Friday, July 31, 2020

SHUKRATEERTH - भागवद तीर्थ की शुभ यात्रा

SHUKRATEERTH - भागवद तीर्थ की शुभ यात्रा 

शुक्रताल प्राचीन पवित्र तीर्थस्थल है। यह मुजफ्फरनगर के समीप स्थित है। यहाँ संस्कृत महाविद्यालय है। यह स्थान हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माना जाता है। गंगा नदी के तट पर स्थित शुक्रताल जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि इस जगह पर अभिमन्यु के पुत्र और अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित - जिनको शाप मिला था कि उन्हें एक सप्ताह के अंदर तक्षक नाग द्वारा डस लिया जायेगा - ने महऋषि शुकदेव के श्रीमुख से भगवत कथा का श्रवण किया था। इसके समीप स्थित वट वृक्ष के नीचे एक मंदिर का निर्माण किया गया था। इस वृक्ष के नीचे बैठकर ही शुकदेव जी भागवत कथा सुनाया करते थे। ये वट वृक्ष यहाँ अभी भी विद्यमान है और आश्चर्य की बात है कि इस वृक्ष पर कभी पतझड़ नहीं आती। शुकदेव मंदिर के भीतर एक यज्ञशाला भी है। राजा परीक्षि‍त महऋषि जी से भागवत की कथा सुना करते थे। इसके अतिरिक्त यहां पर पर भगवान गणेश की 35 फीट ऊंची प्रतिमा भी स्‍थापित है। इसके साथ ही इस जगह पर अक्षय वट और भगवान हनुमान जी की 72 फीट ऊंची प्रतिमा बनी हुई है। श्री शिव भगवन की 108 फ़ीट ऊंची तथा माता दुर्गा की भी 80 फ़ीट ऊंची प्रतिमा यहाँ स्थापित की गई हैं।(साभार: विकिपीडिया)

श्रीराम मंदिर शुक्रताल 
स्वामी कल्यान् देव समाधि मंदिर 

हमारे प्रिय अरुण शर्मा जी अक्षय वट के नीचे 


भागवद मंदिर 


अक्षय वट के नीचे मै 


शुकदेव जी मंदिर 


भगवान् श्री कृष्ण 



अक्षय वट 
मंदिर से दीखते हनुमान जी 


मंदिर से दिखता एक नज़ारा 


मंदिर से दीखते श्री गणेश 
प्रभु श्रीराम दरबार 


प्रभु श्रीराम मंदिर
स्वामी कल्याण देव
निष्काम, कर्मयोगी, तप, त्याग और सेवा की साक्षात मूर्ति ब्रह्मलीन स्वामी कल्याण देव महाराज  का जन्म वर्ष 1876 में जिला बागपत के गांव कोताना में उनकी ननिहाल में हुआ थ । उनका पालन पोषण मुजफरनगर के अपने गांव मुंडभर में हुआ था । उन्हें वर्ष 1900 में मुनि की रेती ऋषिकेश में गुरूदेव स्वामी पूर्णानन्द जी सेे संन्यास की दीक्षा ली थी । अपने 129 वर्ष के जीवनकाल में उन्होनें 100 वर्ष जनसेवा में गुजारे । स्वामी जी ने करीब 300 शिक्षण संस्थाओं के साथ कृषि केन्द्रों, गऊशालाओं, वृद्ध आश्रमों, चिकित्सालयों आदि का निर्माण कराकर समाजसेवा में अपनी उत्कृष्ट छाप छोड़ी । 

ब्रह्मलीन स्वामी कल्याण देव जी के प्रमुख शिष्य एवं उत्तराधिकारी ओमानन्द ब्रचारी जी के अनुसार स्वामी कल्याणदेव जी को उनके समसाजिक कार्यों के लिये तत्कालीन राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी जी ने 20 मार्च 1982 में पदमश्री से सम्मानित किया । इसके बाद 17 अगस्त 1994 को गुलजारी लाल नन्दा फाउंडेशन की ओर से तत्कालीन राष्ट्रपति डा0 शंकर दयाल शर्मा जी ने उन्हें नैतिक पुरूस्कार से सम्मानित किया । 30 मार्च 2000 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के0आर0 नरायणन जी द्वारा पदमभूषण से सम्मानित किया गया । इसके बाद चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के दीक्षांत समारोह में उन्हें 23 जून 2002 को तत्कालीन राज्यपाल श्री विष्णुकांत शास्त्री जी ने साहित्य वारिधि डी–लिट उपाधि प्रदान की थी। 

स्वामी ओमानन्द के अनुसार ब्रह्मलीन स्वामी कल्याणदेव जी महाराज अपने जीवनकाल में कभी भी रिक्शा में नहीं बैठे । लखनऊ, दिल्ली रेलवे स्टेशनों पर जाकर भी वे हमेशा पैदल चला करते थे । उनका तर्क था कि रिक्शा में आदमी आदमी को खिंचता है । यह एक पाप है । 

पांच घरों से रोटी की भिक्षा लेकर एक रोटी गाय को दूसरी रोटी कूत्ते को तीसरी रोटी पक्षियों के लिये छत पर डालते थे । बची दो रोटियॉं को वह पानी में भिगोकर खाते थे ।

ब्रह्मलीन स्वामी कल्याण देव जी महाराज ने एक वर्ष पहले ही अपने शिष्य स्वामी ओमानंद महाराज को अपनी समाधि का स्थान बता दिया था । यहॉ तक की मृत्यु के तीन दिन पहले स्वामी जी ने अंतिम सांस लेने से दस मिनट पहले शुक्रताल स्थित मंदिर व वटवृक्ष की परिक्रमा की इच्छा जताई थी । उनकी इच्छानुसार उनके अनुयायियों ने ऐसा ही किया । इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण का चित्र देखकर उनके चेहरे पर हंसी आ गई ।

ब्रह्मलीन स्वामी कल्याण देव महाराज जी ने अपने जीवनकाल में हमेशा जरूरतमंदो की मदद करने का संदेश दिया । वह कहा करते थे कि अपनी जरूरत कम करो । और जरूरत मंदो की हरसंभव मदद करों । परोपकार को ही वह सबसे बड़ा धर्म मानते थे । ऐसा उन्होंने जीवन पर्यन्त किया भी । सदैव पानी में भिगोकर भिक्षा में ली गई रोटी खाने वाले स्वामी जी ने 129 वर्ष की आयु में 300 से अधिक शिक्षा केन्द्र स्थापित कर रिकार्ड स्थापित किया । 




 स्वामी श्री ओमानंद जी-SWAMI OMANAND JI  

स्वामी ओमानंद जी ब्रह्म लीन स्वामी कल्यान् देव जी के प्रमुख शिष्य हैं.  स्वामी जी के बाद भाग्वाद्पीठ के प्रमुख वर्तमान में श्री ओमानंद जी हैं स्वामी ओमानंद जी भी स्वामी कल्यान् देव जी के पद चिन्हों पर चल रहे हैं. और धर्म समाज, व शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं 

भाग्वद्पीठ का मुख्य द्वार 


भागवद पीठ का संकेतक 


श्री गणेश जी 
गणेश धाम में गणेश जी की विशाल प्रतिमा स्थापित हैं जो की देखने योग्य हैं.

गणेश जी की प्रतिमा के बारे में जानकारी 

श्री हनुमद्धाम 

हनुमद्धाम में हनुमान जी की विशाल प्रतिमा स्थापित हैं. यंहा के संस्थापक व प्रमुख स्वामी केशवानंद जी हैं. 


हनुमद्धाम के बारे में 


हनुमद्धाम का मुख्य द्वार 


श्री हनुमान जी 
श्री गणेश धाम 

श्री हनुमान जी 

हनुमद्धाम का आँगन 

शुक्रताल का दृश्य 
 
पवित्र गंगा जी की धारा  
कारगिल शहीद स्मारक 

शुक्रतीर्थ में एक कारगिल शहीद स्मारक भी बना हुआ हैं. जिसका उद्घाटन भूतपूर्व उपराष्ट्रपति श्री भैरो सिंह शेखावत जी के द्वारा हुआ था. 


कारगिल स्मारक में  अन्दर का दृश्य 

कारगिल स्मारक में शहीद स्मारक 

यंहा पर कारगिल में शहीद हुए भारतीय सैनिको के नाम पत्थर पर खुदे हुए हैं. कारगिल का नक्षा, व अमर जवान का मोमेंटो यंहा पर स्थापित हैं. 


शिव धाम 

शुक्रतीर्थ में बहुत ही सुन्दर शिव धाम बना हुआ हैं. यंहा पर एक संस्कृत विद्यालय भी चलता हैं.


महादेव 


शिव धाम मंदिर 

शिव धाम 



शिव धाम में दो बाल ब्रह्मचारी 

गंगा किनारे घंटा घर 

शुक्रताल में आपका स्वागत हैं 

शुक्रताल से पहले एक मंदिर 

शुक्रतीर्थ का प्रवेशद्वार 

शुक्रतीर्थ में कुछ समय बिताने के बाद वापिस हम लोग अपने नगर आगये. एक दिन में ये छोटी सी यात्रा सम्पूर्ण हुई. 

Sunday, July 26, 2020

SHIRDI TRAVELL - सूरत से शिर्डी यात्रा -५- (नासिक-NASIK)

SHIRDI TRAVELL - सूरत से शिर्डी यात्रा -५- (नासिक-NASIK) 

इस यात्रा को आरम्भ से पढने के लिए क्लिक करिए."(शिर्डी साईं धाम यात्रा - १ (सूरत से शिर्डी )

इस यात्रा का इससे पहले का पार्ट पढने के लिए क्लिक करिए."(SHIRDI TRAVELL - सूरत से शिर्डी यात्रा - ४ (त्र्यम्बकेश्वर-TRIMBKESHWAR)

हम लोग त्रिम्ब्केश्वर से करीब २ बजे  आ गए थे. नासिक पहुँच कर लोकल के मंदिर व घाट देखने थे. हम लोग नासिक में ज्यादा कुछ तो देख नहीं पाए पर जो मुख्य मुख्य स्थान थे उनके दर्शन किये. इनमे में भी पंचवटी के दर्शन रह गए थे. पंचवटी में भगवान् राम, माता सीता व लक्ष्मण जी ने अपने वनवास का बहुत समय बिताया था. 

अब कुछ नासिक के बारे में. विकिपीडिया से साभार 

नासिक अथवा नाशिक भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक शहर है। नसिक महाराष्ट्र के उत्तर पश्चिम में, मुम्बई से १५० किमी और पुणे से २०५ किमी की दुरी में स्थित है। यह शहर प्रमुख रूप से हिन्दू तीर्थयात्रियों का प्रमुख केन्द्र है। नासिक पवित्र गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 565 मीटर है। गोदावरी नदी के तट पर बहुत से सुंदर घाट स्थित है। इस शहर का सबसे प्रमुख भाग पंचवटी है। इसके अलावा यहां बहुत से मंदिर भी है। नासिक में त्योहारों के समय में बहुत अधिक संख्या में भीड़ दिखाई पड़ती है।

नाशिक शक्तिशाली सातवाहन वंश के राजाओं की राजधानी थी। मुगल काल के दौरान नासिक शहर को गुलशनबाद के नाम से जाना जाता था। इसके अतिरिक्त नाशिक शहर ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में भी अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर ने १९३२ में नाशिक के कालाराम मंदिर में अस्पृश्योंको प्रवेश के लिये आंदोलन चलाया था।

नाशिक में लगने वाला कुंभ मेला, जिसे यहाँ सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है, शहर के आकर्षण का सबसे बड़ा केन्द्र है। भारतीय पंचांग के अनुसार सूर्य जब कुंभ राशी में होते है, तब इलाहाबाद में कुंभमेला लगता है और सूर्य जब सिंह राशी में होते है, तब नाशिक में सिंहस्थ होता है। इसे कुंभमेला भी कहते है। अनगिनत श्रद्धालु इस मेले में आते हैं। यह मेला बारह साल में एक बार लगता है। इस मेले का आयोजन महाराष्ट्र पर्यटन निगम द्वारा किया जाता है। भारत में यह धार्मिक मेला चार जगहों पर लगता है। यह जगह नाशिक, इलाहाबाद, उज्जैन और हरिद्वार में हैं। इलाहाबाद में लगने वाला कुंभ का मेला सबसे बड़ा धार्मिक मेला है। इस मेले में हर बार विशाल संख्या में भक्त आते हैं।

इस मेले में आए लाखों श्रद्धालु गोदावरी नदी में स्नान करते हैं। यह माना जाता है कि इस पवित्र नदी में स्नान करने से आत्मा की शुद्धि और पापों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष आने वाले शिवरात्रि के त्योहार को भी यहां बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हजारों की संख्या में आए तीर्थयात्री इस पर्व को भी पूरे उमंग और उत्साह के साथ मनाते हैं।

इस त्योहार में आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए राज्य सरकार कुछ विशेष प्रकार का प्रबंध करती है। यहां दर्शन करने आए तीर्थयात्रियों के रहने के लिए बहुत से गेस्ट हाउस और धर्मशाला की सुविधा मुहैया कराई जाती है। यहां स्थित घाट बहुत ही साफ और सुंदर है। त्योहारों के समय यहां सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं।(साभार: विकिपीडिया)

रामघाट व रामकुंड 
रामकुंड गोदावरी नदी पर स्थित है, जो असंख्य तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां भक्त स्नान के लिए आते हैं। अस्थि विसर्जन के लिये यह कुंड एक पवित्र स्थान माना जाता है। यह माना जाता है कि जब भगवान श्री राम नासिक आए थे तो उन्होंने यही स्नान किया था। यह एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है।

सबसे पहले हम लोग रामकुंड या रामघाट पहुंचे. मकर संक्रान्ति के कारण स्नान करने वालो की बहुत भीड़ थी. हमने केवल हाथ मुह धोये और पूजा की. 


रामकुण्ड



प्राचीन माँ गोदावरी मंदिर 

भक्तजन स्नान करते हुए 


रामघाट पर श्री कपालेश्वर मंदिर 

माँ सीता जी की गुफा की और जाने का संकेतक 

अलग अलग स्थानों को जाने का संकेतक 

काला राम मंदिर के बाहर प्रसाद की दुकाने 

श्री कालाराम मंदिर 
नासिक में भगवान् राम के दो प्रमुख मंदिर हैं एक हैं गोरा राम मंदिर, एक हैं काला राम मंदिर. गोरा राम मंदिर में भगवान् राम की सफ़ेद संगमरमर की प्रतिमा हैं. काला  राम मंदिर में काले रंग की प्रतिमा हैं. इसमें हमने काला राम मंदिर के दर्शन किये. व बाहर से फोटो लिए. गोरा राम मंदिर हम नहीं जा पाए. 

नाशिक में पंचवटी स्थित कालाराम मंदिर वहां के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण गोपिकाबाई पेशवा ने १७९४ में करवाया था। हेमाडपंती शैली में बने इस मंदिर की वास्तुकला बहुत ही खूबसूरत है। इस मंदिर की वास्तुकला त्र्यंबकेश्वर मंदिर के ही सामान है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह मंदिर काले पत्थरों से बनाया गया है।(साभार: विकिपेडिया) 

मंदिरों के दर्शन करते हुए शाम हो चुकी थी. बहुत सी जगह हमारी देखने से रह गयी थी. हमारे पास समय भी नहीं था. बाकी के स्थान  फिर कभी के लिए छोड़ दी गयी. हम लोग भी थक चुके थे मैंने अपने साथ के लोगो को भरे मन से अलविदा कहा. . मुझे सूरत निकलना था. जिसके लिए द्वारका सर्किल से, शुभम ट्रावेल्स से बस पकडनी थी. मेरी आल रेडी सूरत तक की बुकिंग थी. कुल ५०० रूपये किराया था. ये बस शिर्डी से आती हैं वंही से बुक की हुई  बर्थ खाली आती हैं. रात दस बजे मेरी बस थी. मैं आठ बजे शुभम ट्रावेल्स द्वारिका सर्किल पर आ गया था. भूख  भी लग रही थी. अपना बैग शुभम पर रखकर कुछ खाने की तलाश में निकल पडा. थोड़ी ही दूर एक साउथ इंडियन डोसे वाला खड़ा था. मैंने भी एक मैसूर डोसा खाया. रेट कुल ४० रूपये था. बहत ही स्वादिष्ट डोसा था. पेट भर गया था. एक चाय सुड़क कर मैं वापिस अपने ठीये पर आ गया. रात दस बजे ठीक समय पर बस आयी. मैं बस में चढ़ गया. अपनी बर्थ पर पहुंचकर लम्बी तान कर सो गया. ठीक चार बजे बस सूरत पहुँच गयी. मैं उतरकर पैदल घूमता हुआ अपनी PG में पहुँच गया. ये यात्रा यंही समाप्त होती हैं, कोई भूल चूक या गलती हुई हो तो क्षमा करना. धन्यवाद  ॐ साईं राम....