Sunday, August 23, 2020

MYSURU TRAVELL - 11 - MYSURU PALACE IN EVENING

MYSURU TRAVELL - 11  - MYSURU PALACE IN EVENING

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिए क्लिक करे (MYSURU TRAVELL - 1 - DELHI TO MYSURU & INFOSYS CAMPUS)

इससे पहले का यात्रा वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे (MYSURU TRAVELL - 10 - RANGNATHSWAMI TEMPLE

आज मैसूर में मेरा आखिरी दिन था. शाम हो चुकी थी आसमान में बादल छाये थे. बिजली कड़क रही थी. मौसम बहुत अच्छा हो चुका था. सोचा एक बार फिर से महल की और घूम लू. शाम के समय में बादलो के बीच फोटोग्राफी का अलग ही आनंद आता हैं. पहले बस अड्डे के पास स्थित सरकारी जूस स्टाल पर अंगूरों का जूस पिया. मात्र २० रूपये का गिलास मिलता हैं. फिर महल पर आ गया. फिर से वही फोटो ज्यादा बाते कम...

सिटी पैलेस - मैसूर पैलेस - MYSURU

महल के बाहर मंदिर 

शाम का धुंधलका और महल का गेट 




महल के दोनों द्वारों का फोटो बाहर से 

मेरा रेस्टोरेंट जंहा नित्य मेरा खाना व नाश्ता हुआ 

मैसूर में सडको के बीच में इस तरह के डीवाईडर हैं 

कल मुझे सुबह ही बेंगलुरु के लिए निकलना था. मन उदास था. इतने प्यारे इतने सुन्दर नगर को छोड़कर जाने का मन नहीं था. पर इससे  क्या होना था. जाना तो था ही. सुबह उठकर आठ बजे ISBT पहुंचकर बेंगलुरु की बस में सवार हो गया. मेरी ट्रेन रात आठ बजे दिल्ली के लिए थी राजधानी एक्सप्रेस में बुकिंग थी. सोचा था की जल्दी बेंगलुरु पहुंचकर एक दो स्थान घूम लूँगा. जैसे की इसकोन  टेम्पल  आदि. एक बजे के करीब में बेंगलुरु पहुँच गया. मैसूर रोड बस स्टैंड पर उतरने के बाद मैंने इस्कॉन के लिए मेट्रो पकड़ी. पर मंदिर पर पहुँच कर पता चला की शाम पांच बजे खुलेगा. मैं दुखी मन से वापिस रेलवे स्टेशन आ गया. बेंगलुरु का घूमना फिर कभी सही.  धन्यवाद आप सभी का बहुत बहुत.....नमस्कार....

MYSURU TRAVELL - 10 - RANGNATHSWAMI TEMPLE

MYSURU TRAVELL - 10  - RANGNATHSWAMI TEMPLE

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिए क्लिक करे(MYSURU TRAVELL - 1 - DELHI TO MYSURU & INFOSYS CAMPUS)

इससे पहले का यात्रा वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे(MYSURU TRAVELL - 9 - NANJANGUD)

नंजन गुड़ से आने के बाद मुझे श्रीरंगपट्टन जाना था. रंगनाथ स्वामी जी के दर्शन करने थे. ISBT से मुझे बेंगलुरु जाने वाली बस मिल गयी. उसने मुझे श्रीरंगपट्टन उतार दिया. बस स्टैंड से मंदिर करीब एक किलोमीटर पड़ता हैं. मैं पूछता हुआ किले के गेट से होता हुआ मंदिर पर पहुँच गया. 

श्रीरंगपट्टण भारतीय के कर्नाटक राज्य के मांडया जिला में स्थित एक नगर है। यह मैसूरु के पास स्थित है।हालाँकि यह मैसूर शहर से मात्र 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, श्रीरंगपट्टण मांडयाा जिले में है। इस पूरे शहर पर कावेरी नदी छाई हुई है जिससे यह एक नदी का टापू बनता है। जहाँ मुख्य नदी टापू की पूर्वी दिशा में बह्ती है, इस नदी की पश्चिम वाहिनी पश्चिम की ओर बहती है। इस शहर को बंगलोर और मैसूर से ट्रेन से पहुँचा जा सकता है। इसके सड़क यातायात से भी जोड़ दिया गया है। यहाँ के राजमार्ग के सम्बंध में स्मार्कों को होने हानिकारक प्रभावों को कम से कम करने के प्रयास किए गए।

यह शहर अपना नाम प्रसिद्ध श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर के नाम से लेता है जो इस शहर पर छाया हुआ है। इससे श्रीरंगपट्टण दक्षिण भारत का एक प्रमुख वैष्णव तीर्थस्थल बनता। इस मन्दिर का निर्माण पश्चिमी गंग वंश ने इस क्षेत्र में नौवीं शताब्दी में किया था। इस ढाँचे को तीन सदियों के पश्चात मज़बूत और बहतर बनाया गया था। इस मन्दिर की निर्माण कला होयसल राजवंश और विजयनगर साम्राज्य की हिन्दू मंदिर स्थापत्य का मिश्रण है।(विकिपीडिया)

पट्टन के किले का मुख्य द्वार 
श्री रंग पट्टन में एक किले के अवशेष भी हैं. उसी  का मुख्य द्वार हैं ये.

ASI का बोर्ड 

भगवान विष्णु को समर्पित, रंगनाथस्वामी मंदिर शहर की परिधि में स्थित श्रीरंगपटना के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। वास्तव में, इस शहर का नाम भी इसी मंदिर के नाम पर पड़ा है। पीठासीन देवता की पूजा भगवान रंगनाथ के रूप में की जाती है। देवता की मूर्ति को नाग अनादि शेष के बिस्तर पर आराम करते हुए दर्शाया गया है, जिनके सात सिर हैं तथा उन्हें हमेशा भगवान विष्णु के साथी के रूप में चित्रित किया जाता है। माना जाता है कि यह मंदिर भगवान की आठ स्वयंभू मूर्तियों में से एक है। देश के सबसे बड़े मंदिरों में से एक, यह मंदिर 156 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें सात से अधिक बाड़ें व 21 भव्य टॉवर स्थित हैं। यह कोलरून और कावेरी नदियों द्वारा बनाये गये द्वीप पर स्थित है। इस मंदिर में दिसंबर और जनवरी में आयोजित 21-दिवसीय वार्षिक उत्सव के दौरान विशाल संख्या में लोग आते हैं। 

संगम काल के दौरान, 10वीं शताब्दी ईस्वी में मंदिर और महाकाव्य सिलपदिकाराम की दीवारों पर शिलालेख के तमिल साहित्य में भी इसका उल्लेख मिलता है।(साभार: INCREDIBLE INDIA)


श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर - श्री रंग पट्टन - MYSURU

मंदिर का भव्य गोपुरम 


मंदिर के अन्दर 

दक्षिण के मंदिरों में मंदिर का द्वार यानि गोपुरम बाकी के मंदिर से ज्यादा विशाल व भव्य होता हैं. फोटो लेने की अनुमति यंहा भी नहीं थी. पता नहीं क्यों ये रोक हमारे सभी मंदिरों, महलो व किलो में होती हैं. फोटो से तो और प्रचार होता हैं. जबकि  इनके फोटो नेट पर आसानी से उपलब्ध हैं. यंहा पर भी केवल बाहर से ही फोटो ले पाया अन्दर से नहीं 

खुबसूरत मंदिर 
दोपहर का समय था. सूरज सर पर था. गर्मी बहुत थी. मंदिर से बाहर  आते ही मैसूर के लिए बस मिल गयी.  

खुबसूरत चौराहा 

मैसूर के चौराहे बहुत अच्छी तरह से संरक्षित है. इस चौराहे के पीछे लोकल बस अड्डा दिखाई दे रहा हैं. इसके पास ही सिटी पैलेस हैं.

घंटाघर देवराजा  मार्किट 
इस घंटाघर के चारो और देवराजा मार्किट हैं जोकि मैसूर में खरीदारी  का सबसे प्रमुख स्थान हैं. आसपास हलवाई की  दुकाने भी हैं जिन पर मैसूर की मशहूर मिठाई मैसूर पाक मिलता हैं. बहुत ही स्वादिस्ट मिठाई होती हैं ये. मुह में रखते ही घुल जाती हैं. मैंने भी एक किलो खरीदी.  आज मैसूर में मेरा अंतिम दिन था. कल  बेंगलुरु के लिए निकलना था. इससे आगे का वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे...(MYSURU TRAVELL - 11 - MYSURU PALACE IN EVENING

MYSURU TRAVELL - 9 - NANJANGUD

MYSURU TRAVELL -  9  - NANJANGUD

इस यात्रा को आरम्भ से पढने के लिए क्लिक करे(MYSURU TRAVELL - 1 - DELHI TO MYSURU & INFOSYS CAMPUS)

इससे पहले के यात्रा वृत्तान्त को पढने के लिए क्लिक करे(MYSURU TRAVELL - 8 - TIPUSULTAN TOMB & VRINDAVAN GARDEN)

आज दिनांक 08/05/2019 को मुझे दो स्थानों की यात्रा करनी थी. सबसे पहले दक्षिण की काशी कही जाने वाली नंजनगुड़  की यात्रा करनी थी उसके बाद श्री रंग पट्टन जाना था रंगनाथ स्वामी  के दर्शन के लिए. नंजन गुड़  जाने के लिए मुझे ISBT से बस पकडनी थी. यह नगर ऊटी जाने वाले मुख्य हाईवे पर २६  किलोमीटर दूर पड़ता हैं. रास्ते में कावेरी नदी का चौड़ा पाट भी पड़ता हैं. ISBT  पहुंचकर मैंने ऊटी जाने वाली बस पकड़ी. बस ने मुझे करीब ३० मिनट में पहुंचा दिया. मंदिर दूर हाईवे से ही दिखने लगता हैं. हाईवे पर उतरकर मुश्किल से ४०० कदम चलने के बाद मंदिर आ जाता हैं. 

दैनिक भास्कर  से - दक्षिण का शिवालय:मैसूर के नंजनगुड में है करीब एक हजार साल पुराना श्रीकांतेश्वर मंदिर, सात मंजिला है इसका मुख्य द्वार

माना जाता है इस शिवलिंग की स्थापना गौतम ऋषि ने की, 108 शिवलिंग बने हैं इस मंदिर में. कर्नाटक की तीर्थनगरी नंजनगुड में भगवान शिव का बहुत पुराना मंदिर है। नंजनगुड प्राचीन तीर्थनगर है। जो कि कर्नाटक में मैसूर से 26 किलोमीटर दक्षिण में है। ये तीर्थ कावेरी की सहायक नदी काबिनी के तट पर है। नंजनगुड नगर 10वीं और 11वीं शताब्दी में गंग तथा चोल वंश के समय से ही प्रसिद्ध है। यहां भोलेनाथ की पूजा श्रीकांतेश्वर नाम से होती है।


भगवान शिव के इस खूबसूरत मंदिर को नंजनगुड मंदिर और श्रीकांतेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह द्रविड़ शैली में बना है और 147 स्तम्भों पर खड़ा है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव का वास था। यह मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। बाहर भगवान शिव की बहुत बड़ी मूर्ति है। यहां पर स्थापित शिवलिंग के विषय में यह माना जाता है कि इसकी स्थापना गौतम ऋषि ने की थी। गेहुएं रंग के पत्थर से बने इस मंदिर के गोपुरम और बहुत बड़ी चारदीवारी के ऊपर की गई शिल्पकारी में गणेशजी के अलग-अलग युद्धों की झलकियां हैं। इसकी शिल्पकारी देखने लायक है।

सात मंजिला है मुख्यद्वार
इस मंदिर में गणेशजी, शिवजी और पार्वतीजी के अलग-अलग गर्भगृह हैं। बड़े अहाते में एक किनारे पर 108 शिवलिंग हैं। इस बहुत बड़े मंदिर में एक जगह ऐसी भी है, जहां ऊंची छत से सुबह सूर्य की पहली किरण आती है। यह मंदिर करीब 50 हजार वर्ग फीट में फैला हुआ है। मंदिर का मुख्यद्वार लोगों को बहुत ही पसंद आता है। इसे महाद्वार के नाम से जाना जाता है। 7 मंजिला इस दरवाजे में सोने से मढ़वाए हुए 7 कलश हैं। इन कलश की ऊंचाई करीब तीन मीटर है।

रथयात्रा है खास
​​​​​​​स्थानीय लोगों का यह मानना है कि इस मंदिर के दर्शन से भक्तों के दुख खत्म होते हैं। यहां साल में दो बार रथोत्सव मनाया जाता है। इसे दौड़ जात्रे भी कहा जाता है। इस जात्रा में भगवान गणेश, श्री कांतेश्वर, सुब्रमन्य, चंद्रकेश्वर और देवी पार्वती की मूर्तियों को अलग-अलग रथों में स्थापित कर पूजा अर्चना कर रथोत्सव की शुरुआात होती है। इस महोत्सव को देखने के लिए हजारों की भीड़ में लोग इकट्‌ठे होते हैं।(साभार: दैनिक भास्कर)

मंदिर दूर से ही मन मोहने लगता हैं. बहुत ही सुन्दर और विशाल मंदिर हैं ये. प्राचीन द्रविड़ शैली में बना हुआ हैं. मंदिर के अन्दर गर्भ गृह में फोटो लेने की अनुमति नहीं हैं. बाकी मंदिर में ले सकते हैं. अन्दर ही प्रसाद का लड्डू मिलता हैं. और शीशियो में बंद पवित्र जल मिलता हैं. यंहा पर भगवान् शिव का विशाल लिंगम स्थापित हैं.

सुन्दर विशाल मंदिर - NANJANGUD - MYSURU 




नंदी जी मंदिर के अन्दर - NANJANGUD - MYSURU 

यज्ञ मंडप 



मंदिर का परिसर 

मंदिर का परिसर 

मंदिर गौपुरम 

एक और मंदिर 

एक और मंदिर 




मंदिर को दर्शाता शिला पट 
मंदिर का गलियारा 

मंदिर का पवित्र रथ 
दक्षिण के मंदिरों में एक विशाल रथ अवश्य होता हैं इन  रथो में सभी मंदिरों में सालाना रथ यात्रा निकलती हैं. इन रथो को भक्तजन अपने हाथो से खींचते हैं.

रथ  के सामने मै 






मंदिर के गौपुरम का शिखर 

मंदिर दूर से 

मंदिर के पास भगवान् शिव की विशाल मूर्ति 


मंदिर के चारो और छोटे छोटे मंदिर बने हुए हैं. छोटा सा कस्बा हैं. मंदिर के आसपास प्रसाद, आम पापड़ बेचने की दुकाने हैं. मंदिर के पास ही भगवान् शिव की विशाल मूर्ति स्थापित हैं. यंही पर पास में ही एक चायवाला व इडली वाला खडा हुआ था. एक प्लेट इडली खाई गयी व एक चाय सुड़की गयी. बाहर मेन रोड पर आते ही बस मिल गयी, खाली बस थी और मैसूर की और जा रही थी. मैसूर पहुंचकर मुझे श्रीरंग पट्टन की बस पकडनी थी. जल्दी ही मैसूर ISBT पहुँच गया.. इससे आगे का वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे.(MYSURU TRAVELL - 10 - RANGNATHSWAMI TEMPLE)