MATA VAISHNODEVI & PATNITOP TRAVELL - 1
एक बार फिर से माता वैष्णोदेवी की यात्रा हो रही हैं. चूँकि मैं हर साल माता वैष्णोदेवी के दर्शन के लिए जाता हूँ. पहले भी मैं माता वैष्णोदेवी की यात्रा के बारे में लेख लिख चुका हूँ.(माता वैष्णोदेवी यात्रा-भाग १ (मुज़फ्फरनगर से कटरा - KATRA VAISHNODEVI)
इस बार मेरे साथ इस यात्रा में पत्नी नीलम व भतीजा हिमांशु हैं. कटरा में हम उसी मानसी पैलेस में रुके थे. जिसमे हर बार रुकते हैं. सस्ता, साफ़ सुथरा गेस्ट हाउस है ये. बारिश हो रही थी. थोड़ी देर में बारिश रुकने के बाद खाना आदि खाकर, पर्ची बनवाकर ऑटो स्टैंड पर आ गए. इस वृत्तान्त में लेखन कम चित्रांकन ज्यादा हैं. माता वैष्णो देवी के के बारे में बहुत कुछ विकिपीडिया से लिया हैं. इस बार हमारी यात्रा ताराकोट वाले मार्ग से हुई थी. इस मार्ग पर हरियाली छायी हुई हैं भीड़ इस मार्ग पर कम रहती हैं. घोड़े वाले भी इस मार्ग पर नहीं आते हैं. इस मार्ग पर सुन्दर दृश्य दिखाई देते हैं. कटरा से करीब ३ या चार किलोमीटर चल के ताराकोट पहुँचते हैं. कटरा मुख्य चौक ऑटो स्टैंड से ऑटो मिल जाता हैं १५०/- रूपये का चार्ज लगता हैं. ताराकोट से भवन की चढ़ाई शुरू होती हैं. करीब ७ किलोमीटर चढ़ाई करने के बाद अर्ध्कुमारी पहुँचते हैं.
हिन्दू मान्यता अनुसार, शक्ति को समर्पित पवित्रतम हिंदू मंदिरों में से एक है, जो भारत के जम्मू और कश्मीर में त्रिकुटा या त्रिकुट पर्वत पर स्थित है। इस धार्मिक स्थल की आराध्य देवी, वैष्णो देवी को सामान्यतः माता रानी और वैष्णवी के नाम से भी जाना जाता है।
यह मंदिर, जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू जिले में कटरा नगर के समीप अवस्थित है। यह उत्तरी भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है। मंदिर, 5,200 फ़ीट की ऊंचाई पर, कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है। हर वर्ष, लाखों तीर्थ यात्री, इस मंदिर का दर्शन करते हैं और यह भारत में तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला तीर्थस्थल है। इस मंदिर की देख-रेख श्री माता वैष्णो देवी तीर्थ मंडल नामक न्यास द्वारा की जाती है।
यहाँ तक पहुँचने के लिए उधमपुर से कटरा तक एक रेल संपर्क को हालही में निर्मित किया गया है। माता वैष्णो देवी का स्थान हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ सम्पूर्ण भारत और विश्वभर से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।(विकिपीडिया)
होटल के कमरे से एक फोटो |
माँ वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है। अधिकांश यात्री यहाँ विश्राम करके अपनी यात्रा की शुरुआत करते हैं। माँ के दर्शन के लिए रातभर यात्रियों की चढ़ाई का सिलसिला चलता रहता है। कटरा से ही माता के दर्शन के लिए नि:शुल्क 'यात्रा पर्ची' मिलती है।
यह पर्ची लेने के बाद ही आप कटरा से माँ वैष्णो के दरबार तक की चढ़ाई की शुरुआत कर सकते हैं। यह पर्ची लेने के तीन घंटे बाद आपको चढ़ाई के पहले 'बाण गंगा' चैक पॉइंट पर इंट्री करानी पड़ती है और वहाँ सामान की चैकिंग कराने के बाद ही आप चढ़ाई प्रारंभ कर सकते हैं। यदि आप यात्रा पर्ची लेने के 6 घंटे तक चैक पोस्ट पर इंट्री नहीं कराते हैं तो आपकी यात्रा पर्ची रद्द हो जाती है। अत: यात्रा प्रारंभ करते वक्त ही यात्रा पर्ची लेना सुविधाजनक होता है।
पूरी यात्रा में स्थान-स्थान पर जलपान व भोजन की व्यवस्था है। इस कठिन चढ़ाई में आप थोड़ा विश्राम कर चाय, कॉफी पीकर फिर से उसी जोश से अपनी यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं। कटरा, भवन व भवन तक की चढ़ाई के अनेक स्थानों पर 'क्लॉक रूम' की सुविधा भी उपलब्ध है, जिनमें निर्धारित शुल्क पर अपना सामान रखकर यात्री आसानी से चढ़ाई कर सकते हैं।
कटरा समुद्रतल से 2500 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यही वह अंतिम स्थान है जहाँ तक आधुनिकतम परिवहन के साधनों (हेलिकॉप्टर को छोड़कर) से आप पहुँच सकते हैं। कटरा से 14 किमी की खड़ी चढ़ाई पर भवन (माता वैष्णो देवी की पवित्र गुफा) है। भवन से 3 किमी दूर 'भैरवनाथ का मंदिर' है। भवन से भैरवनाथ मंदिर की चढ़ाई हेतु किराए पर पिट्ठू, पालकी व घोड़े की सुविधा भी उपलब्ध है।
कम समय में माँ के दर्शन के इच्छुक यात्री हेलिकॉप्टर सुविधा का लाभ भी उठा सकते हैं। लगभग 700 से 1000 रुपए खर्च कर दर्शनार्थी कटरा से 'साँझीछत' (भैरवनाथ मंदिर से कुछ किमी की दूरी पर) तक हेलिकॉप्टर से पहुँच सकते हैं।
आजकल अर्धक्वाँरी से भवन तक की चढ़ाई के लिए बैटरी कार भी शुरू की गई है, जिसमें लगभग 4 से 5 यात्री एक साथ बैठ सकते हैं। माता की गुफा के दर्शन हेतु कुछ भक्त पैदल चढ़ाई करते हैं और कुछ इस कठिन चढ़ाई को आसान बनाने के लिए पालकी, घोड़े या पिट्ठू किराए पर लेते हैं।
छोटे बच्चों को चढ़ाई पर उठाने के लिए आप किराए पर स्थानीय लोगों को बुक कर सकते हैं, जो निर्धारित शुल्क पर आपके बच्चों को पीठ पर बैठाकर चढ़ाई करते हैं। एक व्यक्ति के लिए कटरा से भवन (माँ वैष्णो देवी की पवित्र गुफा) तक की चढ़ाई का पालकी, पिट्ठू या घोड़े का किराया 250 से 1000 रुपए तक होता है। इसके अलावा छोटे बच्चों को साथ बैठाने या ओवरवेट व्यक्ति को बैठाने का आपको अतिरिक्त शुल्क देना पड़ेगा।(साभार: विकिपीडिया)
ताराकोट मार्ग पर पहुँचते ही सामने एंट्री गेट और एक बड़ी इमारत नज़र आती हैं. इसमें सुरक्षा जांच, यात्रा पर्ची व उसकी जांच होती हैं.
ताराकोट मार्ग पर एंट्री गेट भवन |
ताराकोट मार्ग से दिखता कटरा का दृश्य |
कैमरे से ज़ूम करके लिया गया फोटो - कटरा का क्रीडांगन |
कैमरे से ज़ूम करके लिया गया फोटो - कटरा का मुख्य चौक |
ताराकोट लंगर भवन |
लंगर भवन का अन्दर का दृश्य |
ताराकोट मार्ग से एक और चित्र |
नीलम और हिमांशु |
ताराकोट मार्ग |
अर्ध्कुमारी पहुँचने के बाद नीचे वाले मार्ग से भवन की और चल देते . करीब एक घंटे बाद हिमकोटी पर जाते हैं. लंगर चखे हुए २ घंटे हो चुके थे. भूख लग रही थी. यंहा पर डोसा बहुत अच्छा मिलता हैं साम्भर और नारियल की चटनी का ज़वाब नहीं. बहुत स्वादिष्ट बनती हैं. यंहा पर एक एक डोसा खाकर आगे चल देते हैं.
हिमकोटी में नाश्ता |
हिमकोटी में सांभर डोसा |
सुन्दर दृश्यावली |
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यात्रामार्ग में सुन्दर खिलखिलाते बच्चे |
चढ़ते चढ़ते माता के भवन में पहुँच जाते हैं. हमारी पहले से ही मनोकामना भवन में बुकिंग थी. भवन में पहुंचकर अपने बैड पर पहुँच गए. थोड़ी देर आराम किया. दर्शन रात को दस बजे बाद करने थे, उस समय भीड़ कम हो जाती हैं. समय था तो भवन की और घुमने निकल् पड़े.
मनोकामना भवन डोरमैट्रि |
मनोकामना भवन डोरमैट्रि में नाश्ते खाने का स्थान |
दर्शनार्थियों की भीड़ |
माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया।
हिंदू महाकाव्य के अनुसार, मां वैष्णो देवी ने भारत के दक्षिण में रत्नाकर सागर के घर जन्म लिया। उनके लौकिक माता-पिता लंबे समय तक निःसंतान थे। दैवी बालिका के जन्म से एक रात पहले, रत्नाकर ने वचन लिया कि बालिका जो भी चाहे, वे उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आएंगे. मां वैष्णो देवी को बचपन में त्रिकुटा नाम से बुलाया जाता था। बाद में भगवान विष्णु के वंश से जन्म लेने के कारण वे वैष्णवी कहलाईं। जब त्रिकुटा 9 साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता से समुद्र के किनारे पर तपस्या करने की अनुमति चाही. त्रिकुटा ने राम के रूप में भगवान विष्णु से प्रार्थना की। सीता की खोज करते समय श्री राम अपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुंचे। उनकी दृष्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका पर पड़ी. त्रिकुटा ने श्री राम से कहा कि उसने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया है। श्री राम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है। लेकिन भगवान ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग में वे कल्कि के रूप में प्रकट होंगे और उससे विवाह करेंगे।
इस बीच, श्री राम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा.रावण के विरुद्ध श्री राम की विजय के लिए मां ने 'नवरात्र' मनाने का निर्णय लिया। इसलिए उक्त संदर्भ में लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं। श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाई जाएगी. त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी.
समय के साथ-साथ, देवी मां के बारे में कई कहानियां उभरीं. ऐसी ही एक कहानी है श्रीधर की। श्रीधर मां वैष्णो देवी का प्रबल भक्त थे। वे वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हंसली गांव में रहता थे। एक बार मां ने एक मोहक युवा लड़की के रूप में उनको दर्शन दिए। युवा लड़की ने विनम्र पंडित से 'भंडारा' (भिक्षुकों और भक्तों के लिए एक प्रीतिभोज) आयोजित करने के लिए कहा. पंडित गांव और निकटस्थ जगहों से लोगों को आमंत्रित करने के लिए चल पड़े. उन्होंने एक स्वार्थी राक्षस 'भैरव नाथ' को भी आमंत्रित किया। भैरव नाथ ने श्रीधर से पूछा कि वे कैसे अपेक्षाओं को पूरा करने की योजना बना रहे हैं। उसने श्रीधर को विफलता की स्थिति में बुरे परिणामों का स्मरण कराया. चूंकि पंडित जी चिंता में डूब गए, दिव्य बालिका प्रकट हुईं और कहा कि वे निराश ना हों, सब व्यवस्था हो चुकी है। उन्होंने कहा कि 360 से अधिक श्रद्धालुओं को छोटी-सी कुटिया में बिठा सकते हो। उनके कहे अनुसार ही भंडारा में अतिरिक्त भोजन और बैठने की व्यवस्था के साथ निर्विघ्न आयोजन संपन्न हुआ। भैरव नाथ ने स्वीकार किया कि बालिका में अलौकिक शक्तियां थीं और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया। उसने त्रिकुटा पहाड़ियों तक उस दिव्य बालिका का पीछा किया। 9 महीनों तक भैरव नाथ उस रहस्यमय बालिका को ढूँढ़ता रहा, जिसे वह देवी मां का अवतार मानता था। भैरव से दूर भागते हुए देवी ने पृथ्वी पर एक बाण चलाया, जिससे पानी फूट कर बाहर निकला। यही नदी बाणगंगा के रूप में जानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि बाणगंगा (बाण: तीर) में स्नान करने पर, देवी माता पर विश्वास करने वालों के सभी पाप धुल जाते हैं। नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं। इसके बाद वैष्णो देवी ने अधकावरी के पास गर्भ जून में शरण ली, जहां वे 9 महीनों तक ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियां प्राप्त कीं. भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई। जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महा काली का रूप लिया। दरबार में पवित्र गुफा के द्वार पर देवी मां प्रकट हुईं. देवी ने ऐसी शक्ति के साथ भैरव का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफा से 2.5 कि॰मी॰ की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी.
भैरव ने मरते समय क्षमा याचना की। देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान भी दिया कि भक्त द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए कि तीर्थ-यात्रा संपन्न हो चुकी है, यह आवश्यक होगा कि वह देवी मां के दर्शन के बाद, पवित्र गुफा के पास भैरव नाथ के मंदिर के भी दर्शन करें। इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं।
इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए। वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था। अंततः वे गुफा के द्वार पर पहुंचे। उन्होंने कई विधियों से 'पिंडों' की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली। देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं. वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। तब से, श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं।(विकिपीडिया)
भैरो बाबा के लिए ऊपर ट्राली जाती हुई |
भैरो बाबा से लिया गया भवन का चित्र |
एक और चित्र - भैरो बाबा से ज़ूम करके लिया गया |
रोपवे से पांच मिनट में भैरो बाबा मंदिर पहुँच जाते हैं. इस समय आरती चल रही थी, तो भीड़ भी हो चुकी थी. मंदिर के सामने मैदान में थोड़ी देर बैठ गए और चारो और सुन्दर दृश्यावली की फोटोग्राफी की. ऊपर भैरो मंदिर से नीचे माता का भवन बहुत सुन्दर दीखता हैं.
इससे आगे का वृत्तान्त पढने के लिए करे....(MATA VAISHNODEVI & PATNITOP TRAVELL - 2)
प्रवीण गुप्ता जी को राम राम और वनडे मातरम! बढ़िया यात्रा संस्मरण लिखा है आपने! आपने फोटो के साइज का विकल्प नहीं चुना वरना ये फोटो पूरे कॉलम में फिट हो सकती थीं और भी ज्यादा आकर्षक हो जातीं। फोटो पर क्लिक करिए और large विकल्प चुन लीजिये। कुल चार विकल्प मिलेंगे।
ReplyDeleteसर जी राम राम, वन्देमातरम, सर ये चित्र लार्ज फॉर्मेट में हैं, इससे बड़ा करने में ये बहुत बड़े हो जाते हैं. मनुअली ठीक करने से बहुत समय लगता. आपका बहुत बहुत धन्यवाद, मेरे ब्लॉग को पसंद करने के लिए...राम राम जी...
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