Sunday, August 2, 2020

A TRAVELL TO KHAJURAHO - खजुराहो की यात्रा - ५

A TRAVELL TO KHAJURAHO - खजुराहो की यात्रा - ५

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पश्चिम मंदिर समूह से निकलकर मैं मेन रोड पर आ गया. थोड़ा सा आगे चलकर छतरपुर   के भूतपूर्व राजाओं का महल नज़र आता है. यह महल स्मारक राजा प्रतापसिंह जूदेव  के नाम पर हैं. खजुराहो छतरपुर रियासत के राजाओं के अंतर्गत आता था. यह सड़क से थोड़ा हट कर है. बाहर से नज़र नहीं आता हैं. बाहर मार्किट बना हुआ हैं. छोटा सा गेट हैं. अन्दर जाकर खुला क्षेत्र हैं, और उसके बाद एक पुराना महल नज़र आता हैं. होली की छुट्टी होने के कारण महल बंद था. किसी व्यक्ति से पूछने पर उसने बताया कि अब यंहा पर कोई नहीं रहता बल्कि एक बच्चो के लिए विद्यालय चलता हैं. मैंने बाहर से एक दो  फोटो लिए और बाहर आ गया.

छतरपुर  के राजाओं का महल - KHAJURAHO

मेन गेट का दृश्य 
महल को देखने के बाद मैं मतंगेश्वर मंदिर की और आ गया. मंदिर में घुसते ही सबसे पहले हनुमान जी के दर्शन होते हैं. एक वृक्ष के नीचे हनुमान जी की मूर्ति स्थापित थी.

मतंगेश्वर महादेव मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति 

मतंगेश्वर महादेव मंदिर 

खजुराहो का सबसे ऊंचा मंदिर

खजुराहो के मंदिरों में पवित्रतम माना जाने वाले, इस मंदिर की वर्तमान में भी पूजा- अर्चना की जाती है। यह अलग बात है कि यह मंदिर इतिहास का भाग है, लेकिन यह आज भी हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है। लक्ष्मण मंदिर के पास ही, निर्मित यह मंदिर ३५' का वर्गाकार है। गर्भगृह भी चौरस है। इसका प्रवेश द्वार पूर्वी ओर है। यह मंदिर अधिक अलंकृत नहीं है। सादा- सा दिखाई देने वाले इस मंदिर का शिखर बहुमंजिला है। इसका निर्माणकाल ९५०- १००२ ई. सन् के बीच का है।। इस शिवलिंग को मृत्युंजय महादेव के नाम से जाना जाता है।


खजुराहो का सबसे उंचा मंदिर मतंगेश्वर महादेव मंदिर हैं. बहुत खुबसूरत, बहुत ही सुन्दर. हज़ारो साल पहले बना हुआ. 

पवित्र ज्योतिर्लिंग - नो फीट उंचा - KHAJURAHO

खजुराहों में मतंगेश्वर महादेव मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मंदिर में स्थित शिवलिंग 9 फीट जमीन के अंदर और उतना ही बाहर भी है। और ३'८ घेरे वाला है यही नहीं इसके अलावा मंदिर में मौजूद इस शिवलिंग की हर साल शरद पूर्णिमा के दिन एक इंच लंबाई बढ़ती है। इसे यहां के अधिकारी इंची टेप से नापते हैं। वहीं मंदिर के पुजारी के अनुसार प्रति वर्ष कार्तिक माह की शरद पूर्णिमा के दिन शिवलिंग की लंबाई एक तिल के आकार के बराबर बढ़ जाती है। शिवलिंग की लंबाई नापने के लिए पर्यटन विभाग के कर्मचारी बकायदा इंची टेप से नापते हैं। जहां शिवलिंग पहले से तुलना में लंबा मिलता है। मंदिर की विशेषता यह है की यह शिवलिंग जितना ऊपर है की तरफ बढ़ता है उतना ही नीचे की तरफ भी बढ़ता है। शिवलिंग का यह अद्भुत चमत्कार देखने के लिए लोगों का सैलाब मंदिर में उमड़ता है। वैसे तो यह मंदिर भक्तों से सालभर भरा रहता है लेकिन सावन माह में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। दर्शन करने के लिए लोग लंबी लाइनों में लगे रहते हैं।(साभार: पत्रिका)

शिवलिंगम 
लक्ष्मण मंदिर के पास स्थित यह मंदिर 35 फीट के वर्गाकार दायरे में है। इसका गर्भगृह भी वर्गाकार है। प्रवेश द्वार पूरब की ओर है। मंदिर का शिखर बहुमंजिला है। इसका निर्माण काल 900 से 925 ई के आसपास का माना जाता है। चंदेल शासक हर्षदेव के काल में इस मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर के गर्भगृह में विशाल शिवलिंग है जो 8.5 फीट ऊंचा है। इसका घेरा तकरीबन 4 फीट का है। इस शिवलिंग को मृत्युंजय महादेव के नाम से भी लोग जानते हैं।

छतरपुर जिले के खजुराहो में किसी समय 85 मंदिर होते थे, लेकिन अब सिर्फ कुछ ही मंदिर बचे हैं। पुरातत्व मंदिरों में मतंगेश्वर महादेव का ही एक ऐसा मंदिर है। मतंगेश्वर महादेव मंदिर 9वीं सदी में बना हुआ मंदिर है। आज यह मंदिर पूजा-पाठ व आस्था का केंद्र बना हुआ है। मतंगेश्वर महादेव मंदिर को खजुराहो में सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शंकर के पास मरकत मणि थी, जिसे शिव ने पांडवों के भाई युधिष्ठिर को दे दी थी। युधिष्ठिर के पास से वह मणि मतंग ऋषि पर पहुंची और उन्होंने राजा हर्षवर्मन को दे दी। मतंग ऋषि की मणि की वजह से ही इनका नाम मतंगेश्वर महादेव पड़ा, क्योंकि शिवलिंग के बीच मणि सुरक्षा की दृष्टि से जमीन में गाड़ दी गई थी। तब से मणि शिवलिंग के नीचे ही है।

त्रिरथ प्रकृति का यह मंदिर भद्र छज्जों वाला है। इसकी छत बहुमंजिली तथा पिरामिड आकार की है। इसकी कुर्सी इतनी ऊँची है कि अधिष्ठान तक आने के लिए अनेक सीढियां चढ़नी पड़ती है। मंदिर खार- पत्थर से बनाया गया है। भद्रों पर सुंदर रथिकाएँ हैं और उनके ऊपरी भाग पर उद्गम है। इसका कक्षासन्न भी बड़ा है। इसके अंदर देव प्रतिमाएँ भी कम संख्या में है।

गर्भगृह सभाकक्ष में वतायन छज्जों से युक्त है। इसका कक्ष वर्गाकार है। मध्य बंध अत्यंत सादा, मगर विशेष है। इसकी ऊँचाई को सादी पट्टियों से तीन भागों में बांटा गया है। स्तंभों का ऊपरी भाग कहीं- कहीं बेलबूटों से सजाया गया है। वितान भीतर से गोलाकार है। यह एक मात्र मंदिर है, जिसका आकार लगातार पूजा- अर्चना सदियों से चली आ रही है। अतः इस मंदिर का धार्मिक महत्व अक्षुण्ण है।(साभार:विकिपीडिया)

मतंगेश्वर मंदिर से बाहर का दृश्य 

मंदिर से बाहर का एक और दृश्य 



मंदिर के बहार मैं.

मतंगेश्वर मंदिर से दीखता लक्ष्मण मंदिर 
खजुराहो  मंदिर समूह का ये अकेला मंदिर हैं जिसमे पूजा होती हैं. इस मंदिर की बहुत ज्यादा मान्यता भी हैं. मंदिर से निकलकर मैं थोड़ी ही दूर स्थित संग्रहालय में आगया. इसमें बाहर से ही फोटो ली वो भी दूर से. वंहा पर फोटो लेना मना हैं. अन्दर भी और बाहर भी. अन्दर संग्रहालय में हज़ारो साल पुरानी शिल्पकारी,व मुर्तिया प्रदर्शित की गई हैं. जिससे खजुराहो के समृद्ध इतिहास का पता चलता हैं.

पुरातत्व संग्राहलय - KHAJURAHO
खजुराहो के विशाल मंदिरों को टेड़ी गर्दन से देखने के बाद तीन संग्रहालयों को देखा जा सकता है। वेस्टर्न ग्रुप के विपरीत स्थित भारतीय पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में मूर्तियों को अपनी आंख के स्तर पर देखा जा सकता है। पुरातत्व विभाग के इस संग्रहालय को चार विशाल गृहों में विभाजित किया गया है जिनमें शैव, वैष्णव, जैन और 100 से अधिक विभिन्न आकारों की मूर्तियां हैं। संग्रहालय में विशाल मूर्तियों के समूह को काम करते हुए दिखाया गया है। इसमें विष्णु की प्रतिमा को मुंह पर अंगुली रखे चुप रहने के भाव के साथ दिखाया गया है। संग्रहालय में चार पैरों वाले शिव की भी एक सुन्दर मूर्ति है। भारतीय पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में प्रवेश शुल्क 5 रूपये रखा गया है। वेस्टर्न ग्रुप के टिकट के साथ इस संग्रहालय में मुफ्त प्रवेश किया जा सकता है। सुबह दस से शाम साढे चार बजे तक यह संग्रहालय खुला रहता है। शुक्रवार को यह संग्रहालय बन्द रहता है।राज्य संग्रहालय में शुल्क के रूप में 20 रूपये लिए जाते हैं। यह दोपहर बारह बजे से शाम आठ बजे तक खुला रहता है। सोमवार और सार्वजनिक अवकाश वाले दिन यह बन्द रहता है।(साभार: विकिपीडिया)

संग्राहलय के सामने सड़क के पार ही बहुत बड़ी झील हैं. खजुराहो में मंदिरों के चारो और दो तीन झीले हैं. एक तरह से पत्थरो के बीच में नखलिस्तान. आने वाले टूरिस्ट इन झीलों में बोटिंग करते हैं. झील में दो तरफ नहाने के लिए स्नान घाट बने हुए हैं.

खजुराहो झील 
खजुराहो और उसके आसपास पानी की बहुत  कमी हैं. ये झीले और पानी के कुए ही इन क्षेत्रो में पानी की सप्लाई का एक साधन हैं.

KHAJURAHO LAKE
अब भूख भी बहुत जोरो से लगी थी मौर्य जी ने मुझे सेठ बद्री प्रसाद मारवाड़ी भोजनालय के बारे में बताया था. मैं लोगो से पूछता हुआ भोजनालय पर पहुँच गया. ये खजुराहो की शुरुआत में ही मेन रोड पर स्थित हैं. यंहा पर खाने की खुशबु से भूख और जोरो से लगने लगी. मैंने एक सादी थाली का आर्डर दिया. कीमत थी १००/- मात्र. थाली में एक अरहर दाल, एक आलू मटर की सब्जी, एक  वंहा की कोई लोकल सब्जी, दही, पापड, चावल, सलाद, एक कोई भी स्वीट दिश, जैसे आइस क्रीम या रसगुल्ला ले सकते हैं.

सेठ बद्री प्रसाद भोजनालय की स्वादिस्ट थाली 
खजुराहो में इससे स्वादिस्ट और बढ़िया भोजन मुझे नज़र नहीं आया. मैं जब तक खजुराहो में रहा इसी भोजनालय में भोजन किया. 

बद्री सेठ भोजनालय का मीनू 

बद्री सेठ भोजनालय का गेट 
खाना खाकर मन तृप्त था.  टहलते टहलते, कुछ वंहा की लोकल सडक पर भी फोटो खींचे.

खजुराहो में सड़क का दृश्य 

KHAJURAHO MAIN ROAD 

थक चुका था. थोड़ी देर विश्राम करने के लिए अपने योगी लोज में आ गया. २ घंटे पड़ कर सोया. फिर चाय आदि पीकर घुमने के लिए निकल पड़ा. इससे आगे का वृत्तान्त जानने के लिए क्लिक करिए(A TRAVELL TO KHAJURAHO - खजुराहो की यात्रा - ६)