Sunday, July 31, 2022

HASTINAPUR - KAILASH PARWAT & ASHTAPAD MANDIR - 3

HASTINAPUR - KAILASH PARWAT & ASHTAPAD MANDIR - 3

इससे पहले का यात्रा वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे .....(HASTINAPUR - A HOLY TRAVELL - 2 -JAMBUDEEP)

जम्बूदीप मंदिर समूह से हम लोग एक चाय की दूकान पर  पहुंचे. और साथ लाये हुए आलू पूरी, अचार और घर के खाने का स्वाद  चाय के साथ लिया. भोजन करने के बाद सामने स्थित कैलाश पर्वत मंदिर समूह के और पहुँच गए. ये मंदिर समूह भी विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ हैं. 

कैलाश पर्वत मंदिर समूह के बाहर  की और मार्ग 

एक धर्मशाला के बाहर का दृश्य 

पुरे देश के वैश्य जैन समाज के सेठो ने यंहा पर एक से बढ़कर धर्मशालाए बनवाई हुई हैं. 

कैलाश पर्वत जैन मंदिर परिचय

प्रथम तीर्थंकर युग प्रवर्तक भगवान ऋषभदेव की निर्वाण स्थली कैलाश पर्वत रचना का पूज्य आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज (हस्तिनापुर वाले) की प्रेरणा व् मुनि श्री आदि सागर जी महाराज , आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की परम शिष्या दृढमाता जी के आशीर्वाद से 3 मार्च 1996 को शिलान्यास संपन्न हुआ | सौभाग्य की बात है कि इसी धरा पर श्री आदिनाथ भगवान ने राजा सोमप्रभ श्रेयांश के द्वारा इक्षुरस का आहार प्राप्त कर अक्षय तृतीया जैसे पावन पर्व का सूत्रपात किया और इस धरा को पवित्र किया | तेईस तीर्थंकरो की निर्वाण स्थली के दर्शन हमारे समाज को सुलभता से प्राप्त हो जाते है परन्तु युग पर्वतक प्रथम तीर्थंकर की मोक्षस्थली की रज मस्तक पर लगाने को लालायित रहते है |

मंदिर समूह का मुख्य द्वार 

इस कमी की पूर्ति हेतु यहाँ पर कैलाश पर्वत का निर्माण किया गया | जो विश्व की एकमात्र रचना 131 फ़ीट ऊँची अपने आप में अनूठी व् आकर्षण का केंद्र है | इसमें भूतकाल , वर्तमानकाल व् भविष्य काल की तीन चौबीसी , 72 मंदिर पर 51 फ़ीट वाले शिखर युक्त मंदिर में 111/4 फ़ीट पदमासन वाली भगवान आदिनाथ की मनोग प्रतिमा विराजमान है | अन्य मंदिर 21 - 21 फ़ीट वाले शिखरबंद बनाये गए है , जिनमे सवा दो फ़ीट की पदमासन मनोगः प्रतिमाये विराजमान की गयी है |


कैलाश पर्वत मंदिर का अन्दर वाला प्रवेश द्वार 

कैलाश पर्वत के ऊपर से  दृश्य 

कैलाश पर्वत हिमालय पर्वतमालाओं में स्थित है जो जैन धर्म के लिए एक पवित्र स्‍थल है। ऐसा माना जाता है कि इसी जगह जैन धर्म के पहले तीर्थांकर भगवान ऋषभदेव ने मोक्ष की प्राप्ति की थी। वास्‍तव में, कैलाश पर्वत तक पहुचंना सभी साधारण श्रद्धालुओं के लिए संभव नहीं है, इसलिए जैन समुदाय ने हस्तिनापुर में एक आसान विकल्‍प तैयार कर लिया। यहां भगवान ऋषभदेव के जन्‍मस्‍थान पर इसकी प्रतिकृति का निर्माण किया गया ताकि सभी श्रद्धालु यहां तक दर्शन के लिए आराम से पहुंच सके। इसके अलावा, दूसरा पहलू यह भी है कि इस मंदिर का निर्माण अक्षय तृतीया के दिन करवाया गया था, इसी दिन भगवान श्री आदिनाथ ने अपने 13 महीने पुराने उपवास को गन्‍ने का जूस पीकर तोड़ा था। 131 फीट की ऊंचाई वाले पर्वत पर 11.25 फीट ऊंची भगवान ऋषभदेव की पद्मासन लगाए हुए मूर्ति स्‍थापित है। हस्तिनापुर में कैलाश पर्वत तीन चरणों में बना हुआ है। इसमें गोलाकर सीढियों पर 72 मंदिर स्थित है जो तीर्थंकरों के भूत, वर्तमान और भविष्‍य को दर्शाते है। प्रत्‍येक गोलाकर सीढी, एक विशेष काल के 24 तीर्थांकरों को दर्शाती है। इमारत की अनूठी विशेषता इसकी नजा़कत, उत्‍कीर्ण फाटक, सजी हुई छत, खंभे और पैनल है।

मंदिर के लिए ऊपर जाना होता हैं 

















मंदिर में स्थापित स्तम्भ 


मंदिर के शिखर की और 


रोहित 



और ये मै 

एक और मंदिर 

मंदिर सामने से 




कैलाश पर्वत मंदिर दूर से 

ऐरावत हाथी रथ 

यंहा से हम लोग बराबर में स्थित श्री शांतिनाथ जैन मंदिर में आ गए.

श्री शांतिनाथ श्वेताम्बर मंदिर 

मुख्य द्वार 

श्री श्‍वेताम्‍बर जैन मंदिर में कई प्राचीन मूर्तियां रखी हुई है। यह स्‍थल तक तक उपेक्षित था, जब तक यहां विजय वल्‍ल्‍भ सूरी जी के आचार्य विजय समुद्र सूरी जी ने दौरा नहीं किया, उन्‍होने 1960 में इस स्‍थल का दौरा किया था। महान आचार्य ने मंदिर में पुनर्निर्माण करवाते हुए एक शिखर को बनवाया। उन्‍होने श्री शांतिनाथ भगवान की मूर्ति को स्‍थापित किया, जिसे श्री कुंथुनाथ भगवान के द्वारा लाया गया था और मंदिर में श्री अरनाथ भगवान की मूर्ति को अलग से रखा गया है। इस मंदिर के महत्‍व की कल्‍पना इस बात से की जा सकती है कि इस मंदिर में प्रथम जैन तीर्थंकर, भगवान श्री आदिनाथ ने श्रेयांस कुमार के हाथों से गन्‍ने का रस लेकर अपना 13 माह पुराना उपवास तोड़ा था। इस मंदिर में एक भव्‍य पाराना या उपवास तोडने वाला हॉल है, जो मंदिर में सामने ही स्थित है। इस मंदिर में साल की अक्षय तृतीया को कई श्रद्धालु अपना उपवास तोड़ते है जो वह काफी लम्‍बे समय से रखते है। साल भर के उपवास को बरसी तप कहा जाता है।








शांतिनाथ मंदिर से थोड़ी दूर ही अष्टपद मंदिर हैं. इसके द्वार बंद थे इसके दर्शन हमने बाहर से ही किये. 

अष्टापद मंदिर 

अष्‍टपद अर्थात् आठ कदम। जैन शास्‍त्रों के अनुसार, बर्फ से ढकी हिमालय पर्वतमालाओं में कहीं न कहीं एक अष्‍टपद धार्मिक केंद्र अवश्‍य है। यह कैलाश पर्वत में बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान उत्‍तर की दिशा में 168 मील की दूरी पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि सुंदर मानसरोवर झील से अष्‍टपद की दूरी सात मील दूर है। हालांकि अब यह जगह चीन के कब्‍जे में आती है। किंवदंतियों के अनुसार, भगवान ऋषभदेव, जैन धर्म के प्रथम तीर्थांकर ने इसी जगह आकर मोक्ष की प्राप्ति की थी। महाराजा भरत चक्रवर्ती के बेटे ने अष्‍टपद पर्वत पर एक महल का निर्माण करवाया था और इसे हीरों से सजाया था। यह भी माना जाता है कि जो लोग अष्‍टपद की यात्रा कर लेते है उन्‍हे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी मान्‍यता के साथ, जैन समुदाय हस्तिनापुर के अष्‍टपद की प्रतिकृति में आकर दर्शन लेते है जो वास्‍तव में पहले तीर्थांकर का जन्‍मस्‍थान है। इस शानदार तीर्थस्‍थल को दो दशक में 25 करोड़ की लागत से पूरा किया गया। 151 फीट ऊंचाई और 108 मीटर के व्‍यास महलनुमा संरचना में प्रवेश करने के लिए चार बड़े फाटक है। यहां आठ पद या कदम बने है जिनमें से प्रत्‍येक की ऊंचाई 108 फीट है।


सुन्दर अष्टपद मंदिर 

अष्‍टपद अर्थात् आठ कदम। जैन शास्‍त्रों के अनुसार, बर्फ से ढकी हिमालय पर्वतमालाओं में कहीं न कहीं एक अष्‍टपद धार्मिक केंद्र अवश्‍य है। यह कैलाश पर्वत में बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान उत्‍तर की दिशा में 168 मील की दूरी पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि सुंदर मानसरोवर झील से अष्‍टपद की दूरी सात मील दूर है। हालांकि अब यह जगह चीन के कब्‍जे में आती है। किंवदंतियों के अनुसार, भगवान ऋषभदेव, जैन धर्म के प्रथम तीर्थांकर ने इसी जगह आकर मोक्ष की प्राप्ति की थी। महाराजा भरत चक्रवर्ती के बेटे ने अष्‍टपद पर्वत पर एक महल का निर्माण करवाया था और इसे हीरों से सजाया था। यह भी माना जाता है कि जो लोग अष्‍टपद की यात्रा कर लेते है उन्‍हे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी मान्‍यता के साथ, जैन समुदाय हस्तिनापुर के अष्‍टपद की प्रतिकृति में आकर दर्शन लेते है जो वास्‍तव में पहले तीर्थांकर का जन्‍मस्‍थान है। इस शानदार तीर्थस्‍थल को दो दशक में 25 करोड़ की लागत से पूरा किया गया। 151 फीट ऊंचाई और 108 मीटर के व्‍यास महलनुमा संरचना में प्रवेश करने के लिए चार बड़े फाटक है। यहां आठ पद या कदम बने है जिनमें से प्रत्‍येक की ऊंचाई 108 फीट है।




अष्टपद मंदिर द्वार 

यंहा से निकलकर हम लोग और दुसरे मंदिरों की और चल पड़े 


एक निर्माणाधीन मंदिर 


एक और पुराना मंदिर 

इन मंदिरों के दर्शन के बाद हम लोग पांडव कालीन मंदिरों की और चल पड़े. 

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Saturday, July 16, 2022

HASTINAPUR - A HOLY TRAVELL - 2 -JAMBUDEEP

HASTINAPUR - A HOLY TRAVELL - 2 -JAMBUDEEP

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बड़ा जैन मंदिर से हम लोग थोड़ी ही दूर जम्बू दीप मंदिर संकाय की और चल पड़े. यह संकाय बहुत सारे मंदिरों का एक समूह हैं.

जैन जम्‍बूद्वीप मंदिर, जैन साध्‍वी, परम पूज्‍य शिरोमणि ज्ञानमती माताजी के अथक और समर्पित प्रयासों की स्‍मृति में श्रद्धापूर्वक बनवाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि साध्‍वी ने 1965 में विंध्‍य पर्वतश्रेणी में भगवान बाहूवली की पवित्र मूर्ति के नीचे ध्‍यान लगाते हुए एक स्‍वप्‍न देखा, जिसमें उन्‍होने मध्‍यलोक - मिडिल यूनीवर्स के साथ तेरह द्वीपों को देखा। बाद में साध्‍वी द्वारा देखे गए स्‍वप्‍न को तिलोपन्‍नट्टी और त्रिलोस्‍कर जैसे जैन धर्म से जुड़े शिलालेख मिलने के बाद सच मान लिया गया, यह सभी शिलालेख लगभग 2000 साल पुराने थे। माना जाता है कि पहले जैन तीर्थांकर भगवान ऋषभदेव ने भी ठीक यही स्‍वप्‍न देखा था। साध्‍वी ने सही स्‍थान देखने के लिए पदयात्रा ( पैदल यात्रा ) पूरे देश में शुरू कर दी, ताकि सवप्‍न में देखे गए स्‍थल को ढूंढा जा सके। अंत में वह हस्तिनापुर आ पहुंची, जहां उन्‍होने महसूस किया कि यह वह जगह है जो उनके द्वारा स्‍वप्‍न में देखी गई थी। इस मंदिर की आधारशिला 1974 में रखी गई थी, जो पूरी तरीके से 1985 में बनकर तैयार हुआ। वास्‍तव में, इस मंदिर की संरचनात्‍मक प्रतिनिधि को तीर्थांकरों की धार्मिक पुस्‍तकों में दुनिया के भूगोल में दर्शाया गया है। यहां 101 फीट ऊंचा सुमेरू पर्वत का केंद्र है और 250 फीट व्‍यास का जम्‍बूद्वीप है जो चार दिशाओं में चार क्षेत्रों में फैला है - पूर्व, पश्चिम, उत्‍तर और दक्षिण।

वस्तुतः जम्बूद्वीप जैन दर्शन के अनुसार पूर्व जैन गुरूओं द्वारा आगमों (शास्त्रों) मे प्रतिपादित जैन भूगोल अर्थात़् हमारी विशाल सृष्टि की साक्षात् प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है। वास्तुकला की दृष्टि से भी यह अत्यन्त ही प्रभावशाली संरचना के रूप में निर्मित की गयी है। एक विशेष सामाजिक वर्ग एवं जैन ग्रंथो के अनुसार जम्बूद्वीप जो कि पूर्णतः गोलाकार है, के मध्य में एक लम्बवत् त्रिकोणात्मक एवं ऊॅचा ज्यामितीय स्मारक है जो सुमेरू पर्वत नाम से जाना जाता है। यह जम्बूद्वीप का केन्द्रबिन्दु होने के कारण स्वतः ही आकर्षण का केन्द्र है। सुमेरू पर्वत शास्त्रोनुसार तीनों लोको एवं तीनों कालों में सबसे ऊॅचा एवं पवित्र पर्वत माना जाता है। जिसकी ऊॅचाई 1 लाख 40 योजन अर्थात् 60 करोड़ किमी मानी गयी है। एवं जैन मान्यतानुसार इसी पर्वत पर जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों का जन्माभिषेक किया गया था। यह मान्यता जन्म कल्याणक कहलाती हैं। इस सुमेरू पर्वत के कारण जम्बूद्वीप रचना के अंदर पूर्व-पश्चिम उत्तर-दक्षिण चार प्रकार से भिन्न-2 रचना के रूपो का ज्ञान होता है। चारो दिशाओ में पौराणिक कथाओ के अनुरूप पूर्व पश्चिम विदेह क्षेत्र तथा दक्षिण दिशा में भारत क्षेत्र व अन्य विजयार्ध हिमवान आदि पर्वत गंगासिंधु आदि नदियाँ कल्पवृक्षों सहित भोगभूमि से जुडे सभी तत्व पृथक पृथक नामों से सफलतापूर्वक प्रतीकात्मक एवं रचनात्मक रूप से निर्मित किये गये है।

विश्व में संभवतः प्रथम बार अकृत्रिम सृष्टि ( जैन भूगोल ) का स्थापत्य के रूप में निर्माण किया गया है। सुमेरू पर्वत स्थान के रूप में इसे भारत की प्राचीनतम् धर्म नगरी हस्तिनापुर में 20वीं शती के उत्तरार्द्ध में 101 फुट ऊॅचा बनाया गया है। वस्तुतः यह वास्तुकला अपने आकार स्थान एवं समाज तीनों ही परिपे्रक्ष्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पृथ्वी गोल है एवं भ्रमणशील हैं। परन्तु जैन भूगोल इस पृथ्वी को स्थिर एवं वलयाकर चपटा व गोलाकार स्वीकार करता है। पृथ्वी का जम्बूद्वीप रूपी यह प्रतीकात्मक स्थापत्य हमें एक अलग ही परिप्रेक्ष्य एवं गहन अध्ययन की ओर ले जाता है।जैन भूगोल पर आधारित यह जम्बूद्वीप भारतीय वास्तुकला में प्राकृतिक आध्यात्मिक एवं कलात्मक प्रतिमूर्ति के रूप में विशेष रूप सें अध्ययन योग्य है। उपरोक्त विवरण प्राचीन ग्रन्थ तिलोयपणत्ति त्रिलोकसार आदि ग्रंथों के आधार पर दिया गया है । जिसे जम्बूद्वीप जैसी विशाल स्थापत्य कला के रूप में साकार करने का श्रेय जैन साध्वी श्री ज्ञानमती माता जी को जाता है, जिस प्रकार, एक कलाकार अपने अवचेतन मन की कल्पना को चित्र के रूप में दर्शाता है, उसी प्रकार, इस जम्बूद्वीप की सरंचना को ज्ञानमती माता जी (फलस्वरूप सन् 1965)के जैन शास्त्रों के गहन अध्ययन कर सम्पूर्ण परामंड़ल की परिकल्पना कर रचना को साकार रूप दिया। इस प्रकार पुनः 2000 वर्षो पूर्व के लिखित तिलोयपणत्ति, त्रिलोकसार आदि प्राचीनतम ग्रंथो में उसका ज्यों का त्यों स्वरुप इस धरती पर हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप, कमल मंदिर, त्रिलोकधाम, और तेरहद्वीप जैसे स्थापत्य के रूप में साकार हुआ, जो कलात्मक दृष्टि से भी भारतीय स्थापत्य कला में एक नवीन सृजनात्मकता का परिचायक हैं।

जम्बूदीप मंदिर समूह का प्रवेश द्वार 

जम्बूदीप मंदिर समूह का मुख्य प्रवेश द्वार 

मंदिर से दिखता कैलाश पर्वत मंदिर समूह 

मंदिर समूह के मंदिरों के बारे में बताता एक बोर्ड 

सुमेरु पर्वत 

दूर ज़ूम करके दीखता एक मंदिर 

सुमेरु पर्वत से लिया गया चित्र 

सुमेरु पर्वत से लिया गया मंदिर समूह का चित्र 




तीन लोक रचना  ऊपर से 


एक और निर्माणाधीन मंदिर 


एक मंदिर और रेलवे स्टेशन की रचना 


रोहित मेरा साथी 

एक और मंदिर 


ट्रेन की रचना 

ध्यान मंदिर 


नया बनता हुआ मंदिर 







तीन लोक रचना मंदिर 

तीन लोक रचना के अन्दर 

इस मंदिर में तीन  लोक दिखाए गये हैं तीन मंजिले हैं. लिफ्ट के द्वारा ऊपर जाते हैं. फिर सीढियों से नीचे आते हैं. हर मंजिल पर  एक लोक के बारे में प्रदर्शित किया गया हैं 

मंदिर ही मंदिर चारो और मंदिर 

तीन लोक रचना के अन्दर 

तीन लोक के बारे में बताता शिलापट 






भगवान् ऋषभदेव कीर्ति स्तम्भ 


तेरह दीप जिनालय 



सुमेरु पर्वत 



ऐरावत हाथी 


सुमेरु पर्वत 

जम्बू़द्वीप की ज्यामितिय विशेषता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर है कि किस प्रकार गोलाकार परिधि के अन्दर त्रिभुजाकार लम्बवत आकार का सूमेरू पर्वत जो कि 101फुट ऊॅंचा है,एक उत्कृष्ट स्थापत्य में निहित समस्त कला तत्वों जैसे प्रमाण, समानता, संतुलन, संयोजना, नमूना, अलंकरण, द्रव्यमान एवं स्थान सभी अवयवों को समाहित किये हुये हैं। सुमेरू पर्वत के चारों ओर 4फुट की जगती के ऊपर विद्यमान छोटे-छोटे जिन चैत्यालयों से घिरा हुआ है, साथ ही जैन भूगोल की प्राकृतिक नदीयों, पर्वतों, भूमि इत्यादि तत्वों की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति की गयी हैं । भारतीय वास्तुकला के दृष्टिकोण से यह जैन स्थापत्य कला की उत्कृष्टता को प्राप्त है ,तथा कलात्मक सौन्दर्य की परिभाषा का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है।







कमल मंदिर 

कमल मंदिर

यह जम्बूद्वीप के प्रांगण में एक छोटा सा मंदिर है। यह पूजा का घर है, जिसे लोटस टेम्पल के नाम से जाना जाता है, जैन पूजा का घर है और हस्तिनापुर में एक प्रमुख आकर्षण भी है। यह 1989 में बनकर तैयार हुआ था।

कमल मंदिर का निर्माणकार्य सन 1975 में किया गया था । कमल मंदिर में एकमात्र खड्गासन सवा दस फुट ऊँची जैनधर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर मूल प्रतिमा विराजित है तथा यह कमल के सौम्य आकार की वेदी पर स्थापित है।

कमल मंदिर का सौन्दर्य अपने नाम के अनुरूप ही वास्तविकता के अत्यधिक समीप है, जैसा कि चित्र से स्वतः ही स्पष्ट है । पंखुड़ियों का लचीलापन और इसका श्वेत वर्ण इसकी जीवंतता को और भी मोहक बनाता है । तुलनात्मक रूप से दिल्ली में स्थित ‘लोटस टेम्पल‘ ज्यामितीय है जबकि हस्तिनापुर स्थित कमल मंदिर आलंकारिक है । कमल की पंखुडियो को 6भागों में क्रमशः खिला हुआ बनाया गया है, जो खिलते हुए कमल के सादृश्य प्रतीत होती है, साथ ही चारों तरफ गोल आकार में बना सरोवर इसके कलात्मक सौंदर्य को द्विगणित करता है । कमल मंदिर का आंतरिक सौंदर्य -मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही हमें सामने श्वेत पाषाण की भगवान महावीर की सवा 10 फुट ऊँची प्रतिमा के दर्शन होते हैं . भगवान के पीछे बनी वेदिका में यक्षणी की प्रतिमा उत्कीर्ण की गयी है, मंदिर के आंतरिक गुम्बद में सर्वप्रथम, वक्राकार सबसे छोटे गोले में अलंकारिक फूल जो मुगल कालीन अलंकरण से प्रभावित है, बना हुआ है उसके बाद दूसरे और तीसरे गोल फलक में भगवान की माता के सोलह स्वप्नों का क्रमशः चित्रांकन किया गया है, तत्पश्चात चतुर्थ और अंतिम फलक में इन्द्रादि देवों को हंस, मयूर आदि आकारके वायुयानों में आकाश में विचरण करते हुये दिखाया गया है ।

सभी फलकों को दोनों तरफ आलंकारिक बॉर्डरों से सुसज्जित किया गया है गुम्बद के भित्तिचित्रों के बाद आंतरिक दीवारों में ऊपर की ओर सभी 24 तीर्थंकरो के चित्र है तत्पश्चात भगवान महावीर के पूर्व भवो तथा जीवन पर आधारित कथाओं का अंकन है । यह सभी भित्ति चित्र लंबवत तथा आयताकार बनाये गए हैं । भगवान महावीर के जीवन पर बने चित्रों की कुल संख्या 32 हैं। जिनमें करूणा ,वीर, श्रृंगार इत्यादि रसों की सफलतम प्रस्तुति की गयी है।

भित्ति चित्रों की चित्र संयोजना लगभग समान है , ज्यादातर अलग -अलग दृश्यों को एक चित्र में दो या तीन भागों में विभाजित किया गया है ।. प्राकृतिक पृष्ठ्भूमि में चटक रंगों के प्रयोग से यह चित्र काफी आकर्षक बन पड़े हैं । परिप्रेक्ष्य का तकनीकी अभाव दिखाई देता है , परन्तु प्रत्येक चित्र अपने विषय को पूर्णतः स्पष्ट करता है । लाल, आसमानी, हरे, सुनहरे, आदि चटक रंग चित्र को मोहक बनाते है । इन भित्ति चित्रों में हमें लघु चित्रों की छाप दिखाई देती है । इन चित्रों के बाद नीचे की दीवारों को आसमानी रंग से एक सरोवर के सादृश्य अलंकृत किया है जिनके मध्य में कहीं -कहीं खिले कमल एवं कलियों को चित्रित किया गया है । इसप्रकार हस्तिनापुर नगरी प्राचीन ही नहीं अपितु आधुनिक भारतीय कला के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण है ।



कमल मंदिर के अन्दर भगवान् जी 

कमल मंदिर की छत की नक्काशी 

और ये मैं सुमेरु पर्वत मंदिर के ऊपर 

ऊपर से चारो और के मंदिर और हरियाली का विहंगम दृश्य दीखता हैं. मन करता हैं फोटो ही फोटो लेता रंहू.


फोटो इतने हो जाते हैं की कौन सा रखे कौन सा नहीं. फिर भी कुछ मैंने चुने हैं. आशा हैं आपको अच्छे लगेगे.
 यंहा से बाहर निकलकर हमलोग कैलाश पर्वत मंदिर समूह की और आ जाते हैं. 

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