Saturday, September 28, 2013

A HOLY TRAVELL TO MAA SHAKUMBHRI DEVI - माँ शाह्कुम्भरी देवी यात्रा

मित्रो जय माता की, मित्रो अभी कुछ समय पहले मुझे अपने एक रिश्तेदार के साथ भंडारे के लिए माता शाकुम्भरी देवी के मंदिर की यात्रा करने का सौभाग्य मिला. वैसे तो माता के दर्शन के लिए बहुत बार जाना हुआ हैं. पर यात्रा वृत्तान्त पहली बार डाल रहा हूँ. इधर हमारे पश्चिमी उत्तरप्रदेश के लोग माता के भंडारा करने की मनौती मानते हैं. और मनौती पूरा होने पर वंहा पर जाकर के भंडारा  करते हैं. भंडारा करने के लिए धर्मशाला पहले से बुक करानी पड़ती हैं. और हलवाई आदि को पहले दिन भेजना पड़ता हैं. जिससे की भक्तो को माता के द्वार पर पहुँचते ही प्रसाद चढाने के बाद भंडारे का भोजन तैयार मिलता हैं. हमारे मुज़फ्फर नगर से माता का द्वार १२० किलोमीटर पड़ता हैं. पर यह १२० किलोमीटर ३००  किलोमीटर के बराबर पड़ता हैं. कारण सड़क के बहुत ही खस्ता हालात. किधर से भी चले जाओ चाहे रूडकी से, चाहे सहारनपुर से, बहुत ही बेकार रास्ता हैं. खैर इस वृत्तान्त में मैंने माता की महिमा का बखान और कुछ चित्र डाले हैं. सबसे पहले भूरा देव के दर्शन किये जाते हैं. यंहा से माता का भवन २ किलोमीटर पड़ता हैं. 


माता शाकुम्भरी देवी शक्तिपीठ में भक्तों की गहरी आस्था है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में माता का सुंदर स्थान विराजमान है। सहारनपुर नगर से 25कि.मी तथा हरियाणा प्रांत के यमुनानगर से लगभग 50 कि.मी. दूर यह पावन धाम स्थापित है। शिवालिक पहाड़ियों के मध्य से बहती बरसाती नदी के बीच में मंदिर रूप में माता का दरबार सजा हुआ है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि माता उनकी हर प्रकार से रक्षा करती हैं तथा उनकी झोली सुख-संपत्ति से भर देती हैं। मंदिर के गर्भ गृह में मुख्य प्रतिमा माता शाकुम्भरी देवी की है। माता की दाईं तरफ माता भीमा देवी व भ्रामरी देवी और बाईं तरफ मां शताक्षी देवी विराजमान हैं। 


माता शाकुम्भरी अपने भक्तों द्वारा याद करने पर अवश्य आती हैं। इस संबध में एक प्राचीन कथा का उल्लेख आता है। एक समय में दुर्गम नाम का एक असुर था। उसने घोर तप द्वारा ब्रह्मदेव को प्रसन्न करके देवताओं पर विजय पाने का वरदान प्राप्त कर लिया। वर पाते ही उसने मनुष्यों पर अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया। अंतत: वरदान के कारण उसने देवताओं पर भी विजय प्राप्त कर ली। चारों वेद भी दुर्गम ने इंद्र देव से छीन लिए। वेदों के ना होने पर चारों वर्ण कर्महीन हो गए। यज्ञ-होम इत्यादि समस्त कर्मकांड बंद होने से देवताओं का तेज जाता रहा, वे प्रभावहीन होकर जंगलों में जाकर छिप गए। प्रकृति के नियमों से छेड़ छाड़ होने पर सृष्टि में त्राहि-त्राहि मच गई। सारी पृथ्वी पर भयंकर सूखा पड़ गया जिस कारण सारी वनस्पतियां सूख गईं। खेतों में फसलें नष्ट हो गईं। ऐसी परिस्थितियों में देवता व मानव दोनों मिल कर मां अंबे की स्तुति करने लगे। बच्चों की पुकार सुन कर मां ना आए ऐसा भला कभी हो सकता है? भक्तों की करुण आवाज पर माता भगवती तुरंत प्रकट हो गईं। देवताओं व मानवों की दुर्दशा देख कर मां के सौ नेत्रों से करुणा के आंसुओं की धाराएं फूट पड़ीं। सागरमयी आंखों से हजारों धाराओं के रूप में दया रूपी जल बहने के कारण शीघ्र ही सारी वनस्पतियां हरी-भरी हो गईं। पेड़ पौधे नए पत्तों व फूलों से भर गए। इसके तुरंत बाद माता ने अपनी माया से शाक, फल, सब्जियां व अन्य कई खाद्य पदार्थ उत्पन्न किये। जिन्हें खाकर देवताओं सहित सभी प्राणियों ने अपनी भूख-प्यास शांत की। समस्त प्रकृति में प्राणों का संचार होने लगा। पशु व पक्षी फिर से चहचहाने लगे। चारों तरफ शांति का प्रकाश फैल गया। इसके तुरंत बाद सभी मिलकर मां का गुणगान गाने लगे। चूंकि मां ने अपने शत अर्थात् सौ नेत्रों से करुणा की वर्षा की थी इसलिए उन्हें शताक्षी नाम से पुकारा गया। इसी प्रकार विभिन्न शाक आहार उत्पन्न करने के कारण भक्तों ने माता की शाकुम्भरी नाम से पूजा-अर्चना की।

अंबे भवानी की जय-जयकार सुनकर मां का एक परम भक्त भूरादेव भी अपने पांच साथियों चंगल, मंगल, रोड़ा, झोड़ा व मानसिंह सहित वहां आ पहुंचा। उसने भी माता की अराधना गाई। अब मां ने देवताओं से पूछा कि वे कैसे उनका कल्याण करें? इस पर देवताओं ने माता से वेदों की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की, ताकि सृष्टि का संचालन सुचारु रूप से चल सके। इस प्रकार मां के नेतृत्व में देवताओं ने फिर से राक्षसों पर आक्रमण कर दिया। युद्ध भूमि में भूरादेव और उसके साथियों ने दानवों में खलबली मचा दी। इस बीच दानवों के सेनापति शुम्भ निशुम्भ का भी संहार हो गया। ऐसा होने पर रक्तबीज नामक दैत्य ने मारकाट मचाते हुए भूरादेव व कई देवताओं का वध कर दिया। रक्तबीज के रक्त की जितनी बूंदें धरती पर गिरतीं उतने ही और राक्षस प्रकट हो जाते थे। तब मां ने महाकाली का रूप धर कर घोर गर्जना द्वारा युद्ध भूमि में कंपन उत्पन्न कर दिया। डर के मारे असुर भागने लगे। मां काली ने रक्तबीज को पकड़ कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। उसके रक्त को धरती पर गिरने से पूर्व ही मां ने चूस लिया। इस प्रकार रक्तबीज का अंत हो गया। अब दुर्गम की बारी थी। रक्तबीज का संहार देखकर वह युद्ध भूमि से भागने लगा परंतु मां उसके सम्मुख प्रकट हो गई। दुर्गा ने उसकी छाती पर त्रिशूल से प्रहार किया। एक ही वार में दुर्गम यमलोक पहुंच गया। अब शेर पर सवार होकर मां युध्द भूमि का निरीक्षण करने लगीं। तभी मां को भूरादेव का शव दिखाई दिया। मां ने संजीवनी विद्या के प्रयोग से उसे जीवित कर दिया तथा उसकी वीरता व भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि जो भी भक्त मेरे दर्शन हेतु आएंगे वे पहले भूरादेव के दर्शन करेंगे। तभी उनकी यात्रा पूर्ण मानी जाएगी। आज भी मां के दरबार से आधा कि.मी. पहले भूरादेव का मंदिर है। जहां पहले दर्शन किये जाते हैं।



इस प्रकार देवताओं को अभयदान देकर मां शाकुम्भरी नाम से यहां स्थापित हो गईं। माता के मंदिर में हर समय श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। नवरात्रों व अष्टमी के अवसर पर यहां अत्यधिक भीड़ होती है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश व आसपास के कई प्रदेशों के निवासियों में माता को कुल देवी के रूप में पूजा जाता है। परिवार के हर शुभ कार्य के समय यहां आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। लोग धन धान्य व अन्य चढ़ावे लेकर यहां मनौतियां मांगने आते हैं। उनका अटूट विश्वास है कि माता उनके परिवार को भरपूर प्यार व खुशहाली प्रदान करेंगी। हर मास की अष्टमी व चौदस को बसों, ट्रकों व ट्रैक्टर टालियों में भर कर श्रद्धालु यहां आते हैं। स्थान-स्थान पर भोजन बनाकर माता के भंडारे लगाए जाते हैं। माता के मंदिर के इर्द-गिर्द कई अन्य मंदिर भी हैं। (साभार : http://www.deshmeaaj.com, देश में आज. )



जय माँ शाकुम्भरी देवी 
भूरा देव 
भूरा देव के लिए भक्तो की लाइन 
माँ मनसा देवी  

माँ मनसा देवी का मंदिर करीब २०० पैडिया चढ़ने के बाद के छोटी पहाड़ी पर स्थित हैं. यंहा से माता के धाम का सुन्दर नज़ारा दिखाई देता हैं.
माँ मनसा देवी मंदिर का मुख्य द्वार 
माँ के दर्शनों के लिए ढोल ताशे के साथ जाते हुए 
तीन तिलंगे और पीछे माँ शाकुम्भरी का मंदिर 
इशांक, सानु, प्रतीक माँ मनसा देवी मंदिर के दर्शन के लिए जा रहे हैं..

माँ के दर्शन को जाते हुए मै 
मंदिर क्षेत्र का सुन्दर दृश्य 
जैसा की ऊपर से दिखाई दे रहा हैं, माता के  धाम में बिलकुल भी भीड़ भाड़ नहीं हैं. 

माता का मंदिर 
माता का मंदिर सामने से 
माता का मंदिर दुकानों के पीछे 
मंदिर का मुख्य भवन 
मुख्य द्वार 
गर्भ गृह के सामने भक्त जन  
शंकराचार्य आश्रम 
हरियाणा - पंजाब या दिल्ली की ओर से आ रहे दर्शनार्थियों के लिये सहारनपुर से होकर जाना सबसे सुगम है। इसके लिये सहारनपुर से उत्तर की ओर सहारनपुर - विकासनगर - चकरौता राष्ट्रीय राजमार्ग पर बेहट होकर जाना होता है जो सहारनपुर से पच्चीस किमी की दूरी पर है। (बेहट सहारनपुर जिले की एक प्रमुख तहसील है) । यहां से शाकुम्भरी देवी शक्तिपीठ के लिये रास्ता अलग हो जाता है जो लगभग पन्द्रह किमी लम्बा है। अन्तिम एक किलोमीटर की यात्रा नदी में से होकर की जाती है। यह नदी वर्ष में अधिकांश समय सूखी रहती है। यदि आप अपने वाहन से सहारनपुर तक पहुंचे हैं तो दरबार तक पहुंचना आपके लिये किसी भी प्रकार से कठिन नहीं है। 

सहारनपुर - विकासनगर राष्ट्रीय राजमार्ग व्यस्त सड़क है अतः विकासनगर की ओर जाने वाली या विकासनगर की ओर से आने वाली किसी भी बस में आप बेहट तक तो बिना परेशानी के आ ही सकते हैं। नवरात्र के दिनों में तो आपको सैंकड़ों - हज़ारों ग्रामीण बैलगाड़ियों में, झोटा-बुग्गियों में, ट्रैक्टर ट्रॉलियों में या पैदल ही मां का गुणगान करते हुए जाते मिल जायेंगे। सड़क पर लेट - लेट कर दरबार तक की दूरी तय करने वालों की भी कमी नहीं है। 

सहारनपुर से अनेक बसें विशेष रूप से मां शाकुम्भरी देवी दर्शन के निमित्त भी चलाई जाती हैं जो सहारनपुर में स्थित बेहट बस अड्डे से मिल जाती हैं। यदि आप पूरी टैक्सी करना चाहें तो प्राइवेट टैक्सी (इंडिका, टवेरा, इनोवा, सुमो आदि) भी सहारनपुर नगर में ही सरलता से उपलब्ध हो जाती हैं। देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार की ओर से आने वालों के लिये बेहट पहुंचने के लिये सहारनपुर तक आना आवश्यक नहीं है। देहरादून - दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर छुटमलपुर के पास से कलसिया - बेहट को जाने के लिये अच्छी सड़क है। लगभग इक्कीस किमी लम्बी यह सड़क सहारनपुर - विकासनगर - चकरौता राजमार्ग को देहरादून - सहारनपुर - दिल्ली राजमार्ग से जोड़ती है। अतः देहरादून, रुड़की, हरिद्वार, ऋषिकेश की ओर से आने वाले तीर्थयात्री छुटमलपुर से देहरादून की ओर दो किमी पर खुल रही फतहपुर - कलसिया सड़क पकड़ कर बेहट पहुंच सकते हैं। 
साभार : (thesaharanpur.com/shakumbaridevi.htm)

(मित्रो इस यात्रा वृत्तान्त में सम्पूर्णता लाने के लिए मैंने कुछ लेख दूसरी साईट से लिया हैं. धन्यवाद उन सबका)

Saturday, May 4, 2013

शिव खोडी - SHIV KHODI


इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिए क्लिक करे ..(माता वैष्णोदेवी यात्रा-भाग १ (मुज़फ्फरनगर से कटरा - KATRA VAISHNODEVI)

मैं शिवखोड़ी कि यात्रा पर कई बार जा चुका हूँ. जब भी वैष्णोदेवी जाता हूँ मैं वंहा जाने कि जरुर कोशिस करता हूँ. मैंने यंहा पर अपनी अलग यात्राओ के चित्र और अनुभव डालने कि कोशिस कि हैं. फोटो पुराने कैमरे से लिए गए हैं. और उनको स्कैन करके डाला हैं. हम लोग कटरा से सुबह के समय ही शिवखोड़ी के लिए निकल जाते हैं. सुबह से ही बारिश चल रही थी. एक बार तो कार्यक्रम निरस्त भी कर दिया था. पर फिर भोले बाबा का नाम लेकर चल पड़े. रास्ते में चिनाब नदी पड़ती हैं. जिसे हिमाचल में चंद्र भागा बोलते हैं. बारिश के कारण नदी पूरे उफान पर थी. 

चिनाब (चंद्र - भागा ) नदी का उफनता हुआ जल 

पहाडो के ऊपर बादल 

रास्ते में एक स्थान पर नाश्ते के लिए रुक जाते हैं. हलवाई कि दुकान पर गरमागरम छोले भटूरे बन रहे थे. बस क्या था हमारे जैन साहब का हलवाई पन  जाग उठा और लगे भटूरे तलने. अच्छी तरह से पेट पूजा करने के बाद आगे कि यात्रा पर निकल पड़ते हैं. 

हमारे जैन साहब भटूरे तलते हुए 

कुछ शिवखोड़ी के बारे में 

शिवखोड़ी गुफ़ा जम्मू-कश्मीर राज्य के रियासी  ज़िले' में स्थित है। यह भगवान शिव के प्रमुख पूज्यनीय स्थलों में से एक है। यह पवित्र गुफ़ा 150 मीटर लंबी है। शिवखोड़ी गुफ़ा के अन्‍दर भगवान शंकर का 4 फीट ऊंचा शिवलिंग है। इस शिवलिंग के ऊपर पवित्र जल की धारा सदैव गिरती रहती है। यह एक प्राकृतिक गुफ़ा है। इस गुफ़ा के अंदर अनेक देवी -देवताओं की मनमोहक आकृतियां है। इन आकृतियों को देखने से दिव्य आनन्द की प्राप्ति होती है। शिवखोड़ी गुफ़ा को हिंदू देवी-देवताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है।

पहाड़ी भाषा में गुफ़ा को 'खोड़ी' कहते है। इस प्रकार पहाड़ी भाषा में 'शिवखोड़ी' का अर्थ होता है- भगवान शिव की गुफ़ा।

शिवखोड़ी तीर्थस्थल हरी-भरी पहाड़ियों के मध्य में स्थित है। यह रनसू से 3.5 किमी. की दूरी पर स्थित है। रनसू शिवखोड़ी का बेस कैम्प है। यहाँ से पैदल यात्रा कर आप वहाँ तक पहुंच सकते हैं। रनसू तहसील रियासी  में आता है, जो कटरा से 80 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। कटरा वैष्णो देवी की यात्रा का बेस कैम्प है। जम्मू से यह 110 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जम्मू से बस या कार के द्वारा रनसू तक पहुँच सकते है। वैष्णो देवी से आने वाले यात्रियों के लिए जम्मू-कश्मीर टूरिज़्म विभाग की ओर से बस सुविधा भी मुहैया कराई जाती है। कटरा से रनसू तक के लिए हल्के वाहन भी उपलब्ध हैं। रनसू गाँव रियासी-राजौरी मार्ग से 6 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।

जम्मू से प्राकृतिक सौंदर्य का आंनद उठाकर शिवखोड़ी तक जा सकते है। जम्‍मू से शिवखोड़ी जाने के रास्ते में काफ़ी सारे मनोहारी दृश्य मिलते हैं, जो कि यात्रियों का मन मोह लेते है। कलकल करते झरने, पहाड़ी सुन्दरता आदि पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

इतिहास

पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में भी इस गुफ़ा के बारे में वर्णन मिलता है। इस गुफ़ा को खोजने का श्रेय एक  गड़रिये को जाता है। यह गड़रिया अपनी खोई हुई बकरी खोजते हुए इस गुफ़ा तक पहुँच गया। जिज्ञासावश वह गुफ़ा के अंदर चला गया, जहाँ उसने शिवलिंग को देखा। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शंकर इस गुफ़ा में योग मुद्रा में बैठे हुए हैं। गुफ़ा के अन्दर अन्य देवी-देवताओं की आकृति भी मौजूद हैं।

गुफ़ा का आकार

गुफ़ा का आकार भगवान शंकर के डमरू के आकार का है। जिस तरह से डमरू दोनों तरफ से बड़ा होता है और बीच में से छोटा होता है, उसी प्रकार गुफ़ा भी दोनों तरफ़ से बड़ी है और बीच में छोटी है। गुफ़ा का मुहाना 100 मी. चौड़ा है। परंतु अंदर की ओर बढ़ने पर यह संकीर्ण होता जाता है। गुफ़ा अपने अन्दर काफ़ी सारे प्राकृतिक सौंदर्य दृश्य समेटे हुए है।

गुफ़ा का मुहाना काफ़ी बड़ा है। यह 20 फीट चौड़ा और 22 फीट ऊँचा है। गुफ़ा के मुहाने पर शेषनाग की आकृति के दर्शन होते है। अमरनाथ गुफा के समान शिवखोड़ी गुफ़ा में भी कबूतर दिख जाते हैं। संकीर्ण रास्ते से होकर यात्री गुफ़ा के मुख्य भाग में पहुँचते हैं। गुफा के मुख्य स्थान पर भगवान शंकर का 4 फीट ऊँचा शिवलिंग है। इसके ठीक ऊपर गाय के चार थन बने हुए हैं, जिन्हें कामधेनु के थन कहा जाता है। इनमें से निरंतर जल गिरता रहता है।

शिवलिंग के बाईं ओर माता पार्वती की आकृति है। यह आकृति ध्यान की मुद्रा में है। माता पार्वती की मूर्ति के साथ ही में गौरी कुण्ड है, जो हमेशा पवित्र जल से भरा रहता है। शिवलिंग के बाईं ओर ही भगवान कार्तिकेय की आकृति भी साफ़ दिखाई देती है। कार्तिकेय की प्रतिमा के ऊपर भगवान गणेश की पंचमुखी आकृति है। शिवलिंग के पास ही में राम दरबार है। गुफ़ा के अन्दर ही हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आकृति बनी हुई है। गुफ़ा के ऊपर की ओर छहमुखी शेषनाग, त्रिशूल आदि की आकृति साफ़ दिखाई देती है। साथ-ही-साथ सुदर्शन चक्र की गोल आकृति भी स्‍पष्‍ट दिखाई देती है। गुफ़ा के दूसरे हिस्से में महालक्ष्मी, महाकाली, सरस्वती के पिण्डी रूप में दर्शन होते हैं।

सावधानियाँ

रनसू से शिवखोड़ी जाते समय यात्रियों को रेनकोट, टॉर्च आदि अपने पास रखने चाहिए। ये चीज़ें यहाँ किराए पर भी मिल जाती हैं। श्रद्धालु यहाँ से जब शिवखोड़ी के लिए आगे बढ़ते हैं, तो रास्ते में एक नदी पड़ती है। नदी का जल दूध जैसा सफेद होने की वजह से इसे दूध गंगा भी कहते हैं। शिवखोड़ी स्थान पर पहुँचते ही सामने एक गुफ़ा दिखाई देती है। गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए लगभग 60 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। गुफ़ा में प्रवेश करते ही लोगों के मुख से अनायास 'जय हो बाबा भोलेनाथ'-यह उद्घोष निकलता है।

पौराणिक कथाएँ

भस्मासुर की कथा

इस गुफ़ा के संबंध में अनेक कथाएं प्रसिद्ध हैं। इन कथाओं में भस्मासुर से संबंधित कथा सबसे अधिक प्रचलित है। भस्मासुर असुर जाति का था। उसने भगवान शंकर की घोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्‍न होकर भगवान शंकर ने उसे वरदान दिया था कि वह जिस व्यक्ति के सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्‍म हो जाएगा। वरदान प्राप्ति के बाद वह ऋषि-मुनियों पर अत्याचार करने लगा। उसका अत्याचार इतना बढ़ गया था कि देवता भी उससे डरने लगे थे। देवता उसे मारने का उपाय ढूँढ़ने लगे। इसी उपाय के अंतर्गत नारद मुनि ने उसे देवी पार्वती का अपहरण करने के लिए प्रेरित किया। नारद मुनि ने भस्मासुर से कहा, वह तो अति बलवान है। इसलिए उसके पास तो पार्वती जैसी सुन्दरी होनी चाहिए, जो कि अति सुन्दर है। भस्मासुर के मन में लालच आ गया और वह पार्वती को पाने की इच्छा से भगवान शंकर के पीछे भागा। शंकर ने उसे अपने पीछे आता देखा तो वह पार्वती और नंदी को साथ में लेकर भागे और फिर शिवखोड़ी के पास आकर रूक गए। यहाँ भस्मासुर और भगवान शंकर के बीच में युद्ध प्रारंभ हो गया। यहाँ पर युद्ध होने के कारण ही इस स्थान का नाम रनसू पड़ा। रन का मतलब 'युद्ध' और सू का मतलब 'भूमि' होता है। इसी कारण इस स्थान को 'रनसू' कहा जाता है। रनसू शिवखोड़ी यात्रा का बेस कैम्प है। अपने ही दिए हुए वरदान के कारण वह उसे नहीं मार सकते थे। भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल से शिवखोड़ी का निमार्ण किया। शंकर भगवान ने माता पार्वती के साथ गुफ़ा में प्रवेश किया और योग साधना में बैठ गये। इसके बाद भगवान विष्णु ने पार्वती का रूप धारण किया और भस्मासुर के साथ नृत्य करने लगे। नृत्य के दौरान ही उन्होंने अपने सिर पर हाथ रखा, उसी प्रकार भस्मासुर ने भी अपने सिर पर हाथ रखा, जिस कारण वह भस्म हो गया। इसके पश्चात भगवान विष्णु ने कामधेनु की मदद से गुफा के अन्दर प्रवेश किया फिर सभी देवी-देवताओं ने वहाँ भगवान शंकर की अराधना की। इसी समय भगवान शंकर ने कहा कि आज से यह स्थान 'शिवखोड़ी' के नाम से जाना जायेगा।

प्रमुख त्योहार

महाशिवरात्रि का पावन पर्व, जो कि भगवान शिव को समर्पित है, शिवखोडी में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हर वर्ष यहाँ पर तीन दिन के मेले का आयोजन किया जाता है। कुछ वर्षो से यहाँ पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में काफ़ी वृद्धि हुई है। अलग-अलग राज्यों से आकर श्रद्धालु यहाँ पर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। शिवरात्रि का त्योहार फरवरी के अन्तिम सप्ताह या मार्च के प्रथम सप्ताह में मनाया जाता है।

श्राइन बोर्ड द्वारा किये गये कार्य

शिव रात्रि मेले में तीर्थ यात्रियो की संख्या में वृद्धि को देखते हुए यहां पर एक श्राइन बोर्ड का गठन किया गया है। श्राइन बोर्ड द्वारा यहां पर तीथयात्रियों के लिए के विशेष प्रबंध किये गए हैं। पैदल यात्रा के दौरान यात्रियों को कोई परशानी न हो इसके लिए जगह-जगह पीने के पानी की व्यवस्था की गई है। यात्रियों के विश्राम के लिए रास्ते मे जगह-जगह पर विश्राम स्थल बनाएं गए है। पैदल यात्रा को सुगम और आरामदायक बनाने के लिए 3 कि. मी. के पैदल मार्ग में टाइल लगाया गया है।

रनसू गांव बस यात्रा का अन्तिम पड़ाव है। इसके बाद यहां से 3 कि. मी. की पैदल यात्रा प्रारंम्भ हो जाती है। रनसू में यात्रियो के ठहरने की उचित व्यवस्था है। श्राइन बोर्ड ने यहां पर स्वास्थ्य संबंधी सेवाये मुहैया कराई है। रनसू में यात्रियों के लिए घोड़े व पालकी की व्यवस्था भी हैं। श्राइन बोर्ड द्वारा गुफा के अन्दर रोशनी का प्रबंध किया गया है। गुफा के बाहर यात्रियो के लिए शौचालय, पीने के पानी आदि का भी उचित प्रबंध किया गया है। बारिश से बचाव के लिए यात्रा मार्ग में जगह-जगह पर टिन सेड लगाये गये हैं। रोशनी के लिए पूरे मार्ग में लैम्प लगाये गये हैं। जनरेटर आदि की व्यवस्था भी की गई है। यात्रियो के सामान रखने के लिए क्‍लॉक रूम बनाये गए हैं। रनसू गांव कटरा, जम्मू, उघमपुर से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। जम्मू-कश्‍मीर टूरिजम विभाग द्वारा यहां तक आने के लिए बस सर्विस भी मुहैया करायी जाती हैं।


रनसू गांव, रयसी-राजौरी रोड़ पर स्थित है। रनसू गांव शिव खोड़ी का बेस कैम्प है। यह वैष्णो देवी कटरा से भी सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। वैष्णो देवी के लिए लगभग सभी राज्यों से बस सेवा है। आप यहां से 80 कि.मी. की दूरी तय कर शिव खोड़ी तक पहुंच सकते है। कटरा तक जाने के लिए काफी बसें उपलब्ध है। जम्मू -कश्मीर टूरिज्‍म विभाग द्वारा भी शिव खोड़ी धाम के लिए बस सुविधा मुहैया कराई जाती है। टैक्सी और हल्के वाहनो द्वारा भी यहां तक पहुंचा जा सकता है। कटरा उधमपुर और जम्मू से यात्री बस, कार, टैम्पू और वैन द्वारा शिव खोड़ी तक पहुंच सकते हैं।

ठहरने की व्यवस्था

श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि को देखते हुए जम्मू-कश्मीर टूरिज्‍म विभाग द्वारा यात्री निवास की व्यवस्था की गई है। ये यात्री निवास रनसू गांव में है। रनसू शिव खोड़ी का बेस कैम्प है। यहां पर काफी संख्या में निजी होटल भी हैं। यहां पर आपको सभी सुविधाये मिल जायेगी।
(साभार भारत डिस्कवरी) 

 शिवखोड़ी पहुचने में हमें करीब २- ढाई घंटे लगते हैं. अपनी गाड़ी को पार्क करके, और खाने का ऑर्डर देकर के, जी हाँ खाने का, यंहा पर खाने का आर्डर पहले देकर के ऊपर चढाई शुरू करनी पड़ती हैं. जितने लोग होते हैं. उतना ही वे लोग खाना बनाते हैं. यंहा का राजमा, चावल, और देशी घी कि रोटी मशहूर हैं. और खाना बहुत ही स्वादिष्ट बनता हैं. 



महादेव कि गुफा का मुख्य द्वार (चित्र साभार  : भारत डिस्कवरी)

करीब पांच किलोमीटर कि चढाई चढ़ने के बाद हम लोग गुफा तक पहुँच जाते हैं. अंदर दर्शन करने जाने के लिए मोबाइल, कैमरा, चमड़े का सामान सब बाहर रख कर जाना पड़ता हैं. यंहा पर एक समस्या और हैं. कोई भी क्लोक रूम आदि नहीं हैं. कुछ लोग को बाहर छोड़कर सामान उनके हवाले कर के जाना पड़ता हैं. 

शिवलिंगम (साभार : लाइवइंडिया.कॉम)

गुफा में भी CRPF सुरक्षा हैं. पहले केवल एक ही गुफा हुआ करती थी. पर जाने और आने के लिए अब अलग अलग हैं. बरसात होने के कारण गुफा के अंदर भी पानी भरा हुआ था. बच्चो को गोदी में लेकर निकलना पड़ा. और एक स्थान पर तो करीब साढ़े चार फीट पानी था. मुख्य मंडप में पहुंचकर भोले नाथ के दर्शन करके हम लोग दूसरी और से बाहर निकल आते हैं. 
गुफा का चित्र दूर से 

शिव खोडी कि पैदल चढाई 
ये चित्र मेरी अलग यात्राओं के हैं. और काफी पुराने हैं. एक बार पैदल यात्रा करते हुए और एक बार तबियत खराब होने के कारण घोड़े पर. जिसमे मैं घोड़े से गिर भी पड़ा था और बहुत चोट आयी थी. 

बच्चो के साथ गुफा के सामने 

दूध गंगा 
शिव खोडी कि गुफा के पास से ही दूध गंगा कि पवित्र धारा निकलती हैं. मैं घोड़े सहित इस कि धारा में गिर गया था. उस समय पुल नहीं बना था. और इसकी अंदर से होकर जाना पड़ता था. बारिश के कारण बहाव बहुत तेज था. 

घोड़े पर बच्चो के साथ. 

इसी घोड़े ने मुझे पटक दिया था. 

इशांक बाबू गुफा के बाहर 

गुडिया का स्टाइल 

थोड़ी देर के लिए धूप निकल गयी

सनी, तरु अब दोनों इंजिनियर हैं, साथ में संजय भाई 

संदीप जाट बच्चो के साथ

जी हाँ हमारे चरथावल में भी हमारे एक दोस्त हैं जिनका नाम संदीप हैं, प्यार से हम लोग उन्हें बचपन से ही संदीप जाट बोलते हैं. 

सामान आदि रखने के लिए शेड 

शिव खोडी में साधू बाबा 

सभी लोग एक साथ बैठ कर खाना खाते हुए 

सपरिवार भोजन का आनंद 

शिव खोड़ी में वह होटल जंहा हमने खाना खाया था 

धान के खेत 
यंहा का धान और राजमा बहुत मशहूर हैं. दूर तक फैली हुई घाटी में धान और राजमा की फसल होती हैं. 

खेतों में खड़े हुए नाक साफ़ करते हुए ये कौन 
मेरी तबियत बहुत बुरी तरह से खराब थी बस किसी तरह से खड़ा हो पा रहा था मै. 

धान के खेत में बच्चे 

दोनों भाई बहन

भोले बाबा के दर्शन करके, नीचे रन्सू में आकर के भोजन करके तृप्त हुए और जम्मू की और चल दिए. बारिश और आंधी तूफ़ान बहुत तेज था. पहाड़ के एक मोड पर हमारी बस कि टक्कर एक ट्रेक्टर ट्राली से हो गयी. वह टक्कर लगते ही पलट गयी. बस पीछे की  और खिसकने लगी. पीछे सैकड़ों फीट गहरी खाई थी. चालक ने किसी तरह से बस को सम्भाला. हम लोगो कि सांस में सांस  आयी. सकुशल जम्मू पहुंचकर ही शान्ति मिली. ये तो भोले बाबा कि कृपा थी जो हम लोग सकुशल लौट गए. रात को जम्मू रूककर, अगले दिन जम्मू घूमकर हम लोग मुज़फ्फरनगर लौट गए. जम्मू के बारे में मैं अपनी पिछली पोस्ट में वर्णन कर चुका हूँ. 

जय माता की , वन्देमातरम.

Monday, April 15, 2013

माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग - ७ ( जम्मू - JAMMU - २)

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  1. माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -१ ( मुज़फ्फरनगर से कटरा )
  2. माता वैष्णोदेवी की यात्रा भाग -२ (बान गंगा से चरण पादुका)
  3. माता वैष्णोदेवी की यात्रा भाग -३ (चरण पादुका से माता का भवन)
  4. माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग - ४ (माता का भवन और भैरो घाटी)
  5. माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -५ (धनसर बाबा, झज्जर कोटली, कौल कंडोली)
  6. माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग ६ (जम्मू - JAMMU -1)

सुबह ही सुबह उठकर मैं घूमने के लिए चला गया, जो की एक आदत हैं. एक आदत और हैं, जहां भी जाता हूँ वंहा के समाचार पत्र नित्य खरीदता हूँ. और वंहा के बारे में बड़े चाव से पढता हूँ. बाहर जाकर वंहा की संस्कृति और वंहा के बारे में जानने की उत्कंठा रहती हैं. और लोकल के समाचार पत्र इस बारे एक अच्छा माध्यम होते हैं. मैं वह समाचार पत्र फेंकता नहीं हूँ. उन्हें अपने साथ एकत्रित करके लाता हूँ. और उनका संग्रह करता हूँ.

नहा धोकर, पहले रघुनाथ मंदिर के सामने होटल में नाश्ता करते हैं. फिर बाकी बची हुई जगह घूमने के लिए निकल पड़ते हैं. आज का हमारा कार्यक्रम रघुनाथ मंदिर के आसपास ही घूमने का तथा प्रसाद आदि की खरीदारी का था. सबसे पहले हम लोग रघुनाथ मंदिर में प्रवेश  कर जाते हैं. रघुनाथ मंदिर में प्रवेश करने से पहले ये ध्यान रखना चाहिए कि हमारे पास कोई कैमरा, मोबाइल, हैंड बैग आदि नहीं होना चाहिए. द्वार पर तलाशी के दौरान ये सभी सामान बाहर छोडना पड़ता हैं.

रघुनाथ मंदिर 

रघुनाथ मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू शहर के मध्य में स्थित है। यह मंदिर जम्मू कि पहचान हैं. यह मन्दिर आकर्षक कलात्मकता का विशिष्ट उदाहरण है। रघुनाथ मंदिर भगवान राम को समर्पित है। यह मंदिर उत्तर भारत के सबसे प्रमुख एवं अनोखे मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को सन् 1835 में इसे महाराज गुलाब सिंह ने बनवाना शुरू किया पर निर्माण की समाप्ति राजा रणजीत सिंह के काल में हुई। मंदिर के भीतर की दीवारों पर तीन तरफ से सोने की परत चढ़ी हुई है।

इसके अलावा मंदिर के चारों ओर कई मंदिर स्थित है जिनका सम्बन्ध रामायण काल के देवी-देवताओं से हैं। रघुनाथ मन्दिर में की गई नक़्क़ाशी को देख कर पर्यटक एक अद्भुत सम्मोहन में बंध कर मन्त्र-मुग्ध से हो जाते हैं।यह कहा जाता हैं कि मंदिर में तैंतीस करोड देवी देवताओं कि स्थापना हैं.  मंदिर का मैं केवल बाहर से ही चित्र दे पा रहा हूँ. अंदर के फोटो लेना वर्जित हैं.(साभार : भारत डिस्कवरी)


जम्मू की शान रघुनाथ मंदिर


सोने से मढ़ा हुआ मंदिर

इस मंदिर के शिखर, और दीवारे सोने से मढ़ी हुई हैं. कई क्विंटल सोना इसमें लगा हुआ हैं.

मंदिर का एक और दृश्य
रघुनाथ बाज़ार 

रघुनाथ मंदिर से लगा हुआ रघुनाथ बाज़ार हैं. इसमें खाने पीने कि दुकाने, प्रसाद की दुकाने, गर्म कपड़ो की दुकाने आदि स्थित हैं वैसे तो कई दुकाने मशहूर हैं पर मैं नीचे कुछ दुकानों के नाम दे रहा हूँ. जिसमे हमारा अनुभव हैं की आपको वाजिब रेट पर  सामान मिल सकता हैं.

१. बनिया सुपर मार्केट

यह शो रूम जम्मू के सबसे बड़े शो रूम में एक हैं. यंहा पर आप एक छत के नीचे प्रसाद, गर्म कपडे, आम पापड आदि खरीद सकते हैं. इसके अलावा इसके मालिक लाला मदन लाल अगरवाल, विभिन्न प्रकार के रोगों के लिए आयुर्वेद दवाए भी बिलकुल मुफ्त उपलब्ध कराते हैं.

२. मुग़ल कश्मीर एम्पोरियम

यंहा पर सभी प्रकार के गर्म कपडे, बर्फानी, शाल आदि खरीद सकते है. इसके मालिक अनिल गुप्ता जी बड़े ही मिलनसार व नेकदिल इंसान हैं.

३. पंडित चुन्नी लाल अमरनाथ.

इनके यंहा से बादाम, अखरोट, सूखे मेवे, आम पापड़ आदि प्रसाद का सामान ले सकते हैं. इनके यंहा का अखरोट और बादाम मशहूर हैं.


रघुनाथ बाज़ार

पैसो वाला मंदिर 

रघुनाथ मंदिर से थोड़ी दूर पर एक मंदिर पड़ता हैं जो की पैसो वाला मंदिर के नाम से मशहूर हैं.  ये कहा जाता हैं की अंग्रेजो के समय में इस मंदिर का निर्माण हुआ था. जो सेठ इस मंदिर का निर्माण करा रहे थे वे परम देश भक्त थे. उस समय के चांदी के सिक्को पर इंग्लैंड के राजाओं और महारानियो के चित्र होते थे. उन्हें अपमानित करने के उद्देश्य से उस सेठ ने मंदिर के फर्श में उन चांदी के सिक्को को जड़वाया था. 

पैसे वाला मंदिर


सैकड़ों साल पुराना पेड़


चांदी का शिव लिंगम और फर्श में जड़े हुए चांदी के सिक्के


जय माता की

जय माँ काली

गणपति बाप्पा मोरया



 रणवीरेश्वर मंदिर 

रणबीरश्‍वर मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू शहर में शालीमार मार्ग पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1883 ई. में महाराजा रणबीर सिंह ने करवाया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर के मध्य में स्थित शिवलिंग साढ़े सात फीट ऊंची है। अन्य बारह पारदर्शी शिवलिंग 15 से 38 सेमी ऊंचाई का है। इसके अलावा मंदिर के दीर्घा में एक हज़ार शिवलिंग स्‍थापित है जो पत्थर से बने हुए है। इस मंदिर के अंदर भी फोटो खिचने की अनुमति नहीं हैं. ये  कुछ फोटो भी बाहर से लिए थे. (साभार : भारत डिस्कवरी)


रन वीरेश्वर मंदिर

रण वीरेश्वर मंदिर का मुख्य द्वार साइड से 



मंदिर का मुख्य द्वार

राजा रणवीर सिंह की मूर्ती मंदिर के बिलकुल सामने 

हर की पौड़ी 

रण वीरेश्वर मंदिर के बाद हम लोग हर की पौड़ी, जी हाँ, हर की पौड़ी. जम्मू में भी हर की पौड़ी हैं. दरअसल तवी नदी के किनारे यह एक मंदिरों का समूह, और घाट हैं. यंहा पर नदी के किनारे स्नान आदि की सुविधा हैं. और नहा-धोकर पवित्र मंदिरों के दर्शन कर सकते हैं. यंहा पर भी फोटो खींचने की मनाही हैं. कुछ फोटो मैंने बाहर से लिए थे. यह मंदिर समूह एक पहाड़ी की तलहटी में स्थित हैं. यंहा से बाहू का किला भी दिखाई देता हैं. 


मंदिरों का विशाल समूह 

पीछे तवी नदी और बराबर में मंदिर 

सुन्दर विशालकाय मुर्तिया 
दिन भर में जम्मू भ्रमण करने के बाद, अपना सामान पैक करके हम लोग रेलवे स्टेशन की और निकल पड़ते हैं. रात नो बजे हमारी ट्रेन शालीमार एक्सप्रेस मुज़फ्फरनगर के लिए थी. हम लोग ठीक आठ बजे स्टेशन पर आ जाते हैं. और देवी मैय्या से फिर आने का वादा करके ट्रेन में सवार हो जाते हैं. जय माता की...

जम्मू लोह्पथ स्थानक

मित्रों अगली कड़ी में मैंने अपनी शिवखोड़ी की यात्रा के बारे में वर्णन किया हैं.  जहा पर मैं पहले कई बार गया हूँ. उस यात्रा को भी मैंने इसी श्रंखला से जोड़ दिया हैं, जिससे एक पूर्णता का अहसास हो. जिसके बारे में आप   माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग - ८ (शिवखोड़ी - SHIV KHODI)  पढ़ सकते हो.