Sunday, August 30, 2020

JODHPUR TRAVELL - 2 - MANDOUR GARDEN

JODHPUR TRAVELL - 2 - MANDOUR GARDEN
जोधपुर की मस्ती भरी यात्रा - मंडौर गार्डन 

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिए क्लिक करे(JODHPUR TRAVELL -1- जोधपुर की मस्ती भरी यात्रा)

होटल से निकलकर पास में में मुख्य चौराहे पर पहुंचा.  आज का मेरा पहला डेस्टिनेशन था मंडौर.  चौराहे से मुझे मण्डोर के लिए बस पकडनी थी. जोधपुर में लोकल बस सुविधाए बहुत अच्छी हैं. मिनी बसे चलती हैं. किराया भी सस्ता हैं. चौराहे से मंडौर के लिए सीधी  बस मिल गयी. करीब नो या दस किलोमीटर के बाद बस ने मुझे मंडौर पहुंचा दिया. इस गार्डन में कोई टिकट नहीं लगता हैं. चित्रांकन की भी अनुमति हैं. पूरा स्मारक घुमने के लिए करीब एक डेढ़ घंटा कम से कम लगता हैं.  अब आगे कुछ मंडौर के बारे में विकिपीडिया से 

मण्डोर का प्राचीन नाम ’माण्डवपुर’ था। यह पुराने समय में मारवाड़ राज्य की राजधानी हुआ करती थी। राव जोधा ने मंडोर को असुरक्षित मानकर सुरक्षा के लिहाज से चिड़िया कूट पर्वत पर मेहरानगढ़ का निर्माण कर अपने नाम से जोधपुर को बसाया था तथा इसे मारवाड़ की राजधानी बनाया। वर्तमान में मंडोर दुर्ग के भग्नावशेष ही बाकी हैं, जो बौद्ध स्थापत्य शैली के आधार पर बना था। इस दुर्ग में बड़े-बड़े प्रस्तरों को बिना किसी मसाले की सहायता से जोड़ा गया था।

यह पड़िहार राजाओं का गढ़ था। सैकड़ों सालों तक यहां से पडिहार राजाओं ने सम्पूर्ण मारवाड़ पर अपना राज किया। सन् १३९५ में चुंडाजी राठोड की शादी पडिहार राजकुमारी से होने पर मंडोर उन्हे दहेज में मिला तब से परिहार राजाओं की इस प्राचीन राजधानी पर राठोड शासकों का राज हो गया। मन्डोर मारवाड की पुरानी राजधानी रही है। मन्डोर रावण की ससुराल होने की किदवन्ति भी है मगर रावण की पटरानी मन्दोद्री नाम से मिलता नाम के अलावा अन्य कोई साक्ष्य यहाँ उपलब्ध नहीं है। मन्डोर में सदियो से होली के दूसरे दिन राव का मेला लगता है। मेले के स्वरुप व परंपरा आज भी सेकडो साल पुरानी हे हाल के वर्षो में स्वरुप में जरुर बदलाव हुआ हे मगर प्राणपराओं में बदलाव नहीं हुआ है। मण्डोर का दुर्ग देवल, देवताओं की राल, जनाना, उद्यान, संग्रहालय, महल तथा अजीत पोल दर्शनीय स्थल हैं। मण्डोर साम्प्रदायिक सद्भाव एवं एकता का प्रतीक हैं। तनापीर की दरगाह, मकबरे, जैन मंदिर तथा वैष्णव मंदिर सभी का एक ही क्षेत्र में पाया जाना, इस तथ्य का मजबूत सबूत हैं कि विभिन्नता में एकता यहाँ के जीवन की प्रमुख विशेषता रही हैं।

आधुनिक काल में मंडोर में एक सुन्दर उद्यान बना है, जिसमें 'अजीत पोल', 'देवताओं की साल' व 'वीरों का दालान', मंदिर, बावड़ी, 'जनाना महल', 'एक थम्बा महल', नहर, झील व जोधपुर के विभिन्न महाराजाओं के स्मारक बने है, जो स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं। इस उद्यान में देशी-विदेशी पर्यटको की भीड़ लगी रहती है। उद्यान में बनी कलात्मक इमारतों का निर्माण जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह व उनके पुत्र महाराजा अभय सिंह के शासन काल के समय सन 1714 से 1749 ई. के बीच किये गए थे। उसके पश्चात् जोधपुर के विभिन्न राजाओं ने इस उद्यान की मरम्मत आदि करवाकर शनै: शनै: इसे आधुनिक ढंग से सजाया और इसका विस्तार किया।

मारवाड़ की इस प्राचीन राजधानी में कई प्राचीन स्मारक हैं। हॉल ऑफ हीरों में चट्टान से दीवार में तराशी हुई पन्द्रह आकृतियां हैं जो हिन्दु देवी-देवतीओं का प्रतिनिधित्व करती है (देवताओं की साल व वीरों का दालान)। अपने ऊची चट्टानी चबूतरों के साथ, अपने आकर्षक बगीचों के कारण यह प्रचलित पिकनिक स्थल बन गया है।

मंडोर गार्डन का में गेट 

बाबा रामदेव मंदिर मंडौर - JODHPUR
मंडौर परिसर में घुसते ही सबसे पहले बाई और बाबा रामदेव मंदिर दिखाई देता हैं. जो की चट्टानों के बीच में बना हुआ हैं.

मंडौर गार्डन एंट्री 

महाराजाओ  के स्मारक 

महाराजाओं के स्मारक

मंडोर उद्यान के मध्य भाग में दक्षिण से उत्तर की ओर एक ही पंक्ति में जोधपुर के महाराजाओं के स्मारक ऊँची प्रस्तर की कुर्सियों पर बने हैं, जिनकी स्थापत्य कला में हिन्दू स्थापत्य कला के उत्कृष्ट समन्वय देखा जा सकता है। इनमें महाराजा अजीत सिंह का स्मारक सबसे विशाल है। स्मारकों के पास ही एक फव्वारों से सुसज्जित नहर बनी है, जो नागादडी झील से शुरू होकर उद्यान के मुख्य दरवाजे तक आती है। नागादडी झील का निर्माण कार्य मंडोर के नागवंशियों ने कराया था, जिस पर महाराजा अजीत सिंह व महाराजा अभय सिंह के शासन काल में बांध का निर्माण कराया गया था।(साभार: विकिपीडिया)

महाराजा मालदेव जी का देवल 
इन स्मारकों को देखकर मंदिर होने का बहम होता हैं. जबकि ये मण्डोर जोधपुर के राजाओं के देवल या स्मारक हैं. ये स्मारक देखकर खजुराहो के मंदिरों की याद आती हैं. इनका आर्किटेक्चर आपस में बहुत मिलता हैं.



एक और देवल 

देवल के अन्दर छत 

देवल महाराजा सूर  सिंह 


राजाओं की छतरिया 

देवल महाराजा गज सिंह जी 








खुबसूरत निर्माण 












जबरदस्त चित्रकारी 







महाराजा अजित सिंह का देवल 

देवल का शिलापट

महाराजा अभय सिंह का देवल 






एक खम्भा महल 
जनाना महल या एक खम्बा महल 

उद्यान में स्थित जनाना महल में वर्तमान समय में राजस्थान के पुरातत्त्व विभाग ने एक सुन्दर संग्रहालय बना रखा है, जिसमें पाषाण प्रतिमाएँ, शिलालेख, चित्र एवं विभिन्न प्रकार की कलात्मक सामग्री प्रदर्शित है। जनाना महल का निर्माण महाराजा अजीत सिंह (1707-1724 ई.) के शासन काल में हुआ था, जो स्थापत्य कला की दृष्टि से एक बेजोड़ नमूना है। जानना महल के प्रवेश द्वार पर एक कलात्मक द्वार का निर्माण झरोखे निकाल कर किया गया है। इस भवन का निर्माण राजघराने की महिलाओं को राजस्थान में पड़ने वाली अत्यधिक गर्मी से निजात दिलाने हेतु कराया गया था। इसके प्रांगण में फव्वारे भी लगाये गए थे।

महल प्रांगण में ही एक पानी का कुंड है, जिसे 'नाग गंगा' के नाम से जाना जाता है। इस कुंड में पहाडों के बीच से एक पानी की छोटी-सी धारा सतत बहती रहती है। महल व बाग़ के बाहर एक तीन मंजिली प्रहरी ईमारत बनी है। इस बेजोड़ ईमारत को 'एक थम्बा महल' कहते हैं। इसका निर्माण भी महाराजा अजीत सिंह के शासन काल में ही हुआ था।(साभार: विकिपीडिया)

मंडौर के बारे में जानकारी 

संग्राहलय का संकेतक 

मंडौर संग्रहालय

छुट्टी के कारण संग्राहलय बंद था. इस कारण से इसे नहीं देख पाया

गार्डन में मंदिर

गार्डन परिसर में श्री काला गौरी ब्रह्मानी माता जी का मंदिर स्थापित हैं.

श्री काला देव जी 




मंदिर परिसर में भेरू जी की बावड़ी 
गार्डन परिसर 

देवताओ की साल का शिलापट 
मारवाड़ की इस प्राचीन राजधानी में कई प्राचीन स्मारक हैं। हॉल ऑफ हीरों में चट्टान से दीवार में तराशी हुई पन्द्रह आकृतियां हैं जो हिन्दु देवी-देवतीओं का प्रतिनिधित्व करती है (देवताओं की साल व वीरों का दालान)। अपने ऊची चट्टानी चबूतरों के साथ, अपने आकर्षक बगीचों के कारण यह प्रचलित पिकनिक स्थल बन गया है

वीरो की दालान व देवताओं की साल 

वीरो की दालान का निर्माण महराजा अजीत सिंह व देवताओ की साल का निर्माण महाराजा अभय सिंह ने करवाया था. वीरो की दालान में चामुंडा जी, महिषासुर मर्दिनी, गोसाई जी, पाबू जी रामदेव जी, हड्बुजी, गोगा जी, और मेहा जी, देवताओ की साल में गणेश वंदना के साथ जालंधर नाथ, शिव पारवती, यम सूर्य, एवं पंचमुखी ब्रह्मा जी की मुर्तिया स्थापित हैं. यंहा पर निर्माण कार्य होने के कारण में अन्दर के फोटो नहीं ले सका.














कैसा लग रहा हूँ. 

गार्डन में लंगूर 
गार्डन में लंगूर बहुत  थे और अपनी मस्ती में लगे हुए थे




स्वादिस्ट खाने की थाली 
गार्डन में काफी देर हो चुकी थी. घुमने के बाद बाहर आगया. बाहर ही कोने में एक ढाबा था. जिसमे पचास रूपये की खाने की थाली थी. खाना स्वादिस्ट बना हुआ था. खाना खाकर में अगले डेस्टिनेशन मेहरानगढ़ की और चल पड़ा. यंहा से आगे का यात्रा  वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे(JODHPUR TRAVELL -3- MEHRANGARH FORT)

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