JODHPUR TRAVELL -4- JASWANT THADA, जसवंत थड़ा
किले से निकलकर मैं पैदल पैदल जसवंत थड़े की और चल पड़ा. करीब १५-२० मिनट लगे होगे. दोपहर की गर्मी थी. पसीने से तर हो गया. प्यास लगने लगी थी. पानी दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था.जब इमारत के पास पहुंचा तो पानी का कूलर लगा हुआ देखा, छक कर पानी पीया. इस इमारत को देखने के लिए कोई टिकट नहीं लगता हैं. इस इमारत से थोडा पहले ही महाराजा जसवंत सिंह की विशाल घोड़े पर सवार मूर्ति लगी हुई हैं. इस इमारत का माहौल बहुत ही शांत और सुन्दर हैं. इसे जोधपुर का ताजमहल भी कहा जाता हैं.
किले की तलहटी में एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है जसवंत थड़ा। किले के रास्ते में एक शानदार इमारत। कभी यह केवल मोक्षधाम के रूप में ही जाना जाता था।
लेकिन अब यहां पर्यटक खूब आते हैं। यह भवन लाल घोटू पत्थर के चबूतरे पर बनाया गया है। यहां बना बगीचा और फव्वारा बहुत ही मनोरम लगता है। जोधपुर राजघराना सूर्यवंशी रहा है संगमरमर निर्मित जसवंत थड़े में सूर्य किरणें पत्थर को चीरती हुई अंदर तक आती हैं तो नेत्ररंजक दृश्य नजर आता है। इसमें अंदर जोधपुर नरेशों की वंशावलियों के आकर्षक चित्र बनाए गए हैं।
महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय (1837-1895 ई.)की स्मृति में बने इस जसवन्त थड़े में महाराजा जसवन्तसिंह द्वितीय से लेकर महाराजा हनवंतसिंह तक की सफेद पत्थर से निर्मित छतरियां बनी हुई हैं। साथ ही महारानियों के स्मारक भी देखने लायक हैं।
मोक्ष के धाम जसवंत थड़ा का आज भी पुराना वैभव उसी रूप में कायम है जिस कला रूप में यह बना था। इमारत के पास ही "तखतसिंहोत परिवार" के सदस्यों की छत्तरियां भी बनी हुई हैं।
यह महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय के वारिस महाराजा सरदारसिंह ने बनवाया था। महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय से पहले जोधपुर के नरेशों का मंडोर में अंतिम संस्कार होता था। इनके उलट महाराजा जसवंतसिंह की मर्जी के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार किले की तलहटी में स्थित देवकुंड के किनारे पर किया गया । तब से जोधपुर नरेशों की इसी जगह पर अंत्येष्टि की जाती है। यह सफेद पत्थरों से बनी एक कलात्मक खूबसूरत इमारत है।
नई कहानी सूरज की रश्मियों की छुअन से निखरते इसके सफेद झरोखे और कंगूरे स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं। यह इमारत चांदनी रात में बहुत खूबसूरत दिखाई पड़ती है।
स्काउट गाइड, एनसीसी, एनएसएस, स्कूल कॉलेज के भ्रमण दल, देसी विदेशी सैलानी इसे देखने आते हैं। जोधपुर रिफ के आयोजन के दौरान विख्यात गायकों की आवाज में अलसभोर और संध्या आरती के समय कबीर वाणी माहौल में भक्ति रस घुलता है।
महाराजा सरदारसिंह ने 1900 ई. में नरेशों की तस्वीरें लगीं : सन 1921 ई. के सितम्बर माह में कुल खर्च : 2 लाख 84 हजार678 रूपए बुद्धमल और रहीमबख्श आर्किटेक्ट इसका नक्शा मुंशी सुखलाल कायस्थ ने बनाया और 1 जनवरी 1904 को रेजीडेन्ट जेनिन ने यह थड़ा बनाने की मंजूरी दी थी। जसवंत थड़ा के बुद्धमल और रहीमबख्श आर्किटेक्ट थे। इसके निर्माण में कलात्मकता का पूरा ध्यान रखा गया है।( साभार: पत्रिका )
No comments:
Post a Comment
घुमक्कड यात्री के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।