Saturday, September 28, 2013

A HOLY TRAVELL TO MAA SHAKUMBHRI DEVI - माँ शाह्कुम्भरी देवी यात्रा

मित्रो जय माता की, मित्रो अभी कुछ समय पहले मुझे अपने एक रिश्तेदार के साथ भंडारे के लिए माता शाकुम्भरी देवी के मंदिर की यात्रा करने का सौभाग्य मिला. वैसे तो माता के दर्शन के लिए बहुत बार जाना हुआ हैं. पर यात्रा वृत्तान्त पहली बार डाल रहा हूँ. इधर हमारे पश्चिमी उत्तरप्रदेश के लोग माता के भंडारा करने की मनौती मानते हैं. और मनौती पूरा होने पर वंहा पर जाकर के भंडारा  करते हैं. भंडारा करने के लिए धर्मशाला पहले से बुक करानी पड़ती हैं. और हलवाई आदि को पहले दिन भेजना पड़ता हैं. जिससे की भक्तो को माता के द्वार पर पहुँचते ही प्रसाद चढाने के बाद भंडारे का भोजन तैयार मिलता हैं. हमारे मुज़फ्फर नगर से माता का द्वार १२० किलोमीटर पड़ता हैं. पर यह १२० किलोमीटर ३००  किलोमीटर के बराबर पड़ता हैं. कारण सड़क के बहुत ही खस्ता हालात. किधर से भी चले जाओ चाहे रूडकी से, चाहे सहारनपुर से, बहुत ही बेकार रास्ता हैं. खैर इस वृत्तान्त में मैंने माता की महिमा का बखान और कुछ चित्र डाले हैं. सबसे पहले भूरा देव के दर्शन किये जाते हैं. यंहा से माता का भवन २ किलोमीटर पड़ता हैं. 


माता शाकुम्भरी देवी शक्तिपीठ में भक्तों की गहरी आस्था है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में माता का सुंदर स्थान विराजमान है। सहारनपुर नगर से 25कि.मी तथा हरियाणा प्रांत के यमुनानगर से लगभग 50 कि.मी. दूर यह पावन धाम स्थापित है। शिवालिक पहाड़ियों के मध्य से बहती बरसाती नदी के बीच में मंदिर रूप में माता का दरबार सजा हुआ है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि माता उनकी हर प्रकार से रक्षा करती हैं तथा उनकी झोली सुख-संपत्ति से भर देती हैं। मंदिर के गर्भ गृह में मुख्य प्रतिमा माता शाकुम्भरी देवी की है। माता की दाईं तरफ माता भीमा देवी व भ्रामरी देवी और बाईं तरफ मां शताक्षी देवी विराजमान हैं। 


माता शाकुम्भरी अपने भक्तों द्वारा याद करने पर अवश्य आती हैं। इस संबध में एक प्राचीन कथा का उल्लेख आता है। एक समय में दुर्गम नाम का एक असुर था। उसने घोर तप द्वारा ब्रह्मदेव को प्रसन्न करके देवताओं पर विजय पाने का वरदान प्राप्त कर लिया। वर पाते ही उसने मनुष्यों पर अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया। अंतत: वरदान के कारण उसने देवताओं पर भी विजय प्राप्त कर ली। चारों वेद भी दुर्गम ने इंद्र देव से छीन लिए। वेदों के ना होने पर चारों वर्ण कर्महीन हो गए। यज्ञ-होम इत्यादि समस्त कर्मकांड बंद होने से देवताओं का तेज जाता रहा, वे प्रभावहीन होकर जंगलों में जाकर छिप गए। प्रकृति के नियमों से छेड़ छाड़ होने पर सृष्टि में त्राहि-त्राहि मच गई। सारी पृथ्वी पर भयंकर सूखा पड़ गया जिस कारण सारी वनस्पतियां सूख गईं। खेतों में फसलें नष्ट हो गईं। ऐसी परिस्थितियों में देवता व मानव दोनों मिल कर मां अंबे की स्तुति करने लगे। बच्चों की पुकार सुन कर मां ना आए ऐसा भला कभी हो सकता है? भक्तों की करुण आवाज पर माता भगवती तुरंत प्रकट हो गईं। देवताओं व मानवों की दुर्दशा देख कर मां के सौ नेत्रों से करुणा के आंसुओं की धाराएं फूट पड़ीं। सागरमयी आंखों से हजारों धाराओं के रूप में दया रूपी जल बहने के कारण शीघ्र ही सारी वनस्पतियां हरी-भरी हो गईं। पेड़ पौधे नए पत्तों व फूलों से भर गए। इसके तुरंत बाद माता ने अपनी माया से शाक, फल, सब्जियां व अन्य कई खाद्य पदार्थ उत्पन्न किये। जिन्हें खाकर देवताओं सहित सभी प्राणियों ने अपनी भूख-प्यास शांत की। समस्त प्रकृति में प्राणों का संचार होने लगा। पशु व पक्षी फिर से चहचहाने लगे। चारों तरफ शांति का प्रकाश फैल गया। इसके तुरंत बाद सभी मिलकर मां का गुणगान गाने लगे। चूंकि मां ने अपने शत अर्थात् सौ नेत्रों से करुणा की वर्षा की थी इसलिए उन्हें शताक्षी नाम से पुकारा गया। इसी प्रकार विभिन्न शाक आहार उत्पन्न करने के कारण भक्तों ने माता की शाकुम्भरी नाम से पूजा-अर्चना की।

अंबे भवानी की जय-जयकार सुनकर मां का एक परम भक्त भूरादेव भी अपने पांच साथियों चंगल, मंगल, रोड़ा, झोड़ा व मानसिंह सहित वहां आ पहुंचा। उसने भी माता की अराधना गाई। अब मां ने देवताओं से पूछा कि वे कैसे उनका कल्याण करें? इस पर देवताओं ने माता से वेदों की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की, ताकि सृष्टि का संचालन सुचारु रूप से चल सके। इस प्रकार मां के नेतृत्व में देवताओं ने फिर से राक्षसों पर आक्रमण कर दिया। युद्ध भूमि में भूरादेव और उसके साथियों ने दानवों में खलबली मचा दी। इस बीच दानवों के सेनापति शुम्भ निशुम्भ का भी संहार हो गया। ऐसा होने पर रक्तबीज नामक दैत्य ने मारकाट मचाते हुए भूरादेव व कई देवताओं का वध कर दिया। रक्तबीज के रक्त की जितनी बूंदें धरती पर गिरतीं उतने ही और राक्षस प्रकट हो जाते थे। तब मां ने महाकाली का रूप धर कर घोर गर्जना द्वारा युद्ध भूमि में कंपन उत्पन्न कर दिया। डर के मारे असुर भागने लगे। मां काली ने रक्तबीज को पकड़ कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। उसके रक्त को धरती पर गिरने से पूर्व ही मां ने चूस लिया। इस प्रकार रक्तबीज का अंत हो गया। अब दुर्गम की बारी थी। रक्तबीज का संहार देखकर वह युद्ध भूमि से भागने लगा परंतु मां उसके सम्मुख प्रकट हो गई। दुर्गा ने उसकी छाती पर त्रिशूल से प्रहार किया। एक ही वार में दुर्गम यमलोक पहुंच गया। अब शेर पर सवार होकर मां युध्द भूमि का निरीक्षण करने लगीं। तभी मां को भूरादेव का शव दिखाई दिया। मां ने संजीवनी विद्या के प्रयोग से उसे जीवित कर दिया तथा उसकी वीरता व भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि जो भी भक्त मेरे दर्शन हेतु आएंगे वे पहले भूरादेव के दर्शन करेंगे। तभी उनकी यात्रा पूर्ण मानी जाएगी। आज भी मां के दरबार से आधा कि.मी. पहले भूरादेव का मंदिर है। जहां पहले दर्शन किये जाते हैं।



इस प्रकार देवताओं को अभयदान देकर मां शाकुम्भरी नाम से यहां स्थापित हो गईं। माता के मंदिर में हर समय श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। नवरात्रों व अष्टमी के अवसर पर यहां अत्यधिक भीड़ होती है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश व आसपास के कई प्रदेशों के निवासियों में माता को कुल देवी के रूप में पूजा जाता है। परिवार के हर शुभ कार्य के समय यहां आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। लोग धन धान्य व अन्य चढ़ावे लेकर यहां मनौतियां मांगने आते हैं। उनका अटूट विश्वास है कि माता उनके परिवार को भरपूर प्यार व खुशहाली प्रदान करेंगी। हर मास की अष्टमी व चौदस को बसों, ट्रकों व ट्रैक्टर टालियों में भर कर श्रद्धालु यहां आते हैं। स्थान-स्थान पर भोजन बनाकर माता के भंडारे लगाए जाते हैं। माता के मंदिर के इर्द-गिर्द कई अन्य मंदिर भी हैं। (साभार : http://www.deshmeaaj.com, देश में आज. )



जय माँ शाकुम्भरी देवी 
भूरा देव 
भूरा देव के लिए भक्तो की लाइन 
माँ मनसा देवी  

माँ मनसा देवी का मंदिर करीब २०० पैडिया चढ़ने के बाद के छोटी पहाड़ी पर स्थित हैं. यंहा से माता के धाम का सुन्दर नज़ारा दिखाई देता हैं.
माँ मनसा देवी मंदिर का मुख्य द्वार 
माँ के दर्शनों के लिए ढोल ताशे के साथ जाते हुए 
तीन तिलंगे और पीछे माँ शाकुम्भरी का मंदिर 
इशांक, सानु, प्रतीक माँ मनसा देवी मंदिर के दर्शन के लिए जा रहे हैं..

माँ के दर्शन को जाते हुए मै 
मंदिर क्षेत्र का सुन्दर दृश्य 
जैसा की ऊपर से दिखाई दे रहा हैं, माता के  धाम में बिलकुल भी भीड़ भाड़ नहीं हैं. 

माता का मंदिर 
माता का मंदिर सामने से 
माता का मंदिर दुकानों के पीछे 
मंदिर का मुख्य भवन 
मुख्य द्वार 
गर्भ गृह के सामने भक्त जन  
शंकराचार्य आश्रम 
हरियाणा - पंजाब या दिल्ली की ओर से आ रहे दर्शनार्थियों के लिये सहारनपुर से होकर जाना सबसे सुगम है। इसके लिये सहारनपुर से उत्तर की ओर सहारनपुर - विकासनगर - चकरौता राष्ट्रीय राजमार्ग पर बेहट होकर जाना होता है जो सहारनपुर से पच्चीस किमी की दूरी पर है। (बेहट सहारनपुर जिले की एक प्रमुख तहसील है) । यहां से शाकुम्भरी देवी शक्तिपीठ के लिये रास्ता अलग हो जाता है जो लगभग पन्द्रह किमी लम्बा है। अन्तिम एक किलोमीटर की यात्रा नदी में से होकर की जाती है। यह नदी वर्ष में अधिकांश समय सूखी रहती है। यदि आप अपने वाहन से सहारनपुर तक पहुंचे हैं तो दरबार तक पहुंचना आपके लिये किसी भी प्रकार से कठिन नहीं है। 

सहारनपुर - विकासनगर राष्ट्रीय राजमार्ग व्यस्त सड़क है अतः विकासनगर की ओर जाने वाली या विकासनगर की ओर से आने वाली किसी भी बस में आप बेहट तक तो बिना परेशानी के आ ही सकते हैं। नवरात्र के दिनों में तो आपको सैंकड़ों - हज़ारों ग्रामीण बैलगाड़ियों में, झोटा-बुग्गियों में, ट्रैक्टर ट्रॉलियों में या पैदल ही मां का गुणगान करते हुए जाते मिल जायेंगे। सड़क पर लेट - लेट कर दरबार तक की दूरी तय करने वालों की भी कमी नहीं है। 

सहारनपुर से अनेक बसें विशेष रूप से मां शाकुम्भरी देवी दर्शन के निमित्त भी चलाई जाती हैं जो सहारनपुर में स्थित बेहट बस अड्डे से मिल जाती हैं। यदि आप पूरी टैक्सी करना चाहें तो प्राइवेट टैक्सी (इंडिका, टवेरा, इनोवा, सुमो आदि) भी सहारनपुर नगर में ही सरलता से उपलब्ध हो जाती हैं। देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार की ओर से आने वालों के लिये बेहट पहुंचने के लिये सहारनपुर तक आना आवश्यक नहीं है। देहरादून - दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर छुटमलपुर के पास से कलसिया - बेहट को जाने के लिये अच्छी सड़क है। लगभग इक्कीस किमी लम्बी यह सड़क सहारनपुर - विकासनगर - चकरौता राजमार्ग को देहरादून - सहारनपुर - दिल्ली राजमार्ग से जोड़ती है। अतः देहरादून, रुड़की, हरिद्वार, ऋषिकेश की ओर से आने वाले तीर्थयात्री छुटमलपुर से देहरादून की ओर दो किमी पर खुल रही फतहपुर - कलसिया सड़क पकड़ कर बेहट पहुंच सकते हैं। 
साभार : (thesaharanpur.com/shakumbaridevi.htm)

(मित्रो इस यात्रा वृत्तान्त में सम्पूर्णता लाने के लिए मैंने कुछ लेख दूसरी साईट से लिया हैं. धन्यवाद उन सबका)

6 comments:

  1. हैलो मुझे भी हमने मे मजा आता है। ओर मे हर महीने गमने जाता हु ओर बहोत मजे करता हु।

    ReplyDelete
  2. I think that what you said was actually very reasonable.
    But, what about this? suppose you added a little information? I ain't saying your
    information isn't good, however suppose you added something that makes people want
    more? I mean "A HOLY TRAVELL TO MAA SHAKUMBHRI DEVI - माँ शाह्कुम्भरी देवी यात्रा" is kinda boring.
    You could look at Yahoo's front page and note how they write news headlines to get people interested.
    You might try adding a video or a related picture or two to get people excited
    about what you've written. In my opinion, it could make your posts a little bit more
    interesting.

    Here is my site :: basement renovation ideas ()

    ReplyDelete
  3. This post will assist the internet viewers for setting up new web
    site or even a weblog from start to end.

    Feel free to visit my weblog ... home designs ideas [www.homeimprovementdaily.com]

    ReplyDelete
  4. उम्दा और बेहतरीन... आप को स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

    ReplyDelete
  5. if want to enjoy by spend less money.. here is a very good option. udaipur.. city of lakes.. must visit.. for more info please visit at http://www.hotelgrandesita.com/

    ReplyDelete
  6. if want to enjoy by spend less money.. here is a very good option. udaipur.. city of lakes.. must visit.. for more info please visit at http://www.hotelgrandesita.com/

    ReplyDelete

घुमक्कड यात्री के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।