Sunday, July 12, 2020

एक दिन की दून घाटी की सैर - १

एक दिन की दून घाटी की सैर - १ 


देहरादून पर्यटन स्थल के रूप में बहुत प्रसिद्ध है। देहरादून की समीपवर्ती पहाड़ियाँ जो अपनी प्राकृतिक सुषमा के लिए जानी जाती हैं, मंदिर जो आस्था के आयाम हैं, अभयारण्य जो पशु-पक्षी के प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, रैफ्टिंग और ट्रैकिंग जो पहाड़ी नदी के तेज़ बहाव के साथ बहने व पहाड़ियों पर चढ़ने के खेल है और मनोरंजन स्थल जो आधुनिक तकनीक से बनाए गए अम्यूजमेंट पार्क हैं, यह सभी देहरादून में हैं।

देहरादून या फिर दून घाटी एक बिल्कुल् नज़दीक का एक सुन्दर नगर और पर्यटन स्थल हैं. उत्तराखंड की राजधानी हैं. और करीब ७०० मीटर की उंचाई पर स्थित नगर हैं. चारो और वन व पहाडिया स्थित हैं. उत्तर दिशा की और पहाडो पर मसूरी दिखाई देता हैं. एक दिन दोस्त लोगो के संग देहरादून और उसके आसपास घुमने का कार्यक्रम बन गया. गाडी बुक की और निकल पड़े सुबह ही देहरादून की और. रास्ते में बिहारीगढ़ पड़ता हैं. जंहा के मूंग की दाल के पकोड़े बहुत मशहूर है. वंहा पर रुक कर चाय और पकोड़ो का आनंद लिया. देहरादून सुरंग पार करने से पहले माँ डाट काली के दर्शन किये. जंहा पर सभी रूककर और दर्शन करके जाते हैं. 

डाट काली मंदिर 
डाटकाली मंदिर हिन्दुओ का एक प्रसिद्ध मंदिर है , जो कि सहारनपुर देहरादून हाईवे रोड पर स्थित है | डाट काली मंदिर देहरादून के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है तथा देहरादून नगर से 14 किमी की दुरी पर स्थित है | यह मंदिर माँ काली को समर्पित है इसलिए मंदिर को काली का मंदिर भी कहा जाता है एवम् काली माता को भगवान शिव की पत्नी “देवी सती” का अंश माना जाता है | माँ डाट काली मंदिर को “मनोकामना सिध्पीठ” व “काली मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है | डाट काली मंदिर के बारे में यह माना जाता है कि माता डाट काली मंदिर देहरादन में स्थित मुख्य सिध्पीठो में से एक है | डाट काली मंदिर में एक बड़ा सा हाल भी स्थित है , जिसमे मंदिर में आये श्रद्धालु व भक्त आदि लोग आराम कर सकते है | इस मंदिर का निर्माण 13 वीं शताब्दी में 13 जून 1804 में किया गया था | जब मंदिर का निर्माण कार्य किया जा रहा था तो ऐसा माना जाता है कि माँ काली एक इंजीनियर के सपने में आई थी और जिन्होंने मंदिर की स्थापना के लिए महंत सुखबीर गुसैन को देवी काली की मूर्ति दी थी , जो कि वर्तमान समय में घाटी के मंदिर में स्थापित है | इसलिए इस मंदिर को ” डाट काली मंदिर “ कहा जाता है |अंग्रेजों को दून घाटी में प्रवेश करने के लिए इस मंदिर के समीप सुरंग बनानी पड़ी । लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी जब सुरंग का काम पूरा नहीं हुआ तो अंग्रेजों को भी डाट काली के दरबार में शीश नवाना पड़ा था । गोरखा सेनापति बलभद्र थापा ने यहीं पर भद्रकाली मंदिर की स्थापना की थी इसलिए डाट काली मंदिर के निकट ही एक प्राचीन “भद्रकाली मंदिर” स्थित है । भक्त मानते हैं कि मां डाट काली का शेर, जिसके पैर में सोने का कड़ा है आज भी शिवालिक पर्वत श्रेणी में घूमता रहता है। मान्यता है कि किसी भी मंगलवार से 11 दिन तक विश्वास पूर्वक किया गया डाट चालीसा पाठ बड़े-बड़े कष्ट हर लेता है।

माँ डाट काली मंदिर की मुख्य विशेषता यह है कि इस मंदिर के अन्दर एक दिव्या ज्योति जली रहती है , जो कि 1921 से लगातार जल रही है | इस मंदिर के प्रति इस क्षेत्र में रहने वालो लोगों की अत्यंत श्रधा है क्यूंकि इस क्षेत्र के आसपास के लोग जब भी कोई नया वाहन खरीदते है तो क्षेत्र के लोग इस मंदिर में पूजा करने के लिए माँ डाट काली मंदिर में जरुर लाते है | यह मंदिर देहरादून-सहारनपुर रोड के किनारे पर स्थित है इसलिए जो भी व्यक्ति यहाँ से जाता है वो माँ काली का आशीवाद जरुर लेता है और मंदिर में तेल ,गुड ,घी ,आटा व अन्य वस्तु देवी के समक्ष प्रस्तुत करता है |

इस मंदिर के दर्शन के लिए भक्तो की भीड़ लगी रहती है परन्तु नवरात्रि के पर्व के अवसर पर मंदिर में बहुत बड़ी संख्या में लोग आते है , कभी-कभी तो राजमार्ग को भी बंद करना पड़ता है | नवरात्रि के पर्व के अवसर पर यहाँ भंडारा भी किया जाता है , जहाँ लोग प्रसाद को माँ काली का आशीर्वाद मानकर प्राप्त करते है | इस भंडारे न केवल देहरादून, रुड़की, हरिद्वार, बल्कि यूपी के विभिन्न हिस्सों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। 
(लेखसाभार:http://www.uttarakhanddarshan.in/daat-kali-temple-ancient-temple-dehradun)

देहरादून में हमारा अगला पड़ाव क्लेमेंटाउन में स्थित भगवान् बुद्ध स्तूप मंदिर था. बहुत ही सुन्दर मंदिर और कैंपस चारो और हरियाली और वनों से घिरा हुआ हैं. यंहा आकर मन प्रफुल्लित हो गया.

बुद्ध मंदिर व मठ 

महान स्तूप :

यह शानदार स्तूप देहरादून की उत्कृष्ट संरचनाओं में से एक है। सहारनपुर के रास्ते क्लेमेंट टाउन में स्थित इस 85 मीटर ऊंची संरचना का उद्घघाटन दलाई लामा ने किया था। इसके चारों ओर बगीचा है। यह स्तूप तिब्बत की संस्कृति, परंपरा, कला और विरासत का एक अनोखा उदाहरण है। यह विश्व का सबसे बड़ा स्तूप है। तिब्बती बौद्ध कला की सबसे खूबसूरत परंपरा में डिजाइन भित्ति के साथ इसमें कई सारे शानदार मंदिर कक्ष हैं। इस स्तूप का उद्घघाटन 28 अक्टूबर 2002 में हुआ था।

बुद्ध की मूर्ति :

यह देहरादून का एक अन्य बड़ा आकर्षण है। 103 फीट ऊंची यह मूर्ति दलाई लामा को समर्पित है। यह खूबसूरत बगीचे से घिरा हुआ है जिसमें तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूल हैं। देश-विदेश के काफी सारे पर्यटक शांति के इस प्रतीक को श्रद्धांजलि देने के लिए यहां पर आते हैं।(विकिपीडिआ)


बुद्ध मंदिर व पीछे सुन्दर वन व पार्क 


बुद्ध मंदिर में रोलिंग व्हील 


छोटे छोटे मंदिर व हरियाली 

बुद्ध स्तूप के उद्घाटन के अवसर पर लगा पत्थर 






मंदिर के बाहर मैं 

मंदिर का सुन्दर द्वार 

सुन्दर दृश्य 

एक और सुन्दर दृश्य 


मंदिर स्तूप के बारे में कुछ जानकारी 





भगवान् बुद्ध की सुन्दर प्रतिमा 


एक और मनोहारी चित्र 



बुद्ध मंदिर स्तूप में कुछ समय बिताने के बाद हम लोग पास ही स्थित चन्द्रबनी तीर्थ और आ गए . 

चन्द्रबाणी या चंद्रबनी:

देहरादून-दिल्ली मार्ग पर देहरादून से 7 कि॰मी॰ दूर यह मंदिर चन्द्रबाणी (गौतम कुंड) के लिए प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान पर महर्षि गौतम अपनी पत्नी और पुत्री अंजनी के साथ निवास करते थे। इस कारण मंदिर में इनकी पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि स्वर्ग-पुत्री गंगा इसी स्थान पर अवतरित हुई, जो अब गौतम कुंड के नाम से प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष श्रद्धालु इस पवित्र कुंड में डुबकी लगाते हैं। मुख्य सड़क से 2 कि॰मी॰ दूर, शिवालिक पहाड़ियों के मध्य में यह एक सुंदर पर्यटन स्थल है।

चन्द्रबनी मंदिर 





चन्द्रबनी मंदिर का एक और दृश्य 



चन्द्रबनी  के दर्शन के बाद हमलोग टपकेश्वर  मंदिर की और चल पड़े.शेष  अगले अंक में. (एक दिन में दून घाटी की सैर - २)

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