Sunday, July 8, 2012

यात्रा बद्रीनाथ धाम की

29th May 2010 को हम लोगो ने बदरीनाथ जाने का कार्यक्रम बनाया. मेरा और रवि का , दोनों का परिवार एक बोलेरो गाड़ी में बैठकर बदरीनाथ धाम के लिए निकल पड़े. हम लोग चरथावल से सुबह पांच बजे रवाना हुए. चरथावल से रोहाना होते हुए वाया छपार हम लोग हरिद्वार पहुँच गए. हरिद्वार से निकलकर पहला स्टे हमने देव प्रयाग में लिया. यंहा पर चाय पानी, नाश्ता आदि करके हमारा कारवा फिर से सफर के लिए चल पड़ा. दोपहर का भोजन हम लोगो ने रुद्रप्रयाग में किया. यंहा पर एक पेट्रोल पम्प पर अच्छा खाने का होटल बना हुआ हैं. रुद्रप्रयाग पार करने के बाद मौसम खराब होना शुरू हो गया था. जोरो से हवा चलने लगी थी. ऐसे ही मौसम में कर्णप्रयाग से होते हुए हम लोग जोशीमठ करीब सात बजे तक पहुँच गए थे. जोशीमठ पहुँचते पहुँचते जोरो से बारिश शुरू हो गई थी. मुख्य सड़क पर ही एक गेस्ट हाउस में दो कमरे लिए, और वंही पर रुक गए. थोड़ी देर आराम करके, बारिश रुकते ही भोजन के लिए चल दिए. जोशीमठ में तीन चार अच्छे भोजनालय हैं. खाना अच्छा बनता हैं. ऐसे ही एक होटल में खाने का आनंद लिया. बाहर मौसम बहुत सुहावना हो चुका था, ठंडी हवा चल रही थी. बाकी सब तो गेस्ट हाउस चले गए, मैं और नीलम थोड़ी देर जोशीमठ की सडको पर घूमते रहे. जब थक गए तो आकर के अपने कमरे में सो गए. सुबह जल्दी उठे, और तैयार होकर के पहले गेट की गाडियों की लाइन में लग गए. यंहा से बदरीनाथ जी तक गाडियो का वनवे यातायात रहता हैं. बीच में पांडुकेश्वर में रूट बदल जाता हैं. सुबह छः बजे पहला गेट खुलता हैं. करीब दो घंटे की यात्रा के बाद हम लोग बदरीनाथ जी पहुँच जाते हैं. हमारा गेस्ट हाउस बदरीनाथ जी में बस अड्डा पार करते ही थोडा आगे था. उसका नाम हैं नंदा गेस्ट हाउस. अब तक हम लोग बदरीनाथ जी करीब पांच बार जा चुके हैं. और हर बार इसी गेस्ट हाउस में ही रुकते हैं. अच्छा और सस्ता गेस्ट हाउस हैं. इसी के सामने एक भोजनालय भी बना हुआ हैं, वंहा पर खाने का आनंद लिया जा सकता हैं. इसी गेस्ट हाउस में गाड़ी को पार्क करने की भी सुविधा हैं. 

भगवान बदरीनाथ

बदरीनाथ धाम यानी कि भगवान विष्णु कि नगरी. बद्री धाम उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित हैं. बदरीनाथ विधानसभा क्षेत्र भी हैं. यह मंदिर भगवान विष्णु के बद्री रूप को समर्पित हैं. यंहा पर भगवान विष्णु अपनी पत्नी माता लक्ष्मी, गरुड़ जी, नारद जी, कुबेर जी, उद्धव जी आदि के साथ विराजमान हैं. इसे बद्रीश पंचायत कहा जाता हैं. बद्री का एक अर्थ बेर नामक फल भी होता हैं. कहते है यंहा पर कभी बेरी के वृक्षों कि बहुतायत थी. इसलिए इसे बदरीवन, बद्रिकाश्रम भी कहा जाता है. हम हिन्दुओ के ये चारधाम में एक माना जाता हैं. ऋषिकेश से यंहा कि दूरी करीब 295 किलोमीटर है.

मंदिर में भगवान नारायण कि पूजा होती हैं. और अखंड ज्योति जलती रहती हैं. भक्त लोग दर्शनों से पहले स्नान करते हैं. स्नान के लिए यंहा पर गर्म पानी के कुंड हैं, जिनसे चोबीस घंटे गर्म जल बहता हैं. गर्म जल और ठन्डे जल को मिलाकर एक अलग कुंड बनाया गया हैं, जिसमे भक्त जन स्नान करते हैं. गर्म जल के कुंड में जल इतना गर्म होता हैं कि उसमे चावल भी उबल जाता हैं. भगवान बद्री विशाल के प्रसाद में तुलसी कि माला, चने की दाल, मिस्री आदि का प्रसाद चढाया जाता हैं.

बद्री धाम को भोले शंकर महादेव कि नगरी भी कहा जाता हैं. कहा जाता हैं कि इस नगरी का निर्माण महादेव ने माता पार्वती के लिए किया था. पर ये नगरी भोले नाथ ने भगवान विष्णु को भेंट करदी थी.

भगवान बद्री कि मूर्ति काले शालिग्राम पत्थर से बनी हुई हैं. कहते हैं इस मूर्ति कि स्थापना देवताओं ने कि थी. इसके हजारो साल बाद आदि शंकराचार्य ने पुनः इसे नारद कुंड से निकालकर स्थापित किया था. मन्दिर में बदरीनाथ की दाहिनी ओर कुबेर की मूर्ति है। उनके सामने उद्धवजी हैं तथा उत्सवमूर्ति है। उत्सवमूर्ति शीतकाल में बरफ जमने पर जोशीमठ में ले जायी जाती है। उद्धवजी के पास ही चरणपादुका है। बायीं ओर नर-नारायण की मूर्ति है। इनके समीप ही श्रीदेवी और भूदेवी है।
भगवान् बद्री विशाल 
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बद्रीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में 27 किमी की दूरी पर स्थित बद्रीनाथ शिखर कि ऊँचाई 7,138 मीटर है। बद्रीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बद्रीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है।(साभार विकिपीडिया )
हमारा गेस्ट हाउस और पीछे पर्वतराज हिमालय 
इशांक बाबू 
पवित्र नीलकंठ शिखर 

नर और नारायण शिखर


हम लोग गेस्ट हाउस में थोड़ी देर आराम करके दर्शनों के लिए चले. सर्वप्रथम हमलोग तप्त कुंड की और स्नान के लिए गए. वंही पर प्रसाद की दुकाने भी स्थित हैं. प्रसाद की दूकान से बाल्टी और मग भी मिल जाता हैं. जिससे नहाने में आसानी होती हैं. हम लोगो ने अपना सामान प्रसाद की दूकान में रखा और स्नान के लिए चले गए. स्नान के बाद, तैयार होकर प्रसाद लेकर के, दर्शन के लिए लाइन की और बढ़ गए. लाइन देखकर हम लोग भोचक्के रह गए, करीब डेढ़ किलोमीटर लंबी लाइन लगी हुई थी. थोड़ी देर लाइन में लगकर जब ये लगा की चार या पांच घंटे से पहल्र दर्शन नहीं होगे तो बच्चो ने कुछ जुगाड लगाया, मंदिर के गेट पर खड़े सुरक्षा गार्डो के पास गए, उनसे बात की तब उन्होंने बच्चो पर दया करके हम लोगो को मंदिर के गेट के नजदीक लाइन में लगवा दिया, जिससे हमारा नंबर दर्शनों के लिए १५ - २० मिनट में आ गया.

मंदिर परिसर में अंदर दर्शनों के लिए धक्का मुक्की होती हैं. और बड़ी मुश्किलों से दर्शन होते हैं. भगवान बद्री विशाल के दर्शन करके दिल खुश हो गया. दर्शन करने के बाद हम लोग मंदिर से बाहर आ गए. 

आकाश में बादल मंडराने लगे थे. और बारिश होने की संभावना हो गयी थी. हम लोग वापिस अपने गेस्ट हाउस की ओर आ गए. बारिश जोरो से शुरू हो गयी थी. और चारों तरफ अन्धेरा सा छा गए था. हम लोगो का माना और कई जगह जाने का कार्यक्रम था. लेकिन उस दिन लगातार बारिश होती रही, और हमारे आगे के सारे प्रोग्राम रद्द हो गए. खाना हम लोगो ने गेस्ट हाउस में ही मंगा लिया था. मौसम में जबरदस्त ठण्ड हो गयी थी. इसलिए अपनी अपनी रजाइयो में दुबक कर सो गए.

अलकनंदा जी में पवित्र नारद कुंड
यही वह कुंड है  जिसमे  से आदि शंकराचार्य में भगवान बद्री विशाल कि मूर्ति को निकालकर स्थापित किया था.

मंदिर के सामने धर्मशाला 
रवि का परिवार 

इशांक और गाडी का ड्राईवर
हमारा परिवार 

सुन्दर बदरीनाथ  घाटी 

सुन्दर अति सुन्दर
बर्फ से ढकी चोटिया 
अलकनंदा जी पर बना लोहे का पुल
श्री बद्री विशाल के दर्शनों के लिए लगी भक्तो की पंक्ति..
वाह क्या स्टाइल हैं..
मंदिर के पीछे विशाल नारायण पर्वत
आश्रम और झरना 

सुबह जब सोकर के उठे तो बाहर निकलकर देखा, चारों तरफ पहाडिया बर्फ से लदी हुई थी. सारी रात बारिश और बर्फ बारी होती रही थी. मौसम बहुत ही सुहावना और ठंडा था. हल्का हल्का कोहरा छाया हुआ था. सुबह सुबह की चाय पीकर मन तारो ताज़ा किया. और नहा धोकर लौटने की तैय्यारी करने लगे. खैर ये धाम ऐसा है यंहा पर आकर के आदमी यंहा की घाटियों में खोकर रह जाते हैं. किसी हिल स्टेशन से भी खूबसूरत यंहा की घाटिया है. ये तो समय की कमी रहती हैं और वापिस लोटना पड़ता हैं. सुबह नो बजे हम लोग बद्रीनाथ धाम से रवाना हो गए. दोपहर २ बजे तक हम कर्णप्रयाग आ गए, वंहा पर संगम के किनारे एक होटल में दोपहर का भोजन किया, इस दौरान बारिश और आंधी तूफ़ान भी आ रहा था. मौसम बहुत अच्छा था.

सुबह सुबह बर्फ से ढकी चोटिया 

शिखरों पर पड़ी हुई ताज़ी बर्फ 

ऊपर बादल नीचे बर्फ 

पर्वत के पीछे उगते हुए भगवान् भास्कर 

एक और  दृश्य 

श्रीनगर

कर्ण प्रयाग में दोपहर का भोजन करके हम शाम छः बजे तक श्रीनगर पहुँच गए. और उस रात श्रीनगर में गढ़वाल मंडल विकास निगम के रिसोर्ट में हम लोग रुके थे. सौभाग्य से दो कमरे खाली मिल गए थे. रिसोर्ट के सामने ही एक अच्छा भोजनालय है, जिसमे अच्छा खाना मिलता हैं. श्रीनगर शहर माँ अलकनंदा नदी के किनारे स्थित एक सुन्दर नगर है. यह नगर पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित हैं.श्रीनगर गढ़वाल राजाओं की राजधानी रहा हैं. एक सुन्दर घाटी में श्रीनगर शहर बसा हुआ हैं. यंहा पर ठहरने और रहने के लिए अच्छे होटल और गेस्ट हाउस हैं. एक अच्छा विकसित बाजार यंहा पर है. अलकनंदा नदी के किनारे घूमने फिरने के लिए अच्छा पैदल ट्रेक और पार्क बना हुआ हैं. श्रीनगर शहर ५५० मीटर की ऊँचाई पर बसा हुआ हैं. यंहा से पौड़ी १८ किलोमीटर और ऋषिकेश १०८ किलोमीटर पड़ता हैं.
गढ़वाल मंडल गेस्ट हाउस 
श्रीनगर में एक बाँध भी बन रहा हैं. जिसके फोटो मैंने यंहा पर दिए हैं. बाँध का काम बहुत तेजी से चल रहा हैं. इस पर करीब 1000 MW का बिजली घर बनाया जा रहां है. इस बाँध का विरोध भी बहुत हो रहा हैं. जिसके बारे में आप लोगो ने समाचार पत्रों में भी पढ़ा होगा. लोगो को बिजली भी चोबीस घंटे चाहिए और बाँध का विरोध भी करते है.
माँ अलकनंदा जी के ऊपर बन रहा बाँध 

माँ अलकनंदा 
लोहे का झुला पुल 
गंगा जी के ऊपर बना हुआ यह लोहे का झूला पुल श्रीनगर शहर को गंगा पार के गावों से जोड़ता हैं. सुबह शाम यह पुल पर्यटकों के घूमने का स्थान है.
अलकनंदा जी के किनारे इशांक 

ऊपर पुल नीचे माँ गंगा 
सुबह  पांच बजे हम लोग सोकर के उठ गए. और चाय वाय पीकर  हम लोग हरिद्वार के लिए निकल पड़े. हरिद्वार में गंगा जी में स्नान करके हम लोग मुज़फ्फरनगर आ गए. वन्देमातरम