Saturday, May 1, 2021

A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - MA JWALA JI - 4

A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - MA JWALA JI - 4

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माता चिन्तपुरनी से ज्वाला जी मंदिर करीब तीस किलोमीटर पड़ता हैं. हमें अड्डे पर पहुँचते ही माता ज्वाला जी मंदिर  के लिए बस मिल गयी. कसबे को ज्वालामुखी कहा जाता हैं. जो की एक  नगर पंचायत हैं जनपद कांगड़ा हैं. पुरे रास्ते खुबसूरत दृश्यों के दर्शन होते हैं. गनीमत हैं कि आज बारिश नहीं हैं. मौसम सुहावना था. माता ज्वाला जी जाते हुए फिर से व्यास नदी पड़ती हैं. और  बसे देहरा गोपीपुर से होकर जाती हैं. जब कांगड़ा से सीधे ज्वाला जी जाते है तो वाया बनखंडी होकर जाना पड़ता हैं. बनखंडी में माता बगलामुखी का मंदिर हैं. माता बागला मुखी मंदिर की यात्रा के बारे में अगले किसी एपिसोड में लिखूंगा. बस करीब ४५ मिनट में जवालामुखी पहुँच गयी.  यंहा भी विशाल व सुन्दर बस अड्डा बना हुआ हैं.


ज्वाला मुखी बस स्टैंड - JWALA JI - फोटो साभार: पंजाब केसरी 

मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक ज्वालामुखी मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर जोता वाली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। यहां माता ज्वाला के रूप में विराजमान हैं और भगवान शिव यहां उन्मत भैरव के रूप में स्थित हैं। इस मदिर का चमत्कार यह है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रहीं 9 ज्वालों की पूजा की जाती है। आजतक इसका कोई रहस्य नहीं जान पाया है कि आखिर यह ज्वाला यहां से कैसे निकल रही है। कई भू-वैज्ञानिक ने कई किमी की खुदाई करने के बाद भी यह पता नहीं लगा सके कि यह प्राकृतिक गैस कहां से निकल रही है। साथ ही आजतक कोई भी इस ज्वाला को बुझा भी नहीं पाया है। आइए जानते हैं ज्वाला देवी की ज्वाला का रहस्य क्या है, इसके पीछे धार्मिक या वैज्ञानिक मन्यताएं क्या हैं…

ज्वाला देवी मंदिर में बिना तेल और बाती के नौ ज्वालाएं जल रही हैं, जो माता के 9 स्वरूपों का प्रतीक हैं। मंदिर एक सबसे बड़ी ज्वाला जो जल रही है, वह ज्वाला माता हैं और अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां मां अन्नपूर्णा, मां विध्यवासिनी, मां चण्डी देवी, मां महालक्ष्मी, मां हिंगलाज माता, देवी मां सरस्वती, मां अम्बिका देवी एवं मां अंजी देवी हैं।

मां ज्वाला देवी के मंदिर का निर्माण सबसे पहले राजा भूमि चंद ने करवाया था। इसके बाद 1835 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद ने इसका पुननिर्माण करवाया था। ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान मंदिर की ज्वाला जानने के लिए जमीन के नीचे दबी ऊर्जा का पता लगाने के लिए काफी कोशिश की गई लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा।

आजादी के बाद भी कई भूगर्भ वैज्ञानिक भी तंबू गाड़कर बैठ ज्वाला की जड़ तक पता लगाने के लिए बैठ गए थे लेकिन उनको भी कोई जानकारी नहीं मिली। यह बातें सिद्ध करती हैं कि यह चमत्कारिक ज्वाला है। मंदिर से निकलती ज्वाला का रहस्य आज भी बना हुआ है।

ज्वाला देवी की ज्वाला से संबंधित एक पौराणिक कथा भी है। कथा के अनुसार, भक्त गोरखनाथ मां ज्वाला देवी के बहुत बड़े भक्त थे और हमेशा भक्ति में लीन रहते थे। एकबार भूख लगने पर गोरखनाथ ने मां से कहा कि मां आप पानी गर्म करके रखें तब तक मैं मीक्षा मांगकर आता हूं। जब गोरखनाथ मिक्षा लेने गए तो वापस लौटकर नहीं आया। मान्यता है कि यह वही ज्वाला है जो मां ने जलाई थी और कुछ ही दूरी पर बने कुंड के पानी से भाप निकलती प्रतित होती है। इस कुंड को गोरखनाथ की डिब्बी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कलयुग के अंत में गोरखनाथ मंदिर वापस लौटकर आएंगे और तब तक ज्वाला जलती रहेगी।

बादशाह अकबर ने मंदिर की ज्वाला के बारे में सुना तो उसने अपनी सेना बुलाकर इस ज्वाला को बुझाने के लिए कई बार कोशिश की लेकिन कोई भी मंदिर की ज्वालाओं को बुझा नहीं पाया। फिर उसने नहर तक की खुदाई करवाने की कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहा। नहर मंदिर की बायीं ओर देखने को मिल जाएगी। बाद में वह मां के इस चमत्कार को देखकर नतमस्तक हो गया और सवा मन के सोने का छत्र चढ़ाने पहुंचा लेकिन माता ने उसे स्वीकार नहीं किया और वह गिरकर किसी अन्य धातु में बदल गया। यह धातु कौन सा है इसका आजतक किसी को पता नहीं चला।

ज्वाला माता के मंदिर को लेकर ध्यानू भगत की कहानी भी प्रसिद्ध है। कथा के अनुसार, ध्यानू भगत ने अपनी भक्ति सिद्ध करने के लिए अपना शीश मां को चढ़ा दिया था। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से मां से जो भी मांगता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। कोई भी मां के दरबार से खाली नहीं जाता।(साभार : विकिपीडिया)

व्यास नदी का फोटो बस की खिड़की से 

भरवाई से ज्वाला जी जाते हुए व्यास नदी के दर्शन होते हैं. बस की खिड़की से ही फोटो ले पाया. पुल के दोनों और भी जाली लगी हुई थी. 


बस स्टैंड के सामने मंदिर जाने का मार्ग व द्वार 

ज्वाला जी का बाज़ार 

ज्वाला जी मंदिर से पहले सीढ़िया और डोगरा रेजिमेंट का  विशाल द्वार 

मंदिर के सामने विशाल बाज़ार 

ज्वाला जी मंदिर परिसर में पहुंचकर  माता जी  को अर्पित करने के लिय प्रसाद लिया. यंहा भी हलवा व नारियल का प्रसाद ही चढ़ता हैं. प्रसाद की ही दूकान में अपने जूते - चप्पल व सामान रख दिया. हाथ पैर धोकर लम्बी पंक्ति  में लग गए. रविवार होने के कारण भारी  भीड़ थी. ऊपर से गर्मी भी पड़ रही थी.  

मंदिर में प्रवेश से पहले डोगरा रेजिमेंट का शिलापट 

माता ज्वाला जी डोगरा रेजिमेंट की आराध्या देवी हैं. डोगरा रेजिमेंट ने ही यंहा पर मुख्य द्वार बनवाया हुआ हैं. डोगरा रेजिमेंट का मुख्य युध्धक नारा भी माता ज्वाला की जय हैं.


डोगरा रेजिमेंट गेट 

ज्वाला जी से सुन्दर दृश्यावली 

माता ज्वाला जी के बारे में जानकारी देता बोर्ड 

मंदिर के इतिहास के बारे में बताता एक और बोर्ड 

माता के दर्शन के लिए लगी हुई पंक्तिया 

स्वर्ण मंडित माता के मंदिर का शिखर 

माता की पवित्र ज्योति - फोटो साभार: नवभारत टाइम्स 

२ घंटे पंक्ति में लगकर माता के दर्शन हुए. माता के दर्शन अलग अलग ९ ज्वालाओ के रूप में होते हैं. उसी कुंड में प्रसाद अर्पित किया जाता हैं. मंदिर के पास में ही एक यज्ञशाला हैं जिसमे लगातार हवन चलता रहता हैं.

माता का स्वर्ण मंदिर 

माता ज्वाला जी मंदिर 

मंदिर   परिसर में और भी मंदिर हैं जैसे गोरख डिब्बी. यह मंदिर गुरु गोरखनाथ ने स्थापित किया था. यंहा पर   फोटो लेना मना हैं  

सूरज भी बादलो के पीछे आ गया - मंदिर परिसर 

अकबर का छत्र जो की इस्पात में बदल गया

अकबर जैसे अहंकारी और अत्याचारी शासक का अहंकार माता ने चूर चूर कर दिया था. वह माता के चरणों में पड़कर क्षमा मांगने लगा था. और माता का भक्त बन गया था.


दर्शन के बाद सुस्ताते हुए 



माता के शैय्या स्थल के बाहर 

मंदिर परिसर और ऊपर तारादेवी मंदिर 


माता का रात्रि शैय्या स्थल 

शैय्या स्थल में माता रात्री विश्राम करती हैं. यह  एक बहुत   बड़ा   कक्ष हैं . 

शैय्या स्थल में मै 

माता की शैय्या 

माता की शैय्या 



शैय्या स्थल 

सुन्दर मंदिर परिसर 

माता के मंदिर परिसर बहुत ही सुन्दर हैं चारो और से हरियाली से और पहाडियों से घिरा हुआ हैं.

मंदिर परिसर में छोटे छोटे मंदिर 

माता का शैया स्थल 

मंदिर श्री तारा देवी 

तारा देवी का मंदिर ऊँची पहाड़ी पर हैं. ज्वाला देवी मंदिर परिसर से सैकड़ो सीढ़िया चढ़कर इस मंदिर तक पहुँचते हैं.

मंदिर श्री तारा देवी 

ऊपर तारा देवी मंदिर नीचे ज्वाला जी मंदिर परिसर 

परिसर में एक मदिर 

एक और मंदिर 


गर्भ गृह के सामने माता के दो सिंह 

माता ज्वाला जी मंदिर व पीछे गोरखनाथ डिब्बी 


मंदिर में ध्वज स्तम्भ 

एक और मंदिर की सीढ़िया 


माता के मंदिर में हमें करीब तीन घंटे लग गए थे. क्योंकि भीड़ बहुत थी. मंदिर परिसर बहुत विस्तृत व सुन्दर हैं. यंहा माता के चरणों से लौटने का मन नहीं करता हैं. खैर चलना तो था ही, शाम हो गयी थी. देर करने से कांगड़ा की बस मिलनी मुश्किल हो जाती. बस अड्डे पर पहुंचे कोई बस नहीं थी. करीब आधा घंटा प्रतीक्षा के बाद बस आयी. उसमे सवार होकर कांगड़ा की और चल पड़े.

खुबसूरत दृश्य 

भगवान् भास्कर पहाडियों की आड़ में अस्त हो रहे हैं.

यह चित्र ज्वाला जी से वापिस आते हुए हैं.

कांगड़ा का मुख्य मार्ग 

कांगड़ा में दुरी संकेतक 

हम करीब साढ़े सात बजे कांगड़ा पहुँच गए. भूख लग रही थी. नो बजे तक खाना खाकर अपने गेस्ट हाउस पहुँच गए.

नीचे के फोटो मैंने फरवरी २०२० की यात्रा के डाले हैं.इस यात्रा में मनोहर सिंह जी साथ थे. जाड़ो का मस्त मौसम था.

थक गया क्या भाई 

मनोहर सिंह ज्वाला जी मंदिर में 

शैया भवन के बाहर 


माता का मंदिर और पीछे गोरख डिब्बी 

मनोहर सिंह 

दर्शन करके उतरते हुए 

और ये मैं प्रवीण गुप्ता 

मंदिर की सीढ़ियों पर 

नीचे से मंदिर की सीढ़िया 

मुख्य द्वार के बाहर मनोहर 

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