Friday, April 30, 2021

A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - MA CHINTPURNI - 3

A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - MA CHINTPURNI - 3

हिमाचल यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिए क्लिक करे ---(A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - कांगड़ा हिमाचल - 1)

इससे पहले का यात्रा वृतांत पढने के लिए क्लिक करे ..(A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - CHAMUNDA JI, चामुंडा जी - 2)

आज हमारी कांगड़ा यात्रा का दूसरा दिन हैं. आज का हमारा कार्यक्रम माता चिन्तपुरनी व माता ज्वाला जी की यात्रा का हैं. इसमें सबसे पहले हम माता चिन्तपुरनी जायेगे उसके बाद अगले एपिसोड में माता ज्वाला जी की यात्रा करेगे. कांगड़ा से चिन्तपुरनी देवी ५४ किलोमीटर हैं. करीब २ घंटे वंहा पहुँचने में लगते हैं. कांगड़ा से पंजाब की और जाने वाली बसे देहरा होते हुए भरवाई होकर जाती हैं. जिन्हें माता के द्वार पर जाना होता हैं वो भरवाई में उतर जाते हैं. यंहा से आगे तीन किलोमीटर जाना होता हैं. सुबह ठीक ७ बजे उठकर हम लोग तैयार हो गए. पहले नाश्ता करना था तो ब्रिजवासी भोजनालय पर आलू परांठा और चाय का नाश्ता लिया. फिर घूमते हुए बस अड्डा पहुँच गए. जाते ही बस मिल गयी.

चिंतपूर्णी धाम हिमाचल प्रदेश मे स्थित है। यह स्थान हिंदुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलो में से एक है। यह 51 शक्ति पीठो मे से एक है। यहां पर माता सती के चरण गिर थे। इस स्थान पर प्रकृति का सुंदर नजारा देखने को मिल जाता है। यात्रा मार्ग में काफी सारे मनमोहक दृश्य यात्रियो का मन मोह लेते हैं और उनपर एक अमिट छाप छोड़ देते हैं। यहां पर आकर माता के भक्तों को आध्यात्मिक आंनद की प्राप्ति होती है। वर्तमान मे उत्तर भारत की नौ देवियों मे चिंतपूर्णी का पांचवा दर्शन होता है वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा मे माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं

दूर्गा सप्‍तशती और देवी महात्यमय के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था जिसमें असुरो की विजय हुई। असुरो का राजा महिसासुर स्वर्ग का राजा बन गया और देवता सामान्य मनुष्यों कि भांति धरती पर विचरन करने लगे। देवताओं के ऊपर असुरों द्वारा बहुत अत्याचार किया गया। देवताओं ने इस विषय पर आपस में विचार किया और इस कष्‍ट के निवारण के लिए वह भगवान विष्णु के पास गये। भगवान विष्णु ने उन्हें देवी की आराधना करने को कहा। तब‍ देवताओं ने उनसे पूछा कि वो कौन देवी हैं जो हमारे कष्टो का निवारण करेंगी। इसी योजना के फलस्वरूप त्रिदेवो ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के अंदर से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ जो देखते ही देखते एक स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गया।

इस देवी को सभी देवी-देवताओं ने कुछ न कुछ भेट स्वरूप प्रदान किया। भगवान शंकर ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा, समुंद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की। इसके बाद सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टो का निवारण हो सके। और हुआ भी ऐसा ही। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी। इसी के फलस्वरूप देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। जिसमें देवी की विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया।

चिंतपूर्णी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों मे से एक है। पूरे भारतवर्ष मे कुल 51 शक्तिपीठ है। इन सभी की उत्पत्ती कथा एक ही है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिर थे। शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी। वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयीं। जहां शिव का काफी अपमान किया गया। इसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कुद गयी। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे।

जिस कारण सारे ब्रह्माण्‍ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्‍ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर के अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया। जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। कोलकाता में केश गिरने के कारण महाकाली, नगरकोट में स्तनों का कुछ भाग गिरने से बृजेश्वरी, ज्वालामुखी में जीह्वा गिरने से ज्वाला देवी, हरियाणा के पंचकुला के पास मस्तिष्क का अग्रिम भाग गिरने के कारण मनसा देवी, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने के कारण भद्रकाली, सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने के कारण शाकम्भरी देवी, कराची के पास ब्रह्मरंध्र गिरने से माता हिंगलाज भवानी, आसाम में कोख गिरने से कामाख्या देवी,नयन गिरने से नैना देवी आदि शक्तिपीठ बन गये। मान्यता है कि चिंतपूर्णी मे माता सती के चरण गिरे थे। इन्‍हें छिनमस्तिका देवी भी कहा जाता है। चिंतपूर्णी देवी मंदिर के चारो और भगवान शंकर के मंदिर है।(साभार: विकिपीडिया)

सुबह सुबह माता चिन्तपुरनी जाने के लिए तैयार 

सामने ब्रिजवासी ढाबा हमारा खाने का स्थान 

कांगड़ा की कुञ्ज गलिया 

कांगड़ा में दूरी संकेतक 

चिन्तपुरनी जाते हुए मार्ग का दृश्य 

देहरा का बस अड्डा  - DEHRA HIMACHAL

कांगड़ा से चलने वाली अधिकतर बसे देहरा गोपीपुर होते हुए माता चिन्तपुरनी जाती हैं. यह स्थान बिलकुल बीच में पड़ता है. यंहा का बस अड्डा बहुत बड़ा हैं. यंहा पर आधा घंटा रुक कर चलती हैं. व यात्री लोग  चाय पानी भी कर लेते हैं. यह स्थान व्यास नदी के किनारे पड़ता हैं. महाराणा प्रताप सागर बाँध यंहा से निकट हैं. खुबसूरत छोटा सा क़स्बा व् घाटी हैं. करीब २० हज़ार जनसंख्या हैं. यंही से  एक मार्ग    ज्वाला जी के लिए जाता हैं.

थोड़ी देर बाद हम लोग भरवाई पहुँच जाते हैं. यंहा से माता का भवन करीब ३ किलोमीटर है. बाहर HIGHWAY पर ही भवन की और जाने के लिए एक बड़ा द्वार बना हुआ हैं. हम लोग यंहा से  लोकल बस में  बैठकर चिन्तपुरनी  पहुँच जाते हैं. यंहा पर एक    बड़ा और खुबसूरत बस अड्डा बना हुआ हैं. यंहा से पुरे हिमाचल और पंजाब के लिए बसे  मिल जाती हैं. माता चिन्तपुरनी धाम पंजाब के बिलकुल ऊपर पहाड़ पर स्थित हैं. नीचे पंजाब का  होशियार पुर जनपद पड़ता हैं.

 चिन्तपुरनी जाने के लिए मुख्य द्वार - BHARWAI HIMACHAL 

आज रविवार का दिन हैं. दर्शन के लिए भारी भीड़ थी. पंजाब बिलकुल निकट होने के कारण नीचे पंजाब से  होशियारपुर, जालन्धर, अमृतसर, चंडीगढ़ से यात्रिओ की भीड़ थी. ३ किलोमीटर लम्बी लाइन थी. हम लोग भी लाइन में लग गए. २ या ३ घंटे से पहले दर्शन नहीं होने वाले थे. पर लोगो से बात करते हुए समय कब बीत गया पता नहीं चला. लाइन में लगे हुए ही एक दूकान में अपना सामान रखा व अपने जूते वंही उतारे, व चढाने के लिए प्रसाद लिया. प्रसाद में मुख्यतः हलवा व नारियल चढ़ता हैं. मंदिर के पास कंही भी जुते व सामान रखने की जगह नहीं हैं. इसलिए पहले ही प्रसाद की दूकान में रख दे तो आसानी रहती हैं.

माता चिन्तपुरनी का भीड़ भरा बाज़ार 

माता के दर्शन ले लिए लगी हुई पंक्तिया 

दर्शन पर्ची स्थान - MATA CHINTPURNI DEVI 

यह ऊपर दर्शन पर्ची स्थान हैं. जब ज्यादा भीड़ होती हैं तो यंहा पर पर्ची बनवाना आवश्यक होता हैं. यंही से दर्शन के लिए पंक्तिया २ जगह बंट जाती हैं.

दाहिने और से दूसरी पंक्ति भी दर्शन के लिए जाती हैं 



सुशील जी माता के दर्शन के लिए लगे हुए 

दर्शन के लिए पंक्ति मार्ग में दोनों और पुराने भवन व धर्मशालाए बने हुए हैं. व समस्त  मार्ग के दोनों और प्रसाद व चायपानी की दुकाने स्थित हैं.

दर्शन के लिए दो दो लाइन 


लो जी माता के दर्शन के और निकट आ गए - PRAVEEN GUPTA - SUSHEEL SAINI 

फूल वाला फूल बेंचते हुए 

मै और सुशील 

माता को चढाने के लिए महकते हुए सुगन्धित फूल 

फूल वाले से माता को चढाने के लिए फूल ख़रीदे 

लो जी मंदिर के मुख्य द्वार पर आ गए 

गर्भ गृह की और जाने वाला हाल 

लो जी और नज़दीक आ गए 

सामने ही गर्भ गृह हैं 

माता के दर्शन करके मन तृप्त हुआ. मंदिर परिसर बहुत ही विशाल व सुन्दर हैं.

माता की पवित्र पिंडी 

चिंतपूर्णी मंदिर में शरदीय और गृष्‍मऋतु नवरात्रि काफी धूमधाम से मनाये जाते हैं। नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि की प्रत्येक रात्रि को यहां पर जागरण का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि के दिनो मे यहां पर आने वाने श्रद्धालुओं कि संख्या में काफी वृद्धि हो जाती है।

चिंतपूर्णी गांव जिला ऊना हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है। चिंतपूर्णी मंदिर सोला सिग्ही श्रेणी की पहाड़ी पर स्थित है। भरवाई गांव जो होशियारपुर-धर्मशिला रोड पर स्थित है वहा से चिंतपूर्णी 3 कि॰मी॰ की दूरी पर है। यह रोड राज्य मार्ग से जुड़ा हुआ भी है। पर्यटक अपने निजी वाहनो से चिंतपूर्णी बस स्टैण्ड तक जा सकते हैं। बस स्टैण्ड चिंतपूर्णी मंदिर से 1.5 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। चढाई का आधा रास्ता सीधा है और उसके बाद का रास्ता सीढीदार है।

गर्मी के समय में मंदिर के खुलने का समय सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक है और सर्दियों में सुबह 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक का है। दोपहर 12 बजे से 12.30 तक भोग लगाया जाता है और 7.30 से 8.30 तक सांय आरती होती है। दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु माता के लिए भोग के रूप में सूजी का हलवा, लड्डू बर्फी, खीर, बतासा, नारियल आदि लाते हैं। कुछ श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी हो जाने पर ध्वज और लाल चूनरी माता को भेट स्वरूप प्रदान करते हैं। चढाई के रास्ते में काफी सारी दूकाने है जहां से ही श्रद्धालु माता को चढाने का समान खरीदते हैं। दर्शनो से पहले प्रत्येक पर्यटक को हाथ साफ करने पड़ते हैं और उन्हें अपने सर पर रूमाल या कपड़ा ढकना पड़ता है।

मंदिर के मुख्य द्वार पर प्रवेश करते ही सीधे हाथ पर आपको एक पत्थर दिखाई देगा। यह पत्थर माईदास का है। यही वह स्थान है जहां पर माता ने भक्त माईदास को दर्शन दिये थे। भवन के मध्य में माता की गोल आकार की पिण्डी है। जिसके दर्शन भक्त कतारबद्ध होकर करते हैं। श्रद्धालु मंदिर की परिक्रमा करते हैं। माता के भक्त मंदिर के अंदर निरंतर भजन कीर्तन करते रहते हैं। इन भजनो को सुनकर मंदिर में आने वाले भक्तो को दिव्य आंनद की प्राप्ति होती है और कुछ पलो के लिए वह सब कुछ भूल कर अपने को देवी को समर्पित कर देते हैं।

मंदिर के साथ ही में वट का वृक्ष है जहां पर श्रद्धालु कच्ची मोली अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए बांधते हैं। आगे पश्चिम की और बढने पर बड़ का वृक्ष है जिसके अंदर भैरों और गणेश के दर्शन होते हैं। मंदिर का मुख्य द्वार पर सोने की परत चढी हुई है। इस मुख्य द्वार का प्रयोग नवरात्रि के समय में किया जाता है। यदि मौसम साफ हो तो आप यहां से धौलाधर पर्वत श्रेणी को देख सकते हैं। मंदिर की सीढियों से उतरते वक्त उत्तर दिशा में पानी का तालाब है। पंड़ित माईदास की समाधि भी तालाब के पश्चिम दिशा की ओर है। पंड़ित माईदास द्वारा ही माता के इस पावन धाम की खोज की गई थी।(साभार: विकिपीडिया)

स्वर्ण मंडित माता का मंदिर 

गणेश जी और हनुमान जी 

स्वर्ण मंडित माता का मंदिर 


मंदिर परिसर में शहनाई बजती हुई 

पंडित जी ऊपर क्या कर रहे 

मंदिर का प्रांगन 

मंदिर का प्रांगन 

मंदिर प्रांगन में माता की प्रतिमा 

मंदिर में सुशील जी 

यहां फरवरी के मध्य से अप्रैल के मध्य तक मौसम सुहाना रहता है, तथा अप्रैल के मध्य से गर्मियां शुरू हो जाती है। गर्मियों के समय में दिन का मौसम काफी गर्म हो जाता है। रात्रि के समय का मौसम हल्का ठंड़ा होता है। जून से सितंबर तक यहां पर बारिश होती है। अक्टूबर से नवंबर के समय में दिन तो गर्म रहता है जबकि सुबह और रात ठंडी होती है। दिसंबर से जनवरी के माह में यहां पर काफी ठंड होती है और यहां का तापमान माईनस 5 डिग्री तक पहुंच जाता है। चिंतपूर्णी जाने का उपयुक्त समय फरवरी से अप्रैल तक का है। इन दिनो यहां का मौसम सुहाना होता है।

विशेष पर्व जैसे नवरात्रि, सावन मास, सक्रांति, पूर्णिमा, अष्टमी में यहां पर काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस कारण इस समय में यात्रियों को थोड़ी बहुत समस्‍या का सामना करना पड़ता है। पर इसके अलावा यहां पर रहने के लिए काफी संख्या में होटल और धर्मशालाए है जोकि यात्रियो की प्रत्येक समस्‍या का समाधान करते हैं। चिंतपूर्णी मंदिर से 3 कि॰मी॰ की दूरी पर हिमाचल टूरिज्म विभाग का यात्री निवास है जिसके अंदर सभी सुविधाए उपलब्ध है।(साभार: विकिपीडिया)

दर्शन करके चल दिए 

चिन्तपुरनी की गलिया 

माता के दर्शन करने के बाद हम लोग मंदिर से बाहर आ गए. भूख बहुत जोर से लग रही थी. एक धर्मशाला में माता का भंडारा चल रहा था. भंडारे वाले आवाज लगा लगा कर बुला रहे थे. हम लोग भी जीमने पहुँच गए. बहुत ही स्वादिस्ट दाल रोटी व पेठे की  सब्जी बनी हुई थी. उसके बाद हलवा दिया जा रहा था. खाने में मज़ा आ गया. फिर एक एक कप चाय पी गयी. हिमाचल के सभी मंदिरों में हिन्दू और सिक्ख में कोई भेद नहीं हैं. यंहा सभी हिन्दू हैं. और सभी मंदिरों में दोनों समुदाय भंडारे करते रहते हैं. इसके बाद कुछ खरीदारी करी. आम पापड आदि यंहा पर बहुत मिलता हैं. बड़े बड़े  चट्टे लगे रहते है. उसमे से काटकर तौलकर देते हैं. बस अड्डे पर पहुँचते ही ज्वाला जी के लिए बस मिल गयी. 

इससे आगे का माता ज्वाला जी की यात्रा वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे...(A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - MA JWALA JI - 4)

Wednesday, April 28, 2021

A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - CHAMUNDA JI, चामुंडा जी - 2

A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - CHAMUNDA JI, चामुंडा जी  - 2 

इससे पहले का यात्रा वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे  ....( A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - कांगड़ा हिमाचल - 1

माता बज्रेश्वरी देवी और गुप्त गंगा के दर्शन के बाद हम लोग बस स्टैंड पर आ गए. भारी वर्षा हो रही थी. चामुंडा देवी के लिए बस भी हाथ के हाथ मिल गयी. एक बात तो हैं की हिमाचल में बस स्टैंड का रख रखाव बहुर ही अच्छा होता हैं. साथ ही साथ बस सर्विस बहुत अच्छी हैं. सरकारी अड्डे से ही सरकारी या निजी बसे मिलती हैं और हर दस  पांच मिनट में बसे मिल जाती हैं. रास्त में सबसे पहले एक बड़ा क़स्बा नगरोटा बागवान पड़ता हैं. करीब २ किलोमीटर लंबा कस्बाई बाज़ार हैं और विकसित हैं. सड़क के दोनों और गाँव व कस्बो में समृद्धि दिखती हैं. चामुंडा देवी मंदिर कांगड़ा से करीब २५ किलोमीटर पड़ता हैं. बारिश चल रही थी. बस की खिड़की से हिमाचल की सुन्दर दृश्यावली दिख रही थी. वर्षा के कारण उस दृश्यावली के फोटो नहीं ले पाया. करीब ४५ मिनट में हम माँ चामुंडा के दरबार में पहुँच गए. छतरी खोली और बस से उतरकर भागते हुए मंदिर में पहुँच गए. सबसे पहले एक शानदार द्वार आता हैं. जो की सेना के द्वारा बनाया गया हैं.  अब कुछ माता चामुंडा के मंदिर के बारे में....

हिमाचल प्रदेश को देव भूमि भी कहा जाता है। इसे देवताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है। पूरे हिमाचल प्रदेश में 2000 से भी ज्यादा मंदिर है और इनमें से ज्यादातर प्रमुख आकर्षक का केन्द्र बने हुए हैं। इन मंदिरो में से एक प्रमुख मंदिर चामुण्डा देवी का मंदिर है जो कि जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है। चामुण्डा देवी मंदिर शक्ति के 51 शक्ति पीठो में से एक है। वर्तमान मे उत्तर भारत की नौ देवियों मे चामुण्डा देवी का दुसरा दर्शन होता है वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा मे माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी आदि शामिल हैं यहां पर आकर श्रद्धालु अपने भावना के पुष्प मां चामुण्डा देवी के चरणों में अर्पित करते हैं। मान्यता है कि यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। देश के कोने-कोने से भक्त यहां पर आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। चामुण्डा देवी का मंदिर समुद्र तल से 1000 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। यह धर्मशाला से 15 कि॰मी॰ की दूरी पर है। यहां प्रकृति ने अपनी सुंदरता भरपूर मात्रा में प्रदान कि है। चामुण्डा देवी मंदिर बंकर नदी के किनारे पर बसा हुआ है। पर्यटको के लिए यह एक पिकनिक स्पॉट भी है। यहां कि प्राकृतिक सौंदर्य लोगो को अपनी और आकर्षित करता है। चामुण्डा देवी मंदिर मुख्यता माता काली को समर्पित है। माता काली शक्ति और संहार की देवी है। जब-जब धरती पर कोई संकट आया है तब-तब माता ने दानवो का संहार किया है। असुर चण्ड-मुण्ड के संहार के कारण माता का नाम चामुण्डा पड़ गया। साभार: विकिपीडिया

श्री माता चामुंडा द्वार - MAA CHAMUDA GATE, CHAMUNDA JI - HIMACHAL 

देवी की उत्पत्ति कथा

दूर्गा सप्तशती और देवी महात्यमय के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था। इस युद्ध में असुरो की विजय हुई। असुरो का राजा महिषासुर स्वर्ग का राजा बन गया और देवता सामान्य मनुष्यों कि भांति धरती पर विचलन करने लगे। देवताओं के ऊपर असुरों ने काफी अत्याचार किया। देवताओं ने विचार किया और वह भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें देवी कि अराधना करने को कहा। देवताओं ने पूछा वो देवी कौन है जो कि हमार कष्टो का निवारण करेगी। इसी योजना के फलस्वरूप त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के अंदर से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ जो देखते ही देखते एक स्त्री के रूप में पर्वितित हो गया। इस देवी को सभी देवी-देवताओं ने कुछ न कुछ भेट स्वरूप प्रदान किया। भगवान शंकर ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा तथा समुद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की। तभी सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टो का निवारण हो सके। और हुआ भी ऐसा ही। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी। इसी के फलस्वरूप देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। जिसमें देवी कि विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया। विकिपीडिया

माता चामुंडा देवी का मंदिर परिसर 

सुशील - छतरी ना खोल उड़ जायेगी...

बनेर नदी - चामुंडा जी 

BANER RIVER - CHAMUNDA JI HIMACHAL 

BANER RIVER - CHAMUNDA JI HIMACHAL 

माँ चामुंडा जी मंदिर परिसर 

बरसात में खुबसूरत दृश्य 

चामुंडा जी - हिमाचल 

मंदिर परिसर में सुन्दर सरोवर 

सरोवर के बीच में भगवान् शिव की मूर्ति 


चामुण्‍डा देवी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों में से एक है। पूरे भारतवर्ष में कुल 51 शक्तिपीठ है। जिन सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंधो के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिरे थे। शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयी। यज्ञ स्‍थल पर शिव का काफी अपमान किया गया जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कुद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। कोलकाता में केश गिरने के कारण महाकाली, नगरकोट में स्तनों का कुछ भाग गिरने से बृजेश्वरी, ज्वालामुखी में जीह्वा गिरने से ज्वाला देवी, हरियाणा के पंचकुला के पास मस्तिष्क का अग्रिम भाग गिरने के कारण मनसा देवी, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने के कारण भद्रकाली,सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने के कारण शाकम्भरी देवी, कराची के पास ब्रह्मरंध्र गिरने से माता हिंगलाज भवानी,चरणों का कुछ अंश गिरने से चिंतपुर्णी, आसाम में कोख गिरने से कामाख्या देवी,नयन गिरने से नैना देवी आदि शक्तिपीठ बन गये। मान्यता है कि चामुण्डा देवी मंदिर में माता सती के चरण गिरे थे।

जय माँ चामुंडा जी..

 माता का नाम चामुण्ड़ा पडने के पीछे एक कथा प्रचलित है। दूर्गा सप्तशती में माता के नाम की उत्पत्ति कथा वर्णित है। हजारों वर्ष पूर्व धरती पर शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्यो का राज था। उनके द्वारा देवताओं को युद्ध में परास्त कर दिया गया जिसके फलस्वरूप देवताओं ने देवी दूर्गा कि आराधना की और देवी दूर्गा ने उन सभी को वरदान दिया कि वह अवश्य ही इन दोनों दैत्यो से उनकी रक्षा करेंगी। इसके पश्चात माता दुर्गा ने दो रूप धारण किये एक माता महाकाली का और दूसरा माता अम्बे का। माता महाकाली जग मे विचरने लगी और माता अम्बे हिमालय मे रहने लगी। तभी वहाँ चण्ड और मुण्ड आए वहाँ। देखकर देवी अम्बे को मोहित हुए और कहा दैत्यराज से आप तीनों लोको के राजा है। आपके यहां पर सभी अमूल्य रत्‍न सुशोभित है। इस कारण आपके पास ऐसी दिव्य और आकर्षक नारी भी होनी चाहिए जो कि तीनों लोकों में सर्वसुन्दर है। यह वचन सुन कर शुम्भ ने अपना एक दूत माता अम्बे के पास भेजा और उस दूत से कहा कि तुम उस सुन्दरी से जाकर कहना कि शुम्भ तीनो लोको के राजा है और वह तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहते हैं। यह सुन दूत माता अम्बे के पास गया और शुमभ द्वारा कहे गये वचन माता को सुना दिये। माता ने कहा मैं मानती हूं कि शुम्भ बलशाली है परन्तु मैं एक प्रण ले चुकी हूं कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करूंगी। यह सारी बाते दूत ने शुम्भ को बताई तो वह माता के वचन सुन क्रोधित हो गया। तभी उसने द्रुमलोचन सेनापति को सेना लेकर माता के पास उन्हे लाने भेजा। जब उसके सेनापति ने माता को कहा कि हमारे साथ चलो हमारे स्वामी के पास नहीं तो कर दूँगा तुम्हारे गर्व का नाश। माता के बिना युद्ध किये जाने से मना किया तो उन्होंने मैया पर कई अस्त्र शस्त्र बरसाए पर माता को कोई हानि नहीं पहुंचा सके मैया ने भी बदले कई तीर बरसाए सेना पर और उनके सिंह ने भी कई असुरों का संहार कर दिया। अपनी सेना का यूँ संहार का सुनकर शुम्भ को क्रोध आया और चण्ड और मुण्ड नामक दो असुरो को भेजा,रक्तबीज के साथ और कहा कि उसके सिंह को मारकर माता को जीवित या मृत हमारे सामने लाओ। चण्ड और मुण्ड माता के पास गये और उन्हे अपने साथ चलने के लिए कहा। देवी के मना करने पर उन्होंने देवी पर प्रहार किया। तब देवी ने अपना महाकाली का रूप धारण कर लिया और असुरो के शीश काटकर अपनी मुण्डो की माला में परोए और सभी असुरी सेना के टुकड़े टुकड़े कर दिये। फिर जब माता महाकाली माता अम्बे के पास लौटी तो उन्होंने कहा कि आज से चामुंडा नाम तेरा हुआ विख्यात और घर घर में होवेगा तेरे नाम का जाप। बोलो सच्चिया ज्योतिया वाली माता तेरी सदा ही जय साचे दरबार की जय।
 
चामुण्डा देवी मंदिर धर्मशाला से 15 कि॰मी॰ कि दूरी पर स्थित है। पर्यटक धर्मशाला से प्राकृतिक सौंदर्य का आंनद उठा कर चामुण्डा देवी मंदिर पहुंचते हैं। प्रकृति ने अपनी सुंदरता यहां पर भरपूर मात्रा में लुटाई है। कलकल करते झरने और तेज वेग से बहती नदियां पर्यटकों के जहन में अमिट छाप छोड़ती है। मंदिर के बीच वाला भाग ध्यान मुद्रा के लिए उपयुक्त स्थान है। यहां पर ध्यान लगाने पर श्रद्धालुओं को अध्यात्मिक आंनद कि प्राप्ति होती है। पहाड़ी सुंदरता, जंगल और नदिया पर्यटको को मोहित कर देती है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि वह किसी जादूई नगरी में आ गये हैं। काफी संख्या में श्रद्धालु यात्रा मार्ग में अपने पूर्वजो के लिए प्रार्थना करते हैं कि उन्हें आध्यात्मिक आंनद कि प्राप्ति हो। इसके लिए वह काफी सारे अनुष्ठान करते हैं। श्रद्धालु यहाँ पर स्थित बाण गंगा में स्नान करते हैं। बाण गंगा में स्‍नान करना शुभ और मंगलमय माना जाता है। मान्यता है कि गंगा नदी में स्नान करने से शरीर पवित्र हो जाता है। श्रद्धालु स्‍नान करते समय भगवान शंकर की आराधना करते हैं। मंदिर के पास ही में एक कुण्ड है जिसमें स्‍नान करने के पश्चात ही श्रद्धालु देवी की प्रतिमा के दर्शन करते हैं। मंदिर के गर्भ-गृह कि प्रमुख प्रतिमा तक सभी आने वाले श्रद्धालुओं की पहुंच नहीं है। मुख्‍य प्रतिमा को ढक कर रखा गया है। ताकि‍ उसकी पवित्रता में कमी न आ सके। मंदिर के पीछे की ओर एक पवित्र गुफा है जिसके अंदर भगवान शंकर का प्रतीक प्राकृतिक शिवलिंग है। इन सभी प्रमुख आकर्षक चीजो के अलावा मंदिर के पास ही में विभिन्न देवी-देवताओं कि अद़भूत आकृतियां है। मंदिर के मुख्य द्वार के पास ही में हनुमान जी और भैरो नाथ की प्रतिमा है।
 
चामुण्डा देवी मंदिर के पीछे की ओर ही आयुर्वेदिक चिकित्सालय, पुस्तकालय और संस्कृत कॉलेज है। चिकित्सालय के कर्मचारियों द्वारा आये हुए श्रद्धालुओं को चिकित्सा संबंधि सामग्री मुहैया कराई जाती है। यहां स्थित पुस्तकालय में पौराणिक पुस्तकों के अतिरिक्त ज्योतिषाचार्य, वेद, पुराण, संस्कृति से संबंधित पुस्तकें विक्रय हेतु उपलब्ध है। यह पुस्‍तकें उचित मूल्य पर क्रय की जा सकती है। यहां पर स्थित सांस्कृतिक कॉलेज को मंदिर की संस्था द्वारा चलाया जाता है। यहां वेद पुराणो कि मुफ्त कक्षा चलाई जाती है। विकिपीडिया

भाई छतरी हटाले अब तो...

चामुण्डा देवी में वर्ष में आने वाली दोनो नवरात्रि बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। नवरात्रि में यहां पर विशेष तौर पर माता की पूजा की जाती है। मंदिर के अंदर अखण्ड पाठ किये जाते हैं। सुबह के समय में सप्तचण्डी का पाठ किया जाता है। नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक रात्रि को जगरण किया जाता है। नवरात्रि में यहां पर विशेष हवन और पूजा कि जाती है। माता के भक्त माता की एक झलक पाने के लिए घण्टों कतार में खडें रहते हैं।

यात्री पहाडी सौन्दर्य का लुफ्त उठाते हुए चामुण्डा देवी तक पहुंच सकते हैं। यात्रा मार्ग में अनेंक मनमोहक दृश्य है जो पर्यटको के जेहन में बस जाते हैं। हरी-हरी वादियां और कल-कल कर बहते झरने पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पर्यटक सड़क मार्ग, वायु मार्ग व रेल मार्ग से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।वायु मार्ग

चामुण्डा देवी मंदिर का नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है जो कि यहां से 28 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। यहां तक आने के बाद में यात्री बस या कार से चामुण्डा देवी मंदिर तक पहुंच सकते हैं। यहाँ से टैक्सी आदि की भी अच्छी सुविधा है। समय-समय पर हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बसे यहाँ से जाती रहती है।सड़क मार्ग

सड़क मार्ग से जाने वाले पर्यटको के लिए हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग कि बस सेवा है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर उतारती है। चामुण्डा देवी धर्मशाला से 15 कि॰मी॰ और ज्वालामुखी से 55 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। यहां से आप अपने निजी वाहनो या किराए के वाहनो से मंदिर तक जा सकते हैं।रेल मार्ग

पंजाब स्थित पठान कोट से पर्यटक हिमाचल के लिए चलने वाली छोटी रेल गाड़ी के द्वारा पहाड़ी सौन्दर्य और संकीर्ण रास्तो का लुफ्त उठाते हुए मराण्डा तक पहुंच सकते हैं जो कि पालमपुर के पास स्थित है। यहां से चामुण्डा देवी मंदिर कि दूरी 30 कि॰मी॰ है। पठान कोट सभी प्रमुख राज्यो से रेल से जुड़ा हुआ है। विकिपीडिया

चामुंडा मंदिर परिसर में निर्माणाधीन भगवान् शिव का पुराना मंदिर 

बारिश जोरदार हो रही थी. साथ में बहती बनेर नदी अपने पुरे उफान पर थी. सबसे पहले माता के दर्शन किये, ज्यादा भीड़ नहीं थी. बहुत अच्छे दर्शन हुए मन तृप्त हो गया. माता के मंदिर से नीचे सीढिया उतरकर भगवान् शिव का पुराना ऐतिहासिक मंदिर हैं. भगवान् शिव के दर्शन किये. फिर बाहर आकर मन्दिर के चारो और स्थित  सुन्दर दृश्यों का आनंद लिया और छायांकन किया. बारिश के कारन  ज्यादा इधर उधर तो घूम नहीं सकते थे. पर थोड़े समय में बहुत कुछ देखा.. 



मंदिर परिसर से निकल कर बाहर आकर चाय पानी पी. उसके बाद बस में बैठ कर कांगड़ा की और चल पड़े..

आगे की चित्रावली मैंने अपने दूसरी चामुंडा जी की यात्रा की डाली हैं. जिसमे मेरे साथ मेरे मित्र मनोहर सिंह थे. यह यात्रा फरवरी २०१९ में की गयी थी. इस यात्रा के केवल फोटो डालूँगा.

फरवरी १९ चामुंडा जी की यात्रा 

मनोहर सिंह जी अलग मूड में.. 

पीछे मंदिर परिसर व बर्फीले पर्वत 

MANOHAR THE GREAT IN CHAMUNDA JI HIMACHAL 



BANER RIVER CHAMUNDAJI HIMACHAL 





पीछे आसमान में बादलो की छवि देखिये


माता का मंदिर 

अबे भाई कहा  घुस गया..

मेरी सेल्फी  

WHAT A SELFI 








शिव जी का मंदिर नया बन गया 

माता के  दर्शन दूर से 

मंदिर का गर्भ गृह 









शाम तक हम लोग कांगड़ा आ गए थे. एक बार माता  बज्रेश्वरी देवी के दर्शन और किये. फिर खाना खाकर अपने सूद भवन मे आगये..

इससे आगे का यात्रा वृत्तान्त के लिए पढ़िए...(A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - MA CHINTPURNI - 3