Monday, June 2, 2025

UP NEW DGP - RAJEEV KRISHNA RAJ

UP NEW DGP - RAJEEV KRISHNA 

UP New DGP: कौन हैं IPS राजीव कृष्ण,जिन्हें बनाया गया यूपी का नया डीजीपी; प्रशांत कुमार को भी मिलेगी नई जिम्मेदारी

हम समस्त वैश्य समाज को गर्व हैं कि श्री राजीव कृष्ण उत्तर प्रदेश के नए कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किए गए हैं। वह 1991 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं और वर्तमान में डीजी विजिलेंस के पद पर कार्यरत हैं। इससे पहले प्रशांत कुमार कार्यवाहक डीजीपी थे जिनका कार्यकाल पूरा हो गया। राजीव कृष्ण को सिपाही भर्ती परीक्षा को सफलतापूर्वक कराने के बाद इस पद के लिए प्रबल दावेदार माना जा रहा था। प्रदेश को लगातार पांचवें कार्यवाहक डीजीपी मिले हैं।


राजीव कृष्ण बने नए कार्यवाहक डीजीपी .
राजीव कृष्ण बने यूपी के कार्यवाहक डीजीपी |
पांचवें कार्यवाहक डीजीपी की तैनाती |
सिपाही भर्ती परीक्षा के बाद चर्चा में आए |

उप्र पुलिस के नए मुखिया के रूप में 1991 बैच के आइपीएस अधिकारी राजीव कृष्ण चुने गए हैं। उन्हें कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया है। प्रदेश में यह लगातार पांचवें कार्यवाहक डीजीपी की तैनाती है। राजीव कृष्ण डीजी विजिलेंस के पद पर तैनात हैं और उनके पास अध्यक्ष/डीजी पुलिस भर्ती व प्रोन्नति बोर्ड का अतिरिक्त प्रभार भी है।

बीते दिनों 60,244 पदों पर सबसे बड़ी सिपाही भर्ती परीक्षा का पेपर लीक होने के बाद दोबारा इस भर्ती को सकुशल व निष्पक्ष ढंग से संपन्न कराने के बाद से ही राजीव कृष्ण को अगले डीजीपी के रूप में देखा जा रहा था। मूलरूप से गौतमबुद्धनगर के निवासी राजीव कृष्ण एडीजी लखनऊ व आगरा जोन समेत अन्य महत्वपूर्ण पदों पर तैनात रहे हैं। कार्यवाहक डीजीपी के रूप में तैनात 1990 बैच के आइपीएस अधिकारी प्रशांत कुमार को सेवा विस्तार मिलने की चर्चा थी, जिस पर शनिवार रात विराम लग गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भरोसेमंद अधिकारियों में गिने जाने वाले प्रशांत कुमार को जल्द कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।

कुमार ने पिछले वर्ष एक फरवरी को कार्यवाहक डीजीपी का कार्यभार संभाला था। प्रदेश में वर्ष 2017 में भाजपा सरकार के गठन के बाद यह नौवें डीजीपी की तैनाती है। 24 अप्रैल, 2017 को सबसे पहले सुलखान सिंह डीजीपी बने थे, जिन्हें एक सेवा विस्तार भी मिला था। उनके बाद ओपी सिंह, हितेश चंद्र अवस्थी व मुकुल गोयल पूर्णकालिक डीजीपी के रूप में तैनात रहे। जबकि डा. देवेन्द्र सिंह चौहान को 12, मई 2022 को पहला कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया था। इसके बाद डीजीपी के चयन के लिए संघ लोक सेवा आयोग को कोई प्रस्ताव नहीं भेजा गया है।

चौहान के बाद 31 मार्च,2023 को डा.आरके विश्वकर्मा दूसरे व इसी वर्ष 31 मई को विजय कुमार तीसरे कार्यवाहक डीजीपी बने। विजय कुमार का सेवाकाल 31 जनवरी, 2024 को पूरा हुआ था, जिसके उपरांत प्रशांंत कुमार चौथे कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया था। नए डीजीपी के चयन की चर्चाएं शुरू होने के बाद राजीव कृष्ण को ही इस पद का सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा था। 1991 बैच में वह वरिष्ठता सूची में तीसरे स्थान पर हैं। इस बैच में आलोक शर्मा व पीयूष आनन्द वरिष्ठता क्रम में आगे हैं पर दोनों ही अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं।

तीन एडीजी बनेंगे डीजीप्रशांत कुमार के साथ ही 31 मई को 1990 बैच के ही आइपीएस अधिकारी पीवी रामाशास्त्री व डा.संजय एम. तरडे का भी सेवाकाल पूरा हाे गया। रामशास्त्री डीजी जेल व तरडे डीजी टेलीकाम के पद पर तैनात थे। एक जून को एडीजी के पद पर तैनात 1992 बैच के आइपीएस अधिकारी आशुतोष पांडेय, आनन्द स्वरूप व नीरा रावत डीजी के पद पर प्रोन्नत हो जाएंंगे। जल्द ही नए डीजी जेल व डीजी टेलीकाम की तैनाती के साथ ही इस स्तर के अधिकारियों में अन्य फेरबदल हो सकते हैं।

Thursday, May 29, 2025

UJJAIN HOLY TRAVELL- MATA HARSIDDHI - 4

UJJAIN HOLY TRAVELL- MATA HARSIDDHI - 4
इससे पहले का यात्रा वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे..(UJJAIN HOLY TRAVELL- 3 - VIKRAMADITYA TILLA)

विक्रम टिल्ले का अवलोकन करने के बाद में माता हरसिद्धि मंदिर की और आ गया. माता हरसिद्धि मंदिर मेरे रुकने के स्थान बालाजी परिसर के बिलकुल पास में हैं. पांच मिनट का रास्ता हैं. इसी कारण से मैंने तीनो दिन जब तक में उज्जैन में रहा सुबह शाम माता के दर्शन किये और आरती में भाग लिया. एक ख़ास बात और हैं मैंने मंदिर के गर्भ गृह में, माता के चरणों में  बैठकर आधा आधा घंटा माता का  नाम जाप किया. ये सौभाग्य अधिकतर शक्ति पीठ में नहीं मिल पाता हैं. मंदिर का परिसर अति विशाल हैं. परिसर में शक्तिपीठ, गणेश जी, शिव जी, गणेश जी के सुन्दर मंदिर हैं.  मंदिर में दो विशाल दीप स्तम्भ बने हुए हैं. इन दीप स्तम्भ में दिन छिपने के बाद शाम की आरती के समय दीपावली की जाती हैं. जिसके लिए भक्त जन तेल बाती का दान देते हैं. जब ये दीप स्तम्भ में दीप प्रज्वलित होते हैं तो ये देखने वाला दृश्य होता हैं. 

माता हरसिद्धि चौराहे  पर स्थित शेरो की मुर्तिया 

श्री हरसिद्धि माता शक्तिपीठ मंदिर, माता सती के 52 शक्तिपीठों में 13वां शक्तिपीठ कहलाता है। कहा जाता है कि यहां माता सती के शरीर में से बायें हाथ की कोहनी के रूप में 13वां टुकड़ा मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित भैरव पर्वत नामक इस स्थान पर गिरा था। लेकिन कुछ विद्वानों का मत है कि गुजरात में द्वारका के निकट गिरनार पर्वत के पास जो हर्षद या हरसिद्धि शक्तिपीठ मंदिर है वही वास्तविक शक्तिपीठ है। जबकि उज्जैन के इस मंदिर के विषय में कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य स्वयं माता हरसिद्धि को गुजरात से यहां लाये थे। अतः दोनों ही स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है।

माता हरिसिद्धी का दूसरा मंदिर गुजरात सौराष्ट्र में द्वारिका जी के पास स्थित हैं. जिसकी पूजा स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण नित्य करते थे. इसके बारे में वर्णन में अपनी द्वारका सोमनाथ की यात्रा वाले ब्लॉग पोस्ट में करूंगा 

मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित शिप्रा नदी के रामघाट के नजदीक भैरव पर्वत पर स्थित श्री हरसिद्धि माता शक्तिपीठ मंदिर प्राचीन रूद्रसागर के किनारे स्थित है। कहा जाता है कि कभी यह पानी से लबालब भरा रहता था ओर इसमें कमल के फूलों की बहार हुआ करती थी और कमल के वही फूल माता के चरणों में अर्पित किये जाते थे। हालांकि रूद्रासगर आज सरकारों की अनदेखी के चलते एक नाममात्र का ही सागर रह गया है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग व हरसिद्धि शक्तिपीठ मंदिर श्रद्धालुओं के लिए ऊर्जा का बहुत बड़ा स्त्रोत माना जाता है। इसलिए यह पवित्र स्थान बारहों मास तपस्वियों और भक्तों की भीड़ से भरा रहता है। यहां हरसिद्धि माता के इस शक्तिपीठ मंदिर की पूर्व दिशा में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर एवं पश्चिम दिशा में शिप्रा नदी के रामघाट हैं।

हरसिद्धि माता को ‘मांगल-चाण्डिकी’ के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि माता हरसिद्धि की साधना करने से सभी प्रकार की दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। राजा विक्रमादित्य जो अपनी बुद्धि, पराक्रम और उदारता के लिए जाने जाते थे इन्हीं देवी की आराधना किया करते थे। इसलिए उन्हें भी हर प्रकार की दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त हो गईं थीं। इसी कारण मांगल-चाण्डिकी देवी को हरसिद्धि अर्थात हर प्रकार की सिद्धि की देवी नाम दिया गया।

किंवदंतियों के अनुसार राजा विक्रमादित्य ने 11 बार अपने शीश को काटकर मां के चरणों में समर्पित कर दिया था, लेकिन हर बार देवी मां उन्हें जीवित कर देती थीं। इस स्थान की इन्हीं मान्यताओं के आधार पर कुछ गुप्त साधक यहां विशेषरूप से नवरात्र में गुप्त साधनाएं करने आते हैं। इसके अतिरिक्त तंत्र साधकों के लिए भी यह स्थान विशेष महत्व रखता है। उज्जैन के आध्यात्मिक और पौराणिक इतिहास की कथाओं में इस बात का विशेष वर्णन भी मिलता है।

जैसा कि शक्तिपीठ मंदिरों की उत्पत्ति के विषय में हमारे पुराणों में वर्णित है कि अपने पिता दक्ष द्वारा अपमानित होकर देवी सती ने हवनकुंड में आत्मदाह कर लिया था। जिसके बाद क्रोध में आकर भगवान शिव ने वैराग्य धारण कर लिया और सती के उस शव को अपने कंधे पर उठाए ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने रहे।

भगवान शिव के वैराग्य धारण कर लेने से सृष्टि का संचालन बाधित हो रहा था इसलिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के टुकड़े कर दिए। और जहां-जहां शव के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुईं कहा जाता है कि उन शक्तिपीठों की रक्षा आज भी स्वयं भगवान शिव अपने भैरव रूप में करते हैं। उज्जैन स्थित भैरव पर्वत नामक इस स्थान पर माता सती के शरीर में से बायें हाथ की कोहनी के रूप में 13वां टुकड़ा गिरा था। तब से यह स्थान 13वां शक्तिपीठ कहलाता है।

स्कंद पुराण में देवी हरसिद्धि का उल्लेख मिलता है। जबकि शिवपुराण के अनुसार यहाँ श्रीयंत्र की पूजा होती है। श्री हरसिद्धि मंदिर के गर्भगृह के सामने सभाग्रह में श्री यन्त्र निर्मित है। कहा जाता है कि यह सिद्ध श्री यन्त्र है और इस महान यन्त्र के दर्शन मात्र से ही पुण्य का लाभ होता है।

मंदिर के गर्भग्रह में माता की जो मूर्ति है वह किसी व्यक्ति विशेष द्वारा दिया गया आकार नहीं बल्कि यह एक प्राकृतिक आकार में है जिस पर हल्दी और सिन्दूर की परत चढ़ी हुई है। मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों ओर भैरव जी की मूर्तियां हैं। मंदिर के गर्भगृह में तीन मूर्तियां विराजमान हैं जिसमें सबसे ऊपर माता अन्नपूर्णा, मध्य में माता हरसिद्धि और नीचे माता कालका विराजती हैं।

यहां शक्तिपीठ मंदिर के प्रांगण की चारदिवारी की बनावट और वास्तु कला में शत-प्रतिशत मराठा झलक दिखती है। मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते ही सिंह की प्रतिमा जो माता का वाहन है के दर्शन होते हैं। द्वार के दाईं ओर दो बड़े नगाड़े रखे हैं, जो सुबह और शाम की आरती के समय बजाए जाते हैं।

मंदिर के प्रांगण में हरसिद्धि सभाग्रह के ठीक सामने दो बड़े आकार के दीप स्तंभ बने हुए हैं जो विश्व प्रसिद्ध हैं। इनमें से एक दीप स्तंभ पर 501 दीपमालाएँ हैं, जबकि दूसरे स्तंभ पर 500 दीपमालाएँ हैं। दोनों दीप स्तंभों पर नवरात्र तथा अन्य विशेष अवसरों पर दीपक जलाए जाते हैं। कुल मिलाकर इन 1001 दीपकों को जलाने में एक समय में लगभग 45-50 लीटर रिफाइंड तेल लग जाता है।

इन दीपकों में लगने वाले तेल और मजदूरी का पूरा खर्च पूरी तरह से दानी सज्जनों द्वारा प्रायोजित किया जाता है, जिसके लिए विशेषकर नवरात्रों या अन्य अवसरों पर पहले से ही बुकिंग करवा ली जाती है। नवरात्री के विशेष अवसर पर इन दीपों के प्रज्जवलीत होने से पहले ही यहां पर्यटकों और श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ उमड़ती है। इन दीपमालिकाओं के सैकड़ों दीपक नवरात्री के नौ दिनों तक प्रतिदिन शाम को एकसाथ प्रज्जलीत किए जाते हैं।

इस मंदिर के प्रांगण की चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार के पास बावड़ी है, जिसके बीच में एक स्तंभ है, जिस पर संवत् 1447 अंकित है। मंदिर परिसर में आदिशक्ति महामाया का भी मंदिर है, जहाँ सदैव ज्योति प्रज्जवलित रहती है तथा दोनों नवरात्रों के अवसर पर उनकी महापूजा होती है। मंदिर के प्रांगण में शिवजी का कर्कोटकेश्वर महादेव मंदिर भी है जो चैरासी महादेवों में से एक है। श्रद्धालु यहां कालसर्प दोष निवारण के लिए विशेष पूजा अर्चना करवाते हैं।

यह शक्तिपीठ मंदिर सुबह साढ़े पांच बजे से साढ़े ग्यारह बजे रात तक खुला रहता है। इस दौरान माता के प्रसाद के रूप में दूध और मिठाई आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है, जबकि शाम को यहां फलों का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

यहां शाम की आरती का यहां विशेष महत्व है और इसके लिए प्रतिदिन स्थानीय निवासियों और श्रद्धालुओं की अच्छी-खासी भीड़ जुट जाती है। यह मंदिर आकार में बड़ा और भव्य नहीं है, लेकिन मंदिर और मंदिर प्रांगण की स्वच्छता और व्यवस्था को देखकर मन प्रसन्न हो उठता है।

मान्यताओं के अनुसार यही देवी उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी हैं और यहीं से आराधना करके सम्राट ने देवी को उज्जैन में आने की प्राथना की थी। प्रार्थना के बाद देवी ने सम्राट विक्रमादित्य से कहा था कि मैं रात के समय तुम्हारे नगर उज्जैन में तथा दिन में इसी स्थान पर वास करूंगी। संभवतः इसलिए यहां उज्जैन में माता हरसिद्धि की संध्या आरती का महत्व है।

माता के मंदिर का मुख्य द्वार 


मंदिर के अन्दर 

#MATA HARSIDDHI - माता हरसिद्धि 


गर्भ गृह का द्वार 

दीप स्तम्भ 



#MATA HARSIDDHI MANDIR

मंदिर की जानकारी देता पट 

मंदिर की जानकारी देता पट 

मंदिर के सामने स्थित एक स्थान इसमें भजन चलता रहता हैं और दर्शक दीर्घा भी हैं. 



दीप स्तम्भ और मंदिर 

चिंताहरण गणेश मंदिर 

मंदिर परिसर 

मंदिर परिसर 

मंदिर परिसर 




 दीप स्तम्भ में तेल और बाती  भरते हुए सेवक 


देखिये किस तरह से रिस्क लेकर तेल और बाटी भरते हैं दीपक में 



आन्ध्र प्रदेश से आये हुए तीर्थ यात्री 








देखिये क्या दृश्य हैं.

इन दीप स्तम्भ के दियो में तेल और बाती दान करने के लिए कई कई साल की बुकिंग होती हैं 

माता हरसिद्धि चौराहा 

हरसिद्धि चौराहे से महाकाल मंदिर की और जाने वाली सड़क 

माता हरसिद्धि अवतार और इतिहास के बारे में बताता हुआ पटल 



माता हरसिद्धि परिसर में चिंता हरण गणेश मंदिर 

चिंता हरण गणेश जी 

महामाया मंदिर 














माता हरसिद्धि चौराहा 



होटल के सामने हमारे चायवाले 







और ये मैं...

मेरा होटल माता हरसिद्धि मंदिर के बिलकुल बराबर में था जितने दिन मै उज्जैन में रहा सुबह शाम माता के दर्शन किये और पूजा की..इससे आगे का यात्रा वृत्तान्त जान्ने के लिए पढ़िए...