Wednesday, April 28, 2021

A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - कांगड़ा हिमाचल - 1

A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - कांगड़ा हिमाचल - 1

कंही पर घुमे फिरे बहुत दिन हो गए थे. कंही पर घुमने जाने की कुंचा लगी हुई थी. अपने मित्र सुशील सैनी से बात की. वो भी कंही घुमने चलने के लिए तैयार हो गया. कावड़ का समय नज़दीक आ रहा था. कावड़ यात्रा में हमारा मुज़फ्फरनगर हरिद्वार, दिल्ली, हरियाणा के बीच में पड़ता है. हफ्ता दस दिन तक हमारे यंहा सभी आर्थिक गतिविधिया व यातायात ठप्प पड़ जाता हैं. तो धार्मिक यात्रा के साथ साथ कंही की घुमक्कड़ी भी हो जाए तो सोने पर सुहागा हो जाता हैं. कांगड़ा घाटी की यात्रा करना तय हुआ. 26/07/2019 का शालीमार एक्सप्रेस से पठानकोट का आरक्षण करवाया. करीब चार दिन का कार्यक्रम था. २६/०७/२०१९ का दिन भी आ गया. चलने के लिए सारी तैय्यारी करली थी. हमारी ट्रेन शाम को ६.४० पर थी. शाम पांच बजे एक दम से भारी बारिश शुरू हो गयी थी. खैर किसी तरह से बैटरी की रिक्सा में बैठकर स्टेशन पंहुच गया. सुशील भी थोड़ी देर में आ गया. स्टेशन पर आते ही बारिश रुक गयी थी. ट्रेन सही समय पर आ गयी थी. ट्रेन में सवार होकर अपनी बर्थ  पर बैठकर भोजन का आनंद लिया. और सहारनपुर के बाद पड़ कर सो गए. ट्रेन सुबह तीन बजे पठानकोट पहुँच गयी थी. उतरकर महाराणा प्रताप बस स्टैंड पहुँच गए, जंहा से हमें कांगड़ा के लिए बस पकडनी थी. हिमाचल में पहली जो बस चलती हैं वह डाक गाड़ी बनके चलती हैं. डाक बस में सवार हो कर कांगड़ा के लिए निकल पड़े. पठानकोट निकलते ही बारिश शुरू हो गयी थी. जो की दो - ढाई घंटे कांगड़ा पहुँचने तक लगातार होती रही. कांगड़ा में हमें सूद भवन में रुकना था. बहुत ही साफ़ सुथरा व सुन्दर गेस्ट हाउस हैं. यह HP के पेट्रोल पम्प के सामने बिग बाज़ार, व फोर्टिस अस्पताल के पीछे स्थित हैं. मात्र ५००/- रूपये में डबल बेड का रूम उपलब्ध हैं. यंहा पर डोर मैट्रि भी उपलब्ध हैं. यदि बस आदि लेकर आये हैं तो उसमे रुक सकते है. खाना बनाने   बनाने की सुविधा हैं. इस भवन के बाहर से ही कंही के लिए बस पकड़ सकते हो. यंहा से बस स्टैंड करीब एक किलोमीटर पड़ता हैं. माता का मंदिर करीब २ किलोमीटर पड़ता हैं. इस भवन का पता व फोन नंबर नीचे दिए हैं. कुछ फोटो भी डाले हैं.

Sood Bhawan, Kangra
Balaji Vihar, Behind BigBazar - Fortis , Kangra, Himachal Pradesh 176001

Phone no. 91-189-2262731, 9459441597

SOOD BHAWAN - KANGDA, HIMACHAL 

SOOD BHAWAN - KANGDA, HIMACHAL 

 फोटो साभार - जस्ट डायल 

सूद भवन में हमारा घोंसला 

बस से उतरकर हम लोग सूद भवन में आ गए. लगातार बारिश हो रही थी. हमारे पास छाते थे इसलिए बचाव भी हो रहा था. अपने रूम में पहुँच कर गरम पानी में नहाए धोये, और तैयार हो गए. अब कुछ कांगड़ा नगर के बारे में....

काँगड़ा (Kangra) भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के काँगड़ा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है

काँगड़ा हिमाचल प्रदेश का ऐतिहासिक नगर तथा जिला है; इसका अधिकतर भाग पहाड़ी है। इसके उत्तर और पूर्व में क्रमानुसार लघु हिमालय तथा बृहत्‌ हिमालय की हिमाच्छादित श्रेणियाँ स्थित हैं। पश्चिम में सिवालिक (शिवालिक) तथा दक्षिण में व्यास और सतलज के मध्य की पहाड़ियाँ हैं। बीच में काँगड़ा तथा कुल्लू की सुन्दर उपजाऊ घाटियाँ हैं। काँगड़ा चाय और चावल तथा कुल्लू फलों के लिए प्रसिद्ध है। व्यास (विपासा) नदी उत्तर-पूर्व में रोहतांग से निकलकर पश्चिम में मीर्थल नामक स्थान पर मैदानी भाग में उतरती है। काँगड़ा जिले में कड़ी सर्दी पड़ती है परंतु गर्मी में ऋतु सुहावनी रहती है, इस ऋतु में बहुत से लोग शैलावास के लिए यहाँ आते हैं; जगह-जगह देवस्थान हैं अत: काँगड़ा को देवभूमि के नाम से भी अभिहित किया गया है। हाल ही में लाहुल तथा स्पीत्ती प्रदेश का अलग सीमांत जिला बना दिया गया है और अब काँगड़ा का क्षेत्रफल 4,280 वर्ग मील रह गया है।

काँगड़ा नगर लगभग 2,350 फुट की ऊँचाई पर, पठानकोट से 52 मील पूर्व स्थित है। हिमकिरीट धौलाधार पर्वत तथा काँगड़ा की हरी-भरी घाटी का रमणीक दृश्य यहाँ दृष्टिगोचर होता है। यह नगर बाणगंगा तथा माँझी नदियों के बीच बसा हुआ है। दक्षिण में पुराना किला तथा उत्तर में बृजेश्वरी देवी के मंदिर का सुनहला कलश इस नगर के प्रधान चिह्न हैं। एक ओर पुराना काँकड़ा तथा दूसरी ओर भवन (नया काँगड़ा) की नयी बस्तियाँ हैं। काँगड़ा घाटी रेलवे तथा पठानकोट-कुल्लू और धर्मशाला-होशियारपुर सड़कों द्वारा यातायात की सुविधा प्राप्त है। काँगड़ा पहले 'नगरकोट' के नाम से प्रसिद्ध था और ऐसा कहा जाता है कि इसे राजा सुसर्माचंद ने महाभारत के युद्ध के बाद बसाया था। छठी शताब्दी में नगरकोट जालंधर अथवा त्रिगर्त राज्य की राजधानी था। राजा संसारचंद (18वीं शताब्दी के चतुर्थ भाग में) के राज्यकाल में यहाँ पर कलाकौशल का बोलबाला था। "काँगड़ा कलम" विश्वविख्यात है और चित्रशैली में अनुपम स्थान रखती है। काँगड़ा किले, मंदिर, बासमती चावल तथा कटी नाक की पुन: व्यवस्था और नेत्रचिकित्सा के लिए दूर-दूर तक विख्यात था। 1905 के भूकम्प में नगर बिल्कुल उजड़ गया था, तत्पश्चात्‌ नयी आबादी बसायी गयी। यहाँ पर देवीमंदिर के दर्शन के लिए हजारों यात्री प्रति वर्ष आते हैं तथा नवरात्र में बड़ी चहल-पहल रहती है।

प्राचीन काल में त्रिगर्त नाम से विख्यात काँगड़ा हिमाचल की सबसे खूबसूरत घाटियों में एक है। धौलाधर पर्वत श्रृंखला से आच्छादित यह घाटी इतिहास और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। एक जमाने में यह शहर चंद्र वंश की राजधानी थी। काँगड़ा का उल्लेख 3500 साल पहले वैदिक युग में मिलता है। पुराण, महाभारत तथा राजतरंगिणी में इस स्थान का जिक्र किया गया है।( साभार: विकिपीडिया)

सूद भवन से हम लोग पैदल ही मंदिर की और चल पड़े. पहले रास्ते में अमित ढाबे में नाश्ता किया नाश्ता स्वादिस्ट था. आलू के परांठे और चाय का आनंद लिया. इस ढाबे के बारे में विस्तार से आगे के एपिसोड में बताऊंगा. थोड़ी दूर चलने के बाद माता के मंदिर का रास्ता आता हैं. जिसकी शुरुआत में एक खेल का मैदान पड़ता हैं.

कांगड़ा मंदिर जाने के रास्ते में खेल का मैदान 

काफी बड़ा और फैला हुआ मैदान हैं. चारो तरफ पेड़ व मकान  आदि बने हुए हैं.  थोड़ी दूर पर गलियों में चलते हुए  नगरपालिका भवन आता हैं इसके बाद बाज़ार शुरू हो जाता हैं. थोड़ी देर बाज़ार में चलने के बाद मंदिर का भवन आ जाता हैं.

मंदिर के रास्ते में नगर पालिका भवन 

51 शक्तिपीठों में से एक हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित ब्रजेश्वरी देवी का मंदिर का प्रसिद्ध है। यहां माता भगवान शिव के रूप भैरव नाथ के साथ विराजमान हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था। मां का यह धाम नरगकोट के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर का वर्णन दुर्गा स्तुति में किया गया है। मंदिर के पास में ही बाण गंगा है, जिसमें स्नान करने का विशेष महत्व है। इस मंदिर में सालभर भक्त मां के दरबार में आकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं लेकिन नवरात्र के दिनों मंदिर की शोभा देखने लायक होती है। मंदिर में आकर भक्त की हर तकलीफ दर्शन मात्र से दूर हो जाती है।

माँ बज्रेश्वरी मंदिर - कांगड़ा हिमाचल 

माना जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था। बताया जाता है कि पांडवों ने मां को सपने में बताया था कि वह कांगड़ा जिले में स्थित हैं। इसके बाद पांडवों ने मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर को विदेशियों द्वारा भी काफी लूटा भी गया है। 1009 ईं में गजनवी शासक महमूद ने इस मंदिर को लूटकर नष्ट कर दिया था। बताया जाता है कि मोहम्मद गजनवी ने इस मंदिर को पांच बार लूटा था।

इसके बाद 1337 में मुहम्मद बीन तुगलक और पांचवी शताब्दी में सिकंदर लोदी ने भी इस मंदिर को लूटकर तबाह कर दिया था। एकबार अकबर यहां आए थे और मंदिर के पुन: निर्माण में सहयोग भी किया था। फिर साल 1905 में भूंकप से मंदिर पूरी तरह नष्ट हो गया, जिसे सरकार द्वारा वर्तमान मंदिर को 1920 में दोबारा बनवाया गया।
माँ बज्रेश्वरी देवी की पवित्र पिंडी 

गर्भ गृह का मुख्या द्वार 



गर्भ गृह के बाहर शेर 

माता का सुन्दर मंदिर 

माता का वाहन सिंह 


ब्रजेश्वरी मंदिर में माता पिंडी रूप में विराजमान हैं। यहां माता का प्रसाद तीन भागों में विभाजति करके चढ़ाया जाता है। पहला प्रसदा महासरस्वती, दूसरा महालक्ष्मी और तीसरा महाकाली को चढ़ाकर भक्तों में बांटा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भी तीन पिंडी हैं, पहली मां ब्रजेश्वरी, दूसरी मां भद्रकाली और तीसरी सबसे छोटी पिंडी एकादशी की है।

मंदिर परिसर में मैं 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकदाशी के दिन चावल का प्रयोग नहीं किया जाता लेकिन इस शक्तिपीठ में मां एकादशी स्वयं मौजूद हैं, इसलिए उनको प्रसाद के रूप में चावल ही चढ़ाया जाता है। कांगड़ा मां के दरबार में पांच बार आरती का विधान है। यहां बच्चों के मुंडन करवाने की भी व्यवस्था है। जो भी भक्त सच्चे मन से मां के दरबार में पूजा-उपासना करता है, उसकी सभी मनोकामना पूरी होती हैं।



मंदिर परिसर में विशाल पेड़ 

ब्रजेश्वरी मंदिर हिंदुओं और सिखों की श्रद्धा का केंद्र  हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महिषासुर को मारने के बाद मां दुर्गा को कुछ चोटे आई थीं। उन चोटों को दूर करने के लिए देवी मां ने अपने शरीर पर मक्खन लगाया था। जिस दिन मां ने यह मक्खन लगाया था, उस दिन देवी की पिंडी को मक्खन से ढका जाता है और सप्ताह भर उत्सव मनाया जाता है।

विशाल मंदिर परिसर 

मंदिर परिसर 

विशाल मंदिर 




मंदिर की खासियत यह है कि मंदिर भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में भक्तों को पहले से ही आगह कर देता है। यहां आसपास में अगर कोई बड़ी समस्या आने वाली होती है तो भैरव बाबा की मूर्ति से आंसुओं का गिरना शुरू हो जाता है। तब मंदिर के पुजारी विशाल हवन का आयोजन कर मां से आपदा को टालने के लिए निवेदन करते हैं। भैरव बाबा के मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित है। बताया जाता है कि बाबा भैरव की मूर्ति पांच हजार साल पुरानी है। मंदिर के मुख्य द्वारा के आगे ध्यानु भगत की मूर्ति मौजूद है, जिन्होंने अकबर के समय में देवी को अपना सिर चढ़ाया था।


मंदिर परिसर मे सुशील जी 



सुशील जी मंदिर में 




माँ की पिंडी से आता पवित्र जल 





मंदिर का मुख्य द्वार 

बाज़ार में मंदिर जाने के लिये  द्वार 

मंदिर तक पहुँचने के मार्ग में बाज़ार 

खुबसूरत दृश्य 


खुबसूरत दृश्यावली 

कांगड़ा का बाज़ार में सुशील जी 

मंदिर परिसर में काफी समय बिताने के बाद हम लोग बाज़ार से होते हुए गुप्त गंगा की और चल दिए. ये भी यंहा का एक प्रमुख तीर्थ स्थल हैं. यंहा पर पवित्र सरोवर व धर्मशाला हैं. करीब २ किलोमीटर चलने के बाद गुप्त गंगा तीर्थ आता हैं. गुप्त गंगा मे स्नान करने से आत्मा तृप्त  हो जाती है.

व्रजरेश्वरी देवी मंदिर से २ किमी की दूरी पर गुप्त गंगा के नाम से भी एक धाम है जहाँ श्रद्धालु स्नान करते हैं और फिर मंदिर पर पहुंचते हैं । गुप्त गंगा के पास ही अच्छरा (अप्सरा/परी) मंदिर है. अक्षरा माता के नाम से भी मंदिर है जिसमे एक खूबसूरत झरना भी बहता है अच्छर कुंड में स्नान से होती है संतान प्राप्ति

गुप्त गंगा 

गुप्त गंगा 


गुप्त गंगा से हम लोग बस स्टैंड पहुंचे, हमारा अगला स्थल था माँ चामुंडा धाम.  हम लोग ४५ मिनट में चामुंडा जी पहुँच गए. और बारिश लगातार हो ही रही ही. 

इससे आगे का वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे....( A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - CHAMUNDA JI, चामुंडा जी - 2)

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