Wednesday, May 5, 2021

A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - BAIJNATH DHAM - 9

A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - BAIJNATH DHAM - 9
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आज हमारी हिमाचल यात्रा का चौथा व अंतिम दिन था. दिनांक हैं 30/07/2019. आज प्रातः से ही वर्षा का मौसम है. पर अभी बारिश नहीं हो रही थी. बादल घुमड़ घुमड़ कर जा रहे थे. नाश्ता करके हम लोग बस में बैठ गए. बैजनाथ कांगड़ा से करीब 53 किलोमीटर हैं. कम से कम २ घंटे लगने थे. ऊपर से बारिश भी शुरू हो गयी थी. मौसम सुहावना था. बस की खिड़की से वर्षा से भीगी पहाडिया व हरियाली दिख रही थी. रास्ते में पालमपुर पड़ता हैं. सोचा की वापसी में देखेगे और घुमेगे, पर देर होने के कारण और मौसम खराब होने के कारण पालमपुर नहीं घूम पाए, फिर कभी सही. करीब पौने दस बजे हम लोग बैजनाथ पहुँच गए. अब बारिश भी रुक गयी थी. आज शिवरात्री का दिन भी था. हमें डर था कि आज भारी भीड़ मिलेगी, एक तो ज्योतिर्लिंग और ऊपर सावन की शिव रात्रि. पर यह हमारा वहम था. मंदिर परिसर में ५० या ६० श्रद्धालु थे. मैंने किसी से पूछा कि आज भीड़ क्यों नहीं हैं तो बताया कि शिवरात्रि से पहले दिन यानी चौदस के दिन भारी भीड़ होती हैं और मेला भरता हैं. अर्पित करने के लिए प्रसाद आदि लेकर हम दर्शन के लिए मंदिर गर्भ गृह में पहुँच गए. पवित्र ज्योतिर्लिंग पर जल अर्पित किया और बेल पत्र चढ़ाए. मंदिर बहुत ही पुरातन हजारो साल पुराना बना हुआ हैं. मंदिर परिसर में कई छोटे छोटे मंदिर बने हुए हैं. मंदिर के बाहर चारो खुबसूरत हरा भरा पार्क बना हुआ हैं. एक और बाज़ार हैं जिसमे प्रसाद आदि मिलता हैं. मंदिर के नीचे बिनवा नदी बहती हैं. बहुत से लोग इसमें स्नान करके जल अर्पित करते हैं.

हिमाचल प्रदेश की हिमाच्छादित धौलाधार पर्वत शृंखला के बीचों-बीच स्थित प्राचीन शिव मंदिर बैजनाथ वास्तुकला का उत्कृष्ट धाम है। देश एवं विदेश में जिसे बैजनाथ (वैद्यनाथ) के नाम से जाना जाता है, मंदिर निर्माण में वास्तुकला को निखारने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यह प्राचीन मंदिर अपनी वास्तु शैली का उत्कृष्ट नमूना है। पुरातत्व विभाग के संरक्षण में यह मंदिर अपनी पहचान बनाए हुए है। पांडवों द्वारा निर्मित यह मंदिर अपनी सुंदरता की मिसाल है।

बनेर खड्ड के पास कल-कल बहते जल की संगीतमयी ध्वनि, मन को आनंदित करने वाली समीर, शिव भक्ति से लबालब श्रद्धालुओं की अपार भीड़ इस गौरवमयी इतिहास का जीवंत रूप है। इसे कीर जाति के कारीगरों द्वारा निर्मित किया गया था। यह मंडी, कुल्लू व प्रदेश के अन्य जनपदों की व्यापारिक मंडी का सबसे बड़ा पैदल मार्ग एवं यातायात का सुगम स्थल था।

इस मंदिर की पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में रावण ने कैलाश पर्वत पर शिवजी की तपस्या की थी। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की और उसने अपना एक-एक सिर काट कर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू कर दिया। दसवां और अंतिम सिर काट कर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया तो शिवजी ने प्रसन्न होकर रावण का हाथ पकड़ लिया। उसके सभी सिरों को पुन: स्थापित कर शिव जी ने रावण से वर मांगने को कहा।

रावण ने कहा कि मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए।

इससे पहले शिवजी ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिन्ह रावण को देते हुए कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना। रावण लंका की ओर चला। रास्ते में गौकर्ण क्षेत्र (बैजनाथ क्षेत्र) में पहुंचा तो उसे लघुशंका लगी। यहां उसे बैजु ग्वाला दिखाई दिया। रावण ने बैजु ग्वाले को शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया।

शिवजी की मायावी शक्ति के चलते बैजु उन दोनों शिवलिगों का वजन अधिक देर तक उठा नहीं सका। उसने उन्हें धरती पर रख दिया और स्वयं पशु चराने लगा। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए।

रावण ने ये दोनों शिवलिंग मंजूषा में रखे थे। मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था, वह चंद्र माल के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था वह बैजनाथ के नाम से जाना गया।

मंदिर के प्रांगण में छोटे मंदिर और नंदी बैल की मूर्ति स्थापित है। नंदी के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते हैं। रावण खाली हाथ लंका लौट गया लेकिन बैजनाथ में शिवलिंग की अमूल्य धरोहर छोड़ गया।

इस मंदिर का निर्माण राजा लक्ष्मण चंद के राज्य के दो सगे भाइयों मन्युक व आहुक ने किया। वे इसी रास्ते से व्यापार करने जाते थे और काफी धनी थे। इन्होंने ही शिव मंडप और मंदिर बनवाए थे। राजा और दोनों भाइयों ने बहुत धन व भूमि दान भी किया।

पत्थरों पर नक्काशी एवं भारतीय वैदिक संस्कृति में वर्णत ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव तथा देव प्रतिमाओं को बखूबी उकेरा गया है जो आज भी प्राचीन वास्तु कला के अनुपम उदाहरण हैं।

इसके पुन: निर्माण का उल्लेख शिलालेखों पर वर्ष 804 में दिया गया है। समुद्र तल से लगभग चार हजार फुट की ऊंचाई पर इस दिव्य धाम को देखकर सभी अचम्भित होते हैं। शताब्दियों पूर्व इस दुर्गम स्थल में भव्य पूजा स्थल का चंद्राकार पहाडिय़ों, घने जंगलों के नैसर्गिक घाटी में निर्माण किसी अजूबे से कम नहीं है। यहां विजयादशमी पर रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। इस कार्य को करने का जिसने भी प्रयास किया वह सफल नहीं हो सका। अत: रावण को देवत्य रूप सम्मान दिया जाता है।

महमूद गजनवी नामक मुस्लिम दुर्दांत वीभत्स आक्रमणकारी लुटेरे ने भारत के अन्य मंदिरों की तरह बैजनाथ मंदिर को लूटा व क्षतिग्रस्त किया। शेरशाह सूरी की सेना ने भी इस मंदिर को नुक्सान पहुंचाया था। इस मंदिर का जोर्णोद्धार 1783-86 ई. में महाराजा संसार चंद ने करवाया।

मंदिर की परिक्रमा एवं किलेनुमा छ: फुट चौड़ी चारदीवारी महाराजा संसार चंद द्वितीय ने बनवाई। तब से लेकर यह शैली, वास्तु, विद्या एवं वैदिक परम्परा में पूज्य शिवलिंग अपनी पहचान रखता है। बैजनाथ में दिल्ली से पठानकोट या चंडीगढ़, ऊना होते हुए रेलमार्ग, बस, टैक्सी या निजी वाहन से पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से पठानकोट और कांगड़ा जिले के गग्गल तक हवाई सेवा भी उपलब्ध है।( साभार: विकिपीडिया)

श्री बैजनाथ धाम ज्योतिर्लिंग - BAIJNATH HIMACHAL 

श्री बैजनाथ धाम ज्योतिर्लिंग - BAIJNATH HIMACHAL 

श्री बैजनाथ धाम ज्योतिर्लिंग - BAIJNATH HIMACHAL 

श्री बैजनाथ धाम ज्योतिर्लिंग - BAIJNATH HIMACHAL 

मंदिर का किले नुमा विशाल परिसर 

मंदिर पीछे से 

मंदिर परिसर 

मंदिर परिसर 

मंदिर परिसर 

बैजनाथ धाम से दुसरे मंदिरों के बारे में दर्शाता बोर्ड 

मंदिर का प्रवेश द्वार 

BINVA RIVER VIEW FROM BAIJNATH MANDIR 

BAIJNATH TEMPLE VIEW FROM PARK 

सुन्दर पार्क व् दृश्य 

मंदिर, पार्क और मै 

सुशील सैनी जी 

मंदिर और प्यारा मौसम 


सुन्दर अति सुन्दर 
सुन्दर पार्क 

सुन्दर पार्क 

पार्क में   हमने फोटोग्राफी की. मौसम   बहुत ही सुन्दर था और कभी भी बरस सकता था.

बैजनाथ क़स्बा व मुख्य सड़क 

ज्योतिर्लिंग के बारे में दर्शाता बोर्ड 

बैजनाथ की व्यस्त सड़क 

बैजनाथ पपरोला एक दृश्य 

मंदिर में कुछ समय बिताने के बाद हम लोग बाहर आ गए. भूख लगी थी. बस अड्डे पर कुछ चाय पानी की दुकाने थी. एक दूकान में पहुंचकर परांठा व चाय ली गयी और भूख   मिटाई. बारिश फिर से शुरू हो गयी थी. हमें आज पठानकोट पहुंचना था. जो की १४० किलोमीटर हैं. एक सीधी अमृतसर वाया पठानकोट जाने वाली हिमाचल परिवहन की बस मिल गयी. हमने अपने सूद भवन को सुबह ही छोड़ दिया था. अब सीधे पठानकोट पहुंचकर ट्रेन पकडनी थी. शालीमार एक्सप्रेस में आरक्षण था. अब १४० किलोमीटर में कम से कम ५ घंटे लगने थे और वह भी पहाड़ी सफ़र. हम लोग पालमपुर घूमना भूलकर सीधे पठानकोट के लिए निकल गए. कांगड़ा में मै फरवरी २०२० में भी आया था, इस बार मनोहर जी साथ थे. इससे अगले एपिसोड में मैंने उनके साथ की गयी माता बगलामुखी यात्रा का वर्णन किया हैं. बाकि सब कुछ मै पिछले   एपिसोड में बता चूका हूँ.

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A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - KANGDA MUSEUME & JAIN TEMPLE - 8

 A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - KANGDA MUSEUME & JAIN TEMPLE - 8 


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कांगड़ा किले से निकलकर हम लोग संग्रहालय की और आ गए. संग्रहालय किले के बिलकुल बाहर बना हुआ हैं. इसमें कांगड़ा के इतिहास के बारे में जानकारी दी गयी हैं.

कांगड़ा दुर्ग के निकट कटोच वंशजों द्वारा स्थापित महाराजा संसार चंद संग्र्रहालय देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। इसमें खास बात यह है कि यहां राजा महाराजाओं के रहन-सहन की सारी जानकारी मिल जाती है। आडियो गाइड सेवा भी यहां मौजूद है, जिसके जरिए कलाकृतियों की संपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी आसानी से प्राप्त की जा सकती है। म्यूजियम के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही बाईं ओर दीवार पर 490 कटोच शासकों के नाम अंकित हैं। संग्रहालय को छह कक्षों में बांटा गया है। यहां खास बात यह है कि यहां मौजूदा कटोच वंशजों की ट्राफियां व शृंगार का सामान सजाया हुआ है, इसके साथ ही त्रिगर्त, कटोच, मुस्लिम तथा अंग्रेजों के जमाने के चांदी एवं तांबे के सिक्कों के अलावा राजाओं के जमाने की सूंपर्ण ऐतिहासिक जानकारियां हैं।(साभार: विकिपीडिया)

कांगड़ा संग्रहालय में  कलाकृति 

कांगड़ा संग्रहालय में  कलाकृति 

कांगड़ा संग्रहालय में  कलाकृति 

कांगड़ा संग्रहालय में  कलाकृति 

कांगड़ा संग्रहालय को दर्शाते शिला पट 

कांगड़ा संग्रहालय से दिखता दुर्ग 

संग्रहालय से किले का विहंगम दृश्य दीखता है 


कांगड़ा संग्रहालय से दिखता जैन मंदिर 

कांगड़ा संग्रहालय का द्वार 

कांगड़ा संग्रहालय में कलाकृति 












मशरुर मंदिर की कलाकृति 

पुराने सिक्के 







कांगड़ा राज्य का नक्शा 

कांगड़ा इतिहास के पन्नो में 

किले के फोटो 

किले के अन्दर विध्वंश किये गए मंदिरों के चित्र 

संग्रहालय से थोड़ी ही दूर पर ऐतिहासिक जैन मंदिर हैं इस मंदिर में कुछ मंदिर व एक धर्मशाला बनी हुई हैं. धर्मशाला में रुकने का स्थान हैं. व अच्छे कमरे बने हुए हैं. एक भोजनशाला भी चलती हैं.

जैन मंदिर- पुरातत्व विभाग कार्यालय के पास नेमिनाथ का भव्य मंदिर व धर्मशाला है।वहां के व्यवस्थापक अश्विनी शर्मा हैं।उन द्वारा इस मंदिर का इतिहास बताया।इस का उल्लेख जैन ग्रंथों त्रिवेणी में मिलता है।यहां गुरूबल्लभ आर्चाय देव भ्रमण करते होशियारपुर से पैदल सन 1932 में आये व दुर्ग में आदि नाथ की मूर्ति देख कर प्रभावित हुये।यहां पर तप किया व भूखे रहे और बाद में चक्रेश्वरी माता के सपने में दर्शन हुये व यहां का कार्याभार उनको सौंपा व बाद में यहां पर सन 1986 में मंदिर का कार्य व जैन मंदिर की नींव रखी और कार्य शुरू हुआ व जैन व अन्य दानी जनों के सहयोग से मंदिर व अन्य रहने हेतू स्थान व कंटीन आदि निर्मित हुये।जैन तीर्थकर आदिनाथ की मूर्ति संगमरमर की स्थापित है।मंदिर भव्य है।आदि नाथ पांच हजार वर्ष के रहे हैं।पास धर्मशाला व ठहरने हेतू कक्ष व कंटीन आदि है।मंदिर के विकास का काम चल रहा है।फोटो आदि खिंचने नहीं दिये जाते।


जैन मंदिर कांगड़ा - JAIN MANDIR KANGDA 

जैन मंदिर कांगड़ा - JAIN MANDIR KANGDA 

जैन मंदिर कांगड़ा - JAIN MANDIR KANGDA 

कांगड़ा और जैन मंदिर का इतिहास 

जैन मंदिर में एक छोटा मंदिर 

जैन मंदिर से दीखता कांगड़ा किला 

जैन मंदिर 

जैन मंदिर और धर्मशाला 

जैन मंदिर में कुछ समय बिताने और चाय नाश्ता करने के बाद घूमते हुए हम लोग फिर से माता के मंदिर पर आ गए. फिर से माता के दर्शन किये और कुछ समय मंदिर में बिताया.

माता के मंदिर का बाज़ार - KANGDA

माता के मंदिर का बाज़ार - KANGDA

माता के मंदिर का बाज़ार - KANGDA

मंदिर का द्वार 



मंदिर के बारे में बताता शिला पट 

कांगड़ा मंदिर शाम के समय 



मंदिर के अन्दर तपस्या 

पेड़ के पीछे से भगवान् भास्कर दर्शन देते हुए 

मंदिर में विश्राम करते श्रद्धालु 


मंदिर का प्रांगण 

मंदिर का प्रांगण 

विशाल वटवृक्ष 

बाबू क्या खा रहे हो 

पंजाब से आया हुआ एक ग्रुप नृत्य करते हुए 

हमारा मनपसंद अमित ढाबा 

हमारा मनपसंद ब्रिजवासी ढाबा 



मंदिर में दर्शन करने के बाद हम लोग बाज़ार में घूमते हुए कांगड़ा में भ्रमण करते हुए अपने खाने व नाश्ते के स्थान अमित ढाबे व ब्रिजवासी ढाबे की और आ गए ये दोनों सगे भाइयो के ढाबे हैं. बहुत जोर की भूख  लगी थी. सुबह से घूम रहे थे. इन्ही ढाबे पर हमारा दैनिक खानपान का कार्यक्रम रहा.  सस्ते रेट- स्वादिष्ट खाना,  कुल चालीस रूपये की थाली, २० रूपये का सब्जी परांठा. १० रूपये की चाय. मैंने अपनी दोनों बार की कांगड़ा विजिट में यंही पर नाश्ता व खाना खाया. ये ढाबे कांगड़ा में मुख्य सड़क  पर बिगबाजार के सामने की और और HP पेट्रोल पंप के बराबर में  पड़ते हैं. खाना खाकर, चाय वाय पीकर तृप्ति हो गयी थी. अब नींद आने लगी थी. सामने ही सूद भवन में अपने घोंसले में पहुँच कर पड़ कर सो गए थे. 

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