हरिद्वार
मैं ओर बच्चे बैठे बैठे प्रोग्राम बना रहे थे कि पेपर खत्म हो गए हैं, कंहा घूमने चला जाए, बच्चे कहने लगे कि पापा हरिद्वार यंहा से यानिकी मुज़फ्फरनगर से कुल ८९ किलोमीटर हैं, सबसे नज़दीक हैं, ओर हमें वंहा पर गए भी काफी समय हो गया हैं, तो हरिद्वार ही चलते हैं, बच्चो ने ठीक ही कहा था, हमारे मुज़फ्फरनगर से इतना नज़दीक होते हुए भी हम हरिद्वार नहीं जा पाते हैं. जबकि हरिद्वार हिन्दुओ का सबसे बड़ा तीर्थ स्थान हैं. पुरे संसार में हिंदू कंही भी हैं, वो एक बार हरिद्वार जरुर जाना चाहता हैं, ओर मरने के बाद भी उसकी अस्थिया हरिद्वार में ही गंगा जी में प्रवाहित कि जाती हैं.
कुछ हरिद्वार के बारे में
हरिद्वार यानि हरि का द्वार, या हरद्वार कहो यानि भोले कि नगरी. हरिद्वार हिन्दुओ का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल, देव भूमि उत्तराखंड का प्रवेश द्वार. माँ गंगा पहाड़ों से उतरकर हरिद्वार में ही मैदानों में प्रवेश करती हैं. इसलिए हरिद्वार का एक नाम गंगा द्वार भी हैं. हरिद्वार कुम्भ कि भी नगरी हैं. हर १२ साल बाद यंहा पर कुम्भ मेले का आयोज़न होता हैं. जिसमे पुरे भारतवर्ष से साधु संत, सन्यासी, तीर्थ यात्री आते हैं और महीने भर चलने वाले इस आयोजन में, अलग अलग तिथियों में गंगा जी में स्नान करते हैं. जिसे शाही स्नान भी कहते हैं. ये कंहा जाता हैं कि देवासुर संग्राम में जब असुर लोग अमृत लेकर के भाग रहे थे, तब अमृत कि बूंदे जंहा जंहा गिरी थी, वंही पर अमृत कुंड बन गए थे. उन्ही स्थानों पर हर १२ साल बाद कुम्भ मेले का आयोजन होता हैं. हरकी पौड़ी पर भी अमृत कि बूंदे गिरी थी. ये अमृत कुंड हर कि पौड़ी पर स्थित हैं, इसी लिए हरकी पोड़ी पर स्नान करने कि महत्ता हैं. हरिद्वार का एक नाम मायापुरी भी हैं.
कपिल ऋषि का आश्रम भी यहाँ स्थित था, जिससे इसे इसका प्राचीन नाम कपिल या कपिल्स्थान मिला। पौराणिक कथाओं के अनुसार भागीरथ जो सूर्यवंशी राजा सगर के प्रपौत्र (श्रीराम के एक पूर्वज) थे, गंगाजी को सतयुग में वर्षों की तपस्या के पश्चात् अपने ६०,००० पूर्वजों के उद्धार और कपिल ऋषि के श्राप से मुक्त करने के लिए के लिए पृथ्वी पर लाये। ये एक ऐसी परंपरा है जिसे करोडों हिंदू आज भी निभाते है, जो अपने पूर्वजों के उद्धार की आशा में उनकी चिता की राख लाते हैं और गंगाजी में विसर्जित कर देते हैं। कहा जाता है की भगवान विष्णु ने एक पत्थर पर अपने पग-चिन्ह छोड़े है जो हर की पौडी में एक उपरी दीवार पर स्थापित है, जहां हर समय पवित्र गंगाजी इन्हें छूती रहतीं हैं।
हरिद्वार में पंडो के पास हिन्दुओ के पूर्वजो कि वंशावली
वह जो अधिकतर भारतीयों व वे जो विदेश में बस गए को आज भी पता नहीं, प्राचीन रिवाजों के अनुसार हिन्दू परिवारों की पिछली कई पीढियों की विस्तृत वंशावलियां हिन्दू ब्राह्मण पंडितों जिन्हें पंडा भी कहा जाता है द्वारा हिन्दुओं के पवित्र नगर हरिद्वार में हस्त लिखित पंजिओं में जो उनके पूर्वज पंडितों ने आगे सौंपीं जो एक के पूर्वजों के असली जिलों व गांवों के आधार पर वर्गीकृत की गयीं सहेज कर रखी गयीं हैं. प्रत्येक जिले की पंजिका का विशिष्ट पंडित होता है. यहाँ तक कि भारत के विभाजन के उपरांत जो जिले व गाँव पाकिस्तान में रह गए व हिन्दू भारत आ गए उनकी भी वंशावलियां यहाँ हैं. कई स्थितियों में उन हिन्दुओं के वंशज अब सिख हैं, तो कई के मुस्लिम अपितु ईसाई भी हैं. किसी के लिए किसी की अपितु सात वंशों की जानकारी पंडों के पास रखी इन वंशावली पंजिकाओं से लेना असामान्य नहीं है.
शताब्दियों पूर्व जब हिन्दू पूर्वजों ने हरिद्वार की पावन नगरी की यात्रा की जोकि अधिकतर तीर्थयात्रा के लिए या/ व शव- दाह या स्वजनों के अस्थि व राख का गंगा जल में विसर्जन जोकि शव- दाह के बाद हिन्दू धार्मिक रीति- रिवाजों के अनुसार आवश्यक है के लिए की होगी. अपने परिवार की वंशावली के धारक पंडित के पास जाकर पंजियों में उपस्थित वंश- वृक्ष को संयुक्त परिवारों में हुए सभी विवाहों, जन्मों व मृत्युओं के विवरण सहित नवीनीकृत कराने की एक प्राचीन रीति है.
वर्तमान में हरिद्वार जाने वाले भारतीय हक्के- बक्के रह जाते हैं जब वहां के पंडित उनसे उनके नितांत अपने वंश- वृक्ष को नवीनीकृत कराने को कहते हैं. यह खबर उनके नियत पंडित तक जंगल की आग की तरह फैलती है. आजकल जब संयुक्त हिदू परिवार का चलन ख़त्म हो गया है व लोग नाभिकीय परिवारों को तरजीह दे रहे हैं, पंडित चाहते हैं कि आगंतुक अपने फैले परिवारों के लोगों व अपने पुराने जिलों- गाँवों, दादा- दादी के नाम व परदादा- परदादी और विवाहों, जन्मों और मृत्युओं जो कि विस्तृत परिवारों में हुई हों अपितु उन परिवारों जिनसे विवाह संपन्न हुए आदि की पूरी जानकारी के साथ वहां आयें. आगंतुक परिवार के सदस्य को सभी जानकारी नवीनीकृत करने के उपरांत वंशावली पंजी को भविष्य के पारिवारिक सदस्यों के लिए व प्रविष्टियों को प्रमाणित करने के लिए हस्ताक्षरित करना होता है. साथ आये मित्रों व अन्य पारिवारिक सदस्यों से भी साक्षी के तौर पर हस्ताक्षर करने की विनती की जा सकती है.
हरिद्वार का केंद्र व मुख्य स्थान हर की पौड़ी
हम लोग सुबह ५ बजे उठ कर तैयार होकर अस्पताल चौराहे पर पहुंचे, जाते ही हमें राजस्थान परिवहन निगम कि बस जो कि जोधपुर से आ रही थी, मिल गयी, बस में चढ़ते ही बच्चे हँसने लगे, मैंने उनसे हँसने का कारण पूछा तो बोले पापा इस बस में अधिकतर लोग गंजे क्यों हैं, मैंने कहा कि राजस्थान में जब कोई आदमी मरता हैं तो उसकी अश्थिया सुरक्षित रख लेते हैं, और जो कोई भी कभी हरिद्वार जाता हैं तो उन्हें लेकर के आता हैं, और विसर्जन करते हैं. राजस्थान से चलने से पहले ये लोग अपना मुंडन करवा लेते हैं. बस हरिद्वार के पन्त्द्वीप पार्किंग में पहुँच गयी. बस के रुकते ही पंडो की भीड़ बस में चढ गयी, और यात्रियों से पूछने लगी, कंहा के हो, कौन जात हो. यह सुनकर बड़ा अजीब लगा और गुस्सा भी आया. ऐसे ही लोगो की वजह से हिन्दुस्तान में जाति पाति खत्म नहीं हो पा रही हैं. उन्होंने मुझे भी राजस्थान का ही समझा, और मेरी जाति पूछने लगे, मैंने कंहा हिन्दुस्तानी, तो मेरे से लड़ने को आ गए. मैंने चुपचाप निकलने में ही भलाई समझी. ये लोग उत्तराखंड और और पश्चिमी उत्तरप्रदेश से बाहर के लोगो को बहुत बुरी तरह से ठगते हैं. और उनसे दुर्व्यवहार भी करते हैं. खैर पश्चिमी उत्तरप्रदेश के लोग विशेषकर मुज़फ्फरनगर और मेरठ के लोग इनके काबु में नहीं आते हैं.
बस से उतरकर सबसे पहले किसी अच्छे होटल की तलाश शुरू हुई, जंहा से मनसा देवी का रोप वे शुरू होता हैं, वंही पर एक अच्छे होटल में कमरा मिल गया, होटल का नाम मुझे कुछ याद नहीं हैं. ७५०/- में कमरा मिल गया.
माँ मनसा देवी
वंहा पर कुछ देर रुक कर चाय वाय पीकर के सबसे पहले मनसा देवी की पैदल चढाई शुरू की. करीब २५ मिनट में हम मनसा देवी पहुँच गए. प्रसाद की दूकान से प्रसाद ख़रीदा, और माता के दर्शन किये. यह मंदिर बिल्व पर्वत के शिखर पर स्थित हैं. माता मनसा देवी अपने भक्तो के मन की सभी इच्छाओ को पूरा करती हैं. यंहा पर एक वृक्ष पर मनौती का धागा भी बाँधा जाता हैं. हमने भी कभी एक धागा बाँधा था, उसे खोला.
माँ मनसा देवी मंदिर
मनसा देवी पर तीनो भाई बहन
मंदिर के अंदर विश्राम करते हुए
मनसा देवी पर प्रसाद की दुकान के बाहर
दोनों भाई मस्ती में
एक फोटो मेरा भी हो जाए
हमारा परिवार
मनसा देवी से हरिद्वार के पीछे की ओर का दृश्य
मनसा देवी से गंग नहर के उद्गम का दृश्य
गंगा नहर का उद्गम स्थल ओर झूला पुल
सप्त धारा
मनसा देवी से हरिद्वार नगर ओर गंगा नहर का दृश्य
गंगा जी के ऊपर बना हुआ बाँध भीम गोडा बैराज
माँ चंडी देवी
मनसा देवी के दर्शन करके हम लोग थ्री व्हीलर में बैठ कर माँ चंडी देवी के दर्शन को चल दिए. करीब ३ कीलोमीटर की पैदल चढाई करके हम लोग मंदिर परिसर में पहुंचे. यह मंदिर गंगा जी की नीलधारा को पार करके नील पर्वत के शिखर पर हैं. यह मंदिर कश्मीर के राजा सुचेत सिंह द्वारा १९२९ में बनवाया गया था. यह कहा जाता हैं कि माँ आदि शक्ति ने चंद मुंड नामक राक्षसों का यंही पर संहार किया था. माँ कि मूर्ति आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित है. इस मंदिर के पास ही हनुमान जी की माता अंजनी देवी का भी मंदिर हैं. इन मंदिरों तक रोपवे से भी जाया जा सकता हैं. यंही पर ही एक अच्छा रेस्टोरेंट भी बना हुआ है, जिसमे हमने कुछ पेट पूजा की. फिर रोप वे का टिकट लेकर रोप वे के द्वारा नीचे उतर आये.
चंडी देवी से गंगा जी के ऊपर पुल ओर हरिद्वार का दृश्य
चंडी देवी पर ही एक और चित्र
ज़नाब बड़ी खुशी में अजगर अपने गले में डलवा रहे हैं
तरु ने अपने गले में खुशी खुशी अजगर को डलवा लिया, पर जब अजगर ने अपना फन ऊपर को किया तो घबरा गया और चिल्लाने लगा.
जब अजगर ने अपना फन ज़नाब के मुह के ओर किया
चंडी देवी रोप वे
ट्रोली के अंदर
रोप वे
नीचे से ऊपर आती ट्रोली
गंगा जी के बीच में महादेव
गंगा जी के बीचो बीच महादेव की मूर्ती बहुत ही अच्छा दृश्य प्रस्तुत करती हैं और मन श्रद्धा से भर जाता हैं.
शांतिकुंज
माँ चंडी देवी से हम थ्री व्हीलर से शांति कुञ्ज पहुँचते हैं. शांति कुञ्ज हरिद्वार ऋषिकेश मार्ग पर हरिद्वार से ७ किलो मीटर पर स्थित हैं. यह आश्रम आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा स्थापित हैं. जिन्होंने गायत्री परिवार की स्थापना की हैं. आजकल इसके प्रमुख डा. प्रणव पंड्या जी हैं. यंहा पर आयुर्वेदिक वाटिका देखने लायक हैं. यह स्थान हिंदू धर्म और अध्यात्म का प्रमुख केंद्र हैं.
शांतिकुंज का दृश्य
शांतिकुंज - ये मशाल जलती रहे
भारत माता मंदिर
शांतिकुंज के पास ही स्थित हैं भारत माता मंदिर, इसकी स्थापना श्री सत्यमित्रानंद जी ने की थी. यह मंदिर ७ मंजिला ऊँचा हैं. और यंहा से दूर दूर माँ गंगा के फैले हुए विस्तार व सप्त धारा के दर्शन होते हैं.इस मंदिर में हिंदू धर्म के सभी प्रमुख अंगों (सनातन धर्म, आर्य समाज, सिक्ख, जैन, बोद्ध आदि ) के व महापुरुषों के दर्शन होते है.
भारत माता मंदिर प्रवेश द्वार
यंहा से हम विभिन्न मंदिरों को देखते हुए हर की पौड़ी पहुँचते हैं काफी भीड़ थी. माँ गंगा में डुबकी लगाकर, व स्नान करके मन पवित्र हो गया. हम लोग जल्दी नहा लेते हैं पर बच्चे लोग बहुत समय लगते है.
पतित पावनी माँ गंगा
हरकी पौड़ी पर बिरला जी द्वारा बनवाया घंटाघर
पवित्र गंगा में स्नान
बच्चे ठन्डे जल में डुबकी लगाकर बाहर निकलने का नाम नहीं ले रहे हैं.
हर की पौड़ी पर शाम के समय भीड़
रात के समय हर कि पौड़ी
माँ गंगा जी की आरती |
स्नान के बाद माँ गंगा जी की आरती को देखने का सौभाग्य हमें मिला. इसके बाद भूख बहुत लग रही थी, पेट में चूहे कूद रहे थे. मुख्य बाज़ार में स्थित एक होटल में खाने का आनंद लिया, यह होटल अपने खाने के लिए पुरे हरिद्वार में मशहूर हैं. क्या लाजवाब खाना था, मज़ा आ गया. खाना खाने के बाद फिर हर की पौड़ी पहुँच गए और वंहा ठंडी हवाओ का आनंद लेते रहे. करीब दस बजे अपने होटल आ गए, और अपना पड़ कर सो गए.
बहुत बढ़िया...!
ReplyDeleteसराहना के लिए धन्यवाद डा. शास्त्री जी......
ReplyDeleteप्रवीण जी,
ReplyDeleteसीधे और स्पष्ट शब्दों में किये गये इस यात्रा वृतांत को पढ कर मजा आ गया. सभी चित्र बहुत अच्छे ढंग से खींचे गये हैं. बहुत ही सुंदर चित्र हैं. होटल व रेस्त्रां का नाम भी लिख देते तो पहली बार हरिद्वार आने वालों को कुछ और जानकारी भी मिल जाती. आपकी अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा.
धन्यवाद श्रीमान जी, दरअसल होटल और रेस्टोरेंट का नाम मुझे ध्यान नहीं रहा इस लिए नहीं दे पाया हूँ, माफ़ी चाहूँगा.
Deletepravin babu,main bhi haridwar me 24 & 25 may ko tha bada hi achchha jagah hai.
ReplyDeleteआखिर हरि का द्वार जो हैं. अच्छा क्यों नहीं होगा...
ReplyDeletebad
ReplyDeletebahut hi sundar yatra varnan.....
badhiya likhna tha pata nahi kaise bad likha gaya gupta ji maf karna
DeleteVERY NICE PRAVEEN JI
ReplyDeleteRadhey albeli sarkar ki jay. Jay mata Gangs maiya ki jay
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