A HOLY TRAVELL TO KANGDA VALLEY HIMACHAL - MCLEODGANJ - 5
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आज हमारी हिमाचल यात्रा का तीसरा दिन था. यानिकी २९/०७/२०१९. सुबह जल्दी उठकर तैयार हो गए. नाश्ता पानी करके धर्मशाला की और जाने वाली बस में बैठ गए. बस करीब ४५ मिनट में धर्मशाला पहुँच गयी. वंही से महिंद्रा बोलेरो मैक्लोडगंज के लिए मिल गयी. धर्मशाला से १० किलोमीटर चढने के बाद हम लोग स्वर्ग यानि की मैक्लोडगंज पहुँच गए. सुन्दर बहुत ही सुन्दर, चारो और देवदार के वृक्ष, चारो और कोहरा छाया हुआ था. बहुत ही सुन्दर दृश्य था. अब आगे कुछ मैक्लोडगंज के बारे में...
मैक्लॉडगंज वह जगह है, जहां पर 1959 में बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा अपने हजारों अनुयाइयों के साथ तिब्बत से आकर बसे थे। तिब्बत की राजधानी ल्हासा की तर्ज पर इस जगह को मिनी ल्हासा भी कहा जाता है। यहां की सबसे मशहूर जगह दलाई लामा का मंदिर और उस से सटी नामग्याल मोनेस्ट्री है।
इसके अलावा मैक्लॉडगंज में पर्वत श्रृंखला की ऊंची-नीची चोटियां और उनके ऊपर जमकर पिघल चुकी बर्फ के निशान और चट्टानों पर खड़े चीड़ और देवदार के हरे-भरे पेड़ हर किसी के मन को अपनी ओर खींचते हैं। अपनी इस खूबसूरती की वजह से यहां की वादियों के मनमोहक दृश्य पर्यटकों के जेहन में हमेशा के लिए बस जाते हैं।
हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से नौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मशहूर पर्यटक स्थल मैकलॉडगंज, जहां बारिश की फुहार पड़ती है तो प्रदेश का हर हिस्सा जैसे खिल उठता है और मन अपने आप ही प्रदेश की सैर करने को मचलने लगता है। दिल्ली से करीब सवा पांच सौ किलोमीटर दूर धर्मशाला के दो हिस्से हैं अपर धर्मशाला और लोअर धर्मशाला।
निचला हिस्सा धर्मशाला और ऊपरी भाग मैक्लॉडगंज कहलाता है। हरे-भरे पहाड़ और पालमपुर की ओर चाय के बागान व हरियाले मैदान बेहद खूबसूरत है। बौद्ध धर्म को करीब से जानने के इच्छुक लोगों के लिए मैक्लॉडगंज सर्वोत्तम जगह है।
यहां घूमने आने के लिए कम से कम दो-तीन दिन का समय निकालकर जरूर आएं, ताकि आप प्रकृति की गोद में बैठकर शांति का अनुभव कर सकें। दूर-दूर तक फैली हरियाली और पहाड़ियों के बीच बने पतले, ऊंचे-नीचे व घुमावदार रास्ते ट्रैकिंग के लिए आकर्षित करते हैं।
बोटिंग का मजा
मैक्लॉडगंज से थोड़ा नीचे उतरने पर घने पेड़ों से घिरे 1863 में बने सेंट जॉन चर्च की शांति आपको बरबस ही अपनी ओर खींच लेती है। यहां से नड्डी की तरफ बढ़ने पर रास्ते में पहाड़ों से घिरी डल झील मिलती है। यह एक पिकनिक स्पॉट भी है, जहां आप बोटिंग के मजे ले सकते हैं। यहां से ऊपर की ओर है नड्डी, जहां से आप हिमालय की धौलाधार पर्वत श्रृंखला को अपलक देखना पसंद करेंगे।
यहां के दलाई लामा के मंदिर से सनसेट का नजारा देखना अपने आप में अद्भूत होता है। यह दृश्य देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं। यहां आने वाले सैलानी तो यहां शाम के समय तक जरूर रुकते हैं। इसके साथ ही अपने फोटो भी खिंचाते हैं।
दिल्ली से मैकलॉडगंज की दूरी लगभग 450 किलोमीटर है। रेल गाड़ी से आने वालों को पठानकोट से सड़क मार्ग चुनना पड़ता है। बस और टैक्सी यहां से आसानी से मिल जाती है। सड़क मार्ग से जाने वाले चंडीगढ़ होते हुए सीधे धर्मशाला और वहां से मैक्लॉडगंज पहुंच सकते हैं। हवाई जहाज से जाने के लिए भी नजदीकी हवाई अड्डा पठानकोट ही है। यहां ठहरने की भी कोई समस्या नहीं है।साभार : विकिपीडिया
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मैक्लोडगंज का बाज़ार व मंदिर
बाज़ार में ही एक सुन्दर बोद्ध मंदिर स्थित हैं. अन्दर से सुन्दर और विशाल. मंदिर को हमने दलाई लामा मंदिर से आते हुए देखा था.
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नाश्ते की दूकान |
भूख लग रही थी. बाज़ार में एक नाश्ते की दुकान दिखाई दी. मैक्लोडगंज बहुत ज्यादा महँगा हैं. यंहा पर रुकना व खाना पीना बहुत महंगा हैं.हमने चाय और परांठा लिया. चाय २० रूपये की थी. एक परांठा ५० रूपये का था, पर स्वादिष्ट था. दुकान वाले भी UP के ही थे. चाय पानी के बाद बाज़ार से होते हुए दलाई लामा मंदिर की और चल दिए. बाज़ार में करीब एक किलोमीटर चलने के बाद मंदिर आ जाता हैं. हलकी हलकी फुआर पड़ रही थी. हमारी छतरिया खुल चुकी थी .
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दलाई लामा मंदिर जाने के लिए मार्ग
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दलाई लामा मंदिर का परिसर बाहर से |
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दलाई लामा मंदिर का मुख्य द्वार |
दलाई लामा मंदिर व निवास बाहर से ही भव्या दिखता हैं. बाहर दो मुख्य द्वार बने हुए हैं.
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तिब्बत संग्रहालय का शिलापट |
अन्दर प्रवेश करते हुए तिब्बत संग्रहालय का पट दिखई देता हैं. इस सारे परिसर में दलाई लामा का निवास, मंदिर, व संग्रहालय हैं.
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तिब्बत का नक्शा व् शहीद स्मारक
यह स्मारक तिब्बत पर चीन के कब्जे में बलिदान हुए तिब्बतियों की याद में हैं. |
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मंदिर के अन्दर का मार्ग |
दलाई लामा मंदिर
यहां का सबसे प्रमुख आकर्षण दलाई लामा का मंदिर है जहां शाक्य मुनि, अवलोकितेश्वर एवं पद्मसंभव की मूर्तियां विराजमान हैं। नामग्याल मोनेस्ट्री भी मशहूर है। यहां भारत और तिब्बत की संस्कृतियों का संगम देखने को मिलता है। तिब्बती संस्कृति और सभ्यता को प्रदर्शित करता एक पुस्तकालय भी स्थित है। मार्च से जुलाई के बीच यहां ज्यादा संख्या में सैलानी आते हैं। इन दिनों यहां का मौसम बेहद सुकून भरा होता है।(साभार: विकिपीडिया)
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मंदिर के अन्दर का दृश्य |
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दलाई लामा का राजनिवास
परिसर में दलाई लामा का राजनिवास हैं. तिब्बत की सरकार यंही से चलती हैं. |
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हरा भरा परिसर
समस्त परिसर हरे भरे देवदार के वृक्षों से घिरा हुआ हैं चारो और कोहरा छाया रहता हैं. |
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खुबसूरत परिसर
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सुशील जी की अदा |
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बन्दर महाशय भी प्रकृति का आनंद लेते हुए
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दलाई लामा मंदिर का सुन्दर मार्ग |
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दलाई लामा निवास का दृश्य
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अराधना हॉल का बाहर से दृश्य |
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कुछ बोद्ध संत |
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देवदार के सुन्दर वृक्ष कोहरे से ढंके हुए |
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दलाई मंदिर से कोहरे का दृश्य
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कोहरे में ढंका मैक्लोडगंज
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मंदिर के अन्दर मणि चक्र |
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मणि चक्र
हम घूमते हुए मंदिरों व संग्राहलय की और आ गए. एक से एक सुन्दर चित्रकारी व् मुर्तिया स्थापित हैं. देखते हुए मन नहीं भरता हैं. फोटो ही फोटो खींच डाले.
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वाह क्या बात हैं |
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संध्या हाल |
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सुन्दर नक्काशी |
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सुन्दर प्रतिमा और नक्काशी
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भगवान् को नमन
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ढंकी हुई प्रतिमा के सामने मैं
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वाह क्या शानदार है
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सुन्दर पुष्पगुच्छ |
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महामहिम दलाई लामा - HIS HIGHNESS DALAI LAMA |
चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो (६ जुलाई, 1935 - वर्तमान) तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरू हैं। उनका जन्म ६ जुलाई १९३५ को उत्तर-पूर्वी तिब्बत के ताकस्तेर क्षेत्र में रहने वाले ये ओमान परिवार में हुआ था। दो वर्ष की अवस्था में बालक ल्हामो धोण्डुप की पहचान 13 वें दलाई लामा थुबटेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में की गई। दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर और दलाई लामा के वंशज करूणा, अवलोकेतेश्वर के बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं। बोधिसत्व ऐसे ज्ञानी लोग होते हैं जिन्होंने अपने निर्वाण को टाल दिया हो और मानवता की रक्षा के लिए पुनर्जन्म लेने का निर्णय लिया हो। उन्हें सम्मान से परमपावन भी कहा जाता है।साभार: विकिपीडिया
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कालचक्र मंदिर के बारे में जानकारी देता पट |
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सुन्दर चित्रकारी और भगवान् बुद्ध |
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गज़ब और आश्चर्यजनक |
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बोद्ध संत |
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बोद्ध संत यौगिक क्रियाये करते हुए |
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सुन्दर प्राकृतिक दृश्य |
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बोद्ध संत यौगिक क्रियाये करते हुए
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बोद्ध संत यौगिक क्रियाये करते हुए
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मणि चक्र
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कोहरे में डूबे भवन |
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मंदिर के अन्दर प्रज्वलित अनगिनित दीपक |
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मंदिर के अन्दर स्तूप |
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भगवान् बुद्ध के आगे नतमस्तक सुशील |
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भक्ति हाल |
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बुद्धं शरणम् गच्छामि |
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ॐ नमो बुद्धाय |
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गज़ब सुन्दर |
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निस्शब्द वाह |
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मणि चक्र बरामदा
हम लोग घूमते हुए मनिचक्रो के पास आ जाते हैं. मणि चक्र बोद्ध पंथ में बहुत पवित्र माने जाते है. इन मणि चक्रो को घुमाते हुए ॐ मणि पद्मे हूँ का जाप करते हैं.
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ॐ मणि पद्मे हूँ
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मैं मणि चक्र घुमाता हुआ |
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संध्या हॉल |
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क्या सुन्दर यन्त्र |
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तिब्बती राष्ट्रीय शहीद स्मारक |
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पंचेन लामा के बारे में जानकारी |
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दलाई लामा मंदिर का सुन्दर बाहरी परिसर
दलाई लामा मंदिर में हमें करीब डेढ़ घंटा लगा. उसके बाद बाज़ार में भगवान् बुद्ध के दुसरे मंदिर में आ जाते हैं. यह मंदिर भी एक विशाल और सुन्दर मंदिर हैं. इस मंदिर के भी दर्शन किये और अपनी महान बोद्ध संस्कृति पर हुआ
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बाज़ार में स्थित बोद्ध मंदिर |
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मंदिर मिनी स्तूप |
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विशाल मणि चक्र |
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बाज़ार में स्थित मंदिर का मुख्य द्वार |
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मंदिर में एक और स्तूप |
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द्वार पर सुन्दर जानवर की मूर्ति |
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भगवान् बुद्ध |
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छोटे छोटे स्तूप
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मंदिर छत से सुन्दर दृश्य |
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स्तूप |
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मन्दिर बाहर से |
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मैक्लोडगंज का चौक |
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सुन्दर मैक्लोडगंज |
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नगर में प्रवेश करने वाली सड़क |
घना कोहरा छा गया
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सुन्दर मैक्लोडगंज |
मैक्लोडगंज लोकल में घुमने के बाद हमारा अगला लक्ष्य था भग्सुनाग झरना. पैदल पैदल घूमते हुए हम रिमझिम वाले मौसम का आनंद लेते हुए भग्सुनाग की और चल दिए.
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