SHIRDI TRAVELL - सूरत से शिर्डी यात्रा - ४ (त्र्यम्बकेश्वर-TRIMBKESHWAR)
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शिर्डी से नासिक के लिए मुझे जल्दी सुबह मुह अँधेरे निकलना था. सुबह चार बजे का अलार्म लगा कर सो गया. होटल वाले को भी बोल दिया की सुबह जल्दी निकलूंगा. रात को ही उसका हिसाब किताब कर दिया. सुबह चार बजे उठकर, हाथ मुह धोकर मैं तैयार हो गया. और बाहर निकल गया. नासिक के लिए गाड़ी थोड़ी ही दूर चलकर हाईवे से मिलनी थी. शिर्डी से नासिक ९० किलोमीटर हैं. १० मिनट में मै पैदल हाईवे पर पहुँच गया. वंहा एक चाय वाला खड़ा था. एक कप चाय और बंद लिया गया. इतने चाय पी, एक बस आती दिखाई दी. वह वंही पर आकर रुक गयी. बस उज्जैन से आ रही थी. कंडक्टर नासिक के लिए आवाज लगा रहा था. मैं उसमे चढ़ गया. स्लीपर AC कोच थी. कंडक्टर को किराए के १०० रूपये देकर में ऊपर स्लीपर में चढ़ गया. और लेट गया. AC के कारण झपकी आने लगी. करीब डेढ़ घंटे बाद कंडक्टर ने आवाज लगाई कि नासिक वाले तैयार हो जाओ. हम उठ गए. और वंहा के मशहूर द्वारिका सर्किल पर उतर गए. द्वारिका सर्किल नासिक का एक मशहूर चोराहा हैं. नासिक में आने जाने वाली बसे इसी चौराहे पर सवारी उतारती चढ़ाती हैं. सूरत से शिर्डी आने जाने वाली गाडिया यंही पर सवारी उतारती व चढ़ाती हैं. बस से उतरते ही हमें ऑटो वालो ने घेर लिया, मेरे साथ उज्जैन से आ रहे २ बन्दे और उतरे. क्षमा चाहूंगा उनका नाम और मोबाइल नंबर मेरे से खोये गए थे. नाम याद नहीं रहा. एक उनमे वंहा के डाक्टर थे. और एक उनके दोस्त. उन्हें भी त्रिम्बकेश्वर जाना था, व नासिक घूमना था. हम तीनो ने एक औटो पुरे दिन के लिए, त्रिम्ब्केश्वर व नासिक घुमने के लिए शेयरिंग में तय कर लिया. वह ८०० रूपये में तय हुआ था. उज्जैन वाले बंधू मृदुभाषी व सीधे साधे थे. सबसे पहले हमने ऑटो वाले से कहा की हमें फ्रेश होना हैं व नहाना धोना हैं. व रामघाट के पास स्थित एक सार्वजानिक स्नानघर में ले आया. आज मकर संक्रांति होने के कारण भीड़ बहुत थी. वैसे भी नासिक एक बहुत बड़ा तीर्थ स्थान हैं. हर बारह साल में कुम्भ का मेला भरता हैं. दक्षिण की गंगा माँ गोदावरी नासिक के बीचो बीच से बहती हैं. नहा धोकर हम लोग त्रिम्ब्केश्वर के लिए निकल पड़े. नासिक से त्रिम्ब्केश्वर करीब तीस किलोमीटर हैं. हाईवे के दोनों और अंगूरों के बाग़ लहलाते नज़र आते है. नासिक अंगूरों और अंगूरों की शराब के लिए प्रसिद्द हैं. अंगूरों के फार्म में ही वाईनरी नज़र आ रही थी. यानी अंगूर की शराब भी वंही बनती हैं साथ ही होटल और गेस्ट हाउस भी नज़र आ रहे थे. इन्ही अंगूर फार्म में हर्षद मेहता का फार्म भी जो की अब उसके परिवार वाले देखते हैं. खैर थोड़ा आगे चलकर एक सुन्दर व बड़ा सा भोजनालय नज़र आया. भोजनालय का नाम था संस्कृति.चाय पानी व नाश्ते की तलब लगी थी सो रुक गए. चाय पानी लेकर हम लोग फिर से चल पड़े. ऑटो वाला बहुत बातूनी था. सारे रास्ते बात करता चलता रहा.
अब कुछ त्रिम्ब्केश्वर के बारे में. (त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर महाराष्ट्र-प्रांत के नासिक जिले में हैं यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। इन्हीं पुण्यतोया गोदावरी के उद्गम-स्थान के समीप असस्थित त्रयम्बकेश्वर-भगवान की भी बड़ी महिमा हैं गौतम ऋषि तथा गोदावरी के प्रार्थनानुसार भगवान शिव इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विख्यात हुए। मंदिर के अंदर एक छोटे से गंढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये चौड़ी-चौड़ी सात सौ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद 'रामकुण्ड' और 'लष्मणकुण्ड' मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं।
त्र्यंबकेश्वरज्योर्तिलिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही विराजित हैं यही इस ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं।
गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्र्यंबकेश्वर मंदिर काले पत्थरों से बना है। मंदिर का स्थापत्य अद्भुत है। इस मंदिर के पंचक्रोशी में कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्न होती है। जिन्हें भक्तजन अलग-अलग मुराद पूरी होने के लिए करवाते हैं।
इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1755 में शुरू हुआ था और 31 साल के लंबे समय के बाद 1786 में जाकर पूरा हुआ। कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर के निर्माण में करीब 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे, जो उस समय काफी बड़ी रकम मानी जाती थी।
गाँव के अंदर कुछ दूर पैदल चलने के बाद मंदिर का मुख्य द्वार नजर आने लगता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर की भव्य इमारत सिंधु-आर्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद शिवलिंग की केवल आर्घा दिखाई देती है, लिंग नहीं। गौर से देखने पर अर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन लिंगों को त्रिदेव- ब्रह्मा-विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। भोर के समय होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर और गाँव ब्रह्मगिरि नामक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। इस गिरि को शिव का साक्षात रूप माना जाता है। इसी पर्वत पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गमस्थल है। कहा जाता है-
प्राचीनकाल में त्र्यंबक गौतम ऋषि की तपोभूमि थी। अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गौतम ऋषि ने कठोर तप कर शिव से गंगा को यहाँ अवतरित करने का वरदान माँगा। फलस्वरूप दक्षिण की गंगा अर्थात गोदावरी नदी का उद्गम हुआ।
गोदावरी के उद्गम के साथ ही गौतम ऋषि के अनुनय-विनय के उपरांत शिवजी ने इस मंदिर में विराजमान होना स्वीकार कर लिया। तीन नेत्रों वाले शिवशंभु के यहाँ विराजमान होने के कारण इस जगह को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाने लगा। उज्जैन और ओंकारेश्वर की ही तरह त्र्यंबकेश्वर महाराज को इस गाँव का राजा माना जाता है, इसलिए हर सोमवार को त्र्यंबकेश्वर के राजा अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में यह कथा वर्णित है-
एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियाँ किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपमान करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त भगवान् श्रीगणेशजी की आराधना की।
उनकी आराधना से प्रसन्न हो गणेशजी ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा उन ब्राह्मणों ने कहा- 'प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।' उनकी यह बात सुनकर गणेशजी ने उन्हें ऐसा वर माँगने के लिए समझाया। किंतु वे अपने आग्रह पर अटल रहे।
अंततः गणेशजी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देखकर ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हाँकने के लिए लपके। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं मरकर गिर पड़ी। अब तो बड़ा हाहाकार मचा।
सारे ब्राह्मण एकत्र हो गो-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुःखी थे। अब उन सारे ब्राह्मणों ने कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिए। गो-हत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा। विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहाँ से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किंतु उन ब्राह्मणों ने वहाँ भी उनका रहना दूभर कर दिया। वे कहने लगे- 'गो-हत्या के कारण तुम्हें अब वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया।' अत्यंत अनुनय भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय बताएँ।
तब उन्होंने कहा- 'गौतम! तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद 'ब्रह्मगिरी' की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहाँ गंगाजी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगीरि की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।
ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा- 'भगवान् मैं यही चाहता हूँ कि आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।' भगवान् शिव ने कहा- 'गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गो-हत्या का अपराध तुम पर छल पूर्वक लगाया गया था। छल पूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूँ।'
इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध न करें।' बहुत से ऋषियों, मुनियों और देव गणों ने वहाँ एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान् शिव से सदा वहाँ निवास करने की प्रार्थना की। वे उनकी बात मानकर वहाँ त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतमजी द्वारा लाई गई गंगाजी भी वहाँ पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है।
इस भ्रमण के समय त्र्यंबकेश्वर महाराज के पंचमुखी सोने के मुखौटे को पालकी में बैठाकर गाँव में घुमाया जाता है। फिर कुशावर्त तीर्थ स्थित घाट पर स्नान कराया जाता है। इसके बाद मुखौटे को वापस मंदिर में लाकर हीरेजड़ित स्वर्ण मुकुट पहनाया जाता है। यह पूरा दृश्य त्र्यंबक महाराज के राज्याभिषेक-सा महसूस होता है। इस यात्रा को देखना बेहद अलौकिक अनुभव है।
‘कुशावर्त तीर्थ की जन्मकथा काफी रोचक है। कहते हैं ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी बार-बार लुप्त हो जाती थी। गोदावरी के पलायन को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंधन में बाँध दिया। उसके बाद से ही इस कुंड में हमेशा लबालब पानी रहता है। इस कुंड को ही कुशावर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है। कुंभ स्नान के समय शैव अखाड़े इसी कुंड में शाही स्नान करते हैं।’- दंत कथा
शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन त्र्यंबकेश्वर मंदिर में भक्तों का ताँता लगा रहता है। भक्त भोर के समय स्नान करके अपने आराध्य के दर्शन करते हैं। यहाँ कालसर्प योग और नारायण नागबलि नामक खास पूजा-अर्चना भी होती है, जिसके कारण यहाँ साल भर लोग आते रहते हैं।
त्र्यंबकेश्वर गाँव नासिक से काफी नजदीक है। नासिक पूरे देश से रेल, सड़क और वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है। आप नासिक पहुँचकर वहाँ से त्र्यंबक के लिए बस, ऑटो या टैक्सी ले सकते हैं। टैक्सी या ऑटो लेते समय मोल-भाव का ध्यान रखें। साभार: विकिपीडिया)
होटल संस्कृति
होटल में नाश्ता करके हम त्रिम्ब्केश्वर की और चल पड़े. सबसे पहले हम लोग गोदावरी कुंड पहुंचे. इसे कुशावर्त तीर्थ भी कहा जाता हैं. सतुयुग में गौतम ऋषि अपनी पत्नी अहिल्या के साथ यंहा पर रहते थे. बस एक 5 मिनट मुख्य मंदिर से दूर चलना पड़ता हैं यह एक पवित्र तालाब है जिसे कुशावर्त तालाब कहा जाता है.यह वही स्थान है जहां से गोदावरी गंगा नदी मार्ग लेती है । लोगों का विश्वास है की, इस पवित्र नदी में डुबकी लेने से सब पाप धुल जाते है। गौतमऋषिजी ने एक गाय की हत्या के द्वारा एक पाप किया और इस नदी में स्नान लेने के बाद उनके पाप साफ हो गए।
श्रीमंत राव साहिब पर्नेकरजी ने इस जगह पानी के चारों ओर मंदिर का निर्माण किया जो आज हम देख रहे हैं। हॉल के सभी के अंदर की दीवारों पर विभिन्न मूर्तियों से खुदा हुआ है, और सभी कोनों में कुछ छोटे मंदिर हैं। इस तालाब का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यह कुम्भ मेले के शुरुआती बिंदु है जो 12 साल में एक बार होता है। कुम्भ मेला के अवसर पर इस जगह को एक पवित्र स्नान लेने के लिए के लिए दुनियाभर से संन्यासी आते है।
नियम के अनुसार साधु संत के लिए "वैष्णव" संप्रदाय संबंधित राम कुंड, पंचवटी और "शैव" संप्रदाय के लिए यहाँ स्नान किया जाएगा। चूंकि गोदावरी (गंगा) यहां से बहती है और राम कुंड पर पहुंचती है तो दोनों पवित्र माना जाता है।(साभार: https://trambakeshwar.com/hindi/trimbakshwar.html)
गोदावरी कुंड त्रियम्ब्केश्वर |
गोदावरी कुंड में स्नान |
गोदावरी कुंड में स्नान के बाद |
गोदावरी कुंड में स्नान के बाद |
त्रियम्ब्केश्वर का इतिहास
गोदावरी कुण्ड के किनारे शिवलिंगम
गोदावरी कुंड में स्नान के बाद हम लोग त्रिम्ब्केश्वर मंदिर की और आ गए. मकरसंक्रांति के कारण भारी भीड़ थी. लम्बी लाइन थे. तो हम भी लाइन में लग गए करीब एक डेढ़ घंटा लाइन में लग कर हम लोग ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर पाए. दर्शन करके मन तृप्त हो गया
मंदिर के बाहर शिवाजी महाराज की मूर्ति |
मंदिर के बाहर बाज़ार व पहाडिया |
मंदिर में दर्शनों के लिए लगने वाली भीड़ |
त्रियम्बकेश्वर मंदिर
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मंदिर से दर्शन करके निकलते श्रृद्धालु |
मंदिर परिशर में थोड़ी देर रुकने के बाद. थोड़ी देर बाज़ार में घुमे. बड़ा पाँव का आनंद लिया. मात्र पांच रूपये में बड़ा पाँव उपलब्ध था. इसके बाद नासिक की और चल दिए. रास्ते में फिर वही होटल संस्कृति आया जिसमे नाश्ता किया था. भूख लग रही थी तो होटल पर ऑटो को रुकवा लिया. और खाना खाने के लिए चले गए.
होटल का एक और दृश्य
खाना बहुत बढ़िया बना हुआ था. १०० रूपये की थाली थी. शुद्ध शाकाहारी खाना था. खाना खाकर नासिक की और चल दिए. आज नासिक भी घूमना था. इससे आगे का वृत्तान्त जानने के लिए क्लिक करिए."(SHIRDI TRAVELL - सूरत से शिर्डी यात्रा -५- (नासिक-NASIK)
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बहुत अच्छी रचनात्मकता और सोच का प्रदर्शन किया गया है। मेरा यह लेख भी देखें सूरत में घूमने की जगह
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