Sunday, May 27, 2012

यात्रा हरि के द्वार हरिद्वार की - भाग १

हरिद्वार

मैं ओर बच्चे बैठे बैठे प्रोग्राम बना रहे थे कि पेपर खत्म हो गए हैं, कंहा घूमने चला जाए, बच्चे कहने लगे कि पापा हरिद्वार यंहा से यानिकी मुज़फ्फरनगर से कुल ८९ किलोमीटर हैं, सबसे नज़दीक हैं, ओर हमें वंहा पर गए भी काफी समय हो गया हैं, तो हरिद्वार ही चलते हैं, बच्चो ने ठीक ही कहा था, हमारे मुज़फ्फरनगर से इतना नज़दीक होते हुए भी हम हरिद्वार नहीं जा पाते हैं. जबकि हरिद्वार हिन्दुओ का सबसे बड़ा तीर्थ स्थान हैं. पुरे संसार में हिंदू कंही भी हैं, वो एक बार हरिद्वार जरुर जाना चाहता हैं, ओर मरने के बाद भी उसकी अस्थिया हरिद्वार में ही गंगा जी में प्रवाहित कि जाती हैं. 

कुछ हरिद्वार के बारे में 

हरिद्वार यानि हरि का द्वार, या हरद्वार कहो यानि भोले कि नगरी. हरिद्वार हिन्दुओ का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल, देव भूमि उत्तराखंड का प्रवेश द्वार. माँ गंगा पहाड़ों से उतरकर हरिद्वार में ही मैदानों में प्रवेश करती हैं. इसलिए हरिद्वार का एक नाम गंगा द्वार भी हैं. हरिद्वार कुम्भ कि भी नगरी हैं. हर १२ साल बाद यंहा पर कुम्भ मेले का आयोज़न होता हैं. जिसमे पुरे भारतवर्ष से साधु संत, सन्यासी, तीर्थ यात्री आते हैं और महीने भर चलने वाले इस आयोजन में, अलग अलग तिथियों में गंगा जी में स्नान करते हैं. जिसे शाही स्नान भी कहते हैं. ये कंहा जाता हैं कि देवासुर संग्राम में जब असुर लोग अमृत लेकर के भाग रहे थे, तब अमृत कि बूंदे जंहा जंहा गिरी थी, वंही पर अमृत कुंड बन गए थे. उन्ही स्थानों पर हर १२ साल बाद कुम्भ मेले का आयोजन होता हैं. हरकी पौड़ी पर भी अमृत कि बूंदे गिरी थी. ये अमृत कुंड हर कि पौड़ी पर स्थित हैं, इसी लिए हरकी पोड़ी पर स्नान करने कि महत्ता हैं. हरिद्वार का एक नाम मायापुरी भी हैं. 

कपिल ऋषि का आश्रम भी यहाँ स्थित था, जिससे इसे इसका प्राचीन नाम कपिल या कपिल्स्थान मिला। पौराणिक कथाओं के अनुसार भागीरथ जो सूर्यवंशी राजा सगर के प्रपौत्र (श्रीराम के एक पूर्वज) थे, गंगाजी को सतयुग में वर्षों की तपस्या के पश्चात् अपने ६०,००० पूर्वजों के उद्धार और कपिल ऋषि के श्राप से मुक्त करने के लिए के लिए पृथ्वी पर लाये। ये एक ऐसी परंपरा है जिसे करोडों हिंदू आज भी निभाते है, जो अपने पूर्वजों के उद्धार की आशा में उनकी चिता की राख लाते हैं और गंगाजी में विसर्जित कर देते हैं। कहा जाता है की भगवान विष्णु ने एक पत्थर पर अपने पग-चिन्ह छोड़े है जो हर की पौडी में एक उपरी दीवार पर स्थापित है, जहां हर समय पवित्र गंगाजी इन्हें छूती रहतीं हैं। 

हरिद्वार में पंडो के पास हिन्दुओ के पूर्वजो कि वंशावली 

वह जो अधिकतर भारतीयों व वे जो विदेश में बस गए को आज भी पता नहीं, प्राचीन रिवाजों के अनुसार हिन्दू परिवारों की पिछली कई पीढियों की विस्तृत वंशावलियां हिन्दू ब्राह्मण पंडितों जिन्हें पंडा भी कहा जाता है द्वारा हिन्दुओं के पवित्र नगर हरिद्वार में हस्त लिखित पंजिओं में जो उनके पूर्वज पंडितों ने आगे सौंपीं जो एक के पूर्वजों के असली जिलों व गांवों के आधार पर वर्गीकृत की गयीं सहेज कर रखी गयीं हैं. प्रत्येक जिले की पंजिका का विशिष्ट पंडित होता है. यहाँ तक कि भारत के विभाजन के उपरांत जो जिले व गाँव पाकिस्तान में रह गए व हिन्दू भारत आ गए उनकी भी वंशावलियां यहाँ हैं. कई स्थितियों में उन हिन्दुओं के वंशज अब सिख हैं, तो कई के मुस्लिम अपितु ईसाई भी हैं. किसी के लिए किसी की अपितु सात वंशों की जानकारी पंडों के पास रखी इन वंशावली पंजिकाओं से लेना असामान्य नहीं है.

शताब्दियों पूर्व जब हिन्दू पूर्वजों ने हरिद्वार की पावन नगरी की यात्रा की जोकि अधिकतर तीर्थयात्रा के लिए या/ व शव- दाह या स्वजनों के अस्थि व राख का गंगा जल में विसर्जन जोकि शव- दाह के बाद हिन्दू धार्मिक रीति- रिवाजों के अनुसार आवश्यक है के लिए की होगी. अपने परिवार की वंशावली के धारक पंडित के पास जाकर पंजियों में उपस्थित वंश- वृक्ष को संयुक्त परिवारों में हुए सभी विवाहों, जन्मों व मृत्युओं के विवरण सहित नवीनीकृत कराने की एक प्राचीन रीति है.

वर्तमान में हरिद्वार जाने वाले भारतीय हक्के- बक्के रह जाते हैं जब वहां के पंडित उनसे उनके नितांत अपने वंश- वृक्ष को नवीनीकृत कराने को कहते हैं. यह खबर उनके नियत पंडित तक जंगल की आग की तरह फैलती है. आजकल जब संयुक्त हिदू परिवार का चलन ख़त्म हो गया है व लोग नाभिकीय परिवारों को तरजीह दे रहे हैं, पंडित चाहते हैं कि आगंतुक अपने फैले परिवारों के लोगों व अपने पुराने जिलों- गाँवों, दादा- दादी के नाम व परदादा- परदादी और विवाहों, जन्मों और मृत्युओं जो कि विस्तृत परिवारों में हुई हों अपितु उन परिवारों जिनसे विवाह संपन्न हुए आदि की पूरी जानकारी के साथ वहां आयें. आगंतुक परिवार के सदस्य को सभी जानकारी नवीनीकृत करने के उपरांत वंशावली पंजी को भविष्य के पारिवारिक सदस्यों के लिए व प्रविष्टियों को प्रमाणित करने के लिए हस्ताक्षरित करना होता है. साथ आये मित्रों व अन्य पारिवारिक सदस्यों से भी साक्षी के तौर पर हस्ताक्षर करने की विनती की जा सकती है.

हरिद्वार का केंद्र व मुख्य स्थान हर की पौड़ी 

हम लोग सुबह ५ बजे उठ कर तैयार होकर अस्पताल चौराहे पर पहुंचे, जाते ही हमें राजस्थान परिवहन निगम कि बस जो कि जोधपुर से आ रही थी, मिल गयी,  बस में चढ़ते ही बच्चे हँसने लगे, मैंने उनसे हँसने का कारण पूछा तो बोले पापा इस बस में  अधिकतर लोग गंजे क्यों हैं, मैंने कहा कि राजस्थान में जब कोई आदमी मरता हैं तो उसकी अश्थिया सुरक्षित रख लेते हैं, और जो कोई भी कभी हरिद्वार जाता हैं तो उन्हें लेकर के आता हैं, और विसर्जन करते हैं. राजस्थान से चलने से पहले ये लोग अपना मुंडन करवा लेते हैं. बस हरिद्वार के पन्त्द्वीप पार्किंग में पहुँच गयी. बस के रुकते ही पंडो की  भीड़ बस में चढ गयी, और यात्रियों से पूछने लगी, कंहा के हो, कौन जात हो. यह सुनकर बड़ा अजीब लगा और गुस्सा भी आया. ऐसे ही लोगो की वजह से हिन्दुस्तान में जाति पाति खत्म नहीं हो पा रही हैं. उन्होंने मुझे भी राजस्थान का ही समझा, और मेरी जाति पूछने लगे, मैंने कंहा हिन्दुस्तानी, तो मेरे से लड़ने को आ गए. मैंने चुपचाप निकलने में ही भलाई समझी. ये लोग उत्तराखंड और और पश्चिमी उत्तरप्रदेश से बाहर के लोगो को बहुत बुरी तरह से ठगते हैं. और उनसे दुर्व्यवहार भी करते हैं. खैर पश्चिमी उत्तरप्रदेश के लोग विशेषकर मुज़फ्फरनगर और मेरठ के लोग इनके काबु में नहीं आते हैं. 

बस से उतरकर सबसे पहले किसी अच्छे होटल की तलाश शुरू हुई, जंहा से मनसा देवी का रोप वे शुरू होता हैं, वंही पर एक अच्छे होटल में कमरा मिल गया, होटल का नाम मुझे कुछ याद नहीं हैं. ७५०/- में कमरा मिल गया. 

माँ मनसा देवी 

वंहा पर कुछ देर रुक कर चाय वाय पीकर के सबसे पहले मनसा देवी की पैदल चढाई शुरू की. करीब २५ मिनट में हम मनसा देवी पहुँच गए. प्रसाद की दूकान से प्रसाद ख़रीदा, और माता के दर्शन किये. यह मंदिर बिल्व पर्वत के शिखर पर स्थित हैं. माता मनसा देवी अपने भक्तो के मन की सभी इच्छाओ को पूरा करती हैं. यंहा पर एक वृक्ष पर मनौती का धागा भी बाँधा जाता हैं. हमने भी कभी एक धागा बाँधा था, उसे खोला. 

माँ मनसा देवी मंदिर 

मनसा देवी पर तीनो भाई बहन 

मंदिर के अंदर विश्राम करते हुए 

मनसा देवी पर प्रसाद की दुकान के बाहर 

दोनों भाई मस्ती में 

एक फोटो मेरा भी हो जाए 

हमारा परिवार 

मनसा देवी से हरिद्वार के पीछे की ओर का दृश्य

मनसा देवी से गंग नहर  के उद्गम  का दृश्य

गंगा नहर का उद्गम स्थल ओर झूला पुल 

सप्त धारा

मनसा देवी से हरिद्वार नगर ओर गंगा नहर का दृश्य 

गंगा जी के ऊपर बना हुआ बाँध भीम गोडा बैराज 

माँ चंडी देवी 

मनसा देवी के दर्शन करके हम लोग थ्री व्हीलर में बैठ कर माँ चंडी देवी के दर्शन को चल दिए. करीब ३ कीलोमीटर की पैदल चढाई करके हम लोग मंदिर परिसर में पहुंचे. यह मंदिर गंगा जी की नीलधारा को पार करके नील पर्वत के शिखर पर हैं. यह मंदिर कश्मीर के राजा सुचेत सिंह द्वारा १९२९ में बनवाया गया था. यह कहा जाता हैं कि माँ आदि शक्ति ने चंद  मुंड नामक राक्षसों का यंही पर संहार किया था. माँ कि मूर्ति आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित है. इस मंदिर के पास ही हनुमान जी की माता अंजनी देवी का भी मंदिर हैं. इन मंदिरों तक रोपवे से भी जाया जा सकता हैं. यंही पर ही एक अच्छा रेस्टोरेंट भी बना हुआ है, जिसमे हमने कुछ पेट पूजा की. फिर रोप वे का टिकट लेकर रोप वे के द्वारा  नीचे उतर आये.

चंडी देवी से गंगा जी के ऊपर पुल ओर हरिद्वार का दृश्य 

चंडी देवी पर ही एक और चित्र 

ज़नाब बड़ी खुशी में अजगर अपने गले में डलवा रहे हैं

तरु ने अपने गले में खुशी खुशी अजगर को डलवा लिया, पर जब अजगर ने अपना फन ऊपर को किया तो घबरा गया और चिल्लाने लगा.

जब अजगर ने अपना फन ज़नाब के मुह के ओर किया 

चंडी देवी रोप वे 

ट्रोली के अंदर 

रोप वे 

नीचे से ऊपर आती ट्रोली

गंगा जी के बीच में महादेव 

गंगा जी के बीचो बीच महादेव की मूर्ती बहुत  ही अच्छा दृश्य प्रस्तुत करती हैं और मन श्रद्धा से भर जाता हैं. 

शांतिकुंज 

 माँ चंडी देवी से हम थ्री व्हीलर से शांति कुञ्ज पहुँचते हैं. शांति कुञ्ज हरिद्वार ऋषिकेश मार्ग पर हरिद्वार से ७ किलो मीटर पर स्थित हैं. यह आश्रम आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा स्थापित हैं. जिन्होंने गायत्री परिवार की स्थापना की हैं. आजकल इसके प्रमुख डा. प्रणव पंड्या जी हैं. यंहा पर आयुर्वेदिक वाटिका देखने लायक हैं. यह स्थान हिंदू धर्म और अध्यात्म का प्रमुख केंद्र हैं. 

शांतिकुंज का दृश्य 

शांतिकुंज - ये मशाल जलती रहे

भारत माता मंदिर 

शांतिकुंज के पास ही स्थित हैं भारत माता मंदिर, इसकी स्थापना श्री सत्यमित्रानंद जी ने की थी. यह मंदिर ७ मंजिला ऊँचा हैं. और यंहा से दूर दूर माँ गंगा के फैले हुए विस्तार व सप्त धारा के दर्शन होते हैं.इस मंदिर में हिंदू धर्म के सभी प्रमुख अंगों (सनातन धर्म, आर्य समाज, सिक्ख, जैन, बोद्ध आदि ) के  व महापुरुषों के दर्शन होते है. 

भारत माता मंदिर प्रवेश द्वार 

यंहा से हम विभिन्न मंदिरों को देखते हुए हर की पौड़ी पहुँचते हैं काफी भीड़ थी. माँ गंगा में डुबकी लगाकर, व स्नान करके मन पवित्र हो गया. हम लोग जल्दी नहा लेते हैं पर बच्चे लोग बहुत समय लगते है. 

पतित पावनी माँ गंगा 

हरकी पौड़ी पर बिरला जी द्वारा बनवाया घंटाघर 

पवित्र गंगा में स्नान 

बच्चे ठन्डे जल में डुबकी लगाकर बाहर निकलने का नाम नहीं ले रहे हैं. 

हर की पौड़ी पर शाम के समय भीड़

रात के समय हर कि पौड़ी 

File:Evening Aarti at Har-ki-Pauri, Haridwar.jpg
माँ गंगा जी की आरती 

स्नान के बाद माँ गंगा जी की आरती को देखने का सौभाग्य हमें मिला. इसके बाद भूख बहुत लग रही थी, पेट में चूहे कूद रहे थे. मुख्य बाज़ार में स्थित एक  होटल में खाने का आनंद लिया, यह होटल अपने खाने के लिए पुरे हरिद्वार में मशहूर हैं. क्या लाजवाब खाना था, मज़ा आ गया. खाना खाने के बाद फिर हर की पौड़ी पहुँच गए और वंहा ठंडी हवाओ का आनंद लेते रहे. करीब दस बजे अपने होटल आ गए, और अपना पड़ कर सो गए. 

Tuesday, May 22, 2012

दिल्ली दिल वालो की - 2

दिल्ली दिल वालो की - 2


क़ुतुब मीनार से हम लोग माँ कात्यायिनी मंदिर छतरपुर पहुंचे. यह मंदिर क़ुतुब से २.५ कीलोमीटर दूर हैं. और गुडगाव, मेहरोली मार्ग पर पड़ता है. यह मंदिर दरअसल मंदिरों का समूह हैं. और माँ कात्यायिनी को समर्पित हैं. यह मंदिर समूह अपने आप में भारत में स्थित सबसे बड़े मंदिर समूहों में से एक हैं. इस मंदिर की स्थापना संत नागपाल जी के द्वारा १९७४ में की गयी थी. उनकी समाधी इस मंदिर में ही स्थित हैं. यह मंदिर पूरी तरह से संगमरमर से बनाया गया हैं, और संगमरमर का का काम देखने लायक हैं. ये पूरा परिसर ६० एकड में फैला हुआ हैं. जिसमे छोटे बड़े करीब २० मंदिर हैं. उसमे मुख्य मंदिर माँ आदि शक्ति कात्यायिनी देवी का है. माँ कात्यायिनी माँ आदि शक्ति का अवतार हैं. और ९ देवियों में से एक शक्ति मानी गयी हैं. इस के अलावा इस मंदिर समूह में श्री राम, श्री कृष्ण, श्री गणेश, हनुमान जी, भगवान शिव आदि के मंदिर स्थित हैं.

प्यारा मंदिर 

राघव बाबू 

अन्दर का नज़ारा 

छतरपुर मंदिर से होकर के हम , चूँकि काफी देर हो चुकी थी, रात होने वाली थी, सीधे वैशाली रवि के घर पहुँच गए, और खा पी कर सो गए. अगले दिन सुबह फिर सैर के लिए निकल पड़े. सबसे पहले इंडिया गेट पर पहुंचे. आपको एक बात याद दिला दूँ की इस पूरी यात्रा में मैं एक गाइड का भी काम कर रहा था. दिल्ली का एक नक्शा हाथ में लेकर के बैठा था. और ड्राईवर को गाइड कर रहा था. 

इण्डिया गेट (भारत द्वार) 

नई दिल्ली के राजपथ पर स्थित ४३ मीटर ऊँचा द्वार है। इस द्वार का निर्माण प्रथम विश्वयुद्ध और अफ़ग़ान युद्धों में शहीद हुए सैनिकों की स्मृति में किया गया था। सैनिकों की स्मृति में यहाँ एक राइफ़ल के ऊपर सैनिक की टोपी सजाई गई है जिसके चार कोनों पर सदैव अमर जवान ज्योति जलती रहती है। इसकी दीवारों पर हजारों शहीद सैनिकों के नाम खुदे हैं। इसके सबसे ऊपर अंग्रेजी में लिखा हैः

To the dead of the Indian armies who fell honoured in France and Flanders Mesopotamia and Persia East Africa Gallipoli and elsewhere in the near and the far-east and in sacred memory also of those whose names are recorded and who fell in India or the north-west frontier and during the Third Afgan War.

भारतीय सेनाओं के शहीदों के लिए, जो फ्रांसऔर फ्लैंडर्स मेसोपोटामिया फारस पूर्वी अफ्रीका गैलीपोली और निकटपूर्व एवं सुदूरपूर्व की अन्य जगहों पर शहीद हुए, और उनकी पवित्र स्मृति में भी जिनके नाम दर्ज़ हैं और जो तीसरे अफ़ग़ान युद्ध में भारत में या उत्तर-पश्चिमी सीमा पर मृतक हुए।(साभार विकिपीडिया) 

इंडिया गेट 

इंडिया गेट पर उस समय मार्च पास्ट चल रहा था. वंहा पर सेना का बैंड, तथा वायु सेना के जवान मनोहारी परेड कर रहे थे. देशभक्ति की धुन बज रही थी. अपने जवानो को देख कर सीना गर्व से चौड़ा हो गया. 

मिलिटरी बैंड के द्वारा प्रदर्शन 

वायु सेना के जवानो के द्वारा मार्च पास्ट 

इसका नाम भारतीय महा द्वार होना चाहिए 

समझ में नहीं आता हैं की अंग्रेजो के लिए विश्व युद्ध में अपने जवानों के द्वारा क़ुरबानी पर गर्व करू या इसे गुलामी की निशानी मानु.

हमारा परिवार 

इंडिया गेट से होकर के हम सीधे बिरला मंदिर पहुंचे. यह मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं. भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर दिल्ली के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण 1938 में हुआ था और इसका उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था। बिड़ला मंदिर अपने यहाँ मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के लिए भी प्रसिद्ध है।

बिरला मंदिर 

बिरला मंदिर पीछे से 

हिन्दू हृदय सम्राट वीर शिवाजी 

साईं बाबा मंदिर 

मंदिर में गुफा 

एक और गुफा 

दक्षिण भारतीय निर्माण शैली में मंदिर 

नीलम, चन्द्रगुप्त मौर्य की मूर्ती के पास 

वैश्य कुल गौरव चन्द्रगुप्त मौर्य 

मंदिर और झरना 

बिरला मंदिर में २ घंटे बिताने के बाद हम लाल किला पहुंचे. लाल किला यमुना के किनारे मुग़ल बादशाह शाहजांह ने बनवाया था. इसका निर्माण सं १६३९ में किया गया था. लाल किला भारत की सत्ता का प्रतीक है. मुग़ल काल में सम्पूर्ण भारत को यंहा से शासित किया जाता था. बाद में अंग्रेजो ने इसमें अपनी छावनी बनायी. आज भी इसके एक हिस्से पर सेना का नियंत्रण है. ये किला भारत की शासन सत्ता का प्रतीक है. इस पर हमेशा तिरंगा लहराता रहता है. १५ अगस्त को प्रधानमन्त्री के द्वारा झंडारोहण किया जाता है. व २१ तोपों की सलामी ली जाती है. 

लाल किला या लाल कोट 

लाल किले का मुख्य द्वार , लाहौरी दरवाजा 

दीवाने आम 

दीवाने आम का प्रांगन एक खुला मैदान हैं, यह मैदान आम जनता के लिए था. 

विश्व स्मारक का विवरण शिला पट 

संगमरमर का महल और नहर

ये ऊपर महल के फोटो में जो गहरा स्थान दिखाई दे रहा हैं, दरअसल वो नहरे थी. जिनमे से होकर के यमुना नदी का जल जो की एक बुर्ज तक चढाया जाता था, वो जल इसमें से होकर के बहता था. 

लाल किले के पीछे का हिस्सा 

ये ऊपर आपको लालकिले का पीछे का हिस्सा दिखाई दे रहा हैं. ये जो मैदान हैं ये पहले चोर बाज़ार हुआ करता था. अब ये चोर बाज़ार जमा मस्जिद के पास है. दूर रिंग रोड भी दिखाई दे रहीं है. 

छोटे नवाब कुछ परेशान हैं 

खुला मैदान और शानदार निर्माण 

मोती मस्जिद 

थक कर बैठ गए बेचारे 

भीड़ अन्दर की और जाती हुई 

लाल किले का विहंगम नज़ारा 

वैसे लाल किले का एक तिहाई हिस्सा ही देखने के लिए खोला हुआ है. पर इसी में लोग थक जाते है. हमें भी शाम होने को आ गयी थी. वैसे तो दिल्ली घूमने के लिए कम से कम तीन चार दिन चाहिए, पर हमने २ दिन में बहुत कुछ घूमने का प्रयास किया. बाकी दिल्ली फिर कभी......