Saturday, May 27, 2023

UJJAIN A HOLY TRAVELL - 2 - MAHAKAL DARSHAN

#UJJAIN A HOLY TRAVELL - 2 - MAHAKAL DARSHAN

 इससे पहले का यात्रा वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे..(#UJJAIN A HOLY TRAVELL - MUZAFFARNAGAR TO UJJAIN - 1)

२४/१०/२१ 

उज्जैन हम हिन्दुओ के सबसे बड़े तीर्थो में शामिल हैं. जो महत्ता यंहा की हैं वह कही की नहीं. यंहा पर ज्योतिर्लिंग महाकाल, आदि शक्तिपीठ माता हरसिद्धि, काल भैरव, संदीपनी आश्रम, कुम्भ का मेला, मंगल नाथ, पवित्र शिप्रा नदी, विश्व के और भारत के केंद्र में, जंतर मंतर,   शिव जी के त्रिशूल पर टिके होने के कारण खगोल शास्त्रियों और ज्योतिषियों के लिए भी महत्वपूर्ण स्थान हैं मुझे तो लगता है की सम्पूर्ण भारत में इससे ज्यादा धार्मिक महत्त्व का कोई स्थान हैं. 

मैं उज्जैन  बालाजी  परिसर में सुबह सुबह ही पहुँच गया था. आज था दिनांक २४/१०/२१. फिर चाय वाय पीकर नहाकर तैयार हो गया. बाहर चाय वाले ने बताया की इस समय दर्शन के लिए चले जाओ भीड़ कम मिलेगी. बालाजी परिसर से मंदिर की दूरी करीब आधा किलोमीटर थी. रूद्र सागर पर बने हुए पुल कम सड़क  जिस पर दोनों और प्रसाद आदि बेचने के दुकाने थी. उस को पार करके दस मिनट में मै मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुँच गया. प्रसाद आदि लिया, प्रसाद में कुछ मीठा, इलायची दाना व भांग धतूरा आदि चढ़ता हैं. कैमरा आदि की एंट्री नहीं थी. अच्छा हुआ मै कैमरा लेकर नहीं गया मंदिर में. पर उन दिनों मोबाइल ले जा सकते थे. कम से कम मंदिर के अन्दर तो फोटो लेने को मिलेगे. इन दिनों  सुरक्षा कारणों से मोबाइल भी बंद कर दिया हैं. जब से नया महाकाल लोक बना हैं. भीड़ बहुत ज्यादा बढ़ गयी हैं. उन दिनों महाकाल लोक नहीं था. दर्शन भी आराम से होते थे.  अब कभी महाकाल लोक देखने के लिए दोबारा जल्दी जाउंगा. खैर दर्शन करने के लिए पंक्ति में लग गया, पंक्ति तेजी से आगे बढती जा रही थी. मैं दस पंद्रह मिनट में मंदिर के अन्दर महाकाल के पास पहुँच गया.   अब कुछ बाबा महाकाल के बारे में....

#बाबा महाकाल 

महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है। इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, ऐसी मान्यता है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है।  १२३५ ई. में इल्तुत्मिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया, इसीलिए मंदिर अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका है। प्रतिवर्ष और सिंहस्थ के पूर्व इस मंदिर को सुसज्जित किया जाता है।

इतिहास

इतिहास से पता चलता है कि उज्जैन में सन् ११०७ से १७२८ ई. तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में अवंति की लगभग ४५०० वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्राय: नष्ट हो चुकी थी। लेकिन १६९० ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया और २९ नवंबर १७२८ को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा और सन १७३१ से १८०९ तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही। मराठों के शासनकाल में यहाँ दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं - पहला, महाकालेश्वर मंदिर का पुनिर्नर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। आगे चलकर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया।

वर्णन

मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित है। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता है। इसके ठीक उपर एक दूसरा कक्ष है जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है। मंदिर का क्षेत्रफल १०.७७ x १०.७७ वर्गमीटर और ऊंचाई २८.७१ मीटर है। महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है। मंदिर से लगा एक छोटा-सा जलस्रोत है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इल्तुत्मिश ने जब मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिकवा दिया था। बाद में इसकी पुनर्प्रतिष्ठा करायी गयी। सन १९६८ के सिंहस्थ महापर्व के पूर्व मुख्य द्वार का विस्तार कर सुसज्जित कर लिया गया था। इसके अलावा निकासी के लिए एक अन्य द्वार का निर्माण भी कराया गया था। लेकिन दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को दृष्टिगत रखते हुए बिड़ला उद्योग समूह के द्वारा १९८० के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया। महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्था के लिए एक प्रशासनिक समिति का गठन किया गया है जिसके निर्देशन में यहाँ की व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है। हाल ही में इसके ११८ शिखरों पर १६ किलो स्वर्ण की परत चढ़ाई गई है। अब मंदिर में दान के लिए इंटरनेट सुविधा भी चालू की गई है।

#MAHAKAL BABA 

#MAHAKAL MANDIR 

मंदिर में प्रवेश द्वार 

लो जी मंदिर के परसर में आ गए 

अन्दर जाने लिए बेरिकेड 

भोलेनाथ की तस्वीर 



मंदिर परिसर में हनुमान जी का मंदिर 

सबसे पहले हनुमान जी के दर्शन होते हैं. हनुमान जी को प्रणाम करके हम लोग आगे बढे..

जय बाबा महाकाल 

लो जी मुख्य मंदिर के पास आ गए. यंहा पर एक खास बात हैं, मंदिर के अन्दर प्रवेश करके महाकाल के दर्शन दूर से होने लगते हैं प्रवेश करके  बालकोनी टाइप का स्थान आता हैं. दूर से बाबा के और नंदी जी के दर्शन हो जाते हैं. इसके बाद आगे बढ़ जाते है. आगे जाकर के पास से बाबा के दर्शन होते हैं और प्रसाद मिलता हैं. पंडो की लूट और मारामारी भी नहीं हैं यंहा पर.

महाकाल और नंदी मंडप 






अपन राम बाबा के दर्शन के बाद 

मंदिर परिसर  के अन्दर 

विशाल विराट बाबा का मंदिर 

विशाल विराट बाबा का मंदिर 

मंदिर में मै

महाकाल मंदिर परिसर में और भी बहुत सरे मंदिर बने हुए हैं जिसमे अधिकतर बागवान शिव के मंदिर हैं. महाकाल के दर्शन के बाद उन मंदिरों का भी दर्शन किया उनके चित्र नीचे दिए हैं. महाकाल मंदिर में लड्डू का प्रसाद मिलता हैं जिसके लिए कुच्ज पे करना पड़ता हैं. लाइन में लगकर लड्डू का प्रसाद भी लिया..

मंदिर परिसर में एक और मंदिर 









श्री अनादी कल्पेश्वर महादेव 

एक और मंदिर 



श्री वृद्ध कालेश्वर मंदिर 

नंदी  जी 









हनुमान जी 



महाकाल मंदिर 

लो जी पालथी मारकर बैठ गए 





मंदिर का मुख्य प्रवेशद्वार 





मंदिर में अन्दर जाने का रास्ता 

मंदिर में अन्दर जाने का और बाहर आने का मुख्य द्वार 

बाबा के दर्शन करके मन को बहुत तृप्ति हुई. और भी बहुत सारे मंदिर है सब के दर्शन करे. मंदिर में २ घंटे बिताने के बाद मैं बाहर आ गया. आज और भी मंदिरों के दर्शन करने थे. उज्जैन घूमना था..

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Thursday, May 25, 2023

UJJAIN A HOLY TRAVELL - MUZAFFARNAGAR TO UJJAIN - 1

#UJJAIN A HOLY TRAVELL - MUZAFFARNAGAR TO UJJAIN - 1

23/10/21 

#उज्जैन की यात्रा करने का बहुत समय से मन था लेकिन कभी जाना नहीं हुआ. अबकी बार मैंने पक्का मन बना लिया था की उज्जैन अवश्य जाना है. खैर मैंने करवा चौथ  के समय के दिनांक 23/10/21 की दिनांक के आरक्षण करवा लिए. २४ दिनांक का करवा चौथ का त्यौहार था. इस समय पर किसी भी तीर्थ स्थान पर बहुत कम भीड़ मिलती हैं. मैंने देहरादून  इंदौर एक्सप्रेस का अपना आरक्षण करवाया. मुझे नीचे की बर्थ सबसे ज्यादा पसंद हैं. इसलिए आरक्षण भी में बहुत पहले करवा लेता हु. मुज़फ्फरनगर ट्रेन १०:३० AM पर पहुँचती हैं. यह देहरादून से आती हैं. और उज्जैन सुबह चार बजे पहुंचा देती हैं. सप्ताह में दो दिन चलती हैं. ट्रेन ठीक समय पर आ गयी थी. अपन राम उसमे सवार होकर उज्जैन की और निकल पड़े..

मुज़फ्फरनगर रेलवे स्टेशन का बोर्ड 

#मुज़फ्फरनगर रेलवे स्टेशन 

मुज़फ्फरनगर का रेलवे स्टेशन अभी तोड़कर बिलकुल नया बनाया गया हैं. राजस्थान के किशनगढ़ स्टेशन की कोपी हैं बिलकुल. अब कुछ उज्जैन या फिर अवन्तिका नगर के बारे में..

#उज्जैन 
आज जो नगर उज्जैन नाम से जाना जाता है वह अतीत में अवंतिका, उज्जयिनी, विशाला, प्रतिकल्पा, कुमुदवती, स्वर्णशृंगा, अमरावती आदि अनेक नामों से अभिहित रहा। मानव सभ्यता के प्रारंभ से यह भारत के एक महान तीर्थ-स्थल के रूप में विकसित हुआ। पुण्य सलिला क्षिप्रा के दाहिने तट पर बसे इस नगर को भारत की मोक्षदायक सप्तपुरियों में एक माना गया है।

अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका। पुरी द्वारावतीश्चैव सप्तैतामोक्षदायिका।।

उज्जैन भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है जो क्षिप्रा नदी या शिप्रा नदी के किनारे पर बसा है। यह एक अत्यन्त प्राचीन शहर है। यह महान सम्राट विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी । उज्जैन को कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर 12 वर्ष पर सिंहस्थ महाकुंभ मेला लगता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है। उज्जैन मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर इन्दौर से 45 कि॰मी॰ पर है। उज्जैन के प्राचीन नाम अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा आदि है। उज्जैन मंदिरों की नगरी है। यहाँ कई तीर्थ स्थल है। इसकी जनसंख्या 515215 लाख सन ,2011 की जनगणना के हिसाब से है। यह मध्य प्रदेश का पाँचवा सबसे बड़ा शहर है। नगर निगम सीमा का क्षेत्रफल 152 वर्ग किलोमीटर है।

दर्शनीय स्थल चिन्तामन गणेश स्थिरमन गणेश गढ़कालिका माताजी हरसिद्धि माताजी कालभैरव देव महाकालेश्वर महादेव सिद्धनाथ वट मंगलनाथ देव अंगारेश्वर महादेव राम घाट चक्रतीर्थ गणेश रामजानकी मन्दिर अक्रुरेश्वर महादेव विष्णु सागर पुरुषोत्तम सागर मार्कंद्देशवर महादेव ग्याकोटा महादेव चारधाम मन्दिर विक्रांत भैरव ओखलेश्वर महादेव गोपाल मन्दिर भर्तुहरि गुफा सिंहेश्वर मन्दिर वैभवलक्ष्मी मन्दिर हनुमतेश्वर मन्दिर भूखीमाता मन्दिर विष्णु चतुष्टिका छत्रेश्वरी चामुण्डा माताजी संदीपनी आश्रम चयवनेश्वर महादेव गुमानदेव हनुमान मन्दिर.

वर्तमान उज्जैन नगर विंध्यपर्वतमाला के समीप और पवित्र तथा ऐतिहासिक क्षिप्रा नदी के किनारे समुद्र तल से 1678 फीट की ऊंचाई पर 23°डिग्री.50' उत्तर देशांश और 75°डिग्री .50' पूर्वी अक्षांश पर स्थित है। नगर का तापमान और वातावरण समशीतोष्ण है। यहां की भूमि उपजाऊ है। कालजयी कवि कालिदास और महान रचनाकार बाणभट्ट ने नगर की खूबसूरती को जादुई निरूपति किया है। कालिदास ने लिखा है कि दुनिया के सारे रत्न उज्जैन में हैं और समुद्रों के पास सिर्फ उनका जल बचा है। उज्जैन नगर और अंचल की प्रमुख बोली मीठी मालवी बोली है। जो की हिंदी की एक बोली हैं.. 

उज्जैन इतिहास के अनेक परिवर्तनों का साक्षी है। क्षिप्रा के अंतर में इस पारम्परिक नगर के उत्थान-पतन की निराली और सुस्पष्ट अनुभूतियां अंकित है। क्षिप्रा के घाटों पर जहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा बिखरी पड़ी है, असंख्य लोग आए और गए। रंगों भरा कार्तिक मेला हो या जन-संकुल सिंहस्थ या दिन के नहान, सब कुछ नगर को तीन और से घेरे क्षिप्रा का आकर्षण है।

उज्जैन के दक्षिण-पूर्वी सिरे से नगर में प्रवेश कर क्षिप्रा ने यहां के हर स्थान से अपना अंतरंग संबंध स्थापित किया है। यहां त्रिवेणी पर नवगृह मंदिर है और कुछ ही गणना में व्यस्त है। पास की सड़क आपको चिन्तामणि गणेश पहुंचा देगी। धारा मुत्रड गई तो क्या हुआ? ये जाने पहचाने क्षिप्रा के घाट है, जो सुबह-सुबह महाकाल और हरसिध्दि मंदिरों की छाया का स्वागत करते है।

क्षिप्रा जब पूर आती है तो गोपाल मंदिर की देहली छू लेती है। दुर्गादास की छत्री के थोड़े ही आगे नदी की धारा नगर के प्राचीन परिसर के आस-पास घूम जाती है। भर्तृहरि गुफा, पीर मछिन्दर और गढकालिका का क्षेत्र पार कर नदी मंगलनाथ पहुंचती है। मंगलनाथ का यह मंदिर सान्दीपनि आश्रम और निकट ही राम-जनार्दन मंदिर के सुंदर दृश्यों को निहारता रहता है। सिध्दवट और काल भैरव की ओर मुत्रडकर क्षिप्रा कालियादेह महल को घेरते हुई चुपचाप उज्जैन से आगे अपनी यात्रा पर बढ जाती है।

कवि हों या संत, भक्त हों या साधु, पर्यटक हों या कलाकार, पग-पग पर मंदिरों से भरपूर क्षिप्रा के मनोरम तट सभी के लिए समान भाव से प्रेरणाम के आधार है।(विकिपीडिया)

#CHAMBAL GHATI 

ट्रेन के सवाई माधोपुर पार करते ही दोनों साइड में चम्बल की घाटियों के दर्शन होने लगते हैं. ये सवाई माधोपुर से मुरैना तक चौड़ाई में फैली हुई हैं. इन घाटियों की लम्बाई सैकड़ो किलोमीटर हैं. ये घाटिया चम्बल नदी के बहाव व बाढ़ से सैकड़ो सालो में बनी हैं. ये घाटिया सैकड़ो किलोमीटर में फैली हुई हैं. यह घाटिया डकैतों के नाम से बदनाम है. कभी डाकुओ के बड़े बड़े गिरोह इनमे रहते थे. जिन्हें पूरी की पूरी फोज़ भी ढूंढ नहीं पाती थी.

चम्बल घाटी 

चम्बल घाटी 

चम्बल घाटी 
चम्बल नदी का पाट काफी चौड़ा हैं. इस नदी में स्नान करना अशुभ माना जाता हैं. मध्यप्रदेश से निकल कर राजस्थान होती हुई उत्तर प्रदेश में घुसती हैं. और यमुना जी में मिल जाती हैं.

चम्बल के ऊपर रेल पुल 
मैं सुबह चार बजे उज्जैन पहुँच गया था. एक E RICKSHAW करके मैं बालाजी परिशर, अपने रुकने के गंतव्य पर आ गया था.
 
उज्जैन जंक्शन 

उज्जैन जंक्शन 

उज्जैन जंक्शन 
मैं बालाजी परिशर सुबह पांच बजे पहुँच गया. गेट बंद था. बहुत आवाज लगाने के बाद खुला. मुझे मेरा कमरा मिला. यह परिसर माता हर सिद्धि मंदिर के बिलकुल पास हैं. यंहा की बुकिंग मैंने यात्रा धाम साईट से कराई थी. इसका लिंक दे रहा हूँ.

(https://yatradham.org/) 

बालाजी परिसर का भी लिंक दे रहा हूँ. रहने के लिए भीड़ भाड़ से दूर माता हर सिद्धि मंदिर  के पास उपयुक्त स्थान हैं. 

Shri Balaji Parisar


BALAJI PARISAR UJJAIN (YATRADHAM)

112/1 Jaysingpura, Behind Mahakal Temple, Ujjain HO, Ujjain - 456001 (Harsiddhi Temple)

MOBILE- 09115596073

बालाजी परिसर का मैं कोई फोटो नहीं ले पाया था. ये फोटो यात्रा धाम से लिया हैं.

मेरे कमरे का फोटो 
सुबह सुबह नहा धोकर सवेरे जल्दी बाबा महाकाल के दर्शन के लिए चल दिया.
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