Monday, March 6, 2023

HASTINAPUR - PANDAVESHWAR MANDIR & SHAKTIPEETH - 4

HASTINAPUR - PANDAV MANDIR & SHAKTIPEETH - 4

इससे पहले का यात्रा वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे...(HASTINAPUR - KAILASH PARWAT & ASHTAPAD MANDIR - 3)

कैलाश पर्वत मंदिर से निकलकर हम लोग पांडव कालीन मंदिर समूहों की और आ गए. पुरातन मंदिर बने हुए हैं. दर्शन करके मन को शान्ति मिलती हैं 
.
हस्तिनापुर का अर्थ होता है हाथियों का शहर, जो महाभारत काल के दौरान कौरवों की राजधानी हुआ करती थी। हालांकि, महाभारत का युद्ध कुरूक्षेत्र में हुआ था लेकिन इस लड़ाई के बीज हस्तिनापुर में ही बोए गए थे। महाभारत के युद्ध के बाद, हस्तिनापुर पर पांडवों द्वारा शासन किया गया था।

कैलाश पर्बत व अष्टापद मंदिर से निकलने के बाद हम लोग पांडव कालेन मंदिर व स्मारक देखने के लिए आगे बढे..सबसे पहले हम लोग थोड़ी ही दूर पांडवएश्वर मंदिर की और गए. यह एक पांडव कालीन व पांडवो के द्वारा स्थापित मंदिर हैं. 

 हस्तिनापुर के एक पुराने शहर में स्थित खंडहर में, पुराना पांडेश्‍वर मंदिर बना हुआ है जो भगवान शिव को समर्पित है। किंवदंतियों के अनुसार, मंदिर के गर्भगृह में रखी शिवलिंग दानवीर कर्ण ने दान की थी, जो पांडवों के बड़े भाई थे। दानवीर कर्ण को अपने समय का सबसे बड़ा परोपकारी माना जाता था। कर्ण, महाभारत के महान नायकों में से थे, जो कौरवों के पक्ष से लड़े थे। यह मंदिर, एक छोटी पहाड़ी के शीर्ष पर बंगाली समुदाय द्वारा निर्मित मां काली की मूर्ति के नीचे स्थित है। यहां से हस्तिनापुर और उसके आसपास के क्षेत्रों का, शहर का याानदार दृश्‍य देखने को मिलता है। हस्तिनापुर के इस शिव मंदिर में भोलेनाथ पूरी करते हैं हर मन्नत, युधिष्ठिर ने भी मंगी थी मुराद

मंदिर का मुख्य द्वार 

मंदिर में होती है हर मनोकामना पूरी

हस्तिनापुर सुंदर स्थानों में शामिल है, यहां वन जंगल और झीलें लोगों के आकर्षण का केंद्र हैं। यहां हर साल लाखों श्रृद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर परिसर स्थित प्राचीन विशाल वट वृक्ष है। इस वृक्ष के नीचे भी श्रद्धालु दीपक जलाकर पूजा-अर्चना करते हैं। यहीं पर प्राचीन शीतल जल का कुआं स्थित है। इसका जल श्रद्धालु अपने साथ ले जाते हैं। इस जल के घर में छिड़कने से शांति मिलती है। पांडवेश्वर मंदिर में प्रतिदिन श्रद्धालु पूजा-अर्चना कर मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। किवदंती है कि महाभारतकाल में पांडु पुत्र युधिष्ठिर ने धर्मयुद्ध से पूर्व यहां शिवलिंग की स्थापना कर बाबा भोलेनाथ से युद्ध में विजयी होने की मन्नत मांगी थी। यही नहीं मंदिर के समीप गंगा की धारा बहती थी। द्रौपदी प्रतिदिन इस मंदिर में पूजा-अर्चना करती थीं। मंदिर परिसर के बीच में शिवलिंग स्थित है।

महाभारतकालीन में हुआ था मंदिर का जीर्णोद्धार

महाभारतकालीन इस मंदिर का जीर्णोद्धार बहसूमा किला परीक्षितगढ़ के राजा नैन सिंह ने 1798 में कराया था। मंदिर में लगी पांच पांडवों की मूर्ति महाभारतकालीन है। इसका अंदाजा उनकी कलाकृति से लगता है। यहां स्थित शिवलिंग प्राकृतिक है। यह शिवलिंग जलाभिषेक के चलते आधा रह गया है।

मंदिर का बाहरी क्षेत्र व पार्किंग 

जयंती माता शक्ति पीठ का टिल्ला 

रोहित मंदिर के बाहर 

पवित्र शिवलिंगम 

पुजारी जी 

पांडवो की गुफा 





पांडव कालीन पुरातन वट वृक्ष 

मंदिर के बाहर  पुरातत्व विभाग द्वारा लगाया हुआ पट 

उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग का पट 

हस्तिनापुर में महाभारतकालीन मंदिरों में जयंती माता शक्तिपीठ मंदिर भी स्वयं में अद्भुत है। मंदिर में पांडवों की कुलदेवी मां जयंती पिंडी रूप में विराजमान हैं। मां की मूर्ति का प्रतिदिन होता श्रृंगार श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करने पर मजबूर करता है। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण मंदिर का वातावरण भी श्रद्धालुओं को खूब भाता है।

महादेव मंदिर से हम लोग पास ही टिल्ले पर स्थित माता के मंदिर में पहुंचे. वंहा पर माता के दर्शन किये.
 मुख्य मार्ग से पांडव टीले के पास से गुजर रहे रास्ते से होते हुए जयंती माता शक्तिपीठ मंदिर के पास पहुंच सकते हैं। यहां से आपको एक लोहे की सीढ़ियां दिखाई देंगीं, जहां से चढ़कर जयंती माता के दर्शन करने पहुंचा जा सकता। विशाल बरगद की छाया संपूर्ण मंदिर परिसर को अपने आगोश में समेटे हुए है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में पहुंचने पर मां काली के स्वरूप के दर्शन होते हैं। साथ ही ¨पिंडी  रूप में विराजमान मां के दर्शन भी होंगे।

माता के मंदिर का पट 

गंगा के वेग से क्षतिग्रस्त हो गया था मंदिर

बताया गया कि पौराणिक समय में जब गंगा नदी ने अपना रौद्र रूप दिखाते हुए हस्तिनापुर में तबाही की थी, उस समय हस्तिनापुर का साम्राज्य नष्ट हो गया था। तभी से महाभारत के महल, मंदिर, मठ इत्यादि जमीन में दबे हैं। इसके बाद माता के स्वरूप को पिंडी रूप में पुर्नस्थापित किया गया।



माता के मंदिर का मुख्य द्वार 

माता के दिव्य दर्शन 

जयंती माता शक्तिपीठ मंदिर परिसर का दृश्य प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। पांडव टीले के ऊपर जंगल के बीच से संकरी पगडंडी से होते हुए भी मंदिर तक पहुंच सकते है। यह मार्ग आपको किसी पर्वत की चढ़ाई सा अनुभव करा देगा। मंदिर परिसर में दो प्राचीन मठ विराजित हैं। इसके अलावा भगवान शिव की विशाल प्रतिमा, शनि महाराज के भी दर्शन कर सकते हैं।

जयंती माता ने पांडवों को दिए थे अस्त्र-शस्त्र

बताते हैं कि जयंती माता पांडवों की कुलदेवी थीं और भगवान कृष्ण के कहने पर पांडवों ने जयंती माता की स्तुति की थी। मां जयंती ने पांडवों की आराधना से प्रसन्न होकर इसी स्थान पर उन्हें दिव्य अस्त्र-शस्त्र भी प्रदान किए थे। जिसका प्रयोग उन्होंने महाभारत युद्ध में किया और वे विजयी हुए। मंदिर के पुजारी पंडित मनीष शुक्ला ने मंदिर की महत्ता बताते हुए कहा कि जयंती माता मंदिर बहुत प्राचीन और शक्तिपीठ है। मां सती के शरीर के अंग व आभूषण जिन-जिन स्थानों पर गिरे वहीं शक्तिपीठ कहलाए। बताते हैं कि हस्तिनापुर के इस स्थान पर माता सती का जंघा वाला भाग गिरा और जयंती माता शक्तिपीठ के रूप में विख्यात हुईं।

जयंती माता 

मंदिर के अन्दर का दृश्य 

गुरु गोरखनाथ तपस्या स्थल 

मंदिर का इतिहास बताता हुआ पट 

एक और शिला पट 

मंदिर का प्रांगन 

मंदिर का प्रांगन 

मंदिर का मार्ग 

मंदिर को जाती हुई सीढ़िया

माता के मंदिर से थोड़ी दूर ही कर्णेश्वर महादेव मंदिर है.  यह भी पुराना बना हुआ हैं  हस्तिनापुर महाभारत कालीन ऐतिहासिक नगरी में मौजूद कर्ण मंदिर द्वापर युग का साक्षी है। यह वही स्थान है, जहां इंद्र ने कर्ण को कवच और कुंडल दान किए थे। कर्ण जिस देवी की तपस्या कर प्रतिदिन सवा मन सोना प्राप्त करते और दान करते थे, आज उसी कामाख्या देवी का मंदिर जीर्ण शीर्ण अवस्था में है। इसकी आज तक पर्यटन विभाग और सरकार को कोई चिंता नहीं है।

कर्णेश्वर महादेव मंदिर 

दानवीर कर्ण इसी स्थान पर कामाख्या देवी की पूजा करते थे। अपने शरीर की आहुति देकर मां कामाख्या देवी से हर रोज सवा मन सोना प्राप्त करते थे। गंगा में स्नान करने के बाद सोना दान करते थे। कर्ण मंदिर में आज भी प्रतिदिन पर्यटक देश के कोने-कोने से आते हैं।

शिवलिंगम, कर्णेश्वर महादेव मंदिर 

पुराणों में भी अंकित है मंदिर का महत्व

प्राचीन कर्ण मंदिर का पुराणों में भी वर्णन है। इसके बाद भी ऐतिहासिक स्थान आज भी कई मूलभूत सुविधाओं से अछूता है। इस मंदिर की तरह कस्बे में अन्य कई महाभारत कालीन प्राचीन मंदिर और अवशेष उसी अवस्था में खड़े हुए हैं। जिन्हें संवारने के लिए कोई मुहिम नहीं चलाई गई। इस कारण अस्तित्व समाप्त हो रहा है।

माता आदि शक्ति, कर्णेश्वर मंदिर 

हनुमान जी कर्णेश्वर मंदिर 

श्री कर्णेश्वर मंदिर 

पांडव कालीन मंदिर देखने के बाद इस बात का बहुत दुःख होता हैं की इन मंदिरों के बारे में अधिकतर लोगो को मालुम ही नहीं हैं, यंही पर भगवान् श्री कृष्ण ने सबसे पहले अपना विराट रूप दिखाया था. लोग हस्तिनापुर आते हैं और इनके दर्शनो के बिना चले जाते हैं. इन मंदिरों की ठीक से व्यवस्था, रखरखाव भी नहीं हैं. जबकि यंहा पर जैन वैश्य समुदाय ने एक से एक शानदार मंदिर व धर्मशालाए बनवाई हुई हैं. जिनका रख रखाव भी बहुत अच्छा हैं.  हमारे इन सनातनी पांडव कालीन मंदिरों की दुर्दशा हैं. भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार, विश्व हिन्दू परिषद्, इस्कॉन, हिन्दू संस्थाओं को यंहा के बारे में कुछ करना चाहिए. जैसे की कुरुक्षेत्र में विकास हैं, यंहा पर उसका एक प्रतिशत भी नहीं हैं. मेरठ, मुज़फ्फरनगर, बिजनोर  से ठीक से बस सेवा भी नहीं हैं. ना ही कोई रेल नेटवर्क हैं.  खैर हम लोग क्या कर सकते है पर जो हिन्दुओ के ठेकेदार बनते हैं वो तो कुछ कर सकते हैं.

कर्णेश्वर मंदिर से हम लोग हस्तिनापुर से पंच् प्यारे में से एक भाई धर्मसिंह के गाँव सैफ पुर की और  चल पड़े.  

इससे आगे का यात्रा वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे....(BHAI DHARMSINGH GURUDWARA SAIFPUR - HASTINAPUR - 5


No comments:

Post a Comment

घुमक्कड यात्री के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।