MYSURU TRAVELL - 1 - DELHI TO MYSURU & INFOSYS CAMPUS
मैसूर की मनभावन यात्रा - दिल्ली से मैसूर और इनफ़ोसिस परिसर
दक्षिण भारत की ये मेरी पहली यात्रा थी. बेटी की नौकरी इनफ़ोसिस में लग गयी थी. उसकी ट्रेनिंग ६ महीने के लिए इनफ़ोसिस मैसूर कैंपस में होनी थी. तुरत फुरत में बैंगलोर के लिए रेलवे आरक्षण करवाया. राजधानी एक्सप्रेस के थ्री टियर में आरक्षण मिला था. ३ मई 2018 को जाना था. सुबह ११ बजे मै और शिवानी दिल्ली के लिए निकल लिए. ट्रेन रात आठ बजे निजामुद्दीन से थी. पर मुज़फ्फरनगर से रास्ते में जाम लगने के कारण जल्दी चलना पड़ता हैं. जो डर था वही हुआ. पहले मोदीनगर में गाड़ी खराब हो गयी. दूसरी गाड़ी बदली, मोदी नगर से निकलते ही लंबा जाम लगा हुआ था. हाईवे पर काम चल रहा था. खैर शाम ६ बजे हम निजामुद्दीन स्टेशन पहुँच गए. ठीक सात बजे गाड़ी लग गयी. हम अपने डिब्बे में पहुँच गए. सामान आदि सेट किया. दोनों बर्थ नीचे की व आमने सामने की थी. खैर AC होने के कारण गर्मी तो नहीं थी. गाड़ी ठीक आठ बजे चल पड़ी. हमारे वाले कूपे में एक परिवार राजस्थान से था. माँ व एक बेटा बेटी. एक परिवार आगरे से चढ़ा था. कोई बिचारे इलाज के लिए हैदराबाद जा रहे थे. उनके दो दोस्त व पत्नी साथ थी. बिलकुल पारिवारिक सा माहौल था. ट्रेन चलते ही पानी की ठंडी बोतल व पीने के लिए सूप आ गया था. थोड़ी देर बाद शुद्ध शाकाहारी खाना आ गया. खाना लाज़वाब था. उसके कुछ देर बाद आइस क्रीम आ गयी. उसके बाद चादर तान के सो गए. लेटते ही नींद आगई. इन ट्रेनों में सुविधा बहुत होती हैं. एक तो ये लेट नहीं होती. सुपर फ़ास्ट होती हैं. टोटली AC होती हैं. कैटरिंग सुविधा होती हैं तकिया, व दो चादर मिलती है. टोटल ३४ घंटे का बैंगलोर तक का सफ़र था. वंहा एक दिन रुक कर मैसूर जाना था. अब राजधानी एक्सप्रेस में तो समय बहुत बढ़िया कटता हैं. रात को खा पीकर सो जाओ. सुबह उठो फ्रेश होकर, हाथ मुह धोकर चाय बिस्कुट का आनंद लो. थोड़ी देर बात नाश्ता आ जाता हैं. नाश्ता करके थोड़ी देर गप्पे लड़ाओ, खिड़की से बाहर के दृश्य देखो, फिर सो जाओ. एक बजे खाना आ जाता है. खाना खाओ, फिर सो जाओ. शाम चार बजे नाश्ता व चाय आ जाती हैं. रात आठ बजे खाना व स्वीट डिश आ जाती हैं. खाना खाओ फिर सो जाओ. कुल मिलाकर फाइव स्टार जिन्दगी, VIP होने का अहसास होता हैं. खैर चोतिस घंटे का सफ़र करके ५ मई १९१८ को ट्रेन सुबह बैंगलोर पहुँच गयी. बाहर निकलते ही सबसे पहले चाय सुड़की गयी. स्टेशन पर मेरा कजिन लवी लेने के लिए आया था. वह बैंगलोर में IT COMPANY में बड़ी पोस्ट पर हैं. हम लोग उसके फ़्लैट की और चल पड़े. लवी गाड़ी ड्राइव कर रहा था. FM पर कन्नड़ गीत चल रहे थे. मैं बैंगलोर की सड़को को बड़े चाव से देख रहा था. खुबसूरत और बड़ा शहर. करीब एक घंटे की ड्राइव के बाद हम लोग लवी के फ़्लैट पर पहुँच गए. आज मुझे बैंगलौर में ही रुकना था. कल सुबह ६ मई १९१८ को हमें मैसूर निकलना था. बैंगलोर में मेरे कई रिश्तेदार रहते हैं. एक कजिन, चाचाजी, एक दुसरे कजिन का लड़का, सभी लोग IT कम्पनियो में हैं. उस दिन उन सबसे मिलने गया. बहुत दिनों बाद मिला अच्छा लगा.
अगले दिन सुबह ट्रेन से मैसूर के लिए निकल पड़ा. लोकल ट्रेन थी. लोकल की संस्कृति देखने का अच्छा मौका था. एक बन्दे हमारे बराबर में बैठे थे, हिंदी जानते थे. उनसे बात करके बहुत अच्छा लगा. मेरी तरह वे भी आरएसएस से जुड़े हुए थे. उन्हें भी मैसूर जाना था. रास्ता बात करते हुए कब कट गया पता नहीं चला. उन्होंने पूरा उत्तर भारत घुमा हुआ था. रेल में मैदुर बड़ा और जैक फ्रूट का आनंद लिया. ठीक साढ़े ग्यारह बजे ट्रेन मैसूर पहुँच गयी. वंहा से हमें इनफ़ोसिस कैंपस जाना था. एप्प के द्वारा ओला कैब को बुला लिया. २० मिनट बाद हम लोग इनफ़ोसिस पहुँच गए. शिवानी के पेपर्स चेक कराने और एंट्री कराने के बाद थोड़ी देर इनफ़ोसिस कैंपस घुमा. इनफ़ोसिस का मैसूर कैंपस वर्ल्ड क्लास हैं और भारत में बेस्ट हैं. बहुत ही खुबसूरत हैं. थिएटर , हॉस्टल, मार्किट, एक से एक शानदार कैंटीन व खाना. इनफ़ोसिस के कैंटीन में खाना खाया. और फिर शिवानी से विदा ली.
मैसूर
मैसूर भारत के कर्नाटक प्रान्त का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यह प्रदेश की राजधानी बैगलुरू से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दक्षिण में केरल की सीमा पर स्थित है। मैसूर पहले कर्नाटक (भारत) की राजधानी थी। यह मैसूर जिले और मैसूर क्षेत्र का मुख्यालय है और कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू के 140 किमी (87 मील) दक्षिण पश्चिम में स्थित है। भारत के दक्षिणी छोर में स्थित मैसूर वाकई खूबसूरत शहर है। कभी वाडियार राजाओं की राजधानी रहा मैसूर समुद्रतल से 610 मीटर की ऊंचाई पर स्थित खुशबूदार शहर भी है। यहां चमेली, गुलाब आदि फूलों की सुगंध के अलावा चंदन और कस्तूरी की खुशबू से वातावरण सुगंधित रहता है। मैसूर शहर का क्षेत्रफल 128.42 वर्ग किमी (50 वर्ग मील) का क्षेत्र शामिल है और यह चामुंडी हिल्स के आधार पर स्थित है। मैसूर भारत के सबसे प्रमुख पर्यटन क्षेत्रों में से एक है। मैसूर को पैलेस सिटी ऑफ इंडिया के रूप में भी जाना जाता है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने हाल ही में मैसूर को लगातार दुसरे साल के लिए पृथ्वी पर जरूर देखे जाने वाले 31 स्थानों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है।
मैसूर का प्रा हास भारत पर सिकंदर के आक्रमण (327 ई0 पू0) के बाद से प्राप्त होता है। उस तूफान के पश्चात् ही मैसूर के उत्तरी भाग पर सातवाहन वंश का अधिकार हुआ था और यह अधिकार द्वितीय शती ईसवी तक चला। मैसूर के ये राजा 'सातकर्णी' कहलाते थे। इसके बाद उत्तर कशचमी क्षेत्र पर कदंब वंश का और उतर पूर्वी भाग पर पल्लवों का शासन हुआ। कदंबों की राजधनी वनवासी में तथा पल्लवों की कांची में थी। इसी बीच उतर से इक्ष्वाकु वंश के सातवें राजा दुर्विनीत ने पल्लवों से कुछ क्षेत्र छीनकर अपने अधिकार में कर लिए। आठवें शासक श्रीपुरूष ने पल्लवों को हारकर "परमनदि" की उपाधि धारण की, जो गंग वंश के परवर्ती शासकों की भी उपाधि कायम रही।
उत्तर पश्चिमी क्षेत्र पर पांचवी शती में चालुक्यों ने आक्रमण किया। छठी शती में चालुक्य नरेश पुलिकैशिन ने पल्लवों से वातादि (वादामी) छीन लिया ओर वहीं राजधानी स्थापित की। आठवीं शती के अंत में राष्ट्रकूट वंश के ध्रूव या धारावर्ष नामक राजा ने पल्लव नरेश से कर वसूल किया और गंग वंश के राजा को भी कैेद कर लिया। बाद में गंग राजा मुक्त कर दिया गया। राचमल (लगभग 820 ई0) के बाद गंग वंश का प्रभाव पुन: बढ़ने लगा। सन् 1004 में चोलवंशीय राजेंद्र चोल ने गंगों को हराकर दक्षिण तथा पूर्वी हिस्से पर अपना अधिकार कर लिया।
मैसूर के शेष भाग याने उत्तर तथा पशिचमी क्षेत्र पर पश्चिमी चालुक्यों का अधिकार रहा। इनमें विक्रमादित्य बहुत प्रसिद्ध था, जिसने 1076 से 1126 तक शासन किया। 1155 में चालुक्यों का स्थान कलचूरियों ने ले लिया। इनकी सत्ता 1153 तक ही कायम रही।
गंग वंश की समाप्ति पर पोयसल या होयसाल वंश का अधिकार स्थापित हो गया। ये अपने को यादव या चंद्रवंशी कहते थे। इनमें बिट्टिदेव अधिक प्रसिद्ध था जिसने 1104 से 1141 तक शासन किया। 1116 में तलकाद पर कब्जा करने के बाद उसने मैसूर से चोलों को निकाल बाहर किया। सन् 1343 में इस वंश का प्रमुख समाप्त हो गया।
सन् 1336 में तुंगभद्रा के पास विजयनगर नामक एक हिंदु राज्य उभरा। इसके संस्थापक हरिहर तथा बुक्क थे। इसके आठ राजाओं सिंहासन पर अधिकार कर लिया। उसकी मृत्यु के बाद उसके तीन पुत्रों, नरसिंह, कृष्णराय तथा अच्युतराय, ने बारी बारी से राजसता संभाली। सन् 1565 में बीजापुर, गोलकुंडा आदि मुसलमान राज्यों के सम्मिलित आक्रमण से तालीफोटा की लड़ाई में विजयनगर राज्य का अंत हो गया।
18वीं शती में मैसूर पर मुसलमान शासक हैदर अली की पताका फहराई। सन् 1782 में उसकी मृत्यु के बाद 1799 तक उसका पुत्र टीपू सुल्तान शासक रहा। इन दोनों ने अंग्रेजों से अनेक लड़ाईयाँ लड़ी। श्रीरंगपट्टम् के युद्ध में टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात् मैसूर के भाग्यनिर्णय का अधिकार अंग्रेजों ने अपने हाथ में ले लिया। किंतु राजनीतिक स्थिति निरंतर उलझी हुई बनी रही, इसलिये 1831 में हिंदु राजा को गद्दी से उतारकर वहाँ अंग्रेज कमिश्नर नियुक्त हुआ। 1881 में हिंदु राजा चामराजेंद्र गद्दी पर बैठे। 1894 में कलकत्ते में इनका देहावसान हो गया। महारानी के संरक्षण में उनके बड़े पुत्र राजा बने और 1902 में शासन संबंधी पूरे अधिकार उन्हें सौंप दिए गए। भारत के स्वतंत्र होने पर मैसूर नाम का एक पृथक् राज्य बना दिया गया जिसमें पास पास के भी कुछ क्षेत्र सम्मिलित कर दिए गए। भारत में राज्यों के पुनर्गठन के बाद मैसूर, कर्नाटक में आ गया(साभार: विकिपेडिया)
राजधानी एक्सप्रेस में आराम से |
एक और फोटो |
A SNAP FROM TRAIN WINDOW - NEAR BALLARSHAH |
इनफ़ोसिस कैंटीन |
कैंटीन |
और ये मैं
कैंटीन के आगे मै |
इनफ़ोसिस कैंपस |
SWIMMING POOL - INFOSYS |
INFOSYS CAMPUS |
INFOSYS MAIN BUILDING |
SHIVANI OPPOSITE INFOSYS THEATRE |
आपने ऊपर के इनफ़ोसिस के फोटो देखे कैसे लगे. इनमे कुछ फोटो शिवानी ने लिए थे. इनफ़ोसिस से मैं लोकल बस पकड़कर मैसूर आ गया. मैसूर के लोकल अड्डे पर पहुँच कर वंहा पर अंगूर का जूस पीया गया. कुल २० रूपये का गिलास था. वंहा से मैं पैदल घूमता हुआ धन्वन्तरी रोड़ पर आ गया. इससे आगे का वृत्तान्त जानने के लिए क्लिक करिए(MYSURU TRAVELL - 2 - MYSURU PALACE IN NIGHT
रोचक यात्रा रही सर। ऊपर तारीक मई 1918 लिखी है जिसे शायद सम्पादित किया जाना चाईए....अगली कड़ियों को भी पढूँगा मैं....
ReplyDeleteDHANYAWAAD SHREEMAAN JI, MAINE DATE EDIT KAR DI HAIN...GALTI BATANE KE LIYE DHANYAWAAD....
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