ओसिया को मन्दिरो की नगरी कहा जाता है। एक समय में ओसिया मे 108 मन्दिर थे। समय के साथ यह संख्या अनेक कारणों से कम होती गई। ओसिया के सभी स्मारक एवं मन्दिर आठवी से बाहरवी शताब्दी के मध्य बनाये गये है। यह पूर्व मध्य कालीन समय के स्मारक कहे जाते है। इन मन्दिरों को उङीसा के सूर्य मन्दिर एवं खजुराहो के मन्दिरों के समकक्ष माना जाता है। यहा के ये स्मारक नागर शैली मे बने हुए है। मन्दिरों को दो भागो मे स्थापत्य कला की दृष्टि से विभक्त किया गया है। पचायतन प्रकार के मन्दिर एवं एकायतन प्रकार के मन्दिर । वर्तमान में ओसियां में 18 स्मारक एवं दो बावङी स्थित है। मन्दिरों में एक महावीर का जैन व शेष हिन्दू मंदिर है। इनमें सूर्य मंदिर,हरिहर के तीन मन्दिर,विष्णु के तीन मन्दिर,पीपला माता का मन्दिर,शिव मन्दिर,एक भग्न मंदिर,भगवान महावीर का जैन मंदिर तथा सबसे विशाल सच्चियाय माताजी मन्दिर का मन्दिर है। इन स्मारकों में सच्चियाय माताजी मन्दिर एवं जैन मन्दिर को छोङकर सभी मन्दिर व स्मारक राजस्थान सरकार के पुरातत्व विभाग के अधीन है। जैन मन्दिर की व्यवस्था जैन ट्रस्ट द्वारा तथा श्री सच्चियाय माताजी मन्दिर की व्यवस्था एक सर्वजातीय सार्वजनिक ट्रस्ट द्वारा की जाती है। जिसकी स्थापना सन् 1976 मे पुजारी जुगराज जी शर्मा ने की थी। सच्चियाय माताजी महिषासुर मर्दिनी का स्वरूप है। सत्य वचन एवं मनोकामना पूर्ण करने वाली माने जाने के कारण सच्चिका कही जाती है। सच्चियाय माताजी की मूर्ति काले प्रस्तर की चार हाथ वाली मूर्ति है। मूर्ति के हाथो मे तलवार ढाल ध्वजा एवं त्रिशूल धारण किये हुए है। सच्चियाय माताजी का मन्दिर एक हिन्दू मन्दिर है, जिसकी पुजा प्रार्थना एवं अनुष्ठान हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार होते है। यहा पर वर्ष में दो मेले चैत्र नवरात्रि एवं आसोज नवरात्रि मे लगते है। जैन धर्म के एक समुदाय की उत्पत्ति ओसियां से होने के कारण ओसवाल सच्चियाय माताजी को कुल देवी के रूप में मानते है।श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान का मंदिर भी है। गुरु जम्भेश्वर भगवान का मंदिर ओसियां रेलवे स्टेशन के पास हैं।
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JODHPUR RAILWAY STATION - IN MORNING |
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ANOTHER VIEW JODHPUR RAILWAY STATION
सुबह होने वाली थी उस समय का फोटो हैं ये.
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WAY TO SACHIYAYI MATA MANDIR - OSIA
ट्रेन से उतरकर मैं स्टेशन से बाहर आ गया. होली के कारण बाहर कोई भी ऑटो व रिक्शा नहीं थी. तभी एक महानुभाव मुझे मिले उन्हें भी मंदिर की और जाना था. उनका पूरा नाम तो मै भूल गया, पर उप नाम याद रहा, श्रीमान कर्नावट जी. जी हाँ ओसवाल जैन वैश्य थे. पुणे से आये थे. हर महीने देवी माँ के दर्शन को आते हैं. बहुत सज्जन व्यक्ति थे. उनके साथ मैं मंदिर की और पैदल ही चल पड़ा. मंदिर करीब डेढ़ किलोमीटर दूर पड़ता हैं. सड़क के दोनों और सुन्दर पत्थरो से बने हुए मकान दिखाई देते हैं. रास्ते में बच्चे होली खेल रहे थे, उनसे बचते बचाते गलियों से होते हुए हम लोग मंदिर पहुँच गए. मंदिर में माता के दर्शन के लिए सीढ़िया चढ़ कर जाना पड़ता हैं.
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MAIN GATE SACHCHIYAYI MATA MANDIR - OSIA |
सच्चियाय माता (सचिया माता) के नाम से भी जानी जाती है इनका मंदिर जोधपुर से 63 किमी दूर ओसियां में स्थित है। यह मंदिर जोधपुर जिले का सबसे बड़ा मंदिर है इसका निर्माण 9वीं या 10वीं सदी में उपेन्द्र ने करवाया था। सच्चियाय माता की पूजा ओसवाल, जैन, अग्रवाल, माहेश्वरी आदि जातियों के लोग पूजते हैं।
हिन्दु पौराणिक इतिहास
सच्चियाय माता का पूर्व का नाम साची था तथा ये असुर राजा पौलोमा की बेटी थी। राजा पौलोमा वृत्र के सेना प्रमुख थे। वृत्र साची से विवाह करना चाहती थी। परंतु साची उससे विवाह नहीं करना चाहती थी इस कारण पौलोमा ने वृत्र का कार्य छोड़ दिया।
पौलोमा दधीचि से विवाह कराना चाहता था। इसके पश्चात् दधीचि और वृत्र के बीच घमासान युद्ध हुआ , युद्ध में यह प्रस्ताव रखा गया कि जो युद्ध जीतेगा वह साची से विवाह करेगा। आखिर में वृत्र ने युद्ध जीता और विवाह किया।
एक पत्थर शिलालेख जो ओसियां में मिला था वह कुछ और कहानी बतलाती हैं। जैन धर्म के एक आचार्य श्रीमद् विजय रत्नाप्रभासुरीजी ने ओसियां की यात्रा की थी इनके अनुसार ओसियां का पूर्व का नाम उपकेशपुर था और यहाँ चामुण्डा माता का एक मंदिर भी था। इनका मानना था कि चामुण्डा माँ लोगों से भैंसों की बली मांगती थी। जैन साधु विजय रत्नाप्रभासुरीजी इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास कर रहे थे। इनका मानना था कि चामुण्डा माता का दूसरा नाम (सच्चियाय माता) ही था।
आज वर्तमान समय में सच्चियाय माता के मंदिर में मिठाई, नारियल, कुमकुम, केसर, धुप, चंदन, लापसी इत्यादि का छड़ावा किया जाता है। बलि का कहीं ज़िक्र भी नहीं होता है।
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मंदिर की सीढ़िया |
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भव्य मंदिर |
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SACHIYAYI MATA TEMPLE - OSIA (साभार: पत्रिका)
माता का मंदिर सैकड़ो सीढ़िया चढ़ने के बाद उचाई पर पहाड़ी पे हैं. जंहा से चारो और रेगिस्तान और ओसिया नगर के दर्शन होते हैं. थोड़ी देर में हम मंदिर के गर्भ गृह में पहुँच गए. आज होली के कारण भीड़ ज्यादा नहीं थी. मंदिर में पहले प्रसाद चढ़ाया. उसके बाद पुजारी जी ने सूखे मेवो का प्रसाद दिया. फिर थोड़ी देर ध्यान लगा कर बैठ गए. मंदिर में अन्दर फोटो लेना मना हैं. इसलिए माता का फोटो विकिपीडिया से लेना पड़ा.
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सचियायी माता ओसिया ( साभार: विकिपीडिया) |
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मंदिर के ऊपर से दृश्य |
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ऊपर से दिखता ओसिया |
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ऊपर से दीखता रेगिस्तान |
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मंदिर का प्रांगन |
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पवित्र मंदिर |
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कर्नावट जी प्रसाद खाते हुए |
सचिया माता मंदिर से निकल कर हम लोग जैन मंदिर काम्प्लेक्स की और आ गए. इन मंदिरों को खजुराहो के मंदिर जैसा कहा जाता हैं. क्योंकि इनकी बनावट खजुराहो के मंदिरों से मिलती हैं. ओसिया में एक खास बात हैं की माता के मंदिर मैं जैन, सनातनी आदि सभी हिन्दू वर्ग दर्शनों के लिए जाते हैं व उनकी आस्था हैं. उन्हें अपनी कुलदेवी मानते हैं. ऐसे ही जैन मंदिर में गणेश, भैरो, देवी माँ, लक्ष्मी माँ, सरस्वती माँ की स्थापना हैं. यंहा पर सभी हिन्दू एक हैं.
जैन मंदिर
ओसियां का सबसे महत्वपूर्ण व चर्चित मंदिर गुर्जर-प्रतिहार राजा वत्सराज के शासनकाल में 700-800 ईस्वी शताब्दी के दरम्यान जैन व्यापारियों ने निर्मित करवाया था। जैन मंदिर को किसी एक व्यापारी ने नहीं बल्कि कइयों ने उदारतापूर्वक दान इच्छा शक्ति से बनवाया था। मंदिर के निर्माण में मूर्ति की प्रतिस्थापना, तोरणद्वार निर्माण, छोटे मंदिर आदि का निर्माण योजनाबद्ध तरीके से किया गया। सम्पूर्ण मंदिर वास्तु एवं मूर्तिकला की शैली की एक सुदीर्घ विकास यात्रा का साक्ष्य प्रस्तुत करता है, जिसमें वास्तु की दृष्टि से महाणक एवं महागुर्जर शैली की झलक भी प्रस्तुत करता हैं। पीले पत्थर से निर्मित यह मंदिर परकोटे के भीतर एक विस्तृत जगती पर निर्मित है। मुख्य भाग नवीं-दसवीं शताब्दी में मंदिरों के सम्मुख तोरणद्वार बनाने की परम्परानुसार ही बनाया गया था, जो कालान्तर में ध्वस्त हो गया था। लेकिन उसके अवशेष मंदिर में रखे हुए हैं। ध्वस्त तोरणद्वार के स्तम्भों में पश्चिमी भारतीय वास्तुशैली के गढ़नों को देखा जा सकता है। गढ़ने में कई मूर्तियां हैं, जिनमें जिन व महावीर स्वामी की भी है। स्तम्भ के ऊपरी भाग में सोलह भुजाएं हैं, जिसके चारों तरफ विद्याधरों की मूर्तियां हैं। स्तम्भ के ऊपरी गोल भाग पर ग्रास पट्टिकाएं उत्कीर्ण हैं, जिन पर नृत्यरत संन्यासियों व स्त्रियों की आकृतियां हैं। जैन मंदिर का आसन संधार जैसा है व एक भीतरी दीवार के गूढ़मंडप से जुड़ा हुआ है व इसके आगे मुखमंडप है। सुख चतुष्की के सामने से थोड़ा हटकर एक तोरण है व दो-दो देवकुलिकाएं दोनों पार्श्वों में हैं। मूल प्रासाद के दोनों ओर व पीछे एक भ्रमन्तिका बनी हुई है। मूल मंदिर के भीतर भी अनेक मंदिर व गढ़ने हैं जिनकी ताखों पर कुबेर, लक्ष्मी, वायु, मिथुन, इन्द्र, अग्नि, यम, उत्कीर्ण हैं। गुढमंडप के ऊपर त्रिस्तरीय स्तूपाकार छत है, जिसके प्रस्तुत पर गंगा-यमुना की आकृतियां उत्कीर्ण की गई हैं। मंदिर के मुखमंडप व इसमें प्रयुक्त सभी स्तम्भों पर लगभग घट-पल्लव अलंकरण कारीगरी की कुशलता का परिचय देती है।
मंदिर के मुख्य प्रासाद के दोनों हिस्सों (पूर्व व पश्चिम) की ओर मुख किए दो-दो देवकुलिकाएं बनी हुई हैं। ये देव कुलिकाएं मंदिर का ही लघु प्रतिरूप हैं, जिनमें तीर्थंकरों की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। मंदिर के मूल गर्भगृह में भगवान महावीर की स्वर्ण-लेपन प्रतिमा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि राजा उपलदेव के मंत्री उहड़ ने जब ओसियां में महावीर जिनालय को बनवाना शुरू किया तो उसकी गाय के दूध से देवी सच्चियाय माता के प्रताप से बालू रेत में भगवान महावीर की मूर्ति का निर्माण हो रहा था। मंत्री उहड़ की गाय, घर में दूध न देकर एक ‘केर’ के पेड़ के नीचे प्रतिदिन उसके स्तनों से दूध झरता था। इस रहस्य को जानने के लिए जब रेत खोदी गई तो मूर्ति पूरी तरह से निर्मित नहीं हो पाई थी। भगवान महावीर के निर्वाण के 70 वर्ष बाद मार्गशीर्ष शुक्ल 5 गुरुवार को आचार्य रत्नप्रभसूरी ने इस प्रतिमा की प्रतिष्ठापना की थी। महावीर स्वामी की मूर्ति की प्रतिष्ठा के बाद जब आचार्य अपने शिष्यों के साथ ओंसियां से चले गये तभी एक यक्ष ने यहां उत्पात मचाना शुरू कर दिया तथा जैनों को सताना शुरू कर दिया, और यहां के लोगों ने रत्नप्रभ सूरी जी को उपद्रव शांत कराने हेतु प्रार्थना की तो उन्होंने अपने शिष्य वीरधवल को भेजा, जिन्होंने यथा का उपद्रव शांत कर दिया लेकिन यक्ष को अमरत्व प्रदान करने हेतु वीरधवल का नाम यक्ष सूरीश्वर रख दिया जो बाद में इसी नाम से विख्यात हुए। जैन मंदिर में आज भी यक्ष प्रतिमा विराजित है। जैन मंदिर का संवत् 1936 से 1951 तक जीर्णोद्वार बड़े पैमाने पर कराया गया। जैन धर्म की आस्था का केन्द्र ओसियां विभिन्न धर्मों का समागम बन गया है, जहां विभिन्न सम्प्रदायों के मंदिर है, इसलिए इस नगर को त्रिवेणी भी कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। महावीर जैन मंदिर से सटे जैन विद्यालय की नींव खुदाई के दौरान एक पात्र में बड़ी संख्या में अरब गवर्नर अहमद की चांदी की मोहरें मिली हैं। इसके अलावा भी इस क्षेत्र में की गई खुदाई के समय मिट्टी की बड़ी-बड़ी मूणें (घड़े) मिले हैं, जिनके मुंह पर गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि के अभिलेख हैं, जो तीसरी या चौथी शताब्दी में बने होने का प्रमाण देते हैं। इन मूणों में से कुछ मंदिर में भी रखी हुई हैं। कुल मिलाकर कला व शिल्प की दृष्टि से समृद्ध ओसियां नगर व इसकी कला तथा पाषाणों पर उत्कीर्ण बेहतरीन घड़ाइयों को देखने के लिए प्रतिदिन बड़ी संख्या में देश-विदेश के सैलानी आते हैं।(http://news.ajitsamachar.com/)
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भगवान् रिषभ देव |
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भगवान् महावीर |
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खुबसूरत मंदिर |
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क्या द्वार हैं वाह |
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क्या कलाकारी हैं |
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श्री मणिभद्र जी |
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श्री नकोड़ा भैरव जी |
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श्री यन्त्रं |
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सुन्दर चित्रकारी |
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गलियारे में चित्रकारी |
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देवी माँ |
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माँ सरस्वती |
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मंदिर परिसर |
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मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी |
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मंदिर का मुख्य द्वार |
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जैन मंदिर का परकोटा |
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जैन मंदिर का बाहरी द्वार |
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जैन धर्मशाला व भोजनालय का मुख्य द्वार |
मंदिर में कुछ समय बिताने के बाद हम लोग भोजनालय की और आ गए. जैन भोजनालय में सुबह, दोपहर शाम का नाश्ता व भोजन मिलता हैं. हमने भी ५० - ५० रूपये का कूपन लिया और शुद्ध सात्विक भोजन का आनंद लिया.
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भोजनालय |
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बच्चो की वानर सेना होली के हुडदंग में |
भोजनालय में भोजन करने के पश्चात हम लोग स्टेशन की और चल पड़े. रास्ते में मैं कुछ शैतान बच्चो की होली खेलते हुए फोटो ली. बच्चे कहने लगे अब हमारे साथ होली खेलो बड़ी मुश्किल में उस वानर सेना से जान बचाई और स्टेशन आ गए.
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स्टेशन के परली तरफ रेत के धोरे - OSIA |
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रेगिस्तान - OSIA
ठीक ११ बजे की ट्रेन थी. प्यास जोरो से लगी थी दूर दूर तक पानी नहीं था. स्टेशन मास्टर के कमरे में जाकर के पानी पिया. स्टेशन से सामने ही रेट के टीले दिखाई दे रहे थे. कुछ लोग दूर उनमे ऊँट की सवारी कर रहे थे. पर हमारे पास समय नहीं था. ठीक ११ बजे ट्रेन आ गयी. हम लोग जोधपुर की और चल दिए.
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