Sunday, July 19, 2020

सूरत से शिर्डी यात्रा -३ ( शनि शिन्गनापुर)

सूरत से शिर्डी यात्रा -३ ( शनि शिन्गनापुर)

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शिर्डी से शिन्गनापुर जाने के लिए राज्यपरिवहन की बसे भी चलती हैं. पर वह समय बहुत लगाती हैं. वंहा जाने के लिए शेयरिंग टैक्सी चलती हैं. जो की वैन  टाइप की होती हैं. और आने जाने के लिए बुक होती हैं.  शिर्डी से करीब ७० किलोमीटर दूर हैं शिन्ग्नापुर. मैं भी एक शेयरिंग टैक्सी में बैठकर चल पड़ा शनि धाम की और. रास्ते में एक स्थान पर गाड़ीवाले खाने के लिए रोकते हैं. मैंने भी थोडा बहुत खाया. फिर गाड़ी में आकर बैठ गए. ड्राईवर ने बहुत देर लगा दी तो मैं बोल पड़ा की अब तक टिक्कड़ फाड़ के नि आया. मेरे पास खडा एक बन्दा बोला भाई साहब हरयाणा से हो क्या. मैंने कहा भाई नहीं नजदीक से हूँ, मुज़फ्फरनगर से. वो बोल्ला मैं करनाल से हूँ. देखा यंहा भी अपने यंहा वाले पडोसी मिल गए. वाकई दुनिया गोल हैं. चलो ड्राईवर साहब भी आ गये और चल पड़े शनि धाम की और . शनि धाम पहुंचकर ये ड्राईवर लोग अपने कमीशन वाली दुकान के पास गाड़ी रोकते है. और बोलते हैं की प्रसाद यंहा से ले लो.  ५१००/-रूपये तक के रेट होते हैं प्रसाद के. बोलते हैं की जो पहली बार आया वो ५१०० का ले, जो दूसरी बार आया वो ३१०० का ले. अजीब ठगी हैं भाई. मैंने उससे कहा की ५१ रूपये का भी है क्या. वो दुकानदार मुझे ऊपर से नीचे की तरफ घूरने लगा. बोला की पहले इन्हें दे दु आपको बाद में दूंगा. मैं समझ गया था क्या बात हैं. बाद में उस दुकानदार ने मुझे ५१ रूपये का प्रसाद दे दिया.  अपने जूते  वंही गाडी में रखकर मैं मंदिर में दर्शन के लिए चला गया. 

शनि शिंगणापुर (Shani Shingnapur) भारत के महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर ज़िले में स्थित एक गाँव है जो अपने शनी देवता के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है

शनि भगवान की स्वयंभू मूर्ति काले रंग की है। 5 फुट 9 इंच ऊँची व 1 फुट 6 इंच चौड़ी यह मूर्ति संगमरमर के एक चबूतरे पर धूप में ही विराजमान है। यहाँ शनिदेव अष्ट प्रहर धूप हो, आँधी हो, तूफान हो या जाड़ा हो, सभी ऋतुओं में बिना छत्र धारण किए खड़े हैं। राजनेता व प्रभावशाली वर्गों के लोग यहाँ नियमित रूप से एवं साधारण भक्त हजारों की संख्या में देव दर्शनार्थ प्रतिदिन आते हैं।

लगभग तीन हजार जनसंख्या के शनि शिंगणापुर गाँव में किसी भी घर में दरवाजा नहीं है।[3] कहीं भी कुंडी तथा कड़ी लगाकर ताला नहीं लगाया जाता। इतना ही नहीं, घर में लोग आलीमारी, सूटकेस आदि नहीं रखते। ऐसा शनि भगवान की आज्ञा से किया जाता है।
लोग घर की मूल्यवान वस्तुएँ, गहने, कपड़े, रुपए-पैसे आदि रखने के लिए थैली तथा डिब्बे या ताक का प्रयोग करते हैं। केवल पशुओं से रक्षा हो, इसलिए बाँस का ढँकना दरवाजे पर लगाया जाता है।
गाँव छोटा है, पर लोग समृद्ध हैं। इसलिए अनेक लोगों के घर आधुनिक तकनीक से ईंट-पत्थर तथा सीमेंट का इस्तेमाल करके बनाए गए हैं। फिर भी दरवाजों में किवाड़ नहीं हैं। यहाँ दुमंजिला मकान भी नहीं है। यहाँ पर कभी चोरी नहीं हुई। यहाँ आने वाले भक्त अपने वाहनों में कभी ताला नहीं लगाते। कितना भी बड़ा मेला क्यों न हो, कभी किसी वाहन की चोरी नहीं हुई।

शनिवार के दिन आने वाली अमावस को तथा प्रत्येक शनिवार को महाराष्ट्र के कोने-कोने से दर्शनाभिलाषी यहाँ आते हैं तथा शनि भगवान की पूजा, अभिषेक आदि करते हैं। प्रतिदिनप्रातः 4 बजे एवं सायंकाल 5 बजे यहाँ आरती होती है। शनि जयंती पर जगह-जगह से प्रसिद्ध ब्राह्मणों को बुलाकर 'लघुरुद्राभिषेक' कराया जाता है। यह कार्यक्रम प्रातः 7 से सायं 6 बजे तक चलता है।

हिन्दू धर्म में कहते हैं कि कोबरा का काटा और शनि का मारा पानी नहीं माँगता। शुभ दृष्टि जब इसकी होती है, तो रंक भी राजा बन जाता है। देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग ये सब इसकी अशुभ दृष्टि पड़ने पर समूल नष्ट हो जाते हैं। परंतु यह स्मरण रखना चाहिए कि यह ग्रह मूलतः आध्यात्मिक ग्रह है। महर्षि पाराशर ने कहा कि शनि जिस अवस्था में होगा, उसके अनुरूप फल प्रदान करेगा। जैसे प्रचंड अग्नि सोने को तपाकर कुंदन बना देती है, वैसे ही शनि भी विभिन्न परिस्थितियों के ताप में तपाकर मनुष्य को उन्नति पथ पर बढ़ने की सामर्थ्य एवं लक्ष्य प्राप्ति के साधन उपलब्ध कराता है। नवग्रहों में शनि को सर्वश्रेष्ठ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह एक राशि पर सबसे ज्यादा समय तक विराजमान रहता है। श्री शनि देवता अत्यंत जाज्वल्यमान और जागृत देवता हैं। आजकल शनि देव को मानने के लिए प्रत्येक वर्ग के लोग इनके दरबार में नियमित हाजिरी दे रहे हैं।(साभार: विकिपीडिया)


भगवान् शनिदेव के दिव्य दर्शन 
शनि देव की पिंडी पर कोई भी सीधे तेल नहीं चढा सकता. एक बराबर में कुंड बना हुआ हैं. उससे पंप के द्वारा तेल शनिदेव की पिंडी के ऊपर गिरता रहता हैं. पहले के समय में एक काले वस्त्र में दर्शन होते थे. व स्त्रिया दर्शन नहीं कर पाती थी. पर अब ऐसा नहीं हैं. हम कैसे भी वस्त्र पहने हो दर्शन कर सकते हैं. व स्त्रिया भी दर्शन कर सकती हैं. 


ॐ शनिश चराय नमह: 

डोनेशन व प्रसाद काउंटर 
दर्शन करने के बाद मैंने मंदिर कैंपस में कुछ फोटोग्राफी की, इधर उधर घुमा और छोटे छोटे मंदिरों के दर्शन किये. वंही पर प्रसाद का व दान देने के लिए काउंटर बना हुआ हैं. मैं दान क्या देता, मैंने शनि मंदिर का विशेष प्रसाद खरीदा. यह एक विशेष प्रकार की नारियल की पीले रंग की बर्फी होती हैं.  प्रसाद खाकर देखा, बर्फी बड़ी स्वादिस्ट थी.



दर्शन करने के बाद 








श्री शनि  धाम का मुख्य द्वार 

शनि मंदिर के बाहर का दृश्य 
शनि धाम में शनि देव के दर्शन के बाद अपनी वैन में बैठकर वापिस शिर्डी की और चल पड़े. कल का मेरा कार्यक्रम सुबह जल्दी उठकर नासिक त्र्यम्बकेश्वर जाने का था.  यंहा से आगे का वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे. "(SHIRDI TRAVELL - सूरत से शिर्डी यात्रा - ४ (त्र्यम्बकेश्वर-TRIMBKESHWAR)

सूरत से शिर्डी यात्रा -२ (शिर्डी साईं धाम )

सूरत से शिर्डी यात्रा -२ (शिर्डी  साईं धाम )

इस यात्रा को आरम्भ से पढने के लिए क्लिक करे"शिर्डी साईं धाम यात्रा - १ (सूरत से शिर्डी )"

साई बाबा मंदिर में ही करीब चार घंटे हो चुके थे. थक भी चुका था. मंदिर से बाहर आकर होटल की और चल पडा. रास्ते में एक अमरुद वाला खडा था. यंहा पर अमरुद दर्जन के भाव से मिलते हैं. जबकि हमारे यंहा किलो के हिसाब से मिलते हैं. इधर के अमरुद बड़े बड़े और स्वादिस्ट होते हैं. अमरुद का टेस्ट लेकर मैं अपने होटल पहुँच गया,  दो तीन घंटा जमकर सोया. सोकर उठके मैं नाश्ता करने चला गया और नाश्ते में चाय और बड़ा पाँव का स्वाद लिया.  फिर शिर्डी में घुमने निकल पड़ा. थोड़ी देर के लिए पास ही स्थित बस टर्मिनल पर बैठ गया. और आती जाती बसों को देखने लगा. शिर्डी से पुरे गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, और आँध्रप्रदेश के लिए बसे चलती हैं. यंहा पर थोड़ा समय गुजारने के पश्चात थडी ही दूर स्थित खंडोबा मंदिर पहुँच गया. भगवान् खंडोबा महाराष्ट्र में बहुत बड़े देवता और अवतार माने जाते हैं. इन्हें भगवान् शिव का अवतार माना जाता हैं. खंडोबा मंदिर के पुजारी म्हालसा पति जी साईं बाबा के सबसे प्रमुख भक्तो में थे. साईं बाबा जब दूसरी बार शिर्डी आये थे तो सबसे पहले वे खंडोबा मंदिर आये थे. महालसा पति जी ने उन्हें देखते ही कहा था आओ साईं. कहते हैं तभी से ही उनका नाम साई बाबा पड़ गया था. साईं शब्द का अर्थ महान पुरुष होता हैं. महालसा पति जी ने उनके उनके तेज और प्रभामंडल को देखते हुए उन्हें साईं के नाम से पुकारा था. 

खंडोबा मंदिर का मुख्य द्वार.


खंडोबा जी के मंदिर का अन्दर का दृश्य 

शिर्डी में रेलवे स्थानक का बोर्ड
खंडोबा मंदिर के बाद मैं फिर से साईं बाबा मंदिर परिशर  में पहुँच गया. मंदिर में उस समय भी बहुत  भीड़ थी. कही के भक्त लोग साईं बाबा की पालकी लेकर आये थे. उनकी श्रृद्धा देखते ही बन रही थी. महाराष्ट्र में एक परम्परा हैं की साईं बाबा के भक्त अपने गाव से पैदल साईं बाबा की पालकी लेकर चलते हैं. और शिर्डी में लेकर आते हैं. जैसे हमारी और कावड़ चलती हैं.

बाबा की पालही 

बाबा की पालकी उठाये हुए भक्त 

पालकी के अन्दर साईं बाबा 

साईं धाम का रात्रि दृश्य 



साईं धाम में लगे हुए CCTV कैमरों का दृश्य 

श्री चावड़ी मंदिर 

सोने का चमकता हुआ मंदिर का शिखर 




रात्री के समय मंदिर में कुछ समय गुजारने के बाद  खाना खाकर अपने होटल में सोने के लिए चला गया. सुबह शनिशिंगनापूर के लिए निकलना था. इस यात्रा का अगला वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे "( सूरत से शिर्डी यात्रा -३ ( शनि शिन्गनापुर)