SHEKHAWATI TRAVELL - SALASAR BALAJI - 4
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जीन माता के दर्शन के बाद हम लोग सालासर बालाजी के लिए चल पड़े. करीब ७५ किलोमीटर का रास्ता पड़ता हैं. हमें २ घंटे लगने थे. राजस्थान में वंहा की सरकार ने लोकल सडको पर भी टोल टेक्स लगा रखा हैं. यात्रियों को लुटने की कोई कसर बाकी नहीं हैं. रास्ते में गाडी का टायर बर्स्ट होने के कारण और ज्यादा समय लग गया. तीन बजे के करीब हम लोग सालासर बालाजी पहुंचे. आज ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी. मंगल और शनिवार व रविवार के दिन ज्यादा भीड़ रहती हैं. गाडी पार्किंग में पार्क करके हम लोग बैटरी की रिक्शा से मंदिर की और चल पड़े. मंदिर पहुंचकर पहले प्रसाद लिया फिर सालासर बालाजी के दर्शन किये.
सालासर बालाजी भगवान हनुमान के भक्तों के लिए एक धार्मिक स्थल है। यह राजस्थान के चुरू जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग 668 पर स्थित है। वर्ष भर में असंख्य भारतीय भक्त दर्शन के लिए सालासर धाम जाते हैं। हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा पर बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। भारत में यह एकमात्र बालाजी का मंदिर है जिसमे बालाजी के दाढ़ी और मूँछ है। बाकि चेहरे पर राम भक्ति में राम आयु बढ़ाने का सिंदूर चढ़ा हुआ है। हनुमान सेवा समिति, मंदिर और मेलों के प्रबन्धन का काम करती है। यहाँ रहने के लिए कई धर्मशालाएँ और खाने-पीने के लिए कई जलपान-गृह (रेस्तराँ) हैं। श्री हनुमान मंदिर सालासर कस्बे के ठीक मध्य में स्थित है। वर्त्तमान में सालासर हनुमान सेवा समिति ने भक्तों की तादाद बढ़ते देखकर दर्शन के लिए अच्छी व्यवस्था की है। मान्यता है की बालाजी महाराज सभी इच्छाओं को पूरी करते है!
सालासर कस्बा,राजस्थान के चूरू जिले का एक हिस्सा है और यह जयपुर - बीकानेर राजमार्ग पर स्थित है। यह सीकर से 57 किलोमीटर, सुजानगढ़ से 24 किलोमीटर और लक्ष्मणगढ़ से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सालासर कस्बा सुजानगढ़ पंचायत समिति के अधिकार क्षेत्र में आता है और राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की नियमित बस सेवा के द्वारा दिल्ली, जयपुर और बीकानेर से से जुड़ा हुआ है। इंडियन एयरलाइंस और जेट एयर सेवा जो जयपुर तक उड़ान भरती हैं,यहाँ से बस या टैक्सी के द्वारा सालासर पहुँचने में 3.5 घंटे का समय लगता है। सुजानगढ़, सीकर, डीडवाना, जयपुर और रतनगढ़ सालासर बालाजी के नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं।
यह शहर पिलानी शहर से लगभग 140 किलोमीटर की दूरी पर है,जहाँ (बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, पिलानी/बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान) स्थित है।
श्रावण शुक्लपक्ष नवमी,संवत् 1811 -दिन शनिवार को एक चमत्कार हुआ। नागौर जिले में असोटा गाँव का एक गिन्थाला-जाट किसान अपने खेत को जोत [खेत का काम] रहा था। अचानक उसके हल से कोई पथरीली चीज़ टकरायी और एक गूँजती हुई आवाज पैदा हुई। उसने उस जगह की मिट्टी को खोदा और उसे मिट्टी में सनी हुई दो मूर्त्तियाँ मिलीं। उसकी पत्नी उसके[किसान] लिए भोजन लेकर वहाँ पहुँची। किसान ने अपनी पत्नी को मूर्त्ति दिखायी। किसान की पत्नी ने अपनी साड़ी (पोशाक) से मूर्त्ति को साफ किया| यह मूर्त्ति बालाजी भगवान श्री हनुमान की थी। उन्होंने समर्पण के साथ अपने सिर झुकाये और भगवान बालाजी की पूजा की। भगवान बालाजी के प्रकट होने का यह समाचार तुरन्त असोटा गाँव में फ़ैल गया। असोटा के ठाकुर ने भी यह खबर सुनी। बालाजी ने उसके सपने में आकर उसे आदेश दिया कि इस मूर्त्ति को चूरू जिले में सालासर भेज दिया जाए। उसी रात भगवान हनुमान के एक भक्त, सालासर के मोहन दासजी महाराज ने भी अपने सपने में भगवान हनुमान यानि बालाजी को देखा। भगवान बालाजी ने उसे असोटा की मूर्त्ति के बारे में बताया। उन्होंने तुरन्त आसोटा के ठाकुर के लिए एक सन्देश भेजा। जब ठाकुर को यह पता चला कि आसोटा आये बिना ही मोहन दासजी को इस बारे में थोड़ा-बहुत ज्ञान है, तो वे चकित हो गये। निश्चित रूप से, यह सब सर्वशक्तिमान भगवान बालाजी की कृपा से ही हो रहा था। मूर्त्ति को सालासर भेज दिया गया और इसी जगह को आज सालासर धाम के रूप में जाना जाता है। दूसरी मूर्त्ति को इस स्थान से 25 किलोमीटर दूर पाबोलाम (जसवंतगढ़) में स्थापित कर दिया गया। पाबोलाव में सुबह के समय समारोह का आयोजन किया गया और उसी दिन शाम को सालासर में समारोह का आयोजन किया गया।
श्री हनुमान जन्मोत्सव का उत्सव हर साल चैत्र शुक्ल चतुर्दशी और पूर्णिमा को मनाया जाता है। श्री हनुमान जयन्ती के इस अवसर पर भारत के हर कोने से लाखों श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं।
आश्विन शुक्लपक्ष चतुर्दशी और पूर्णिमा को मेलों का आयोजन किया जाता है और बड़ी संख्या में भक्त इन मेलों में भी पहुँचते हैं। भाद्रपद शुक्लपक्ष चतुर्दशी और पूर्णिमा पर आयोजित किये जाने वाले मेले भी बाकी मेलों की तरह आकर्षक होते हैं। इन अवसरों पर नि:शुल्क भोजन, मिठाईयों और पेय पदार्थों का वितरण किया जाता है।
सालासर बालाजी मंदिर का रखरखाव मोहनदास जी ट्रस्ट के द्वारा किया जाता है। सालासर ट्रस्ट सालासर कस्बे के लिए काफी सुविधाएँ उपलब्ध कराती है, जैसे मंदिर के जेनरेटर से कस्बे में बिजली उपलब्ध करायी जाती है, फ़िल्टर किया हुआ साफ़ पानी कस्बे के लोगों के लिए उपलब्ध कराया जाता है।
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मंदिर में अन्दर दर्शन के लिए जाते हुए |
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श्री बालाजी महाराज |
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बालाजी मंदिर में सत्संग भवन |
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मंदिर का प्रांगन |
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हमारी गुडिया बेटी |
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मंदिर का प्रवेश द्वार |
बाबा के दर्शन के बाद मंदिर के बाहर आकर के राजस्थानी कढ़ी कचोडी और चाय का आनंद लिया और थोडा बहुत बाज़ार में घुमे.
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मंदिर के बाहर चौराहा |
सालासर में और भी बहुत सारे मंदिर हैं. उनका भी दर्शन किया
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श्री राम जानकी मंदिर |
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भगवान् श्री राम जानकी |
हनुमान जी की माता जी का मंदिर भी सालासर में बाहर की और स्थित हैं. इस मंदिर के भी दर्शन किये.
अंजनी माता का मंदिर
सालासर में स्थित अंजनी माता का प्रसिद्ध मंदिर केवल राजस्थान ही नहीं पूरे भारत के श्रद्धालुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है। श्री अञनी माता का मन्दिर सालासर धाम से लक्षमनगढ जाने वाली रोड पर लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर में माँ की जो मूर्ति स्थापित है उसमें हनुमानजी अपने बालरूप में माता की गोद में बैठे हैं। अपने चतुर्भुजी आदमकद रूप में अंजनी माता शंख और सुहाग-कलश धारण किए हैं यहां एक साथ ही बालाजी हनुमान और उनकी माँ अंजनी की पूजा-अर्चना की जा सकती है। कहते है कि जो सालासर आकर इन दोनों की सच्चे मन से पूजा-अर्चना करता है। उसकी प्रत्येक मनोकामना पूरी होती है।
मन्दिर के संस्थापक श्री पन्नारामजी पारीक थे। इनकी पत्नि का युवावस्था में निधन हो गया। फ़िर वह प्रयाग चले गये और वहाँ गंगा तट पर ध्यान व पूजन अर्चन करने लगे। एक दिन हनुमानजी ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर, स्वप्न में दर्शन दे कर आदेश दिया कि तुम मेरे धाम सालासर आ जाओ। सालासर धाम में वह परोपकारी भावना से प्रेरित होकर पथिकों को शीतल जल पिलाकर उनकी थकान को मिटाने लगे। साथ ही वे अंजनीनन्दन व अंजनीमाता की सेवा भक्तिभाव से करते हुये उनके ही ध्यान में निमग्न रहने लगे। सन्१९६३ में सीकर नरेश ने पन्डित जी के कहे अनुसार मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया। अंजनी माता मंदिर की विशेष प्रसिद्धि सुहागन स्त्रियों और नवविवाहितों की मनोकामना सिद्धि लिए है। सुहागन स्त्रियां यहां आकर अपने वैवाहिक और पारिवारिक जीवन की सफलता के लिए नारियल और सुहाग चिन्ह चढ़ाती हैं।
दूर-दूर से लोग विवाह का पहला निमंत्रण पत्र मंदिर में जमा करते हैं। ताकि अंजनी माता की कृपा से न केवल विवाह सफल हो बल्कि नवविवाहित को सभी प्रकार का सुख मिले।
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माँ अंजनी माता का मंदिर |
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अंजनी माता |
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अंजनी माता मंदिर का मुख्य द्वार |
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श्री तिरुपति बालाजी मंदिर |
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तिरुपति मंदिर के अन्दर |
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अंजनी माता मंदिर |
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हनुमान जी |
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धर्मशाला व मंदिर |
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चमेली देवी सभागार व उद्यान |
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हनुमान जी के चरणों में भक्त प्रवीण सालासर में बहुत सारा समय बिताने के बाद हम लोग रानी सती झुंझनु की और चल पड़े. यंहा से आगे का यात्रा वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे...(SHEKHAWATI TRAVELL - RANI SATI JHUNJHNU - 5) |