Friday, August 7, 2020

A TRAVELL TO KHAJURAHO - खजुराहो की यात्रा - 7

A TRAVELL TO KHAJURAHO - खजुराहो की यात्रा - 7

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आज दुलहंडी यानिकी बड़ी होली थी. खजुराहो में आज मेरी यात्रा का अंतिम दिन था. पुरे खजुराहो में सुबह से होली का शोर शराबा शुरू हो चुका था. पर मुझे तो जो स्थान देखने से रह गए थे उन्हें देखने के लिए निकलना था. सुबह ही नहा धोकर नाश्ता करके मैं अपने कैमरे को उठा कर निकल पड़ा. मेरा आज का सबसे पहला  डेस्टिनेशन था, चौसठ योगिनी मंदिर. करीब एक डेढ़ किलोमीटर पड़ता हैं. चौसठ योगिनी मंदिर के लिए कोई वाहन नहीं मिला. तो मैं पैदल ही चल पड़ा. ये रास्ता शिवसागर झील के साथ साथ ही चलता हैं. मौसम में गर्मी शुरू हो चुकी थी. करीब १५ मिनट बाद में मंदिर पर पहुँच गया. ये मंदिर विखंडित अवस्था में हैं. में यंहा पर इस समय अकेला था. ना कोई चोकीदार, ना कोई व्यक्ति. कभी ये मंदिर बहुत ही शानदार अवस्था में रहा होगा. क्योंकि खंडहर बताते हैं की मंदिर कभी शानदार था. 

अब कुछ विकिपीडिया से :- चौसठ योगिनी मंदिर, मध्य प्रदेश के खजुराहो में स्थित देवी का एक ध्वस्त मंदिर है। यह खजुराहो का सबसे प्राचीन मंदिर है जो अब भी विद्यमान है। अन्य स्थानों पर भी चौसठ योगिनी मंदिर हैं, किन्तु यह अकेला ऐसा मन्दिर है जिसका प्लान, आयताकार है।

शिवसागर झील के दक्षिण-पश्चिम में स्थित चौसठयोगिनी मंदिर चंदेल कला की प्रथम कृति है। यह मंदिर भारत के समस्त योगिनी मंदिरों में उत्तम है तथा यह निर्माण की दृष्टि से सबसे अधिक प्राचीन है। यह मंदिर खजुराहो की एक मात्र मंदिर है, जो स्थानीय कणाश्म पत्थरों से बनी है तथा इसका विन्यास उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर है तथा यह मंदिर १८ फुट जगती पर आयताकार निर्मित है। इसमें बहुत सी कोठरियाँ बनी हुई हैं। प्रत्येक कोठरी २.५ फुट चौड़ी और ४ फुट लंबी है। इनका प्रवेश द्वार ३२ इंच ऊँचा और १६ इंच चौड़ा है। हर एक कोठरी के ऊपर छोटे-छोटे कोणस्तुपाकार शिखर है। शिखर का निचला भाग चैत्यगवाक्षों के समान त्रिभुजाकार है।(साभार: विकिपीडिया)

चौसठ योगिनी मंदिर 
चौसठ योगिनी मंदिर 

मंदिर का मुख्य स्थान 

मुख्य स्थान 
चौसठ योगिनी मंदिर व दूर से दीखता लक्ष्मण मंदिर 

चौसठ योगिनी मंदिर बाहर से 
मंदिर के आसपास बहुत से विधवंसित मंदिरों के टीले हैं. यदि ASI चाहे तो यंहा पर बहुत कुछ पुरातन सामग्री मिल सकती हैं. पर किसी का ध्यान नहीं हैं. धीरे धीरे इस संपदा की चोरी हो रही हैं. यंहा से हज़ारो साल पुरानी मुर्तिया चोरी होकर विदेशो में जाकर बिक रही हैं. प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए. चौसठ योगिनी मंदिर में कुछ समय बिताने के बाद मैं वंहा से चल पड़ा. यंहा से मुझे जैन मंदिर समूह की और जाना था. कुछ दूर पैदल चलने के बाद एक ऑटो वाला मिल गया. उससे ५० रूपये में जैन मंदिर समूह की और जाना तय हुआ. करीब तीन चार किलोमीटर यात्रा के बाद उसने मुझे जैन मंदिर पर पहुंचा दिया. 

जैन मंदिर समूह 

जैन मंदिर समूह भी बहुत सारे मंदिरों का समूह हैं. बहुत से मंदिर विधर्मियो ने तोड़ दिए थे. जिन्हें जैन समुदाय ने दुबारा बना कर खड़ा कर दिया. तोड़ने वाले तोड़ते रहे पर हम लोग भी बनाते हुए थके नहीं. इस मंदिर समूह के अन्दर जैन धर्मशाला व भोजनालय भी बना हुआ हैं. कोई भी यात्री यंहा रुक सकता हैं. व स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले सकता हैं. भोजन व नाश्ते के लिए पहले टोकन लेना पड़ता हैं. भोजन की थाली ५० रूपये की हैं व नाश्ता २० रूपये में मिलता हैं. नाश्ते में चाय व पोहा मिलता हैं. खाने में दाल, रोटी, सब्जी और चावल होते हैं.
जैन मंदिर समूह का मुख्य द्वार 

इन मंदिरों का समूह एक कम्पाउंड में स्थित है। जैन मंदिरों को दिगम्बर सम्प्रदाय ने बनवाया था। यह सम्प्रदाय ही इन मंदिरों की देखभाल करता है। इस समूह का सबसे विशाल मंदिर र्तीथकर आदिनाथ को समर्पित है। आदिनाथ मंदिर पार्श्‍वनाथ मंदिर के उत्तर में स्थित है। जैन समूह का अन्तिम शान्तिनाथ मंदिर ग्यारहवीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस मंदिर में यक्ष दंपत्ति की आकर्षक मूर्तियां हैं। (साभार: विकिपीडिया )

जैन मंदिर में जैनिज़्म के बारे में जानकारी 



जैन मंदिर समूह का परिसर 
शांति नाथ का मंदिर

जैन धर्म से संबंधित शांतिनाथ मंदिर का निर्माण काल १०२८ ई. सन् है। मंदिर का मुख पूर्वी ओर है। इसमें भगवान शांतिनाथ जी की १४' ऊँची प्रतिमाएँ विद्यमान हैं। मंदिर के तीन ओर खुला प्रांगण है, जहाँ लघु मंदिर में अन्य जैन प्रतिमाएँ स्थापित की गई है। मंदिर द्वार के दोनों ओर दो शाखाओं में द्वार की चौखट पर मिथुन विराजमान है। स्थानीय मतों के अनुसार मंदिर का वास्तविक द्वार नष्ट हो जाने के पश्चात निर्मित किया था, अतः यहाँ वर्तमान काल में मूर्तियाँ सही क्रम में तथा अपने वास्तविक स्वरुप में स्थापित नहीं हो पाई है। मंदिर का शिखर भाग भी प्राचीन नहीं दिखाई देता है, इसलिए कुछ इतिहासकार इसे आधुनिक जैन मंदिर मानते हैं। मंदिर की पुरातन मूर्तियों और प्रस्तरों को सजाकर वर्तमान रुप दिया गया है।

यह एक मंदिर समूह है, जहाँ कुछ अन्य छोटे- छोटे जैन मंदिर भी है। इन लघु मंदिरों का मूल रुप लुप्त हो गया है। मंदिर का गर्भगृह शेष है, जो पार्श्वनाथ जी के मंदिर के जैसा है। मंदिर की पुरानी प्रतिमाएँ इधर- उधर से इकट्ठी कर संग्रहालय में पहुँच गई है।   (साभार: http://ignca.gov.in/coilnet/bund0067.htm)


मंदिर का द्वार 



जैन तीर्थंकरो की भव्य मुर्तिया 

सुन्दर नक्काशी व मुर्तिया 













मंदिर में विदेशी पर्यटक 
इन मंदिरों में आप देख सकते हैं की नीचे का हिस्सा प्राचीन हैं और ऊपर का बाद में बनाया हुआ हैं. टूटे हुए मंदिरों को दुबारा खडा किया गया हैं.

भगवान् शांतिनाथ 











मंदिर परिसर 


पार्श्वनाथ मंदिर का द्वार 



नए और पुराने का संगम 







गज़ब कलाकारी 




आदिनाथ जी का मंदिर 
आदिनाथ जी का मंदिर

पुरातत्व रुचि का महत्वपूर्ण आदिनाथ मंदिर १००० ई. सन् के आस- पास का है। मंदिर
निरंधार- प्रासाद तथा सप्तरथ प्रकृति का है। यह मंदिर ऊँची जगती पर निर्मित है एवं पार्श्वनाथ से मिला हुआ है। सामान्य योजना, निर्माणशैली तथा शिल्प शैली में यह छोटा- सा मंदिर वामन मंदिर के समान ही है।

मंदिर के जंघा में मूर्तियों की एक पर एक तीन पंक्तियाँ हैं। सबसे ऊपरी पंक्ति की मूर्तियाँ आकार में कुछ छोटी है। इस पंक्ति में प्रक्षेपों या उभरे भागों पर विद्याधरों तथा भीतरी भागों पर गंधर्वों? और किन्नरों का अत्यंत जीवंत प्रतिमाएँ अंकित की गई है। उन्हें पुष्पमालाएँ ले जाते हुए या संगीत- वाद्य बजाते हुए या शस्र चलाते हुए देखाया गया है। शेष दो पंक्तियों के प्रक्षेपों पर शासनदेवताओं, यक्ष मिथुनों तथा सुरसुंदरियों का और भीतर धंसे भागों पर व्यालों का अंकन किया गया है। मूर्तियों की अलंकरण पट्टियों की देव कुलिकाओं में अनेक प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। इनके वाहनों, आयुधों और परिकारों का अत्यंत सजीव और सुक्ष्म किया गया है। इन सज्जापट्टियों की एक अन्य विशेषता यह भी है कि इनके कोणों पर प्रथम तीर्थकर आदिनाथ के शासन सेवक गोमुख या गोवदन यक्ष का अत्यंत सुंदर तथा विलक्षण अंकन किया गया है।

मंदिर का शिखर सप्तरथ तथा इसमें सोलह भूमियाँ हैं, जिनका संकेत भूमि आमलकों से मिलता है। प्रत्येक आमलक पर कपोत का उष्णीय है। कर्णट में एक खड़ी पट्टी है, जिसमें निचली राथिका में हीरकों सहित चैत्य मेहराब है। यहाँ के सभी रथ मूल रुप से परिधि रेखा से आगे निकलते हैं। मध्यवर्ती तथा पार्श्ववर्ती रथों के ऊपर क्रमशः कीर्तिमुख तथा अर्द्धकीर्तिमुख है। कर्णरथों के ऊपर एक लघु स्तूपाकार शिखर है, जिसमें दो पीढ़े हैं तथा चंद्रिकाएँ हैं। परिधि रेखा के ऊपर एक बड़े आकार का धारीदार आमलक दो चंद्रिकाएँ एक छोटा आमलक चंद्रिका और कलश है। कलश के ऊपर एक पुष्पालंकरण भी दिखाई देता है। अंतराल की छत एक श्रृंखला है, जिसके ऊपर एक उद्गम है। इसके ऊपर क्रमशः ऊर्ध्वों?न्मुखी तीन श्रेणियों वाला शिखर है। इस शिखर को कमलपत्र और रत्नपत्र से अलंकृत किया गया है। इसमें सात देवकुलिकाओं की एक पंक्ति है। बीच की देवकुलिका में, एक यक्षी की खडगासन प्रतिमा है, जिसके दोनों पार्श्वों? में आवरण देवताओं की मूर्तियाँ हैं। देवकुलिकाओं के ऊपर त्रिकोण शीर्षों की आरोही पंक्तियाँ हैं। इसके अधिष्ठान पार्श्व में दोनों लघु स्तुपाकार शिखर पर हाथी पर आक्रमण करते हुए सिंह का अंकन किया गया है।

गर्भ द्वार सात शाखाओं वाला है। पहली शाखा का अलंकरण पत्रलता से किया गया है। दूसरी शाखा और चौथी शाखा का संगीत वाद्य बजाते हुए गणों से किया गया है। तीसरी शाखा का, वाहन सहित आठ शासन देवियों से, पाँचवीं का पुष्पगुच्छ से, छठी का व्यालमुख निसृत पत्रलताओं से और अंतिम या सातवीं का एक विशेष प्रकार की वर्तुलकार गुच्छा रचना से किया गया है। द्वारमार्ग का सरदल स्तंभ शाखाओं पर आधारित है, जिसकी पाँच देवकुलिकाओं में शासनदेवी का अंकन किया गया है। इनके हाथों में शंख, कमल, कलश, पाश आयुध है। इन देव कुलियों के ऊपर उदगम है। द्वारमार्ग के अधिष्ठान पर वाहन सहित गंगा- यमुना और द्वारपाल अंकित किया गया।

स्तंभों का निचला भाग चतुर्भुज द्वारपालों से और बीच का भाग हीरक आकृतियों और घटपल्लवों से सज्जित किया गया है। स्तंभ शीर्ष पर आमलक और पद्य हैं, जिन पर आलंबनबाहु टिके हुए हैं। आलमबंन बाहुओं के कोनों में भक्तिविभोर नाग निर्मित किया गया है। द्वारतोरण पर शची द्वारा सेवित, तीर्थकर की माता को शयन करते हुए अंकित किया गया है। इसके बाद माता को सोलह स्वप्न दिखाए गए है। यद्यपि ये सोलह मंगल प्रतीक स्वप्न जैन मंदिरों में प्रायः अंकित किए जाते हैं, किंतु स्वप्न देखती हुई जन्नी के साथ में उसका अंकन, आदिनाथ मंदिर की एक अति- महत्वपूर्ण विशेषता है।

मंदिर का गर्भगृह अत्यंत सादा है, जिसमें प्राचीन प्रतिमा के स्थान पर आदिनाथ की अर्वाचीन मूर्ति प्रतिष्ठित है।   (साभार: http://ignca.gov.in/coilnet/bund0067.htm)




भगवान् आदिनाथ जी 



















पार्श्वनाथ जी का मंदिर 




पार्श्वनाथ जी का मंदिर 

पूर्वी समूह के अंतर्गत पार्श्वनाथ मंदिर, खजुराहों के सुंदरतम मंदिरों में से एक है। ६८' लंबा ६५' चौड़ा यह मंदिर एक विशाल जगती पर स्थापित किया गया है। मूलतः इस मंदिर में आदिनाथ की प्रतिमा थी। वर्तमान में स्थित पार्श्वनाथ प्रतिमा उन्नीसवीं शताब्दी के छटे दशक की है। इस प्रकार यह मंदिर आदिनाथ को समर्पित है।

प्राप्त शिल्प, वास्तु तथा अभिलेखिक साक्ष्यों के आधार में पर इस मंदिर का निर्माण ९५० ई. से ९७० ई. सन् के बीच यशोवर्मन के पुत्र और उत्तराधिकारी धंग के शासनकाल में हुआ। इसके निर्माण में काफी समय लगा। मंदिर एक ऊँची जगती पर स्थित है, जिसकी मूल सज्जा अब लगभग

समाप्त हो गई है। मंदिर के प्रमुख भागों में मंडप, महामंडप, अंतराल तथा गर्भगृह है। इसके गिर्द परिक्रमा मार्ग का भी निर्माण किया गया है। मंडप की तोरण सज्जा में अलंकरण और मूर्तियों की बहुलता है। इसमें शाल भंजिकाओं, अप्सराओं और पार्श्वदेवी की मूर्तियाँ भी है। इसका वितान उलटे कमल पुष्प के समान है। वितान के मध्य में एक फुंदना झूल रहा है, जिसपर उडते हुए विद्याधरों की आकृतियाँ उत्कीर्ण की गई है। मंडप से मंदिर में प्रवेश करने के लिए सप्तशाखायुक्त द्वार हैं। इसके अंदर अलंकरण हिरकों, पाटल- पुष्पों, गणों, व्यालों, मिथुनों, बेलबूटों के अतिरिक्त द्वारपाल सहित मकरवाहिनी गंगा और कूमवाहिनी यमुना की आकृतियाँ उत्कीर्ण है। विभिन्न मुद्राओं में गंधर्व और यक्ष मिथुन ढ़ोल, तुरही, मंजिरा, शंख, मृदंग तथा ततुंवाद्य बजाते हुए सरितदेवियों के ऊपर तोरण तक अंकित किये गए हैं।

मंडप की दीवार को भीतर से कुड्यस्तंभ का बाहर से मूर्तियों को तीन पंक्तियों का और मंदिर के अंतरंग भागों को प्रकाशित करने के लिए बनाए गए वातायनों का आधार प्राप्त है। इस मंदिर के भीतरी भाग की विशेषता यह है कि इसमें कुड्यस्तंभों के बीच के रिक्त स्थान का उपयोग आठ- उप- वेदिकाओं की रचना में किया गया है, जिन पर भव्य और सुंदर परिकर के साथ तीर्थकर प्रतिमाएँ स्थापित की गई है। मंडप से जुड़ा हुआ इसका गर्भगृह है। गर्भगृह में दिगंबर जैन साधु तथा साधवी वस्रहीन अवस्था में दिखाए गए हैं। इसके अतिरिक्त गर्भगृह में एक केंद्रीय स्री प्रतिमा है। मंदिर के अंतराल में बाईं ओर कमल और कलश के साथ- साथ अभय मुद्रा में चतुर्भुज शासन देवी तथा दायीं ओर चतुर्भुज वीणावादिनी अंकित है।

मंदिर के चारों ओर अनगिनत प्रतिमाएँ हैं, जो तीन पालियों में हैं। नीचे की दो पालियों की प्रतिमाएँ उतिष्ठ मुद्रा में है, जबकि ऊपरी पाली में उड़ती हुई या बैठक मुद्रा की प्रतिमाएँ स्थापित है। ये प्रतिमाएँ सूक्ष्म संगतराशी की आदर्श दिखाई देती है। प्रसाधन, कंटक भेटन, पत्रलेखन इत्यादि दिनचर्या के कार्यों में व्यस्त सुंदरियाँ अद्भूत है। खजुराहो मूर्तिकला की अद्भूत कृति पैरों में लाख लगाती तरुणी भी इसी मंदिर में अंकित की गई है। पार्श्वनाथ मंदिर की मूर्तियों की विशेषताओं में से एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यहाँ की मूर्तियों में नारियों को आमंत्रण और आर्कषण में चतुर अंकित किया है।

खजुराहो के जैन मंदिरों में पावनतम मंदिर की बाहरी दीवारों पर शैव तथा वैष्णव प्रतिमाओं का अंकन इस बात का सुचक्र है कि यह मंदिर विश्वधर्म के परिचायक होंगे।

मंदिर की रुप रेखा अपने आप में विशेष है। मुख चतुष्कि गूढ़मंडल के भीतर खुलती हे। इसके गूठमंडल की चौखट अलंकरण में अद्वितीय है। मंदिर के जैन मंडप का वितान बहुत सुंदर है। इसमें बड़ी सावधानी से बारीक नक्काशी की गई है। इसके महामंडप और गर्भगृह की छतों को जोड़कर शिखर की स्थापना की गई है। प्रतिमाओं की पट्टियाँ लगातार क्रम में स्थापित की गई है। ऊपरी पट्टी पर देवांगनाएँ तथा मिथुन इसी मंदिर में हैं। सर्वश्रेष्ट श्रेणी के मिथुन के रुप देखने योग्य हैं। सर्वोपरि पट्टी पर मूर्तियों का आकार छोटा हो गया है। बीच की पट्टी में भी मिथुन मूर्तियों का बहुतायत है।

पार्श्वनाथ मंदिर का जंघा भाग भी अति सुंदर नारियों के अंकन से समृद्ध है। इसके सभी ओर भद्र हैं, जिनपर पाँच- पाँच रथिकाएँ हैं। जैन प्रतिमाएँ केवल बाहरी रथिकाओं पर ही निर्मित है, शेष स्थानों पर तथा कथित ब्राह्मणत्व प्रभाव की प्रतिमाएँ अंकित हैं। यहाँ छोटे- छोटे छज्जों या विश्रांतियों से प्राप्त किए गए छोटे रथ भी हैं। इन छज्जों पर जंघा की देव, अप्सरा तथा विद्याधर प्रतिमाएँ हैं। जंघा पर तीन पंक्तियों में प्रतिमाएँ स्थापित की गई है। यहाँ की जंघा का विभाजन पट्टिकाओं से किया गया है।

मंदिर के शिखर के लिए दक्षिणी ओर गर्भगृह पर भद्र हैं, जो उद्गमों के रुप में पार्श्वलिंदों पर उतरते हैं। पार्श्वालिंदों के ऊपर रथिकाएँ हैं, जो प्रमुख विश्रांतियों के ऊपर तक गई है। इस स्थान पर उरु: श्रृंग और मूलमंजरी का रुप लेते हैं। करण श्रृंगों के साथ ऊपरी पार्श्वालिंदों पर श्रृंग हैं। केंद्रीय श्रृंग पंचरथ प्रकृति का है तथा शेष त्रिरथ प्रकृति का है। मूलमंजरी सप्तरथ प्रकृति का है तथा ग्यारह भूमि युक्त है। मूलमंजरी के दोनों ओर दो- दो उरु: श्रृंग हैं। करणश्रृंग का ऊपरी भाग उरु: श्रृंगों की सतह से ही शुरु होता है। दोनों ओर कुल बारह करण श्रृंग है।   (साभार: http://ignca.gov.in/coilnet/bund0067.htm)




पार्श्वनाथ जी के मंदिर का गर्भ गृह 

भगवान् पार्श्वनाथ जी 

देखिये क्या  सुन्दर कलाकारी हैं. आँखे फटी की फटी रह जाती हैं. पीछे लाल पत्थर और आगे काले पत्थर से बनी हुए मूर्ति 

छत की कलाकारी 

मंदिर में पर्यटक 


मंदिर का संकेतक बोर्ड 

मंदिर का बाहर से दृश्य 
मंदिर समूह में कुछ फोटो ग्राफी और दर्शन के बाद में संग्रहालय की और आ जाता हूँ. संग्रहालय मंदिर समूह के बराबर में ही हैं. इस संग्रहालय में विभिन्न जैन तीर्थंकरो और संतो की मूर्तियों को संजोया हुआ हैं. संग्रहालय छोटा है पर सुन्दर हैं. 

जैन संग्रहालय - JAIN SANGRAHALYA KHAJURAHO 




क्या कलाकारी हैं. 













संग्राहलय के बारे में मैंने ज्यादा नहीं लिखा. ये तो बोलती मुर्तिया हैं, अपना इतिहास स्वयं कह रही हैं.

संग्राहलय के बाहर स्थापित कलाकृति 

जैन संग्रहालय   का एक और चित्र 
संग्राहलय छोटा हैं परन्तु सुन्दर हैं. अच्छा मेंटेन किया हुआ हैं. इसमें जाने का मात्र ५ रूपये का टिकट लगता हैं. अब संग्रहालय से बाहर निकलकर एक कप चाय और मठरी खाई गयी. थोडा सा शरीर तृप्त हुआ. अब मुझे दक्षिणी मंदिर समूह की और जाना था. एक ऑटो वाले से दक्षिणी मंदिर घुमाना और वापिस खजुराहो छोड़ना ६० रूपये में तय हुआ. हम लोग दक्षिणी मंदिर की चल पड़े. 

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