JODHPUR TRAVELL -3- MEHRANGARH FORT
मंडौर गार्डन से निकलते निकलते दोपहर हो चुकी थी सूरज सर पर आ चुका था. २० मार्च का दिन था. आज छोटी होली थी फिर भी दिन गर्म था. पहले खाना खाया गया. वंही से एक बस नगर के लिए मिल गयी. अब मुझे जाना था मेहरानगढ़ किला. एक दूसरी मिनी बस बदलने के बाद कुछ किलोमीटर चलने के बाद मैं किले के निकट पहुँच गया. किला इतना भव्य विशाल व शानदार बना हुआ हैं कि दूर से ही इसे देखते रह जाते हैं. इसकी उचाई कुतुबमीनार से भी ज्यादा हैं. इस किले के मैंने इतने फोटो लिए पर मैं थका नहीं, ना ही मन भरा. किले में एंट्री का टिकट २०० रूपये व कैमरा का टिकट १०० रूपये था. टिकट लेने के बाद मैं किले में प्रवेश कर गया. अब कुछ किले के बारे में..विकिपीडिया से
मेहरानगढ दुर्ग भारत के राजस्थान प्रांत में जोधपुर शहर में स्थित है। पन्द्रहवी शताब्दी का यह विशालकाय किला, पथरीली चट्टान पहाड़ी पर, मैदान से १२५ मीटर ऊँचाई पर स्थित है और आठ द्वारों व अनगिनत बुर्जों से युक्त दस किलोमीटर लंबी ऊँची दीवार से घिरा है। बाहर से अदृश्य, घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार द्वार हैं। किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार किवाड़, जालीदार खिड़कियाँ और प्रेरित करने वाले नाम हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना आदि। इन महलों में भारतीय राजवेशों के साज सामान का विस्मयकारी संग्रह निहित है। इसके अतिरिक्त पालकियाँ, हाथियों के हौदे, विभिन्न शैलियों के लघु चित्रों, संगीत वाद्य, पोशाकों व फर्नीचर का आश्चर्यजनक संग्रह भी है।
यह किला भारत के प्राचीनतम किलों में से एक है और भारत के समृद्धशाली अतीत का प्रतीक है। राव जोधा जोधपुर के राजा रणमल की २४ संतानों मे से एक थे। वे जोधपुर के पंद्रहवें शासक बने। शासन की बागडोर सम्भालने के एक साल बाद राव जोधा को लगने लगा कि मंडोर का किला असुरक्षित है। उन्होने अपने तत्कालीन किले से ९ किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर नया किला बनाने का विचार प्रस्तुत किया। इस पहाड़ी को भोर चिड़ियाटूंंक के नाम से जाना जाता था, क्योंकि वहाँ काफ़ी पक्षी रहते थे। राव जोधा ने 12 मई 1459 ई. को इस पहाडी पर किले की नीव डाली, जो कि आकृति का है | महाराज जसवंत सिंह (१६३८-७८) ने इसे पूरा किया। मूल रूप से किले के सात द्वार (पोल) (आठवाँ द्वार गुप्त है) हैं। प्रथम द्वार पर हाथियों के हमले से बचाव के लिए नुकीली कीलें लगी हैं। अन्य द्वारों में शामिल जयपोल द्वार का निर्माण १८०६ में महाराज मान सिंह ने अपनी जयपुर और बीकानेर पर विजय प्राप्ति के बाद करवाया था। फतेह पोल अथवा विजय द्वार का निर्माण महाराज अजीत सिंह ने मुगलों पर अपनी विजय की स्मृति में करवाया था।
राव जोधा को चामुँडा माता मे अथाह श्रद्धा थी। चामुंडा जोधपुर के शासकों की कुलदेवी होती है। राव जोधा ने १४६० मे मेहरानगढ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की। मंदिर के द्वार आम जनता के लिए भी खोले गए थे। चामुंडा माँ मात्र शासकों की ही नहीं बल्कि अधिसंख्य जोधपुर निवासियों की कुलदेवी थी और आज भी लाखों लोग इस देवी को पूजते हैं। नवरात्रि के दिनों मे यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
मेहरानगढ दुर्ग की नींव में ज्योतिषी गणपत दत्त के ज्योतिषीय परामर्श पर ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (तदनुसार, 12 मई 1459 ई) वार शनिवार को राजाराम मेघवाल को जीवित ही गाड़ दिया गया। राजाराम के सहर्ष किये हुए आत्म त्याग एवम स्वामी-भक्ति की एवज में राव जोधाजी राठोड़ ने उनके वंशजो को मेहरानगढ दुर्ग के पास सूरसागर में कुछ भूमि भी दी ( पट्टा सहित ), जो आज भी राजबाग के नाम से प्रसिद्ध हैं। होली के त्यौहार पर मेघवालों की गेर को किले में गाजे बाजे के साथ जाने का अधिकार हैं जो अन्य किसी जाति को नही है। राजाराम का जन्म कड़ेला गौत्र में केसर देवी की कोख से हुआ तथा पिता का नाम मोहणसी था। (साभार:विकिपेडिया)
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जोधपुर राज्य के दीवान सिन्धी इन्द्रराज का स्मारक |
किले के क्षेत्र में प्रवेश करते ही सबसे पहले दीवान इन्द्रराज का स्मारक पड़ता हैं. जो की दुश्मन के साथ लड़ते हुए बलिदान हो गए थे.
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दीवान इन्द्रराज का स्मारक |
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किला मेहरानगढ़ |
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मेहरानगढ़ का रास्ता - WAY TO MEHRANGARH, JODHPUR |
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किले का मुख्य द्वार - MERANGARH MAIN GATE. JODHPUR |
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किले के मुख्य द्वार पर गणेश जी का मंदिर |
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मुख्य द्वार पर एक छतरी |
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विशाल मुख्य द्वार |
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किले के अन्दर टिकट काउंटर |
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ऊँची विशाल अट्टालिकाए |
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विशाल गलियारा |
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ऊपर विशाल महल |
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किले के उतरे हुए विशाल दरवाजे
इन दरवाजो में नुकीली कील ठुकी हुई हैं. जिससे हाथी आदि इन्हें तोड़ न सके .
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अँधेरे से उजाले में... |
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किले की प्राचीर से नीचे का दृश्य |
यह किले के पिछले तरफ का दृश्य हैं.
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चट्टानों के ऊपर बनी विशाल दीवारे |
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किले के प्रांगन में एक कलाकार |
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किले के बारे में जानकारी |
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किले के अन्दर दुसरा द्वार |
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अँधेरे और उजाले |
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विशाल व अतुलनीय |
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राव जोधा जी का फलसा |
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एक और गलियारा एक और द्वार |
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कलाकार अपनी कला दिखाते हुए |
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किले के अन्दर मुख्य भाग |
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मुख्य महल |
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महल का आँगन |
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पालकी |
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मारवाड़ी ठाठ |
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महाराजा के बैठने का स्थान |
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एक और दालान |
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विदेशी पर्यटक सुस्ताते हुए |
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मारवाड़ी पगड़ी में क्या शान हैं |
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जोधपुर के राजाओं की फोटो |
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राजा का दरबार |
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यद्ध के वस्त्र |
पुराने समय के युद्ध के लिए वस्त्र, कवच, ढाल, तलवार आदि
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शीश महल |
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शीश महल के बारे में जानकारी |
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शीश महल में एक रक्षक |
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शीशमहल |
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ऊपर से दिखता रेगिस्तान, तोप व जोधपुर |
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मेहरानगढ़ से जसवंत थड़ा |
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किले के अन्दर महल, महल के अन्दर सीढ़िया |
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किले से दिखता उम्मेद भवन |
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दूर उम्मेद भवन व जोधपुर |
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हथियार ही हथियार |
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महल के अन्दर शस्त्रों की प्रदर्शनी |
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एक और महल |
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ऊपर से किले की एंट्री |
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ऊपर से नीचे किले का दृश्य |
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किले में वीर दुर्गा दास राठौड़ का चित्र |
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खतरनाक तलवार |
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विशाल आँगन |
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महाराजा का दरबार |
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दरबार की छत |
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दरबार का एक और दृश्य |
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रानियों के बैठने के झरोखे |
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महल में भगवान् जी का मंदिर |
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माँ चामुंडा के मंदिर को जाने वाला मार्ग |
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किले का विशाल गलियारा |
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किले का पीछे का हिस्सा |
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किले के मेहराबो पर रखी हुई तोपे |
किले की दीवारों पर बड़ी बड़ी तोप रखी हुई हैं. यह तोपे युद्ध के दौरान कहर ढाती थी.
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मैं, तोपे, और नीचे जोधपुर |
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माँ चामुंडा मंदिर दूर से |
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माँ चामुंडा मंदिर |
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कंहा पर निशाना हैं |
मेहरानगढ़ दुर्ग में स्थित मंदिर में चामुंडा की प्रतिमा 558 साल पहले विक्रम संवत 1517 में जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने मंडोर से लाकर स्थापित की थी। परिहारों की कुलदेवी चामुंडा को राव जोधा ने भी अपनी इष्टदेवी स्वीकार किया था। जोधपुरवासी मां चामुंडा को जोधपुर की रक्षक मानते है। मां चामुंडा माता के प्रति अटूट आस्था का कारण यह भी है कि वर्ष 1965 और 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान जोधपुर पर गिरे बम को मां चामुंडा ने अपने अंचल का कवच पहना दिया था। किले में 9 अगस्त 1857 को गोपाल पोल के पास बारूद के ढेर पर बिजली गिरने के कारण चामुंडा मंदिर कण-कण होकर उड़ गया लेकिन मूर्ति अडिग रही।
शारदीय नवरात्रा की प्रतिपदा को 30 सितम्बर, 2008 में हुई मेहरानगढ़ दुखान्तिका में 216 लोग काल कवलित होने के बाद मंदिर में कुछ प्राचीन परम्पराओं में बदलाव किया गया है। आद्यशक्ति मां चामुंडा की स्तुति में कहा गया है कि जोधपुर के किले पर पंख फैलाने वाली माता तू ही हमारी रक्षक हैं। रियासतों के भारत गणराज्य में विलय से पहले मंदिर में नवरात्रा की प्रतिपदा को महिषासुर के प्रतीक भैंसे की बलि देने की परम्परा थी जो बंद की जा चुकी है। मां चामुंडा के मुख्य मंदिर का विधिवत निर्माण महाराजा अजीतसिंह ने करवाया था। मारवाड़ के राठौड़ वंशज चील को मां दुर्गा का स्वरूप मानते हैं। राव जोधा को माता ने आशीर्वाद में कहा था कि जब तक मेहरानगढ़ दुर्ग पर चीलें मंडराती रहेंगी तब तक दुर्ग पर कोई विपत्ति नहीं आएगी।(साभार: पत्रिका)
यह कहा जाता हैं की १९७१ के भारत पाकिस्तान युद्ध में एक बहुत बड़ी चील जोधपुर के ऊपर मंडराती रही थी. उस चील को माता का रूप कहा जाता हैं. युद्ध में पाकिस्तान जोधपुर को बिलकुल भी हानि नहीं पहुंचा पाया था. माता ने चील के रूप में जोधपुर की रक्षा की थी.
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माता के मंदिर से जोधपुर
ऊपर वाले चित्र में बीच में एक पहाड़ी दिख रही हैं जिस पर एक मंदिर बना हुआ हैं. इस पहाड़ी के दोनों और मकान बने हुए हैं.
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विशाल जोधपुर नगर |
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माता के मंदिर में छत की बनावट |
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माता की मूर्ती
यह फोटो मैंने दूर से लिया था. क्यूंकि माता के मंदिर में फोटो लेने की अनुमति नहीं हैं.
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बड़े बड़े कडाह - खाना बनाने के लिए |
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अति विशाल कलश |
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किले के मुख्य द्वार पर ठुकी हुई कील
शत्रुओ से रक्षा के लिए किले के द्वार कीलो से मढ़े जाते थे.
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दो खुबसूरत बच्चे |
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गाड़ियों की पार्किंग |
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मुख्य द्वार पर चित्रकारी |
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फुरशत के पल |
किले के अन्दर देखने के लिए बहुत कुछ हैं. इतने फोटो लिए की उनमे चुनाव करना कि कौन से लगाऊ कौन से नहीं. फिर भी कुछ चुन कर लगाये. किला बहुत बड़ा है थक जाते हैं. किले से बाहर आकार थोड़ी देर मुंडेर पर बैठ कर सुस्ताया. अब मुझे जाना था जसवंत थड़ा. किले के सामने ही थोड़ी दूर हैं. करीब ८०० मीटर पड़ता हैं. कोई वाहन नहीं था. मैं पैदल पैदल ही जसवंत थड़े की और चल पड़ा. यंहा से आगे का वृत्तान्त पढने के लिए क्लिक करे (JODHPUR TRAVELL -4- JASWANT THADA, जसवंत थड़ा)
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