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- माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -१ ( मुज़फ्फरनगर से कटरा )
- माता वैष्णोदेवी की यात्रा भाग -२ (बान गंगा से चरण पादुका)
- माता वैष्णोदेवी की यात्रा भाग -३ (चरण पादुका से माता का भवन)
मनोकामना भवन से हम लोग तैयार होकर व नहा धोकर माता के दर्शन के लिए चल पड़े. उस समय रात्रि के करीब दस बज रहे थे. जब हम लोग सबसे पहली एंट्री पर पहुंचे तो कोई भी लाइन नहीं थी. बड़े आराम से अपनी तलाशी देने के बाद हम लोग आगे बढ़ गए. एक बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए, कि जब भी नहा धोकर दर्शन के लिए चलो तो अपने पास कोई भी चमड़े कि वस्तु, पर्स, बेल्ट, कंघा, मोबाइल, कैमरा आदि नहीं होना चाहिए. केवल प्रसाद और जो कुछ भी माता के दरबार में चढाना हो वह होना चाहिए. यात्रा कि पर्ची जरूर साथ में होनी चाहिए, क्योंकि पर्ची पहली एंट्री में चेक होती हैं. अपने जूते, चप्पल, आदि भी अपने कमरे या क्लोक रूम में ही रख कर आने चाहिए. खैर हम लोग नारियल जमा करने के स्थान पर पहुँच जाते हैं. वंहा पर हमारा नारियल जमा होकर के एक टोकन मिलता, जिससे दर्शन करने के बाद एक नारियल वापिस मिल जाता हैं. यह प्रकिया सुरक्षा कि द्रष्टि से की गयी हैं. धीरे धीरे चलते हुए हम लोग मुख्य गुफा के बाहर पहुँच जाते हैं. यंहा पर दर्शन करने के लिए दो गुफाए बनी हुई हैं, जिस कारण से जल्दी जल्दी दर्शन हो जाते हैं. सभी गुफाए माता की पिंडियो के सामने जाकर समाप्त होती हैं. वापिस आने के लिए अलग से गुफाए बनी हुई हैं. हम लोग माता की पिंडियो के पास पहुँच जाते हैं. और माता के दर्शन करके माथा टेकते हैं. माता के दर्शन करके ऐसा लगता हैं की जैसे हमने सब कुछ पा लिया हो. हमें सब कुछ मिल गया हो. जय माता की
माता की पवित्र पिंडिया (साभार : maavaishnodevi.org)
वैष्णो देवी मंदिर (हिन्दी: वैष्णोदेवी मन्दिर), शक्ति को समर्पित एक पवित्रतम हिंदू मंदिर है, जो भारत के जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी की पहाड़ी पर स्थित है. हिंदू धर्म में वैष्णो देवी, जो माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं, देवी मां का अवतार हैं.
मंदिर, जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू जिले में कटरा नगर के समीप अवस्थित है. यह उत्तरी भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है. मंदिर, 5,200 फ़ीट की ऊंचाई औरकटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है. हर साल लाखों तीर्थयात्री मंदिर का दर्शन करते हैं और यह भारत में तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ-स्थल है. इस मंदिर की देख-रेख श्री माता वैष्णो देवी तीर्थ मंडल द्वारा की जाती है. तीर्थ-यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए उधमपुर से कटरा तक एक रेल संपर्क बनाया जा रहा है.
कहते हैं पहाड़ों वाली माता वैष्णो देवी सबकी मुरादें पूरी करती हैं। उसके दरबार में जो कोई सच्चे दिल से जाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। ऐसा ही सच्चा दरबार है- माता वैष्णो देवी का।
माता का बुलावा आने पर भक्त किसी न किसी बहाने से उसके दरबार पहुँच जाता है। हसीन वादियों में त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजित माता वैष्णो देवी का स्थान हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु माँ के दर्शन के लिए आते हैं।
क्या है मान्यता
माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। एक बार ब्राह्मण श्रीधर ने अपने गाँव में माता का भण्डारा रखा और सभी गाँववालों व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण दिया। पहली बार तो गाँववालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। श्रीधर ने भैरवनाथ को भी उसके शिष्यों के साथ आमंत्रित किया गया था। भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई। अपने भक्त श्रीधर की लाज रखने के लिए माँ वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण करके भण्डारे में आई। भोजन को लेकर भैरवनाथ के हठ पर अड़ जाने के कारण कन्यारूपी माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक ना मानी। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी हनुमान को बुलाकर कहा कि भैरवनाथ के साथ खेलों मैं इस गुफा में नौ माह तक तपस्या करूंगी । इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरवनाथ के साथ नौ माह खेला। आज इस पवित्र गुफा को 'अर्धक्वाँरी' के नाम से जाना जाता है। अर्धक्वाँरी के पास ही माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा 'बाणगंगा' के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। त्रिकुट पर वैष्णो मां ने भैरवनाथ का संहार किया तथा उसके क्षमा मांगने पर उसे अपने से उंचा स्थान दिया कहा कि जो मनुष्य मेरे दर्शन के पशचात् तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी। अत: श्रदालु आज भी भैरवनाथ के दर्शन को अवशय जाते हैं।
भैरोनाथ मंदिर
जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान आज पूरी दुनिया में 'भवन' के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर माँ काली (दाएँ), माँ सरस्वती (मध्य) और माँ लक्ष्मी पिंडी (बाएँ) के रूप में गुफा में विराजित है, जिनकी एक झलक पाने मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इन तीनों के सम्मिलित रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
भैरवनाथ का वध करने पर उसका शीश भवन से 3 किमी दूर जिस स्थान पर गिरा, आज उस स्थान को 'भैरोनाथ के मंदिर' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की भीख माँगी। माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।
हिंदू महाकाव्य के अनुसार, मां वैष्णो देवी ने भारत के दक्षिण में रत्नाकर सागर के घर जन्म लिया. उनके लौकिक माता-पिता लंबे समय तक निःसंतान थे. दैवी बालिका के जन्म से एक रात पहले, रत्नाकर ने वचन लिया कि बालिका जो भी चाहे, वे उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आएंगे. मां वैष्णो देवी को बचपन में त्रिकुटा नाम से बुलाया जाता था. बाद में भगवान विष्णु के वंश से जन्म लेने के कारण वे वैष्णवी कहलाईं. जब त्रिकुटा 9 साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता से समुद्र के किनारे पर तपस्या करने की अनुमति चाही. त्रिकुटा ने राम के रूप में भगवान विष्णु से प्रार्थना की. सीता की खोज करते समय श्री रामअपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुंचे. उनकी दृष्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका पर पड़ी. त्रिकुटा ने श्री राम से कहा कि उसने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया है. श्री राम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है. लेकिन भगवान ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग में वे कल्कि के रूप में प्रकट होंगे और उससे विवाह करेंगे.
इस बीच, श्री राम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफ़ा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा.रावण के विरुद्ध श्री राम की विजय के लिए मां ने 'नवरात्र' मनाने का निर्णय लिया. इसलिए उक्त संदर्भ में लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं. श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाई जाएगी. त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी.
समय के साथ-साथ, देवी मां के बारे में कई कहानियां उभरीं. ऐसी ही एक कहानी है श्रीधर की.
श्रीधर मां वैष्णो देवी का प्रबल भक्त थे. वे वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसली गांव में रहता थे. एक बार मां ने एक मोहक युवा लड़की के रूप में उनको दर्शन दिए. युवा लड़की ने विनम्र पंडित से 'भंडारा' (भिक्षुकों और भक्तों के लिए एक प्रीतिभोज) आयोजित करने के लिए कहा. पंडित गांव और निकटस्थ जगहों से लोगों को आमंत्रित करने के लिए चल पड़े. उन्होंने एक स्वार्थी राक्षस 'भैरव नाथ' को भी आमंत्रित किया. भैरव नाथ ने श्रीधर से पूछा कि वे कैसे अपेक्षाओं को पूरा करने की योजना बना रहे हैं. उसने श्रीधर को विफलता की स्थिति में बुरे परिणामों का स्मरण कराया. चूंकि पंडित जी चिंता में डूब गए, दिव्य बालिका प्रकट हुईं और कहा कि वे निराश ना हों, सब व्यवस्था हो चुकी है.उन्होंने कहा कि 360 से अधिक श्रद्धालुओं को छोटी-सी कुटिया में बिठा सकते हो. उनके कहे अनुसार ही भंडारा में अतिरिक्त भोजन और बैठने की व्यवस्था के साथ निर्विघ्न आयोजन संपन्न हुआ. भैरव नाथ ने स्वीकार किया कि बालिका में अलौकिक शक्तियां थीं और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया. उसने त्रिकुटा पहाड़ियों तक उस दिव्य बालिका का पीछा किया. 9 महीनों तक भैरव नाथ उस रहस्यमय बालिका को ढूँढ़ता रहा, जिसे वह देवी मां का अवतार मानता था. भैरव से दूर भागते हुए देवी ने पृथ्वी पर एक बाण चलाया, जिससे पानी फूट कर बाहर निकला. यही नदी बाणगंगा के रूप में जानी जाती है. ऐसी मान्यता है कि बाणगंगा (बाण: तीर) में स्नान करने पर, देवी माता पर विश्वास करने वालों के सभी पाप धुल जाते हैं.नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं.इसके बाद वैष्णो देवी ने अधकावरी के पास गर्भ जून में शरण ली, जहां वे 9 महीनों तक ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियां प्राप्त कीं. भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई. जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महाकाली का रूप लिया. दरबार में पवित्र गुफ़ा के द्वार पर देवी मां प्रकट हुईं. देवी ने ऐसी शक्ति के साथ भैरव का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफ़ा से 2.5 कि.मी. की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी.
भैरव ने मरते समय क्षमा याचना की. देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी.उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान भी दिया कि भक्त द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए कि तीर्थ-यात्रा संपन्न हो चुकी है, यह आवश्यक होगा कि वह देवी मां के दर्शन के बाद, पवित्र गुफ़ा के पास भैरव नाथ के मंदिर के भी दर्शन करें.इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं.
इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए. वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था.अंततः वे गुफ़ा के द्वार पर पहुंचे. उन्होंने कई विधियों से 'पिंडों' की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली. देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं. वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया. तब से, श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं.(साभार : विकी पेडिया)
माता की पवित्र पिंडियो के दर्शन करके, माता का आशीर्वाद पाकर के और गुफा से बाहर निकलकर हम लोगो ने माता के चरणों से निकलते पवित्र जल चरणामृत का पान किया और उसे अपने ऊपर छिड़का. माता से प्रार्थना की मैय्या जल्दी फिर से बुलाना. आगे चलकर टोकन वापिस करके प्रसाद का नारियल प्राप्त किया. यंही पर प्रसाद के रूप में हलवा भी मिलता हैं और माता के प्रसाद और खजाने से भरी हुई एक एक पुडिया भी मिलती हैं. यंहा से थोडा आगे चलकर नीचे की और उतरकर महादेव की गुफा भी हैं, जंहा जाकर के महादेव के पवित्र शिव लिंगम के दर्शन किये. कहा जाता हैं की जंहा जंहा शक्ति हैं वंही पर शिव विराजमान होते हैं.
माता के दर्शन करके, और भगवान शिव के दर्शन करके हम लोग भोजनालय में आ जाते हैं. जंहा पर पहले कढ़ी चावल और फिर चाय का आनंद लिया . कढ़ी चावल, छोले चावल, छोले भठूरे की प्लेट २० रूपये में और चाय चार रूपये में मिलती हैं. खा पीकर हम लोग वापिस मनो कामना भवन में आकर के लंबी तान कर और घोड़े बेच कर सो जाते हैं.
सुबह ६ बजे आँख खुलती हैं. उठ कर अपने कम्बल जमा करा कर आते हैं. और नीचे भोजनालय में आकर के एक एक कप चाय पीकर भैरो देव की और चल पड़ते हैं. माता के भवन से भैरो देव की दूरी करीब २ किलोमीटर पड़ती हैं. बिलकुल खड़ी चढाई हैं. करीब साढ़े सात बजे हम लोग भैरो देव पर पहुँच जाते हैं. आरती के कारण से लाइन लंबी लगी हुई थी इसी लिए थोड़ी देर धूप में विश्राम करने बैठ जाते हैं.
माता का पवित्र भवन
भैरो देव से माता के भवन का चित्र |
गुनगुनी धूप में भैरो देव के मंदिर के सामने बने प्लेटफार्म पर बैठ जाते हैं और थोड़ी देर विश्राम करते हैं. यंहा पर भी श्राइन बोर्ड की तरफ से प्रसाद की दुकान बनी हुई हैं. और एक भोजनालय भी बना हुआ हैं. थोड़ी देर बाद जब भीड़ कम हो जाती हैं तो भैरो नाथ के दर्शन करते हैं.
भैरो नाथ का मंदिर |
एक और दृश्य |
भैरो मंदिर से सुन्दर दृश्य |
सुन्दर घाटी |
माता के द्वार को जाने के लिए बने मार्ग |
सुन्दर पहाड़ |
भैरो मंदिर के सामने |
भैरो मंदिर पर थोड़ी देर रुकने के बाद हम लोग नीचे की और चल पड़े. और थोड़ी देर में सांझी छत पहुँच जाते हैं. यंही पर हमें हमारे दूर के एक रिश्तेदार भी मिले, जो की बडौत , जिला बागपत (उ. प्र.) से आये हुए थे. मैं उनका फोटो नहीं ले पाया था. जिसका मुझे आगे जाकर के ध्यान आया.
सांझी छत से कटरा रेलवे स्थानक |
ये ऊपर वाला चित्र कटरा में बन रहे रेलवे स्टेशन का हैं. जनवरी २०१३ से कटरा तक रेल पहुँच जायेगी. जिसका तीर्थ यात्रियों को बहुत आराम हो जायेंगा. समय भी बचेगा और पैसे भी बंचेगे.
सांझी छत से कटरा नगर |
सांझी छत हेली पैड |
सांझी छत का एक दृश्य |
सांझी छत |
अर्ध कुंवारी |
हम लोग अर्ध कुंवारी पहुँच कर करीब आधा घंटा विश्राम करते हैं और कुछ खा पीकर के आगे की और नीचे कटरा चल पड़ते हैं. हम लोग करीब २ बजे बाण गंगा पहुँच जाते हैं. और बाण गंगा से टम्पू करके अपने होटल मालती पैलेस पहुँच जाते हैं. होटल में पहुँच कर घोड़े बेच कर सो जाते हैं. करीब छह बजे उठ कर नहा धोकर, कटरा में घूमने के लिए निकल पड़ते हैं. कटरा के फोटो मैंने अपनी पहली पोस्ट "माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -१ ( मुज़फ्फरनगर से कटरा)" में डाले हैं. होटल में खाना खाने के बाद, बाज़ार घूमने के बाद करीब दस बजे हम लोग आकार के सो जाते हैं
अगली सुबह हमें धनसर बाबा, झज्जर कोटली आदि के लिए जाना था. इसका वृत्तान्त आप लोग
"माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -५ (धनसर बाबा, झज्जर कोटली, कोल कन्दौली)" में पढ़ सकते हैं. जय माता की. वन्देमातरम.
वाह बहुत सुंदर पोस्ट ।खूबसूरत तस्वीरों और फ़ोटुओं के साथ कमाल की जानकारी और उस पर आपकी रोचक शैली । बरसों पहले दफ़्तर के साथियों के साथ गया था । सब कुछ चलचित्र की तरह आंखों के सामने से घूम गया । संग्रहणीय पोस्ट । बहुत बहुत आभार आपका ।
ReplyDeleteकुछ बिखरा ,बेसाख्ता , बेलौस , बेखौफ़ ,बिंदास सा
अजय जी बहुत बहुत धन्यवाद, जय माता की....
Deleteप्रवीन जी आपने जिस अंदाज में माता की यात्रा का वर्णन किया है उससे दिल खुश हो गया। लेख व फ़ोटो सब अति उत्तम।
ReplyDeleteसंदीप जी सराहना करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...जय माता की....
Deleteबहुत बढ़िया रहा माँ वेश्नो देवी का यह सफ़र ..मैं यहाँ 4 बार होकर आई हु और जाने की इच्छा है देखे कब माता का बुलावा आता है ...
ReplyDeleteदर्शन जी चलो बुलावा आया हैं माता ने बुलाया हैं. जय माता की...बहुत बहुत धन्यवाद...
Deleteबढिया यात्रा जितनी बार करो कम है
ReplyDeleteमनु जी जय माता की....
Deleteशास्त्री जी धन्यवाद बहुत बहुत, जय माता की, वन्देमातरम...
ReplyDeleteअपनी यादें ताज़ा हुईँ।
ReplyDeleteshriram...........
ReplyDeletejay mata di........
bada pyra bhara tera dwar bhavani.....
rakesh40296@gmail.com
ReplyDeletejai mata di
ReplyDeleterakesh40296@gmail.com
ReplyDeleteThank you for the auspicious writeup. It in reality used to be a enjoyment account it.
ReplyDeleteLook complicated to far added agreeable from you! However,
how can we communicate?
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