HASTINAPUR - KAILASH PARWAT & ASHTAPAD MANDIR - 3
जम्बूदीप मंदिर समूह से हम लोग एक चाय की दूकान पर पहुंचे. और साथ लाये हुए आलू पूरी, अचार और घर के खाने का स्वाद चाय के साथ लिया. भोजन करने के बाद सामने स्थित कैलाश पर्वत मंदिर समूह के और पहुँच गए. ये मंदिर समूह भी विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ हैं.
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कैलाश पर्वत मंदिर समूह के बाहर की और मार्ग |
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एक धर्मशाला के बाहर का दृश्य
पुरे देश के वैश्य जैन समाज के सेठो ने यंहा पर एक से बढ़कर धर्मशालाए बनवाई हुई हैं. |
कैलाश पर्वत जैन मंदिर परिचय
प्रथम तीर्थंकर युग प्रवर्तक भगवान ऋषभदेव की निर्वाण स्थली कैलाश पर्वत रचना का पूज्य आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज (हस्तिनापुर वाले) की प्रेरणा व् मुनि श्री आदि सागर जी महाराज , आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की परम शिष्या दृढमाता जी के आशीर्वाद से 3 मार्च 1996 को शिलान्यास संपन्न हुआ | सौभाग्य की बात है कि इसी धरा पर श्री आदिनाथ भगवान ने राजा सोमप्रभ श्रेयांश के द्वारा इक्षुरस का आहार प्राप्त कर अक्षय तृतीया जैसे पावन पर्व का सूत्रपात किया और इस धरा को पवित्र किया | तेईस तीर्थंकरो की निर्वाण स्थली के दर्शन हमारे समाज को सुलभता से प्राप्त हो जाते है परन्तु युग पर्वतक प्रथम तीर्थंकर की मोक्षस्थली की रज मस्तक पर लगाने को लालायित रहते है |
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मंदिर समूह का मुख्य द्वार |
इस कमी की पूर्ति हेतु यहाँ पर कैलाश पर्वत का निर्माण किया गया | जो विश्व की एकमात्र रचना 131 फ़ीट ऊँची अपने आप में अनूठी व् आकर्षण का केंद्र है | इसमें भूतकाल , वर्तमानकाल व् भविष्य काल की तीन चौबीसी , 72 मंदिर पर 51 फ़ीट वाले शिखर युक्त मंदिर में 111/4 फ़ीट पदमासन वाली भगवान आदिनाथ की मनोग प्रतिमा विराजमान है | अन्य मंदिर 21 - 21 फ़ीट वाले शिखरबंद बनाये गए है , जिनमे सवा दो फ़ीट की पदमासन मनोगः प्रतिमाये विराजमान की गयी है |
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कैलाश पर्वत मंदिर का अन्दर वाला प्रवेश द्वार |
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कैलाश पर्वत के ऊपर से दृश्य |
कैलाश पर्वत हिमालय पर्वतमालाओं में स्थित है जो जैन धर्म के लिए एक पवित्र स्थल है। ऐसा माना जाता है कि इसी जगह जैन धर्म के पहले तीर्थांकर भगवान ऋषभदेव ने मोक्ष की प्राप्ति की थी। वास्तव में, कैलाश पर्वत तक पहुचंना सभी साधारण श्रद्धालुओं के लिए संभव नहीं है, इसलिए जैन समुदाय ने हस्तिनापुर में एक आसान विकल्प तैयार कर लिया। यहां भगवान ऋषभदेव के जन्मस्थान पर इसकी प्रतिकृति का निर्माण किया गया ताकि सभी श्रद्धालु यहां तक दर्शन के लिए आराम से पहुंच सके। इसके अलावा, दूसरा पहलू यह भी है कि इस मंदिर का निर्माण अक्षय तृतीया के दिन करवाया गया था, इसी दिन भगवान श्री आदिनाथ ने अपने 13 महीने पुराने उपवास को गन्ने का जूस पीकर तोड़ा था। 131 फीट की ऊंचाई वाले पर्वत पर 11.25 फीट ऊंची भगवान ऋषभदेव की पद्मासन लगाए हुए मूर्ति स्थापित है। हस्तिनापुर में कैलाश पर्वत तीन चरणों में बना हुआ है। इसमें गोलाकर सीढियों पर 72 मंदिर स्थित है जो तीर्थंकरों के भूत, वर्तमान और भविष्य को दर्शाते है। प्रत्येक गोलाकर सीढी, एक विशेष काल के 24 तीर्थांकरों को दर्शाती है। इमारत की अनूठी विशेषता इसकी नजा़कत, उत्कीर्ण फाटक, सजी हुई छत, खंभे और पैनल है।
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मंदिर के लिए ऊपर जाना होता हैं |
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मंदिर में स्थापित स्तम्भ |
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मंदिर के शिखर की और |
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रोहित |
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और ये मै |
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एक और मंदिर |
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मंदिर सामने से |
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कैलाश पर्वत मंदिर दूर से |
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ऐरावत हाथी रथ |
यंहा से हम लोग बराबर में स्थित श्री शांतिनाथ जैन मंदिर में आ गए.
श्री शांतिनाथ श्वेताम्बर मंदिर
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मुख्य द्वार |
श्री श्वेताम्बर जैन मंदिर में कई प्राचीन मूर्तियां रखी हुई है। यह स्थल तक तक उपेक्षित था, जब तक यहां विजय वल्ल्भ सूरी जी के आचार्य विजय समुद्र सूरी जी ने दौरा नहीं किया, उन्होने 1960 में इस स्थल का दौरा किया था। महान आचार्य ने मंदिर में पुनर्निर्माण करवाते हुए एक शिखर को बनवाया। उन्होने श्री शांतिनाथ भगवान की मूर्ति को स्थापित किया, जिसे श्री कुंथुनाथ भगवान के द्वारा लाया गया था और मंदिर में श्री अरनाथ भगवान की मूर्ति को अलग से रखा गया है। इस मंदिर के महत्व की कल्पना इस बात से की जा सकती है कि इस मंदिर में प्रथम जैन तीर्थंकर, भगवान श्री आदिनाथ ने श्रेयांस कुमार के हाथों से गन्ने का रस लेकर अपना 13 माह पुराना उपवास तोड़ा था। इस मंदिर में एक भव्य पाराना या उपवास तोडने वाला हॉल है, जो मंदिर में सामने ही स्थित है। इस मंदिर में साल की अक्षय तृतीया को कई श्रद्धालु अपना उपवास तोड़ते है जो वह काफी लम्बे समय से रखते है। साल भर के उपवास को बरसी तप कहा जाता है।
शांतिनाथ मंदिर से थोड़ी दूर ही अष्टपद मंदिर हैं. इसके द्वार बंद थे इसके दर्शन हमने बाहर से ही किये.
अष्टापद मंदिर
अष्टपद अर्थात् आठ कदम। जैन शास्त्रों के अनुसार, बर्फ से ढकी हिमालय पर्वतमालाओं में कहीं न कहीं एक अष्टपद धार्मिक केंद्र अवश्य है। यह कैलाश पर्वत में बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान उत्तर की दिशा में 168 मील की दूरी पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि सुंदर मानसरोवर झील से अष्टपद की दूरी सात मील दूर है। हालांकि अब यह जगह चीन के कब्जे में आती है। किंवदंतियों के अनुसार, भगवान ऋषभदेव, जैन धर्म के प्रथम तीर्थांकर ने इसी जगह आकर मोक्ष की प्राप्ति की थी। महाराजा भरत चक्रवर्ती के बेटे ने अष्टपद पर्वत पर एक महल का निर्माण करवाया था और इसे हीरों से सजाया था। यह भी माना जाता है कि जो लोग अष्टपद की यात्रा कर लेते है उन्हे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी मान्यता के साथ, जैन समुदाय हस्तिनापुर के अष्टपद की प्रतिकृति में आकर दर्शन लेते है जो वास्तव में पहले तीर्थांकर का जन्मस्थान है। इस शानदार तीर्थस्थल को दो दशक में 25 करोड़ की लागत से पूरा किया गया। 151 फीट ऊंचाई और 108 मीटर के व्यास महलनुमा संरचना में प्रवेश करने के लिए चार बड़े फाटक है। यहां आठ पद या कदम बने है जिनमें से प्रत्येक की ऊंचाई 108 फीट है।
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सुन्दर अष्टपद मंदिर |
अष्टपद अर्थात् आठ कदम। जैन शास्त्रों के अनुसार, बर्फ से ढकी हिमालय पर्वतमालाओं में कहीं न कहीं एक अष्टपद धार्मिक केंद्र अवश्य है। यह कैलाश पर्वत में बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान उत्तर की दिशा में 168 मील की दूरी पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि सुंदर मानसरोवर झील से अष्टपद की दूरी सात मील दूर है। हालांकि अब यह जगह चीन के कब्जे में आती है। किंवदंतियों के अनुसार, भगवान ऋषभदेव, जैन धर्म के प्रथम तीर्थांकर ने इसी जगह आकर मोक्ष की प्राप्ति की थी। महाराजा भरत चक्रवर्ती के बेटे ने अष्टपद पर्वत पर एक महल का निर्माण करवाया था और इसे हीरों से सजाया था। यह भी माना जाता है कि जो लोग अष्टपद की यात्रा कर लेते है उन्हे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी मान्यता के साथ, जैन समुदाय हस्तिनापुर के अष्टपद की प्रतिकृति में आकर दर्शन लेते है जो वास्तव में पहले तीर्थांकर का जन्मस्थान है। इस शानदार तीर्थस्थल को दो दशक में 25 करोड़ की लागत से पूरा किया गया। 151 फीट ऊंचाई और 108 मीटर के व्यास महलनुमा संरचना में प्रवेश करने के लिए चार बड़े फाटक है। यहां आठ पद या कदम बने है जिनमें से प्रत्येक की ऊंचाई 108 फीट है।
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अष्टपद मंदिर द्वार
यंहा से निकलकर हम लोग और दुसरे मंदिरों की और चल पड़े
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एक निर्माणाधीन मंदिर |
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एक और पुराना मंदिर
इन मंदिरों के दर्शन के बाद हम लोग पांडव कालीन मंदिरों की और चल पड़े.
इससे आगे का यात्रा वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे. |
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