A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - MA CHINTPURNI - 3
आज हमारी कांगड़ा यात्रा का दूसरा दिन हैं. आज का हमारा कार्यक्रम माता चिन्तपुरनी व माता ज्वाला जी की यात्रा का हैं. इसमें सबसे पहले हम माता चिन्तपुरनी जायेगे उसके बाद अगले एपिसोड में माता ज्वाला जी की यात्रा करेगे. कांगड़ा से चिन्तपुरनी देवी ५४ किलोमीटर हैं. करीब २ घंटे वंहा पहुँचने में लगते हैं. कांगड़ा से पंजाब की और जाने वाली बसे देहरा होते हुए भरवाई होकर जाती हैं. जिन्हें माता के द्वार पर जाना होता हैं वो भरवाई में उतर जाते हैं. यंहा से आगे तीन किलोमीटर जाना होता हैं. सुबह ठीक ७ बजे उठकर हम लोग तैयार हो गए. पहले नाश्ता करना था तो ब्रिजवासी भोजनालय पर आलू परांठा और चाय का नाश्ता लिया. फिर घूमते हुए बस अड्डा पहुँच गए. जाते ही बस मिल गयी.
चिंतपूर्णी धाम हिमाचल प्रदेश मे स्थित है। यह स्थान हिंदुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलो में से एक है। यह 51 शक्ति पीठो मे से एक है। यहां पर माता सती के चरण गिर थे। इस स्थान पर प्रकृति का सुंदर नजारा देखने को मिल जाता है। यात्रा मार्ग में काफी सारे मनमोहक दृश्य यात्रियो का मन मोह लेते हैं और उनपर एक अमिट छाप छोड़ देते हैं। यहां पर आकर माता के भक्तों को आध्यात्मिक आंनद की प्राप्ति होती है। वर्तमान मे उत्तर भारत की नौ देवियों मे चिंतपूर्णी का पांचवा दर्शन होता है वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा मे माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं
दूर्गा सप्तशती और देवी महात्यमय के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था जिसमें असुरो की विजय हुई। असुरो का राजा महिसासुर स्वर्ग का राजा बन गया और देवता सामान्य मनुष्यों कि भांति धरती पर विचरन करने लगे। देवताओं के ऊपर असुरों द्वारा बहुत अत्याचार किया गया। देवताओं ने इस विषय पर आपस में विचार किया और इस कष्ट के निवारण के लिए वह भगवान विष्णु के पास गये। भगवान विष्णु ने उन्हें देवी की आराधना करने को कहा। तब देवताओं ने उनसे पूछा कि वो कौन देवी हैं जो हमारे कष्टो का निवारण करेंगी। इसी योजना के फलस्वरूप त्रिदेवो ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के अंदर से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ जो देखते ही देखते एक स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गया।
इस देवी को सभी देवी-देवताओं ने कुछ न कुछ भेट स्वरूप प्रदान किया। भगवान शंकर ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा, समुंद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की। इसके बाद सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टो का निवारण हो सके। और हुआ भी ऐसा ही। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी। इसी के फलस्वरूप देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। जिसमें देवी की विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया।
चिंतपूर्णी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों मे से एक है। पूरे भारतवर्ष मे कुल 51 शक्तिपीठ है। इन सभी की उत्पत्ती कथा एक ही है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिर थे। शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी। वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयीं। जहां शिव का काफी अपमान किया गया। इसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कुद गयी। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे।
जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर के अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया। जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। कोलकाता में केश गिरने के कारण महाकाली, नगरकोट में स्तनों का कुछ भाग गिरने से बृजेश्वरी, ज्वालामुखी में जीह्वा गिरने से ज्वाला देवी, हरियाणा के पंचकुला के पास मस्तिष्क का अग्रिम भाग गिरने के कारण मनसा देवी, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने के कारण भद्रकाली, सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने के कारण शाकम्भरी देवी, कराची के पास ब्रह्मरंध्र गिरने से माता हिंगलाज भवानी, आसाम में कोख गिरने से कामाख्या देवी,नयन गिरने से नैना देवी आदि शक्तिपीठ बन गये। मान्यता है कि चिंतपूर्णी मे माता सती के चरण गिरे थे। इन्हें छिनमस्तिका देवी भी कहा जाता है। चिंतपूर्णी देवी मंदिर के चारो और भगवान शंकर के मंदिर है।(साभार: विकिपीडिया)
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सुबह सुबह माता चिन्तपुरनी जाने के लिए तैयार |
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सामने ब्रिजवासी ढाबा हमारा खाने का स्थान |
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कांगड़ा की कुञ्ज गलिया |
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कांगड़ा में दूरी संकेतक |
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चिन्तपुरनी जाते हुए मार्ग का दृश्य |
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देहरा का बस अड्डा - DEHRA HIMACHAL
कांगड़ा से चलने वाली अधिकतर बसे देहरा गोपीपुर होते हुए माता चिन्तपुरनी जाती हैं. यह स्थान बिलकुल बीच में पड़ता है. यंहा का बस अड्डा बहुत बड़ा हैं. यंहा पर आधा घंटा रुक कर चलती हैं. व यात्री लोग चाय पानी भी कर लेते हैं. यह स्थान व्यास नदी के किनारे पड़ता हैं. महाराणा प्रताप सागर बाँध यंहा से निकट हैं. खुबसूरत छोटा सा क़स्बा व् घाटी हैं. करीब २० हज़ार जनसंख्या हैं. यंही से एक मार्ग ज्वाला जी के लिए जाता हैं.
थोड़ी देर बाद हम लोग भरवाई पहुँच जाते हैं. यंहा से माता का भवन करीब ३ किलोमीटर है. बाहर HIGHWAY पर ही भवन की और जाने के लिए एक बड़ा द्वार बना हुआ हैं. हम लोग यंहा से लोकल बस में बैठकर चिन्तपुरनी पहुँच जाते हैं. यंहा पर एक बड़ा और खुबसूरत बस अड्डा बना हुआ हैं. यंहा से पुरे हिमाचल और पंजाब के लिए बसे मिल जाती हैं. माता चिन्तपुरनी धाम पंजाब के बिलकुल ऊपर पहाड़ पर स्थित हैं. नीचे पंजाब का होशियार पुर जनपद पड़ता हैं.
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चिन्तपुरनी जाने के लिए मुख्य द्वार - BHARWAI HIMACHAL |
आज रविवार का दिन हैं. दर्शन के लिए भारी भीड़ थी. पंजाब बिलकुल निकट होने के कारण नीचे पंजाब से होशियारपुर, जालन्धर, अमृतसर, चंडीगढ़ से यात्रिओ की भीड़ थी. ३ किलोमीटर लम्बी लाइन थी. हम लोग भी लाइन में लग गए. २ या ३ घंटे से पहले दर्शन नहीं होने वाले थे. पर लोगो से बात करते हुए समय कब बीत गया पता नहीं चला. लाइन में लगे हुए ही एक दूकान में अपना सामान रखा व अपने जूते वंही उतारे, व चढाने के लिए प्रसाद लिया. प्रसाद में मुख्यतः हलवा व नारियल चढ़ता हैं. मंदिर के पास कंही भी जुते व सामान रखने की जगह नहीं हैं. इसलिए पहले ही प्रसाद की दूकान में रख दे तो आसानी रहती हैं.
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माता चिन्तपुरनी का भीड़ भरा बाज़ार |
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माता के दर्शन ले लिए लगी हुई पंक्तिया |
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दर्शन पर्ची स्थान - MATA CHINTPURNI DEVI |
यह ऊपर दर्शन पर्ची स्थान हैं. जब ज्यादा भीड़ होती हैं तो यंहा पर पर्ची बनवाना आवश्यक होता हैं. यंही से दर्शन के लिए पंक्तिया २ जगह बंट जाती हैं.
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दाहिने और से दूसरी पंक्ति भी दर्शन के लिए जाती हैं |
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सुशील जी माता के दर्शन के लिए लगे हुए
दर्शन के लिए पंक्ति मार्ग में दोनों और पुराने भवन व धर्मशालाए बने हुए हैं. व समस्त मार्ग के दोनों और प्रसाद व चायपानी की दुकाने स्थित हैं. |
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दर्शन के लिए दो दो लाइन |
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लो जी माता के दर्शन के और निकट आ गए - PRAVEEN GUPTA - SUSHEEL SAINI |
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फूल वाला फूल बेंचते हुए |
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मै और सुशील |
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माता को चढाने के लिए महकते हुए सुगन्धित फूल |
फूल वाले से माता को चढाने के लिए फूल ख़रीदे
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लो जी मंदिर के मुख्य द्वार पर आ गए |
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गर्भ गृह की और जाने वाला हाल |
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लो जी और नज़दीक आ गए |
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सामने ही गर्भ गृह हैं |
माता के दर्शन करके मन तृप्त हुआ. मंदिर परिसर बहुत ही विशाल व सुन्दर हैं.
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माता की पवित्र पिंडी |
चिंतपूर्णी मंदिर में शरदीय और गृष्मऋतु नवरात्रि काफी धूमधाम से मनाये जाते हैं। नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि की प्रत्येक रात्रि को यहां पर जागरण का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि के दिनो मे यहां पर आने वाने श्रद्धालुओं कि संख्या में काफी वृद्धि हो जाती है।
चिंतपूर्णी गांव जिला ऊना हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है। चिंतपूर्णी मंदिर सोला सिग्ही श्रेणी की पहाड़ी पर स्थित है। भरवाई गांव जो होशियारपुर-धर्मशिला रोड पर स्थित है वहा से चिंतपूर्णी 3 कि॰मी॰ की दूरी पर है। यह रोड राज्य मार्ग से जुड़ा हुआ भी है। पर्यटक अपने निजी वाहनो से चिंतपूर्णी बस स्टैण्ड तक जा सकते हैं। बस स्टैण्ड चिंतपूर्णी मंदिर से 1.5 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। चढाई का आधा रास्ता सीधा है और उसके बाद का रास्ता सीढीदार है।
गर्मी के समय में मंदिर के खुलने का समय सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक है और सर्दियों में सुबह 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक का है। दोपहर 12 बजे से 12.30 तक भोग लगाया जाता है और 7.30 से 8.30 तक सांय आरती होती है। दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु माता के लिए भोग के रूप में सूजी का हलवा, लड्डू बर्फी, खीर, बतासा, नारियल आदि लाते हैं। कुछ श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी हो जाने पर ध्वज और लाल चूनरी माता को भेट स्वरूप प्रदान करते हैं। चढाई के रास्ते में काफी सारी दूकाने है जहां से ही श्रद्धालु माता को चढाने का समान खरीदते हैं। दर्शनो से पहले प्रत्येक पर्यटक को हाथ साफ करने पड़ते हैं और उन्हें अपने सर पर रूमाल या कपड़ा ढकना पड़ता है।
मंदिर के मुख्य द्वार पर प्रवेश करते ही सीधे हाथ पर आपको एक पत्थर दिखाई देगा। यह पत्थर माईदास का है। यही वह स्थान है जहां पर माता ने भक्त माईदास को दर्शन दिये थे। भवन के मध्य में माता की गोल आकार की पिण्डी है। जिसके दर्शन भक्त कतारबद्ध होकर करते हैं। श्रद्धालु मंदिर की परिक्रमा करते हैं। माता के भक्त मंदिर के अंदर निरंतर भजन कीर्तन करते रहते हैं। इन भजनो को सुनकर मंदिर में आने वाले भक्तो को दिव्य आंनद की प्राप्ति होती है और कुछ पलो के लिए वह सब कुछ भूल कर अपने को देवी को समर्पित कर देते हैं।
मंदिर के साथ ही में वट का वृक्ष है जहां पर श्रद्धालु कच्ची मोली अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए बांधते हैं। आगे पश्चिम की और बढने पर बड़ का वृक्ष है जिसके अंदर भैरों और गणेश के दर्शन होते हैं। मंदिर का मुख्य द्वार पर सोने की परत चढी हुई है। इस मुख्य द्वार का प्रयोग नवरात्रि के समय में किया जाता है। यदि मौसम साफ हो तो आप यहां से धौलाधर पर्वत श्रेणी को देख सकते हैं। मंदिर की सीढियों से उतरते वक्त उत्तर दिशा में पानी का तालाब है। पंड़ित माईदास की समाधि भी तालाब के पश्चिम दिशा की ओर है। पंड़ित माईदास द्वारा ही माता के इस पावन धाम की खोज की गई थी।(साभार: विकिपीडिया)
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स्वर्ण मंडित माता का मंदिर |
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गणेश जी और हनुमान जी |
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स्वर्ण मंडित माता का मंदिर |
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मंदिर परिसर में शहनाई बजती हुई |
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पंडित जी ऊपर क्या कर रहे |
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मंदिर का प्रांगन |
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मंदिर का प्रांगन |
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मंदिर प्रांगन में माता की प्रतिमा |
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मंदिर में सुशील जी |
यहां फरवरी के मध्य से अप्रैल के मध्य तक मौसम सुहाना रहता है, तथा अप्रैल के मध्य से गर्मियां शुरू हो जाती है। गर्मियों के समय में दिन का मौसम काफी गर्म हो जाता है। रात्रि के समय का मौसम हल्का ठंड़ा होता है। जून से सितंबर तक यहां पर बारिश होती है। अक्टूबर से नवंबर के समय में दिन तो गर्म रहता है जबकि सुबह और रात ठंडी होती है। दिसंबर से जनवरी के माह में यहां पर काफी ठंड होती है और यहां का तापमान माईनस 5 डिग्री तक पहुंच जाता है। चिंतपूर्णी जाने का उपयुक्त समय फरवरी से अप्रैल तक का है। इन दिनो यहां का मौसम सुहाना होता है।
विशेष पर्व जैसे नवरात्रि, सावन मास, सक्रांति, पूर्णिमा, अष्टमी में यहां पर काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस कारण इस समय में यात्रियों को थोड़ी बहुत समस्या का सामना करना पड़ता है। पर इसके अलावा यहां पर रहने के लिए काफी संख्या में होटल और धर्मशालाए है जोकि यात्रियो की प्रत्येक समस्या का समाधान करते हैं। चिंतपूर्णी मंदिर से 3 कि॰मी॰ की दूरी पर हिमाचल टूरिज्म विभाग का यात्री निवास है जिसके अंदर सभी सुविधाए उपलब्ध है।(साभार: विकिपीडिया)
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दर्शन करके चल दिए |
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चिन्तपुरनी की गलिया
माता के दर्शन करने के बाद हम लोग मंदिर से बाहर आ गए. भूख बहुत जोर से लग रही थी. एक धर्मशाला में माता का भंडारा चल रहा था. भंडारे वाले आवाज लगा लगा कर बुला रहे थे. हम लोग भी जीमने पहुँच गए. बहुत ही स्वादिस्ट दाल रोटी व पेठे की सब्जी बनी हुई थी. उसके बाद हलवा दिया जा रहा था. खाने में मज़ा आ गया. फिर एक एक कप चाय पी गयी. हिमाचल के सभी मंदिरों में हिन्दू और सिक्ख में कोई भेद नहीं हैं. यंहा सभी हिन्दू हैं. और सभी मंदिरों में दोनों समुदाय भंडारे करते रहते हैं. इसके बाद कुछ खरीदारी करी. आम पापड आदि यंहा पर बहुत मिलता हैं. बड़े बड़े चट्टे लगे रहते है. उसमे से काटकर तौलकर देते हैं. बस अड्डे पर पहुँचते ही ज्वाला जी के लिए बस मिल गयी.
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