करने वाले) को आदेश दिया कि वह अपने पति के दाह संस्कार के साथ-साथ उसे आग लगाने की तत्काल व्यवस्था करे।

राणाजी, अपने पति के साथ सती होने की इच्छा को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए, नारायणी द्वारा आशीर्वाद दिया जाता है कि उनका नाम लिया जाएगा और उनके नाम के साथ पूजा की जाएगी और तब से उन्हें रानी सती के नाम से जाना जाता है।

मंदिर किसी भी महिला या पुरुष देवताओं की कोई पेंटिंग या मूर्ति नहीं रखने के लिए उल्लेखनीय है। इसके बजाय अनुयायियों द्वारा शक्ति और बल का चित्रण करने वाले त्रिशूल की धार्मिक रूप से पूजा की जाती है। प्रधान मंड में रानी सती दादी जी का चित्र है। मंदिर का निर्माण सफेद संगमरमर से किया गया है और इसमें रंगीन दीवार पेंटिंग हैं।

रानी सती मंदिर के परिसर में भगवान हनुमान मंदिर, सीता मंदिर, ठाकुर जी मंदिर, भगवान गणेश मंदिर और शिव मंदिर भी हैं। प्रत्येक 'आरती' के बाद एक नियमित 'प्रसाद' वितरण होता है। साथ ही मुख्य मंदिर में बारह छोटे सती मंदिर हैं। भगवान शिव की एक विशाल प्रतिमा परिसर के केंद्र में स्थित है और हरे-भरे बगीचों से घिरी हुई है। मंदिर के अंदर, आंतरिक भाग को उत्कृष्ट भित्ति चित्रों और कांच के मोज़ाइक से सजाया गया है जो जगह के पूरे इतिहास को दर्शाता

मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं। मंदिर में दिन में दो बार एक विस्तृत आरती की जाती है। य़े हैं:मंगला आरती: सुबह-सुबह मंदिर खुलने पर की जाती है।

संध्या आरती: शाम को सूर्यास्त के समय की जाती है।

भाद्र अमावस्या के अवसर पर एक विशेष पूजन उत्सव आयोजित किया जाता है: हिंदू कैलेंडर में भाद्र महीने के अंधेरे आधे के 15 वें दिन मंदिर के लिए विशेष महत्व रखता है।(विकिपीडिया)

मंदिर की बाहरी चारदीवारी 

मनीर परिसर के अन्दर जाने का रास्ता 

मंदिर का विशाल परकोटा और द्वार 

मंदिर का विशाल द्वार 

मंदिर का द्वार 

मंदिर का विशाल प्रांगन 

मंदिर के अन्दर दूसरा द्वार 

मंदिर में गणपति प्रतिमा और फव्वारा 

रानी सती का विशाल मंदिर 

दादी रानी सती 

देवियों की मुर्तिया 



रानी सती मंदिर 

रानी सती मंदिर 


रात के समय चलते हुए फव्वारे 


वाह क्या दृश्य है 


मंदिर का द्वार अन्दर से 





मंदिर का प्रांगन बहुत बड़ा हैं. इसे पूरी तरह से देखने के लिए कम से कम दो घंटे तो चाहिए ही. मंदिर परिसर में ही धर्मशाला व भोजनालय बना हुआ है. मंदिर परिसर में भीड़ बहुत होती हैं. हम लोगो को दाती रानी सती की पूजा व आरती करने का व थापा लगाने का अवसर मिला. 

मंदिर से निकलने के बाद अब भूख भी बहुत जोरो से लग रही थी. रात हो चुकी थी. खाना भी खाना था और वापिस मुज़फ्फरनगर के लिए  भी निकलना था. बस में बैठकर निकल् पड़े  अपने रेस्टोरेंट की और जो की बागड़ से पहले हाईवे पर पड़ता हैं रिधि सिद्धि होटल एंड रेस्टोरेंट. 

रिधि सिधी होटल 
बहुत शानदार होटल बना हुआ हैं. खाना भी बहुत अच्छा था. खाकर के तृप्ति हो गयी. खाने क बाद एक एक कप चाय सुड़की गयी. उसके बाद अपने बस में बैठकर मुज़फ्फरनगर के लिए चल पड़े. यात्रा बहुत अच्छी और यादगार रही, जय श्री श्याम बाबा की..