JODHPUR TRAVELL -11- रेलवे स्टेशन के आसपास
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यह यात्रा वृत्तान्त मेरी जोधपुर यात्रा के अंतिम दिन का है. इस यात्रा वृत्तान्त में मैंने जोधपुर रेलवे स्थानक और उसके सामने स्थित रन छोड़ जी मंदिर के बारे में हैं. जोधपुर रेलवे स्थानक एक ऐतिहासिक रूप से बना हुआ स्थानक हैं. बहुत ही साफ़ सुथरा हैं.
जोधपुर रेलवे स्टेशन जोधपुर ,राजस्थान ,भारत में स्थित एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है। रेलवे स्टेशन भारतीय रेल के उत्तर पश्चिम रेलवे के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन है।
जोधपुर रेलवे स्टेशन 1885 में नई जोधपुर रेलवे के क्षेत्राधिकार में खोला गया था। पहली रेलगाड़ी 9 मार्च 1885 को जोधपुर से लुनी तक चली गई। नई जोधपुर रेलवे को बाद में 1898 में जोधपुर-बीकानेर रेलवे बनाने के लिए बीकानेर रेलवे के साथ जोड़ा गया। 1891 में जोधपुर और बीकानेर के बीच एक रेलवे लाइन पूरी हो गई थी। बाद में 1900 में, जोधपुर-हैदराबाद रेलवे के साथ (इस रेलवे का कुछ हिस्सा पाकिस्तान में है) सिंध प्रांत के हैदराबाद के साथ संबंध है। बाद में 1942 में जोधपुर और बीकानेर रेलवे ने स्वतंत्र रेलवे के रूप में काम किया। आजादी के बाद, जोधपुर रेलवे का एक हिस्सा पश्चिम पाकिस्तान गया।(साभार: विकिपीडिया)
JODHPUR RAILWAY STATION |
JODHPUR RAILWAY STATION |
JODHPUR RAILWAY STATION |
जोधपुर रेलवे स्टेशन के बाहर एक पुराना भाप वाला इंजिन रखा हुआ हैं. ये एक अच्छा सेल्फी पॉइंट हैं.
OLD STEAM ENGINE |
रेलवे स्थानक के बाहर रेल इंजिन व हमारा राष्ट्रीय ध्वज
एक और सेल्फी पॉइंट, I LOVE SUNCITY
और ये मैं |
रेलवे स्थानक अन्दर से |
एक और दृश्य रेलवे स्थानक से निकलकर मैं सामने की ओर आ गया. सामने ही चौराहे पर जोधपुर के भूतपूर्व राजा श्री उम्मेद सिंह जी की मूर्ति लगी हुई हैं. |
महाराजा उम्मेदसिंह ई. 1918 में मारवाड़ रियासत के शासक हुए। उस समय वे नाबालिग थे। अतः शासन का काम जोधपुर के प्रधानमंत्री सर प्रताप चलाते थे। उनकी सहायता के लिये रीजेंसी कौंसिल स्थापित की गयी। उस समय मारवाड़ रियासत में प्रशासनिक नवीनीकरण का कार्य चल रहा था। दुर्भाग्य से 1922 में सर प्रताप का निधन हो गया। अगले वर्ष 1923 में महाराजा उम्मेदसिंह को शासन सम्बंधी निर्णय लेने के अधिकार मिल गये। इसके बाद मारवाड़ रियासत में प्रशासनिक सुधारों का काम और आगे बढ़ा।
यह वह समय था जब ब्रिटिश शासन विश्वव्यापी मंदी से उबरने के लिये जी तोड़ हाथ-पांव मार रहा था। इस कारण अंग्रेजों ने देशी रजवाड़ों को प्रशासनिक सुधार के लिये न केवल प्रेरित किया अपितु किसी हद तक बाध्य भी किया। महाराजा उम्मेदसिंह दूरदर्शी एवं आधुनिक विचारों के धनी थे। उन्होंने नये समय की चाल को समय रहते समझा और अपनी रियासत में कई नये विभागों की स्थापना की तथा पुराने विभागों को पुनर्गठित किया। नये विभागों में उड्डयन विभाग कई दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण था। यह एक ऐसा विभाग था जिसने न केवल ब्रिटिश भारत में अपिुत सम्पूर्ण यूरोप में जोधपुर रियासत को एक नवीन सम्मान और नये सिरे से ख्याति दिलवाई तथा रियासत को नवीन आर्थिक एवं सामरिक गतिविधियों का केन्द्र बना दिया।
राजा उम्मेद सिंह व रेलवे स्थानक |
यंहा से पैदल चलता हुआ मैं बाज़ार से होता हुआ राज रणछोड़ जी के मंदिर पर आ गया. यह मंदिर स्थानक के बिलकुल सामने हैं. पुराना और ऐतिहासिक मंदिर हैं ये.
स्थानक के सामने का बाज़ार व मंदिर |
ठाकुर जी श्री राज रणछोड़ जी मंदिर |
रेलवे स्टेशन के ठीक सामने स्थित राज रणछोड़जी का मंदिर शहर के सबसे प्राचीन कृष्ण मंदिरों में शामिल है। यह मंदिर रानी राजकंवर ने बनवाया था। जामनगर के राजा वीभा की बेटी झाड़ेचीजी उर्फ रानी राजकंवर का विवाह जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह से हुआ था। जसवंतसिंह विवाह के लिए नहीं गए और नौ वर्ष की राजकुमारी राजकंवर ने उनकी तलवार के साथ ही सात फेरे लिए थे। विवाह के बाद वे जोधपुर आईं और कुछ दिनों बाद जामनगर लौट गई। 13 वर्ष की आयु में वह पुनः जोधपुर आईं अाैर फिर जीवन भर जोधपुर दुर्ग से बाहर नहीं निकलीं। रानी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं और उनके दहेज में जामनगर के राजा ने कई पुजारी तथा कामदार भेजे थे। शहर के इतिहास पर कई किताबें लिखने वाले डॉ. मोहनलाल गुप्ता के अनुसार महाराजा जसवंतसिंह के विक्रम संवत् 1952 में देहावसान के बाद रानी राजकंवर ने वृद्धावस्था में जोधपुर में भगवान श्रीकृष्ण का भव्य मंदिर बनवाया। इसके लिए उन्हाेंने अपने निजी एक लाख रुपए से ज्यादा राशि खर्च की थी। जोधपुर परकोटे के बाहर बाईजी का तालाब के पास उस समय यहां एक ऊंचा रेतीला टीला हुअा करता था। रानी राजकंवर के पुत्र महाराजा सरदारसिंह की मौजूदगी में 12 जून, 1905 काे यह मंदिर भक्तों के दर्शनार्थ खोला गया।
पर्यटन विशेषज्ञ और वरिष्ठ टूर गाइड पंकज मेहता के अनुसार मंदिर करीब 30 फुट ऊंचा है और यह इतनी ऊंचाई पर इसलिए बनाया ताकि रानी राजकंवर मेहरानगढ़ की प्राचीर से ही श्रीकृष्ण के दर्शन कर सकें। शाम को पुजारी ज्योत मंदिर के पीछे के दरवाजे पर ले आते और दुर्गकी प्राचीर पर खड़ी रानी इसके दर्शन कर लेतीं। रानी ने अपने नाम राज के साथ भगवान श्रीकृष्ण अर्थात ‘रणछोड़’ का नाम जाेड़कर मंदिर का नाम ‘राजरणछोड़जी मंदिर’ रखा।
लाल पत्थर का मेनगेट, काले मकराना पत्थर की है प्रतिमा
लाल पत्थर से बना मंदिर का मेनगेट कलात्मक हैं। दोनों ओर कलात्मक छतरियां हैं वहीं मेन गेट से करीब 30 सीढ़ियां पूरी हाेने पर ताेरण द्वार है। सीढ़ियाें के दाेनाें अाेर खुली जगह पर बारादरियां हैं। मंदिर के गर्भ गृह में काले मकराना पत्थर को तराश कर भगवान रणछोड़ जी की प्रतिमा स्थापित हैं। इसका निर्माण द्वारिका के पुजारियों की सलाह से करवाया गया था।
मंदिर में पहले पूरे साल कुल 21 ठाकुरजी के उत्सव होते थे, किन्तु अब इनमें कमी आई है। मंदिर सुबह 6.30 बजे से दोपहर 12 बजे तक खुला रहता है। इसके बाद शाम को 5 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन किए जा सकते हैं। अब जन्माष्टमी, अन्नकूट व सावन के महीने में झूलों का आयोजन होता है। सावन के महीने में यहां करीब 10 फीट ऊंचे चांदी के झूले में ठाकुरजी का विराजित कर दर्शनार्थ रखा जाता है। ( साभार : दैनिक भास्कर)
मंदिर के सामने का दृश्य व् दूर दिखता स्थानक |
मंदिर से सामने का दृश्य |
ठाकुर श्री राज रनछोड़ जी |
मंदिर का मुख्य द्वार |
रात के समय स्टेशन |
जनता स्वीट्स पर इडली ढोकला |
जोधपुर का प्रसिद्द जनता स्वीट्स |
स्टेशन के वेटिंग हॉल में विशालकाय पंखा |
आज मेरा जोधपुर में अंतिम दिन था. मन में जोधपुर की यादो को समेटे मैं स्टेशन आ गया. और अपने घर की और चल पड़ा.
बहुत सुन्दर ब्लॉग। बहुतों जनकारी आपने दी है। कुम्भलगढ़ नाथद्वारा तक आया हूँ,मौका मिला तो जोधपुर जैसलमेर भी आउंगा।
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